“I don’t care if they call me a dictator or whatever else. It goes in one ear, out the other.”

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वसीन्द्र मिश्र

 

तुर्की एक ऐसा देश है जो मुस्मिल बहुल आबादी के बाद भी सेक्युलर था और युरोपियन युनियन का हिस्सा हो सकता था … उस देश को आज NATO यानि North Atlantic Treaty Organoisation से भी बाहर किए जाने की मांग उठने लगी है … और इसकी वजह हैं तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब अर्दोआन …. अर्दोआन ने देश को विकास के जरिए एक नई दिशा देने से शुरुआत की थी लेकिन इस्लामिक कट्टरपंथी रवैये से अर्दोआन ने देश को बर्बादी की दिशा में धकेल दिया है|

2016 में तुर्की की राजधानी अंकारा और इंस्तांबुल की सड़कों पर आर्मी के टैंक दौड़ते हुए नज़र आए थे … ये दरअसल कोशिश थी 13 साल से सत्ता पर काबिज रेचप तैयब अर्दोआन की तख्तापलट की … हालांकि इस बात को 4 साल बीत चुके हैं लेकिन रेचप तैयब अर्दोआन की सत्ता कायम है और वो अभी भी तुर्की के राष्ट्रपति बने हुए हैं … एक ऐसे राष्ट्रपति जिसके खिलाफ रह रहकर तुर्की में हिंसक विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं … सड़कों पर जनता उतरकर अर्दोआन की नीतियों का खुलकर विरोध करती है लेकिन अर्दोआन हर मुमकिन तरीके अपना कर ऐसे विरोध प्रदर्शनों को दबाने में कामयाब रहते हैं |

दरअसल तुर्की में कट्टरपंथी और उदारवादियों के बीच वैचारिक लड़ाई चलती रहती है … जनता के लगातार विरोधों और सेना की तख्तापलट की कोशिशों के बावजूद रेचप तैयब अर्दोआन की सत्ता पर पकड़ कमजोर नहीं पड़ रही … संविधान में बार बार संशोधन कर रेचप तैयब अर्दोआन सेना, बजट, संसद सब पर अपना एकाधिकार कर लिया है …. ये एकाधिकार रेचप ने जनमत संग्रह के ज़रिए ही हासिल किया है लेकिन विरोधी इस जनमत संग्रह की पारदर्शिता पर हमेशा सवाल खड़े करते आए हैं … लिहाजा रेचप तैयब अर्दोआन भले ही खुद को तानाशाह कहे जाने पर नाराजगी जाहिर करते आए हों लेकिन सत्ता चलाने के उनके तौर तरीकों को देखते हुए उन्हें आधुनिक दुनिया में एक तानाशाह के तौर ही देखा जाता है …
तुर्की की मौजूदा राजनैतिक और सामाजिक स्थिति की बुनियाद दशकों पहले पड़ चुकी है … 2016 में तख्तापलट की असफल कोशिश से पहले सेना ने कई बार सफल तख्तापलट को अंजाम दिया है …. एक्सपर्ट मानते हैं कि ऐसा तुर्की के समाज में व्याप्त कमाल अतातुर्क की आधुनिक विचारधारा वर्तमान सरकार की पारंपरिक कट्टरवाजी इस्लामिक विचारधारा में टकराव की वजह से है … तुर्की की फौज कमालिस्ट आइडिय़ोलॉजी की तरफ झुकाव रखती है वहीं तुर्की के तानाशाह अर्दोआन ने फौज के एक धड़े समेत देश की बड़ी आबादी खासकर रवायती मुसलमान समुदाय में व्यापक समर्थन हासिल कर रखा है|

कमालिस्ट आइडिय़ोलॉजी के समर्थक तुर्की को एक नया आधुनिक और प्रगतिशील देश मानते हैं लेकिन राष्ट्रपति अर्दोआन की नीतियां इससे थोड़ी अलग हैं|

इसे अर्दोआन के इस्तांबुल के ऐतिहासिक हागिया सोफिया म्यूज़ियम को दोबारा मस्जिद में बदलने के आदेश से समझा जा सकता है … छठी सदी में बना हागिया सोफिया दुनिया के सबसे बड़े चर्चों में से एक था जिसे बाद में मस्जिद बना दिया गया था … पहले विश्व युद्ध के बाद जब तुर्की में उस्मानिया सल्तनत के खात्मे के बाद मुस्तफा कमाल पाशा का शासन शुरू हुआ… तब मस्जिद बना दिए गए चर्च हागिया सोफिया को म्यूजियम में बदलने का फैसला लिया गया था|  उस वक्त पाश के उस फैसले को आधुनिक तुर्की के अहम फैसलों में से एक माना गया था .. हालांकि 2019 के चुनाव में इसे वापस म्यूजियम बना देने के वादे के साथ आए अर्दोआन ने 1934 में लिए गए कैबिनेट के उस फैसले को रद्द कर दिया और युनेस्को की तरफ से विश्व विरासत घोषित की जा चुकी इस इमारत को म्यूजियम से वापस मस्जिद में बदलने का आदेश दे दिया … माना जा रहा है कि ये अर्दोआन की तरफ से दुनिया को एक संदेश है कि तुर्की बदल चुका है …
अर्दोआन तुर्की की सत्ता पर काबिज होने से काफी पहले से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं .. 70- 80 के दशक में अर्दोआन कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा के लोगों से जुड़ गए थे.. उस दौरान अर्दोआन ने नेकमातिन एरबाकन वेलफेयर पार्टी ज्वाइन कर ली थी … इसी इस्लामिस्ट वेलफेयर पार्टी के कैंडिडेट के तौर पर अर्दोआन 1994 में इस्तांबुल के मेयर चुने गए .. एक मेयर के तौर पर अर्दोआन ने अच्छी छवि बनाई थी .. शहर में हज़ारों किलोमीटर वॉटर पाइपलाइन बिछाई गई … वायु प्रदूषण कम करने के लिए पूरे शहर को हरा-भरा बना दिया … कई पुल और हाइवे बनाकर शहर से ट्रैफिक जाम की दिक्कत को काफी हद तक कम कर दिया गया… हालांकि इसके बाद भी अपनी कट्टरपंथी विचारधारा की वजह से अर्दोआन को मेयर की कुर्सी गंवानी पड़ी तब किसको पता था कि ये शख्स देश की सर्वोच्च कुर्सी पर काबिज होने वाला है |

1998 में वेलफेयर पार्टी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया .. और धार्मिक नफरत को बढ़ावा देने के आरोप में अर्दोआन 4 महीनों तक जेल में रहे ….. इसके बाद कुछ समय तक के लिए अर्दोआन ने अपनी कट्टरपंथी छवि से किनारा कर लिया और अपने सहयोगी अब्दुल्ला ग्यूल के साथ मिलकर एके पार्टी बनाई…. इस एके पार्टी को 2002 में तुर्की के चुनावों में शानदार जीत मिली …. तब अर्दोआन प्रतिबंधों का सामना कर रहे थे लिहाजा अबदुल्ला ग्यूल ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और अर्दोआन पर लगे सारे प्रतिबंध हटा दिए गए … 2003 में ग्यूल को पद से हटाकर अर्दोआन ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली |

अर्दोआन इस्तांबुल के सबसे पुराने शहर कसीमपासा में पैदा हुए .. बाद में उनका परिवार यहां से उत्तरी पूर्वी तुर्की के रिजे प्रांत में बस गया .. 1954 में पैदा हुए अर्दोआन के पिता तुर्की के कोस्टगार्ड में कैप्टन थे… जब अर्दोआन 13 साल के थे तो उनके पिता ने तुर्की के काला सागर तट से इस्तांबुल आने का फैसला किया… परिवार के पास ज्यादा पैसे नहीं थे लिहाजा बचपन के दिनों में अर्दोआन ने अपनी पॉकेटमनी से पोस्टकार्ड और पानी खरीद कर उन्हें बेचना शुरू किया ताकि ज्यादा पैसे कमा सकें …. उन्होंने इस्तांबुल की सड़कों पर नींबू पानी और बन भी बेचा .. अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान एर्दोआन ने कुरान, पैगंबर मोहम्मद की जीवनी और अरबी भाषा की पढ़ाई की थी .. कहते हैं स्कूल में अर्दोआन के साथी उन्हें मुस्लिम टीचर कहा करते थे … इसके बाद अर्दोआन ने इस्तांबुल की मारमरा यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट की पढ़ाई की … यूनिवर्सिटी में ही उनकी मुलाक़ात नेकमातिन एरबाकन से हुई जो तुर्की के पहले इस्लामी कट्टरपंथी प्रधानमंत्री बने और इस तरह तुर्की का इस्लामी कट्टरपंथी आंदोलन शुरू हुआ…. जिसकी सीढियां चढ़ते हुए अर्दोआन पहले मेयर और फिर प्रधानमंत्री बन गए |

प्रधानमंत्री बनने के बाद रजब तैयब अर्दोआन उसी छवि के अनुकूल काम शुरू किया था जो उन्होंने इस्तांबुल के मेयर रहते हुए बनाई थी … अर्दोआन जब प्रधानमंत्री बने तब तुर्की की अर्थव्यवस्था सुधार की ओर बढ़ रही थी … इन्होंने मैक्रो इकोनोमी पर काम किया, विदेशी निवेशक जुटाने शुरू कर दिए ..लिहाजा 2003 से लेकर 2012 के बीच में तुर्की की जीडीपी 64 फीसदी और पर कैपिटा इनकम (Per Capita Income) में 43 फीसदी की ग्रोथ देखने को मिली … 2002 में महंगाई दर 32 फीसदी लेकिन अर्दोआन के शासन के पहले दो साल में महंगाई की दर गिरकर 9 फीसदी पर आ गई … अर्दोआन ने लेबर लॉज (Labor Laws) में भी बदलाव किए … नीतियों कर्मचारियों के हितों को ध्यान मे रखकर बनाई गईं …working hours घटा दिए गए … ओवरटाइम की लिमिट तय कर दी गई ..उन्हें कई तरह की कानूनी सुरक्षा भी दी गई… अर्दोआन ने शिक्षा के लिए बजट भी बेतहाशा बढ़ा दिया… 2002 में तुर्की का शिक्षा बजट 7.5 फीसदी लीरा हुआ करता जो 2011 आते आते 34 बिलियम लीरा कर दिया गया … देश में युनिसेफ की मदद से अर्दोआन की सरकार ने Come on girls, let’s go to school!” नाम से एक कैंपेन शुरू किया गया … 12 साल तक की उम्र के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई …. बच्चों के लिए किताबें फ्री कर दी गईं .. अर्दोआन के काल मे देश में विश्विद्यालयों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई थी .. ऐसा ही विकास हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में भी देखने को मिला था .. अर्दोआन ने हेल्थ ट्रांसफॉर्मेशन प्रोग्राम शुरू किया जिसके जरिए देश के सभी नागरिकों को क्वालिटी हेल्थकेयर की गारंटी मिली … अर्दोआन ने देश में एंटी स्मोकिंग कैंपेन भी शुरू किया जिसके तहत सार्वजनिक स्थानों सिगरेट पीना बैन कर दिया गया .. अर्दोआन ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी काम किया .. एयरपोर्ट्स की संख्या बढ़ गई … देश में हाई स्पीड ट्रेनें चलनी लग गईं … देश में एक अंडर सी रेल टनल भी बनाया गया …2004 में रेचप तैयब अर्दोआन ने तुर्की में मौत की सज़ा का प्रावधान खत्म कर दिया .. युरोपियन युनियन ने इस कदम की काफी तारीफ की थी. … हालांकि न्यायपालिका में नियुक्ति को लेकर अर्दोआन विवादों में रहे .. खासकर तब जब कुछ जजों ने मीडिया के सामने आकर अर्दोआन पर आरोप लगाए .. अर्दोआन ने विदेश नीति के मसले पर don’t make enemies, make friends की नीति अपनाई .. और पड़ोसियों के साथ जीरो प्रॉब्लम पर काम करना शुरू किया …अर्दोआन ने तुर्की को युरोपियन युनियन का सदस्य बनने के लिए भी निगोसिएशन शुरू किया… लेकिन बहुत जल्द परिस्थितियां बदलने वालीं थीं|

अर्दोआन ने अपने पड़ोसी देशों में आर्मेनिया को छोड़कर बाकी सारे देशों का दौरा किया …. अपने रिश्ते सुधारने की कोशिश में सीरिया के साथ भी तुर्की के रिश्ते कुछ वक्त के लिए ठीक रहे … यही हाल इजरायल के साथ भी हुआ… अर्दोआन ने इजरायल का भी दौरा किया था ताकि रिश्ते सुधर सकें … लेकिन ऐसा ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका …
एक प्रधानमंत्री के तौर पर लोकप्रिय होने, सुधार के कई काम करने के बावजूद अर्दोआन देश की जनता के मन से अपने कट्टर इस्लामिक होने की छवि नहीं बदल पाए थे .. लिहाजा 2007 में होने वाले चुनावों के दौरान तुर्की में विरोध प्रदर्शन देखे गए .. ये प्रदर्शन राष्ट्रपति अर्दोआन के राष्ट्रपति पद के लिए संभावित उम्मीदवारी को लेकर था … 3 लाख से ज्यादा प्रदर्शनकारियों ने राजधारी अंकारा की सड़कों पर प्रदर्श किया उन्हें डर था अगर अर्दोआन राष्ट्रपति बने तो वो तुर्की के धर्मनिरपेक्ष समाज को तहस-नहस कर देंगे …हालांकि अर्दोआन ने अपने सहयोगी अब्दुल्ला गुल को उम्मीदवार घोषित कर दिया … अर्दोआन की पार्टी एकेपी को ऐतिहासिक जीत मिली और अब्दुल्ला गुल राष्ट्रपति बना दिए गए … अर्दोआन एक बार फिर प्रधानमंत्री बने … इसके बाद से अब तक अर्दोआन ने राष्ट्रपति चुनावों से लेकर जनमत संग्रह तक लगभग 14 चुनावों का सामना किया है .. और सभी में जीत हासिल की है|

अपने शुरुआती कामों की वजह से रजब तैयब अर्दोआन ने तुर्की की छवि एक विकासशील देश की बनाई थी लेकिन देश में विरोध पनप रहा था … ये विरोध रेचप तैयब अर्दोआन की रूढिवादी इस्लामिक छवि के खिलाफ था जो गाहे बगाहे उनकी नीतियों के जरिए देश के सामने आ रही थी |

आधुनिक तुर्की के संस्थापक माने जाने वाले मुस्तफा कमाल अतातुर्क के लिए फैसलों की आलोचना करने और उनकी बनाई सेक्युलर परंपरा के खिलाफ कदम उठाकर अर्दोआन ने देश की अवाम के बड़े हिस्से के दिलों में अपने लिए संदेह पैदा कर लिया था |

2013 आते आते अर्दोआन की सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर चुकी थी … भ्रष्टाचार के आरोप में चार मंत्रियों का इस्तीफा भी हुआ .. हालांकि इसके साथ ही अर्दोआन ने मीडिया और सोशल मीडिया पर नकेल कसनी शुरू कर दी … अर्दोआन पर विरोध में खबर छापने वाले संपादकों को सीधा फोन कर धमकाने के आरोप भी लगे|

इसी साल मई के महीने में इस्तांबुल के तकसीम गेज़ी पार्क के पुनर्विकास के काम के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिए .. ये प्रदर्शन सरकार के रवैयों के खिलाफ और उग्र हो गया और देखते ही देखते पूरे देश में फैल गया … देश में अब रेचप तैयब अर्दोआन के खिलाफ लोग मुखर होने लग गए थे |

हालांकि अगले ही साल हुए चुनावों में इसका असर नहीं दिखा और अगस्त 2014- अर्दोआन पहली बार सीधे जनता के द्वारा चुन कर पहले राष्ट्रपति बने… लोकतंत्र वाले सेक्युलर देश में तानाशाही की शुरुआत हो चुकी जहाँ आने वाले वक्त में इस्लामिक कट्टरपंथ भी सिर उठाने वाला था |

2016 में इस्तांबुल में एक भाषण के दौरान अर्दोआन ने कहा था, ”महिलाओं की यह ज़िम्मेदारी है कि वो तुर्की की आबादी को दुरुस्त रखें…. हमें अपने वंशजों की संख्या बढ़ाने की ज़रूरत है….. लोग आबादी कम करने और परिवार नियोजन की बात करते हैं लेकिन मुस्लिम परिवार इसे स्वीकार नहीं कर सकता है…. हमारे अल्लाह और पैग़म्बर ने यही कहा था और हम लोग इसी रास्ते पर चलेंगे….” अर्दोआन का ये बयान भी काफी विवादित रहा था जिसमें उन्होंने कहा था महिलाओं और पुरुषों को बराबर नहीं आंका जा सकता|

2016 में ही अर्दोआन को तख्तापलट की कोशिश का भी सामना करना पड़ा … जिसे अर्दोआन ने बहुत सख्ती से कुचला … अर्दोआन ने सोशल मीडिया के जरिए अपने समर्थकों से अपील की … जिसका नतीजा ये हुआ कि तख्तापलट की कोशिश करने वाले सैनिकों की सरेआम बेरहमी से पिटाई की गई … इसके बाद 50 हज़ार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया …. मीडिया पर अर्दोआन ने परोक्ष रूप से कब्जा कर लिया ..देश में मौत की सज़ा बहाल कर दी गई …
अर्दोआन ने संविधान में संशोधन भी कर दिए .. जिसकी बदौलत अब रेचप बहुत ताकतवर हो चुके हैं … अब तुर्की में संसदीय व्यवस्था की जगह राष्ट्रपति शासन व्यवस्था हो चुकी है और अर्दोआन तुर्की के सर्वेसर्वा बन चुके हैं .. नए नियमों के मुताबिक अगले दस साल अर्दोआन राष्ट्रपति रह सकते हैं जिसके पास वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर मंत्रियों, जजों और उप राष्ट्रपति तक को नियुक्त करने की ताकत है … यहां तक कि न्यायिक व्यवस्था में भी वो दखल दे सकते हैं और देश के बजट का भी बंटवारा कर सकते हैं .. इतने अधिकारों के बाद कोई भी अब तुर्की में उनके अधिकारों की समीक्षा नहीं कर सकता … अर्दोआन अब अमेरिका के व्हाइट हाउस और रूस के क्रेमलिन से भी बड़े प्रेसीडेंशियल पैलेस में रहने लगे हैं |

इसी बीच तुर्की आर्थिक संकट से घिरता जा रहा है … अमेरिका और तुर्की के बीच तकरार काफी बढ़ चुकी है .. लीरा की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरती जा रही है .. और महंगाई की दर 100 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ रही है .. तुर्की विदेशी कर्जों के तले भी दबा हुआ है |

रजब तैयब अर्दोआन अपने इस्लामिक कट्टरपंथ को आगे बढ़ाने के मकसद से ऐसे देशों से अपनी नजदीकियां भी बढ़ा रहे हैं .. पाकिस्तान के अपने दौरे पर भारत विरोधी बयान भी उनके ऐसे अभियान का हिस्सा है. ऐसे में उनपर इस्लामिक चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोप भी लग रहे हैं |
फिलहाल उनके तौर तरीकों से उन पर भले ही तानाशाह होने के आरोप लगें लेकिन अर्दोआन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता … ये 2016 में दिए गए उनके बयान से भी साफ हो चुका है जिसमें उन्होंने कहा था … “I don’t care if they call me a dictator or whatever else. It goes in one ear, out the other.”

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