धर्म और इतिहास के अनगिनत धरोहरों को अपने में समेटे कैमूरांचल की धरती ने अब अलग तरह की अंगड़ाई ली है. दुर्गम पहाड़ी और जंगलों में बसे गांवों के लोग सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए अब स्वयं उठ खड़े हुए हैं. कहीं आपसी सहयोग से सड़क का निर्माण हो रहा है तो कहीं पाठशाला चलाई जा रही है. सरकार कुछ करे या नहीं, लेकिन ये वनवासी अब जागरूक हो गए हैं.
रोहतास जिला में चेनारी प्रखंड से लेकर नौहट्टा प्रखंड के अंतिम छोर और रोहतास के अंतिम गांव डुमरखोह के बीच चल रहे विकास कार्यों को पूरा करने का बीड़ा अब पहाड़ व तलहटी पर बसे वनवासियों ने उठा लिया है. पौराणिक धर्म स्थली गुप्ता धाम जाने के लिए लोग सदियों से कैमूर पहाड़ी में घनघोर जंगलों के बीच से होकर वहां पहुंचते थे. यहां पहुंचने का एक और रास्ता पचौरा घाट से भी होकर जाता है. अगर दुर्गम पहाडी पर चार किलोेमीटर का रास्ता बन जाए तो चालीस किलोमीटर की दूरी खत्म हो जाएगी. इस सोच के साथ पहाड़ी पर बसे औरइयां, भुड़कुडा, जारादाग और उरदाग गांवों के लोग आगे आए.
यहां के निवासी चालीस किलोमीटर की लंबी यात्रा वाहनों से तय कर अपने गांव पहुंचते थे. फिर क्या था, इन गांवों के सैकड़ों युवा हाथ में कुदाल और फावड़ा लेकर पचौरा घाट से लेकर औरइयां गांव की चार किलोमीटर लंबी सड़क बनाने निकल पड़े. इसे बनाने में कई मुसीबतें भी आईं. कहीं कठोर चट्टानों को तोड़ा गया तो कहीं मिट्टी के ढेर हटाने पड़े. महाशिवरात्रि में गुप्ता धाम में लगने वाले मेले से पहले इस सड़क के निर्माण का संकल्प लेकर सैकड़ों युवा पत्थरों का सीना चीरने निकल पड़े. शाम तक इनका एक ही संकल्प होता था पत्थरों को काटकर समतल करना. अब यह सड़क लगभग तैयार हो चुकी है.
सड़क निर्माण के लिए इन गांवों के निवासियों ने कई वर्षों तक राज्य सरकार को आवेदन भेजा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई थी. अधिकारियों का रवैया देखकर ग्रामीणों ने स्वयं फावड़ा और कुदाल उठाने का फैसला किया. इतना ही नहीं, इनसे प्रेरित होकर नागाटोली, बभनतलाब आदि गांवों के युवाओं ने रोहतास गढ़ किला की तरफ जाने के लिए बौलिया से फांसीघर के बीच तीन किलोमीटर पहाड़ की कटाई कर रास्ता बनाने का संकल्प लिया. यहां पहुंचने के लिए पहले तीस किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था. हालांकि अभी इस सड़क का निर्माण रुका हुआ है. इस सड़क के बन जाने पर रोहतास गढ़ किला पर बाइक या कार से पहुंचा जा सकता है. यहां के निवासियों ने भी सड़क निर्माण के लिए सरकार को कई बार आवेदन दिया था.
हालांकि दोनों सड़कें कच्चे निर्माण वाली ही हैं क्योंकि ग्रामीणों के पास न तो उतने संसाधन हैं और न ही पैसा. परंतु इन ग्रामीणों के अदम्य साहस से अधिकारियों को यह संदेश जरूर मिला है कि उनकी काहिली और लचर रवैया ग्रामीणों के विकास का रास्ता नहीं रोक सकती है. सड़क निर्माण की पहल से ग्रामीणों को यह उम्मीद बंधी है कि भविष्य में यहां पक्की सड़कों का निर्माण भी जरूर होगा. शुरू में युवा वन विभाग के अधिकारियों के डर से छिप-छिपकर पहाड़ पर सड़क निर्माण में लगे थे. उन्हें डर था कि अधिकारी अकारण उन्हें किसी मामले में फंसा सकते हैं. इससे पहले भी वन विभाग के अधिकारियों के अड़ंगा लगाने से कैमूरांचल में कई विकास कार्य रुके पड़े हैं.
इन प्रयासों से इतर जिले के दक्षिणी अंतिम छोर पर नक्सली इलाकों में युवाओं का एक भागीरथ प्रयास और दिखा. यहां कभी नक्सली जनअदालत लगाकर दोषियों को सजा देते थे. वहीं अब अब एक पेड़ की छांव के नीचे डुमरखोह गांव की प्रभा बहू की पाठशाला चलती है. इस गांव से तीन किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश और चार किलोमीटर की दूरी पर झारखंड राज्य की सीमा शुरू होती है. इस गांव के बच्चे अपनी प्राथमिक शिक्षा के लिए छह किलोमीटर पैदल चलकर बेलदुरिया तक जाते थे.
अब प्रभा के निजी प्रयास से इस गांव में स्कूल खुल गया है, जहां रोज पचास-साठ बच्चे पढ़ने आते हैं. इन विकास कार्यों के अलावा कैमूरांचल की धरती पर रोहतास गढ़ महोत्सव भी आयोजित किया जा सकता है. हालांकि अभी तक सरकारी स्तर पर उस पर कोई चर्चा नहीं हुई है. हर साल फरवरी महीने में रोहतासगढ़ किले पर तीन दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव वनवासी समाज के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है.
उनका मानना है कि रोहतासगढ़ किला ही उनका असली तीर्थ है. यहां करम के तीन वृक्षों की पूजा के साथ इस महोत्सव की शुरुआत होती है. इस महोत्सव में देश के दक्षिणी हिस्से आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड आदि कई राज्यों से वनवासी यहां आते हैं. अगर रोहतासगढ़ किले पर आयोजित वनवासियों के इस महोत्सव पर सरकार ध्यान दे, तो इससे पर्यटन उद्योग और स्थानीय बाजार को भी लाभ होगा.
वनवासी कई अर्से से राजगीर महोत्सव, देव महोत्सव, मुंडेश्वरी महोत्सव आदि की तर्ज पर रोहतागढ़ महोत्सव मनाने की मांग कर रहे हैं. वनवासी इस महोत्सव के लिए स्वयं पहल कर इसे आयोजित करते हैं. अगर सरकार इस महोत्सव पर ध्यान दे, तो यह राजस्व उगाही का एक बड़ा केंद्र हो सकता है. इस क्षेत्र के विधायक ललन पासवान बताते हैं कि उनके अथक प्रयासों से इस क्षेत्र में विद्युतीकरण के कार्य शुरू हुए हैं.
विधानसभा में सड़क निर्माण सहित अन्य विकास कार्यों की लगातार मांग किए जाने के बाद भी सरकार का ध्यान इन क्षेत्रों पर नहीं है. उन्होंने कहा कि कैमूंराचल में अधौरा से लेकर यदुनाथपुर के बीच मुंडेश्वरी धाम, गुप्ता धाम, शेरगढ़ किला, ताराचंडी धाम, तुतला भवानी, रोहतासगढ़ किला, रोहितेश्वर शिव आदि स्थलों की एक पर्यटन सर्किट तैयार हो जाए, तो यह भूभाग उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से कतई कम नहीं, परंतु ऐसा करने के लिए सरकार के पास दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए.
वनवासियों द्वारा कराये गये विकास कार्यों पर विधायक ने कहा कि मैं उनके साथ खड़ा हूं. जिस तरह की सहायता होगी, जरूर की जाएगी. वहीं, समाजसेवी डॉ. एसएन आजाद का कहना है कि कैमूरांचल में जितना विकास होना चाहिए, उसका पांच फीसदी भी नहीं हो पाया है. अगर पचास फीसदी भी काम पूरा हो जाए तो यह जगह देश के दर्शनीय स्थलों में से एक होगा.