इस्लाम में शब-ए-बारात की अहम फजीलत बताई गई है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, शब-ए-बारात शाबान महीने की 15वीं तारीख को मनाई जाती है. शब-ए-बारात दो शब्दों से मिलकर बनी है, जिसमें शब का मतलब रात और बारात का मतलब बरी है. यानी शब-ए-बारात की पाक रात को इबादत कर के इंसान हर गुनाह से बरी हो सकता है. यह इबादत की रात होती है. इस बार शब-ए-बारात 20 अप्रैल को है.
शब-ए-बारात की रात हर मुसलमान के लिए बहुत अहम होती है. मस्जिदों में रौनक देखने को बनती है. इस दिन मर्द रातभर मस्जिदों में इबादत करते हैं, अपने गुनाहों से तौबा करते हैं, अल्लाह से अपनी खुशहाल जिंदगी की दुआ करते हैं. जबकि, औरतें और लड़कियां घरों में रहकर नमाज पढ़ती हैं, कुरान की तिलावत करती हैं, अल्लाह से अपने गुनाहों से माफी मांगती है.
इस्लाम की मुकद्दस और पाक रातों में से एक शब-ए-बारात भी है. वहीं, इनमें आशूरा की रात, शब-ए-मेराज, शब-ए-कद्र, जुमा की रात, ईद-उल-फित्र की रात है. इन सभी रातों में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देते हैं.
शब-ए-बारात की रात पुरुष कब्रिस्तान जाकर दुनिया से रुखसत हो चुके लोगों की कब्रों पर फातिहा पढ़ते हैं, उनकी मगफिरत (गुनाहों की माफी) की दुआ करते हैं.
माना जाता है कि इस रात अल्लाह अपने बंदों के हर गुनाहों को माफ करता है. इस रात पूरे साल की तकदीर का फैसला भी किया जाता है. इस्लाम के तहत किस इंसान की मौत कब और कैसे होगी, इसका फैसला इसी रात कर दिया जाता है.
इस्लामिक स्कॉलर के मुताबिक, शब-ए-बारात की रात अल्लाह इंसान की सालभर की जिंदगी का फैसला कर देते हैं. इसलिए इस रात को फैसले की रात भी कहा जाता है. इंसान की मौत-जिंदगी का फैसला भी शब-ए-बारात की रात ही होता है. इसलिए शब-ए-बारात की रात को अजीम रातों में शुमार किया जाता है.
इस्लामिक स्कॉलर के मुताबिक, पैगंबर के समय में बनु कल्ब नाम का कबीला हुआ करता था. उनके पास लाखों की तादाद में भेड़ थीं. इसपर मिसाल देते हुए पैगंबर ने फरमाया था, बनु कल्ब के कबीले की भेड़ों के जिस्म पर जितने बाल हैं, शब-ए बारात के मौके पर अल्लाह अपने बंदों के उतने ही गुनाह माफ कर देते हैं.
15 शाबान का रोजा रखने की भी बहुत फजीलत है. शब-ए-बारात के अगले दिन रोजाना रखने से कई इबादतों का सवाब मिलता है. हालांकि, रोजा छोड़ने से गुनाह भी नहीं मिलता है.
वहीं ऑल इंडिया जमीयत दावातुल मुसलिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कारी इसहाक गोरा का कहना है कि इस रात में कुरान की तिलावत तसबीह व नफली नमाज अदा कर दुआएं की जाती हैं.
उन्होंने आगे बताया, ‘इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है. बरकत वाली इस रात में हर जरूरी और सालभर तक होने वाले काम का फैसला किया जाता है और यह तमाम काम फरिश्तों को सौंपे जाते हैं.’ ऐसा कहा जाता है कि तौबा की इस रात को अल्लाह अपने बंदों के पूरे साल का हिसाब-किताब करते हैं.