पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर भारत के साथ अपने संबंधों को सहज बनाने की पहल की है। उन्होंने इस्लामाबाद में आयोजित सुरक्षा-संवाद में बोलते हुए कहा कि भारत यदि पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बना ले तो उसे मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों तक पहुंचने की बड़ी सुविधा मिल जाएगी लेकिन यह तभी होगा जबकि भारत कश्मीर में जनमत—संग्रह कराने को तैयार हो। इमरान खान को शायद याद नहीं है कि संयुक्तराष्ट्र संघ के जनमत-संग्रह के प्रस्ताव को खुद संयुक्तराष्ट्र के महासचिव रद्द कर चुके हैं। वह कभी का मर चुका है।
खुद पाकिस्तान उसके लिए कभी तैयार नहीं हुआ है। उस प्रस्ताव के शुरु में कहा गया है कि पाक-कब्जे के कश्मीर में से पाक-फौजें और अफसर बिल्कुल हटें। क्या उन्हें पिछले 70 साल में कभी पाकिस्तान सरकार ने हटाने की कोशिश भी की है? इस्लामाबाद में जब प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने मुझसे जनमत-संग्रह की बात की थी तो मैंने उनसे यही सवाल पूछा था। वे चुप हो गईं। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, जनरल मुशर्रफ तथा पाकिस्तान के अन्य कई राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से मैं पूछता था कि क्या आप कश्मीरियों को तीसरा विकल्प देने याने आजादी के लिए सहमत हैं तो वे कहते थे कि इसकी जरुरत ही नहीं है। सिर्फ दो ही विकल्प है। या तो वह पाकिस्तान में मिले या भारत में !
क्या इमरान खान तीसरे विकल्प के लिए तैयार हैं ? यदि नहीं तो फिर जनमत-संग्रह की बात बेमतलब है। कश्मीर निश्चय ही एक समस्या है। इसे बातचीत से हल किया जा सकता है। अटलजी, डाॅ. मनमोहन सिंह और जनरल मुशर्रफ ने एक चार-सूत्री रास्ता निकाला था। इमरान उसे लेकर ही आगे क्यों नहीं बढ़ते ? जहां तक मध्य एशिया के राष्ट्रों से भारत के फायदे की बात है, इमरान बिल्कुल सही हैं। यदि भारत-पाक संबंध सहज हो जाएं तो भारत को पाकिस्तान से होकर आने-जाने का रास्ता मिल सकता है। मध्य एशिया के इन पांचों राष्ट्रों— उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमानिस्तान और किरगिजिस्तान में अपार खनिज संपदा भरी पड़ी है।
तेल, गैस, लोहे, तांबे, एल्यूमिनियम और कीमती पत्थरों के अनगिनत भंडार अभी तक अनछुए पड़े हैं। इन देशों में पिछले 50 साल में मैं कई बार जाकर रहा हूँ। 1200 किमी की आमू दरिया (वक्षु सरिता) के किनारे मैं कई बार पैदल भी- घूमा हूं। यदि इस क्षेत्र की खनिज-संपदा का हम दोहन कर सकें तो अगले पांच साल में भारत और पाकिस्तान यूरोप से भी अधिक मालदार बन सकते हैं।
दोनों देशों के करोड़ों लोगों को रोजगार मिल सकता है। भारत की कोशिश है कि जो रास्ता उसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान से होकर नहीं मिल रहा है, वह ईरान से होकर मिल जाए। ऐसा हुआ तो पाकिस्तान किनारे लग जाएगा। ऐसा न हो, इसके लिए जरुरी है कि इमरान खान आतंकवाद के खिलाफ बेहद सख्ती से पेश आएं और कश्मीर पर बातचीत शुरु करें। यदि ऐसा हुआ तो भारत से ज्यादा पाकिस्तान का भला होगा।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)