jheelउत्तर प्रदेश में अवैध खनन का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा है. बालू, मोरम, मिट्टी या पत्थर खनन का गोरखधंधा बेरोकटोक जारी है. खनन के नियम और कायदे कानून महज कागजों में दर्ज हैं. जमीनी हकीकत कुछ और ही है. खनन के खेल में लिप्त माफियाओं और दबंगों से लेकर सफेदपोश हस्तियों के हाथ में है. कोई इसका विरोध नहीं कर सकता. प्रशासन और पुलिस महकमा इस धंधे में हिस्सेदार है और खामोशी से धंधा होने दे रहा है. छुटभैयों को पकड़-धकड़ कर कभी-कभार औपचारिकता निभा ली जाती है. पूर्वांचल या बुंदेलखंड में, दोनों तरफ अवैध खनन जोर-शोर से चल रहा है.

मिर्जापुर, सोनभद्र में बालू और पत्थर खनन का कार्य जोरों पर है तो बुंदेलखंड के बांदा जनपद में भी अवैध खनन जोरों पर है. इसी तरह गंगा सहित अन्य तमाम सहायक नदियों से बालू खनन का काम भी जोरों पर चल रहा है, जहां से निकलने वाला बालू निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होता है. रात के अंधेरे में और अल्ल सुबह अवैध खनन होते और ट्रैक्टरों व ट्रकों के जरिए होने वाली सिलसिलेवार ढुलाई खुलेआम देखी जा सकती है. अवैध खनन में पूर्वांचल के सोनभद्र और मिर्जापुर तो बुंदेलखंड के बांदा, चित्रकूट और फतेहपुर जैसे इलाके माफियाओं और नेताओं को नाम और धन दोनों कमा कर दे रहे हैं.

पूर्व में हाईकोर्ट ने अवैध खनन पर रोक लगा दी थी और सीबीआई से जांच कराने का आदेश भी दिया था. लेकिन खनन के धंधे पर हाईकोर्ट के आदेश का कोई असर नहीं पड़ा. अवैध खनन के धंधे में लगे लोगों और उनके सरपरस्त भ्रष्ट खनन मंत्री गायत्री प्रजापति को संरक्षण देने में निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी बहुत नाम और धन कमा चुके हैं. अवैध खनन को लेकर हाईकोर्ट की सख्ती के बाद भी इस पर रोक नहीं लग पा रही है. सूबे में खनन पर रोक लगने के बाद अवैध खनन चोरी छुपे चल ही रहा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद अवैध खनन का कार्य एक बार फिर जोर पकड़ने लगा है.

सोनभद्र, मिर्जापुर और बांदा इसके केंद्र बने हुए हैं. सोनभद्र में सोन नदी के बालू तथा मिर्जापुर और भदोही में गंगा नदी के बालू का खनन जोरों पर चल रहा है. बांदा में केन नदी, फतेहपुर में यमुना नदी सहित इन जनपदों में बहने वाली अन्य सहायक नदियों से भी निकलने वाले लाल और सफेद बालू का खनन तेजी से हो रहा है. पूर्वांचल के गाजीपुर, बलिया से गोरखपुर तक बालू खनन का कार्य चल रहा है.

पर्यावरण की खुली अनदेखी करते हुए खनन माफिया किस कदर खनन के खेल में लिप्त हैं, इसे देखने के लिए मिर्जापुर के सीटी विकास खंड के तहत परवाराजधर गांव के समीप से बहने वाली गंगा नदी के तट पर जाएं. वहां सफेद बालू के खनन के युद्ध स्तरीय कार्य को देख कर आप दंग रह जाएंगे. दर्जनों नावों के सहारे और अनगिनत मजदूरों के जरिए खनन माफिया बालू खनन कराते खुलेआम दिख जाएंगे. यह धंधा विंध्याचल मंडल के अधिकारियों की नाक के नीचे, मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर चल रहा है और अधिकारी कहते हैं कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.

गंगा इस पार मिर्जापुर जिले से बालू का खनन कर नावों के जरिए उसे गंगा पार भदोही ले जाया जाता है, जहां से ट्रैक्टर और ट्रकों से इस बालू को पूर्वांचल के विभिन्न जनपदों में भेजा जाता है. यह सबकुछ रात के अंधेरे में नहीं, बल्कि दिन के उजाले में खुलेआम चल रहा है. आश्चर्य यह है कि खनन विभाग के अधिकारियों से लेकर प्रशासन और पुलिस के अधिकारी आंख मूदे पड़े रहते हैं और धन उनकी जेब में ऑटोमैटिक आता रहता है. मिर्जापुर के परवाराजधर गांव स्थित गंगा नदी में होने वाले बालू खनन के काम में लगे कुछ श्रमिकों ने बताया कि उन्हें चार-पांच घंटे बालू खनन और ढुलाई करने पर आसानी से तीन से चार सौ रुपए मिल जाते हैं. वे इसी से संतुष्ट हैं. मजदूरों को इससे मतलब नहीं कि खनन कौन करा रहा है. उन्हें बस इससे मतलब है कि उन्हें उनके काम के पैसे फौरन मिल जाते हैं.

अवैध खनन और ढुलाई में लगे भारी लोडरों, ट्रकों और ट्रैक्टरों के कारण सड़कों का भी कचूमर निकल रहा है. अवैध खनन से सरकारी राजस्व के साथ-साथ सड़कों का भी कबाड़ा निकल रहा है. सोनभद्र, मिर्जापुर, भदोही, गाजीपुर, चंदौली, बलिया, आजमगढ़ से लेकर गोरखपुर तक सड़कों की दुर्दशा देखी जा सकती है. यही हाल बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, इलाहाबाद, प्रतापगढ़ जैसे जगहों की सड़कों का भी है. यूपी में सिर्फ बुंदेलखंड के इलाके में ही हर महीने सौ करोड़ की कमाई खनन माफिया कर रहे हैं. बांदा, हमीरपुर, महोबा आदि जिलों में हर महीने तकरीबन 12 हजार ट्रक और दो हजार अन्य छोटे वाहनों से नदियों से खनन कर निकाली गई मौरंग बालू की ढुलाई होती है. इसके अलावा नोएडा, सहारनपुर, बागपत, जालौन, सोनभद्र, कानपुर, मिर्जापुर, फतेहपुर, झांसी, चित्रकूट आदि इलाकों में भी हर महीने इतने सौ करोड़ का अवैध खनन कारोबार है. ढुलाई में एक और बड़ा खेल होता है. एक ट्रक में नौ टन माल ढुलाई की इजाजत होती है. लेकिन माफिया सत्ता-शासन और प्रशासन के दम पर ट्रकों में 30 टन खनन बालू की ढुलाई कराते हैं. पुलिस को हिस्सा मिल जाता है तो कोई एक्शन नहीं होता. इस तरह खनन का अवैध कारोबार बिना किसी भय-बाधा के चलता रहता है.

बुंदेलखंड में बांदा ज़िले के नरैनी तहसील में अवैध खनन के लिए बाकायदा कई घाट बने हुए हैं. शासन प्रशासन की जानकारी में इस इलाके में खुलेआम अवैध खनन होता है. कोई विरोध करे तो उस पर सीधा हमला बोल दिया जाता है. कुछ ही अर्सा पहले खनन का कवरेज कर रहे पत्रकारों की टीम पर हमला किया गया था और प्रेस की गाड़ी तोड़ डाली गई थी. हमला करने वाले खनन माफिया ने खुद को एक नेता व एक ठेकेदार का रिश्तेदार बताया और खुद को कुख्यात डकैत ठोकिया गिरोह का दाहिना अंग भी बताया. खनन के धंधे में लगे ये लोग कहते हैं कि मध्य प्रदेश की खदानों से भी बालू का खनन कराकर उत्तर प्रदेश के रास्ते परिवहन किया जा रहा है. इसके एवज में प्रति ट्रक 5500 रुपए गुंडा टैक्स वसूला जा रहा है. इसका हिस्सा पुलिस को भी मिलता है. एमपी की ही भांति बिहार से भी बड़ी मात्रा में बालू यूपी में आ रहा है.

खनन के धंधे पर अब तो औरों की भी गिद्ध नजर

बुंदेलखंड की खनिज सम्पदा के दोहन पर किसानों का धरना-प्रदर्शन, सियासत और धंधा चलता ही रहता है. बांदा, चित्रकूट समेत हमीरपुर, झांसी, जालौन और ललितपुर में केन, यमुना, रंज, बेतवा, मंदाकिनी से लगे सैकड़ों गांव में बालू खनन का खेल अंधाधुंध गति से जारी है. बुंदेलखंड के खनन माफिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक पर रखकर पुलिस प्रशासन की मदद से नदी की धारा बांधकर पोकलैंड, लिफ्टर मशीनों से खनन करा रहे हैं. किसानों की जमीन पर अवैध खनन वैसे तो ग्राम खपटिहा कला, पैलानी, नरैनी के खलारी, गिरवां के मऊ में भी चल रहा है.

मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, दतिया, छतरपुर, पन्ना, सतना और रीवा से पर्यावरण की लूट कर अपनी झोलियां भरने वाली अमेरिकी कंपनी रियोटिंटो और भारतीय कंपनी वेदांता की नजरें भी अब उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड पर आ टिकी हैं. बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से से सालाना 510 करोड़ राजस्व 1311 खनन क्षेत्र के पट्टों से प्राप्त होता है. यह तो आधिकारिक आंकड़ा है. कमाई का गैर आधिकारिक आंकड़ा अकूत है. मध्य प्रदेश में पड़ने वाले बुंदेलखंड के टीकमगढ़, पन्ना और छतरपुर में बालू पत्थर की खदानें रियोटिंटो और वेदांता की मार से जर्जर हो चुकी हैं. इधर, खनन माफिया नदियों में पोकलैंड और लिफ्टर जैसी मशीनों का प्रयोग कर रहे हैं.

लिफ्टर के प्रयोग से नदी की जलधारा के बीच से 50 फिट अंदर से जिंदा बालू खोद लिया जाता है. इससे नदी में जगह-जगह सैकड़ों फिट के गड्ढे हो जाते हैं और विभिन्न हादसों का कारण बनते हैं. स्वीकृत लीज़ से कई गुना अधिक क्षेत्र में खनन करना तो आम बात हो गई है. 40 एकड़ के स्वीकृत पट्टे पर 400 से 500 एकड़ क्षेत्रफल में खनन कराया जा रहा है और जिला प्रशासन और खनिज विभाग को हिस्सा पहुंचा दिया जाता है. यहां तक कि नदी की जलधारा को मोड़कर अवैध रूप से पुल बनाकर भी खनन किया जा रहा है.

सबसे लंबी भूख हड़ताल… फिर भी मोदी मौन!

बीमार बुंदेलखंड के हृदयस्थल महोबा में अब तक की सबसे लंबी भूख हड़ताल चल रही है. अवैध खनन के गोरखधंधे के बावजूद बुंदेलखंड का महोबा जिला खनन एवं पत्थर उद्योग से सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले जिलों में शुमार है. लेकिन महोबा के लोगों की तरफ शासन का कोई ध्यान नहीं है. महोबा की मरणासन्न स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए एम्स अस्पताल

खुलवाने की मांग को लेकर बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर अपने साथियों के साथ पिछले 240 दिनों से उपवास व सत्याग्रह पर बैठे हैं. सात अगस्त 2016 से भूख हड़ताल पर बैठे बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर कुछ अनोखे अंदाज में अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं. खुद भूखे रहते हैं, लेकिन अपने उपवास स्थल से भूखों को भोजन कराते हैं. पिछले आठ महीने से उपवास स्थल से लगातार भूखों को भोजन मुहैया कराया जा रहा है. उपवास स्थल पर ही उन्होंने रोटी बैंक खोल रखा है, जिसके जरिए प्रतिदिन करीब सौ गरीबों को भोजन उपलब्ध कराया जाता है.

पाटकर के इस अभियान में स्कूली बच्चों से लेकर आम जनता का सहयोग मिल रहा है. उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड में भूख के खिलाफ तारा पाटकर ने अपने सहयोगियों के साथ 15 अप्रैल 2015 को महोबा में देश का पहला रोटी बैंक शुरू किया था. इससे प्रेरित होकर देशभर में सौ से अधिक रोटी बैंक चल रहे हैं. भूख के साथ बीमारियों के खिलाफ जंग शुरू करते हुए बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने अपने साथियों के साथ मार्च 2015 से महोबा में ‘एम्स लाओ’ अभियान शुरू किया. इस अभियान में पहले पोस्टकार्ड मुहिम शुरू की गई और महोबा समेत पूरे बुंदेलखंड से दो लाख पोस्टकार्ड लिखवाकर प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा गया.

इनमें मुस्लिमों ने पांच हजार खत संस्कृत में लिखे थे. एम्स के लिए हिन्दुओं ने सामूहिक रोजे रखे थे और हज यात्रियों ने मक्का मदीना जाकर एम्स के लिए दुआ मांगी थी. रक्षाबंधन पर बुंदेली बहनों ने प्रधानमंत्री को 5001 राखियां एक साथ भेजीं एवं एम्स देकर जीवन रक्षा की गुहार लगाई थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन पर 65 मीटर लंबे कपड़े में 10 हजार स्कूली बच्चों ने एक साथ बधाई संदेश लिखकर भेजा था, लेकिन इसके बाद भी महोबा में एम्स की घोषणा नहीं हुई.

इस पर बुंदेली समाज ने महोबा के आल्हा चौक में 7 अगस्त 2016 से भूख हड़ताल शुरू कर दी जो लगातार जारी है. महोबा हमीरपुर के सांसद पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल ने महोबा में एम्स खोलने की मांग को लेकर लोकसभा में मांग उठाई. पूर्व सांसद विजय बहादुर सिंह व गंगा चरण राजपूत ने भी मांग उठाई. बुंदेली समाज का एक प्रतिनिधिमंडल यूपी के राज्यपाल राम नाईक से भी मिला. भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कांत बाजपेई ने भी मांग का समर्थन किया एवं मोदी जी को खत लिखा. मांग को संवेदनापूर्ण बनाने के लिए बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर पिछले 20 महीने से नंगे पैर चल रहे हैं.

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