मेरे मित्र और देश के महत्वपूर्ण बुध्दीवादि और अंबेडकर-मार्क्सवादी लेखक ! आज से नब्बे साल पहलेके जर्मनी में हिटलर के फासिस्ट राज में यही आलम था कि आप अगर स्वतंत्र विचारों के लेखक या बुद्धिजीवी है या कम्युनिस्ट,सोशलिस्ट विचारधारा के है तो एक तो जेल या हत्या करना बिल्कुल आम बात थी ! आजकल 2014 के मईसे जबसे बीजेपी ने केंद्र सरकार बनाने की शुरुआत की है तबसे भारतीय एडिशन ऑफ फासिजम की शुरुआत हो चुकी है आनंद तेलतुंबडेके उदाहरण के बहाने से याद आया की !
सेवा ग्राम में दो साल पहले के प्रजासत्ताक दिवसको एक बुजुर्गके सामने कनैह्या नामके कीसी और युवा का नाम पुकारा ! तो वे अचानक बोल पड़े ओ देशद्रोही उसको यहाँ किसने बुलाया ? बोलनेवाले सज्जन एक बुजुर्ग गाँधी वादी थे ! एक समय था सिर्फ संघ परिवार की संघटन के लोगों की यह भाषा थी तो मेरा मानना है की वह एक रेजिमेंटेंड अर्धसैनिक बलों के बली है संघ शाखा में जो जहर उम्र के दस साल से उसके दिमाग में डाला जाता है तो बेचारे की मजबूरी है लेकिन आजकल कोई संघ परिवार का होना जरूरी नहीं है जिसके उदाहरण यह सेवाग्राम में मिले गाँधीयन हो या अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति का कार्यकर्ता हो !
क्योंकि यह सब लोग अपने-अपने दैनंदिन जीवन के तय काम तो बहुत ही अच्छा करते होंगे लेकिन गत 96 सालों से संघ ने भले अपने शाखा या बौद्धिकोंमे इसतरह की बातें बार-बार बताकर अपने स्वयंसेवक हिटलर या मुसोलिनी की तर्ज पर ट्रेन किये है लेकिन इतने सालों में यह लोग सिर्फ संघ की शाखाओं तक सीमित नहीं रहे यह जीवन के हर क्षेत्र में दीमक की तरह फैल चुके है और अपने ट्रेनिंग के अनुसार उस क्षेत्र में भी संघ से पाई हुई शिक्षा का उपयोग फिर वह पत्रकारिता,लेखक,नाटक,सिनेमा और सबसे चिंता की बात है कि विभिन्न संस्थाओं और संघटन तथा विभिन्न राजनीतिक दलों के भीतर भी शामिल होने के कारण आज भारत का कोई क्षेत्र नही है जिसमें संघी विचारधारा के लोग नहीं है ! यह बुजुर्ग गाँधीवादी उसके प्रातिनिधिक के रूप मे मै लेता हूँ ! मैंने तो तथाकथित कम्युनिस्ट,सोशलिस्ट और गाँधीवादी,अंबेडकराईट और सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस मेभी इनकी उपस्थिति देखि है ! फिर पुलिस,सेना,आई बी,सीबीआई,एन आई ए,जुडिशियल सिस्टम,प्रशासन के अंदर आजादी के पहले से ही सुनियोजित तरीके से घुस चुके हैं ! पुलिस भारत के किसी भी दंगे में क्या भूमिका करती यह जगजाहीर है उसी तरह प्रशासनिक अधिकारी और न्यायपालिका के न्यायाधीश (कुछ अपवादों को छोड़कर) रंजन गोगोई इसके ताजी केस है ! हालाँकि इनके पिता अल्प समय के लिए आसाम के कांग्रेस की तरफसे मुख्यमंत्रीभी रह चुके है ! मैंने ऐसे दर्जनों काग्रेसी देखें है जो राजनीतिक लाभ के लिए पार्टी मे जरूर है लेकिन उनके मानसिकता संघ की होती है वह दलित,आदिवासी,महिला और सबसे अहम बात अल्पसंख्यकों को लेकर बहुत ही बायस होते हैं !
अभी कुछ दिन पहले मैंने आवाज इंडिया टीवी पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई के राज्य सभा मे राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत करने को लेकर मेरे साक्षात्कार को देखनेके बाद सबेरे सबेरे एक अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यकर्ताका फोन आया ! और बोला की आप देशद्रोहियोंमेसे एक हो आप भारत के पूर्व न्यायाधीश के उपर टिका-टिप्पणी कर रहे हो ? तो आप भी देशद्रोहीहो !
केंद्र में वर्तमान सरकार आनेके बाद देशद्रोही जुम्लेबाजी मला जादा चलनमे आई है ! जो भी कोई सरकार कीं आलोचना करते हैं उन्हें यह देशद्रोही बोला जा रहा है ! क्या आजादी के बाद इतनी सरकारें आई और उन्हें डॉ राम मनोहर लोहिया , इंद्रजित गुप्ताजी, अटल बिहारी वाजपेयी ,लाल कृष्ण अडवाणीजी, जाॅर्ज फर्नांडीज, प्रोफेसर मधु दंडवते,बैरिस्टर नाथ पै, मधु लिमये और वर्तमान सरकार में शामिल प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्रीयोने भी सत्ताधारी दल की आलोचना की है यह भी देशद्रोही वालीं बातें थी ?
आजकल बहुत ही सुविधाजनक ढंग से इस जुमले का प्रयोग किया जा रहा है ! गोगोई शायद भारत के इतिहास में पहले ही न्यायाधीश है जिसनें अपनें खुद पर अपनेही कार्यालय की महिला कर्मचारी द्वारा यौन शोषण का आरोप लगे हुये मामले में खुद ही बेंच बनाकर अपने आप को उसमे शामिल किया हो ! यह भारत की न्यायिक प्रणाली का एकमात्र उदाहरण होना चाहिए ! एक सर्व साधारण जीवन मे भी जिसपर आरोप है वह खुद ही अपने आप को बरी कर ने का अजीबोगरीब फैसला किया है !
और इस आदमी ने आरोप लगाने वाली महिला कर्मचारी को सजा देने का काम किया है ! मेरी पत्नी केंद्रिय विद्यालयकी प्राचार्या थी तो बोर्ड के परीक्षा के पहले एक पत्र आता था की यदि इस परीक्षा में आपके नाते रिस्तेदार में से कोई परीक्षा दे रहा हो तो आप यह जिम्मेदारी किसि दुसरे को सोपै !
शायद हमारी जुडिशियल सिस्टम में भी यही नियम होंगें की यदि आप या आपका कोई भी रिश्ता वाले मामले में आप यह जिम्मेदारी कीसी और को सौंपना यह बात गोगोई और उनके साथ काम करने वाले दुसरे जजको भी पता होंते हुए कैसे चलीं? और वह भी एक महिला उत्पीड़न के मामले में ! और इसी तरह राफेलके केसकी जो हमारे राष्ट्र के सुरक्षा से संबंधित मामलों की केस रहते हुए सरकार एक बंद लिफाफे को गोगोई साहब को अलग से देकर पुरा मामला रफा-दफा कर दिया उसी तरह कश्मीर के 370 हटाने की किसकी आजतक सुनवाई नहीं हुई और सबसे संवेदनशील और विवादित बाबरी मस्जिद के मामले में हमारे देश के संविधान की अनदेखी कर के कुछ खांस लोगोको खुष करने के लिए दिया गया जज्मेंट हैं और तथाकथित नागरिकता का मामला 80 सेभी अधिक केसेस के बावजूद मामला टालते जा रहा है और इस आदमी को रिटायर होने के तीन महीनों के भीतर राज्य सभा में मनोनीत करने की बात पर मैंने आलोचना करने की कोशिश की है तो अंधश्रद्धा निर्मूलन समितिमे काम करने वाले मित्र को मैं देशद्रोही नजर आ रहा हूँ ! अब इस अंधे को क्या करें ?
इसलिए आनंद तेलतुंबडे पर जो देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है और उसे तीन हप्तेभरमे सरेंडर करने के लिए कहा गया है यह बात भी सही नहीं ठहराया जा सकती है क्योंकि मैं आनंद को काफी समय से जानता हूँ वह मार्क्सवादी विचारो के है मेरे उनके कुछ वैचारिक मतभेद है लेकिन वह देशद्रोही है यह बात ठीक नहीं है और वे इस देश से उतना ही प्यार करते हैं जितना कोई अन्य इसलिये मुझे लगता है कि देशद्रोही कीं बात आज कल जो भी वर्तमान समय की सरकार कीं गलतीयोको लेकर आलोचना करते हैं उन्हें देशद्रोही कहना ठीक नहीं है और कम-से-कम वर्तमान समय की सरकार और उसके समर्थन करने वाले लोगों को मेरा कहना है कि जो लोग आजादी के आंदोलन से दूर रहें और 135 करोड़ आबादी वाले देश में धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को मैं देशको तोडने वाले लोग कहुँगा कयोंकि दुनिया में जितने भी धर्म हैं उन्हें मानने वाले लोग इस देश में रहते हैं और ऐसे देश में किसी खास धर्म कीं बात करने का अर्थ अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देना ! हमारे देश को एक सूत्र में पिरोकर विदेशी साम्राज्य का अंत करने वाले सभी राष्ट्रीय नेता जिनमें से महात्मा गाँधी, नेहरु, सरदार पटेल,मौलाना आजाद, और न जाने कितने अनगिनत लोगों की शहादत पर यह देश आजाद हुआ और उसे एक राष्ट्र के रूप मे शक्ल दीये उस देश में सांप्रदायिक राजनीति करना सबसे बड़ा देशद्रोह है कयोंकि किसी खास धर्म के नाम पर राजनीति करने से अन्य धर्मों के लोगों को असुरक्षित महसूस करने से बडी मेहनत से इस देश की एकता और अखंडता पर प्रहार करना ही राष्ट्र-द्रोही काम है और वर्तमान सत्ताधारी दल के लोग यह काम लगातार कर रहे हैं !
दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक समुदाय और महिलाओं की अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे उनके साथ काम करनेवाले कुछ प्रमुख साथियोकौ गत कुछ दिनों से लगातार नक्षलवादी या मुसलमान है तो आतंकवादी बोलकर जानबूझकर लोगोमे भ्रम पैदा करने की कोशिश की जा रही है जिसे तुरंत बंद कर के गलत मुकदमे हटानेकी कारवाई करने के लिए विशेष अनुरोध करता हूँ
क्योंकि आजादी के पचहत्तर साल के बावजूद हमारे देश की आधी से भी ज्यादा आबादी आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं और उसमेसे सबसे बड़ी संख्या दलित,आदिवासी,महिला और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगो की होने के कारण अगर इतने सालों बाद भी भारत की आधी से भी ज्यादा आबादी अगर आधे पेट खाने के लिए मजबूर हो और हरसाल पांच लाख से भी ज्यादा और पाँच साल से कम बच्चोकी कुपोषण के कारण मौत होती है ऐसे देश की स्वतंत्रता के पचहत्तर साल हो या सौ साल क्या फर्क पड़ता है ?
और इसी आबादी के जीवन के प्राथमिक सवालों को लेकर अगर उच्चविद्दाविभूषीत लोग अपने करियर को छोड़कर काम कर रहे हो तो आप इन्हें तथाकथित देशद्रोही बोलकर जेलो में रखना कहा तक जायज है ? पचहत्तर साल के भीतर इस देश में लगभग सभी राजनीतिक दलों की सरकारों को कहा संपूर्ण भारत के और कहा कुछ राज्यों में काफी लंबा समय सरकार बनाने के लिए मौका मिला है लेकिन इस आबादी के सवालों को लेकर किसी ने भी सशक्त प्रयत्न नही किये जिन्हें अंग्रेजी में कॉस्मेटिक सर्जरी टाईप काम कर ने के कारण यह सवाल बदस्तूर जारी है !
सबसे भयावह स्थिति दस करोड़ की संख्या में रह रहे आदिवासी भारत की तथाकथित विकास की चक्की में पिसे जा रहे है वैसे ही उनकी जिंदगी बहुत ही कष्टदायक होती है और उपरसे परियोजना के कारण भारत की साडेआठ प्रतिशत आदिवासी विस्थापन के 75% से भी अधिक संख्या में शिकार हो रहे हैं ! यह जड से उखडा हुआ समाज विस्थापित होने के कारण बहुत ही असहाय हो जाता है तो अगर कोई नक्सलैट उनकी मदद करने के लिए सुदूर जंगलों में उनके साथ रहते हुए उन्हें मदद के लिए अपने तरीके से काम कर ने के कारण भारत की समस्त तथाकथित रेडकॅरिडाॅर मे कश्मीर या उत्तर पूर्वी राज्यों की तर्ज पर सेना और पैरामिलिटरी तैनात करना यह दर्द से इलाज भयंकर वाली कहावत है ! कश्मीर पचहत्तर साल से और लगभग उसी के आसपास उत्तरपूर्व के प्रदेशों में भी रखकर कौनसे परिणाम निकले हैं ? उल्टा भारत विरोधी भावनाओं को बल मिला है तो अब देश के मध्य में रहने वाले आदिवासी समुदाय के साथ भी बिल्कुल कश्मीर-उत्तरपूर्व के जैसे सेना तैनाती हरतरहसे गलत निर्णय है !
यानी एक तरफ भारत की स्वतंत्रता की पचहत्तर साल के जश्न मनाने की तैयारी जारी है और एक चौथाई से भी अधिक संख्या में भारत की आबादी आर्मी के जूतों तले दबा कर कौनसे भारत के लिए आप यह ढोंग कर रहे हो ?
मैंने होश संभाला तबसे किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ ही पचास साल सेभी ज्यादा समय से काम कर रहा हूँ क्योंकि मेरी स्पष्ट राय है कि दुनिया के किसी भी सवाल का हल शांति और सद्भाव के द्वारा ही संभव है फिर वह हिंसा लाल,पीली,हरी,नीली या भगवा आतंकवाद की मैंने सतत विरोध किया है तो आप खुद के कारिंदे जो माॅब लिंचिंग से लेकर मालेगाँव,समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट या गुजरात भागलपुर के दंगे या जबरदस्ती से किसी मस्जिद के गिराने की घटना या नक्सली,कश्मीरी,नार्थ ईस्ट की हिंसा के खिलाफ ही पचास साल सेभी ज्यादा समय से काम कर ने के कारण भारत की पचहत्तर साल के जश्न मनाने की तैयारी जारी है तो उसके साथ यह एक चौथाई आबादी को भी हम भारत के नागरिक हैं यह महसूस होने का माहौल नही बनता है तबतक इस तरह के कार्यक्रम की कर्मकांड के अलावा कोई महत्व नहीं है !
डॉ सुरेश खैरनार 27 मार्च,2021, नागपुर