1979 और 80 के दशक में भागलपुर बिहार में 31 अंडरट्रायल्स कैदियों की आँखो में बिहार पुलिस ने असिड डालकर अन्धा कर दिया था बराबर उसके 10 साल बाद अक्तूबर 1989 में दंगा हुआ था तो दन्न्गेके बाद के सांप्रदायिक सद्भावना के काम करने हम लोग कोलकाता,शांतिनिकेतन से जाने का क्रम शुरू हुआ तो उस समय बातचीत में दस साल पहले के आँखफोडवा काण्ड की बात होती थी तो जो लोग सांप्रदायिक सद्भाव के काम में हम लोगों को मदद करते थे वे भी आँख फोड़ने की घटना का समर्थन करते थे !
यह सब लिखने का कारण 6 दिसम्बर की हैदराबाद पीड़िता के आपराधिक गतिविधि में शामिल चार अभियुक्तों को पुलिस ने गोली मारकर हत्या कर दी गई है और मैने कल की मेरी फ़ेसबुक वॉल पर अलोचना की है तो कुछ लोगो की प्रतिक्रिया काफी मुझे व्यक्तिगत गाली गलोज वाली आ रही है ! यह एक तरह से हमारे समाज का दर्पण ही हैं ! क्यौंकि भागलपुर आँख फोडवा कान्ड़का समर्थन और अभी दो दिन पहले वाली हैदराबाद की घटना का समर्थन भी एक ही मानसिकता का परिचयात्मक समर्थन करने वाले लोग हैं !
जो खुद व्यक्तिगत जीवन में अपने स्तिथि के कारण खुद अपने आपको असहाय महसूस करते रहते हैं फिर किसी और ने कुछ इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया तो वो तुरंत राहत महसूस करते हैं जैसे सिनेमा के हीरो द्वारा वीलनकौ पिटने का दृश्य देखकर वह अप्रत्यक्ष रूप से खुद को उस हिरो की जगह कल्पना करके देखता है और अपने व्यक्तिगत जीवन में जो भी वह सहने के लिये मजबूर रहता है तो काल्पनिक ही सही लेकिन वह एक मिथ्या सुख का अनुभव करता है ! ऊन विलनो मे उसका कोई पडोसी या बॉस या कोई नाते रिस्तेदार भी हो सकता है जिनसे उसकी रंजिस हो सकती है जिह्ने वह प्रत्यक्ष रूप से खुद अपनी कमजोरियों के कारण प्रतिकार नहीं कर सकता है तो सिनेमा के हीरो द्वारा लीया हूआ बदला लेने की घटना से वह खुद को रिलेट करता है !
लेकिन 40 साल पहली भागलपुर की घटना हो या दो दिन पहले की हैदराबाद की घटना के पीछे की मानसिकता मे मुझे कुछ्भी फर्क नजर नहीं आ रहा है क्योंकि दोनों जगहों पर समाजकंटक या आपराधिक मामलों में लिप्त लोगों के प्रति आम लोगो का गुस्सा अपने धंगसे अभिव्यक्त होता हुआ दिख रहा है !
नागपुर में अक्कू यादव नाम के एक आपराधिक गतिविधियों लिप्त अक्कू यादव को 13 अगस्त 2004 में भरे कोर्ट में शेकडौ की संख्या में औरतों ने कोर्ट रूम में सबसे पहले उसके लिंग को काटकर अलग कर दिया और उस समय मोब्लिण्चीग शब्द तब इतना उछालता हूआ नही बना था तो महिलाओं ने उसे मार डाला ! पूरे देश भर के मीडिया से संबंधित सभी अन्कर दिल्ली,मुम्बई से दौड़कर आये थे और मामले की काफी चर्चा चली तो नागपुर में एक इण्डिया पीस सेंटर नाम की जगह है जहाँ पर देश दुनिया के काफी महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस मुहाब्सा होते रहते है जिसमें मेरी भी भुमिका रहती है !
तो उस घटना के बाद इण्डिया पीस सेंटर में उसिको लेकर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया था जिस मे नागपुर के अखब़ार के सम्पादक तथा पत्रकार,वकील तथा,प्रोफेशनल्स, सामाजिक,राजनीति आदि कामों में क्रियाशील लोगों को भी बुलाया गया था और मैं सभा का अध्यक्षता की भूमिका में था तो लगभग सभी लोग अक्कु यादव को महिलाओं ने कोर्ट के भीतर जो कुछ किया उसके समर्थन मे थे ! सिर्फ मेरा अध्यक्षीय सम्बोधन अलग था तो काफी बवेला मचाया गया कुछ वामपंथी दलों के लोगों ने तो मुझे नपुंसक बोला ! लेकिन मैं अपने मुद्दे पर कायम था जो कि मेरी भुमिका निर्भया काण्ड और अभी के दौर में की ताजा हैदराबाद,उन्नावकी,भागलपुर की 40 साल पहले की भी घटना में भी एक ही है !
की इन सब अपराधों के पीछे की मानसिक स्थिति को हम जबतक नही समझेन्गे तब तक कोई भी अपराध रुकने वाला नहीं है निर्भया की घटना की पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई और उसी कारण वर्मा कमिटी बनाकर उसका रिपोर्ट और उसकी सूचनाओं के आधार पर और कडा कानुन बना ! यह सब चलते हुए महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्यचारो मे कमी आना तो दूर उल्टा बढ़ोतरी हुई है !
हैदराबाद,उन्नावकी घटना उसके ताजा उदाहरण है ! उल्टा पहले तो सिर्फ बलात्कार करते थे अब बलात्कार करके उस पीडिताकी हत्या करने लगे हैं ! इसलिए कड़े कानून सिर्फ उसका उपाय नहीं हो सकता उसकेलिये जबतक महिलाओं के प्रति पुरुषोका देखने का दृष्टिकोण में बदलाव नहीं होता तब तक तू चिज बडी है मस्त मस्त ! याने वह एक चीज है जिसे वस्तुओं के साथ लाकर रख दिया ! अब अगर वह वस्तुओ में शुमार हो जाए तो तो फिर उसका उपभोग वस्तुकी तरह करना आएगाही !!
इसलिए हम महिलाओं को सबसे पहले उपभोक्ता की लिस्ट से डिलीट कर के हमारे-आपके जैसे इन्सानोमे शुमार करना शूरू नही करेंगे तो यह सिलसिला जारी रहेगा और उसेभि हमारे-आपके जैसे मन,बुध्दि,भावना और विवेक भी है और आपके हमारे जैसे वह भी निर्णय लेने की क्षमता रखती है यह बात हमारे-आपके जेहन में कौंधती नही तबतक सब बेमानी है ! कमाधिक प्रमाण मे पूरी दुनिया में औरतों की तरफ देखने का नजरिया लगभग एक ही है ! अब मामूली सा फर्क शूरू हूआ है कि उसकी मर्जी का आदर करना चाहिए यह भाव कुछ व्यक्तियोमे उदीयमान होने लगा है !
महिला उत्पीडन यह एक बीमारी है जो सिर्फ कानून बनाने से रुकने वाला नहीं है बचपनसे लड़की और एक लड़के में घरों में ही लीजिये किस तरह भेदभाव किया जाता है ? सेकंड सेक्स नामकी किताब में सिमोन द बोवा ने बहुत अच्छेसे इस विषय पर रौशनी डाली है जिसका हिंदीमे प्रभा खैतान नामकी विदुषीने बहुत सुंदर अनुवाद किया है ! एक अदृष्य दीवार खड़ी कर दी है इसलिए एक जुगुप्सा उम्रके प्रथम चरण से मनमे पनपना शुरू हो जाती है ! और वैसे भी हमारे समाज में सेक्स के बारे में इतनी लुकाछीपी चलते रहती है की किसी भी युवक-युवतियों को ऊनके उम्रके महत्वपूर्ण दौर में आकर भी कुछ भी धंगसे मालुम नहीं होता है ! बहुत ही अग्यानका माहौल बना हुआ है और यह भी एक कारण है कि महिला उत्पीडन के हादसेमे ऋद्धि हो रही है और यह भी तथाकथित सभ्य समाज में ! आदिवासियो में सर्वेक्षणों से देखने से पता चलता है कि वहां महिला उत्पीडन लगभग नहीं के बराबर है ! और जो भी प्रसंग देखने में आये हैं वो गैर आदिवासियो की तरफ से है ! शायद स्री-पुरुष के सबसे स्वस्थ संबंध अगर कहीं है तो आदिवासियो में ही ! जिह्ने तथाकथित सभ्य समाज में पिछड़े इलाके के रुप मे देखा जाता है !
थोडा आत्मप्रशंसक का दोष स्वीकार करते हुए मुझे मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव शेयर करने का मोह मै टाल नहीं सकता क्योंकि यह मेरा निजी अनुभव है और महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना और सहज भाव आने का दूसरा उदाहरण प्रस्तुत करने से बेहतर अपना खुद का ही देना ठीक है ! इसमे थोडा नार्सिस्ट भी कहा जा सकता है लेकिन मेरा हेतू कोई और नहीं होनेके कारण मैं दे रहा हूँ !
मैं 7 वी क्लास में था 12-13 साल का बच्चा होगा राष्ट्र सेवा दल की शाखामे जाने लगा शाखामे लड़कियां भी शामिल थी खेल,गाने,गोष्ठी का आयोजन सब एक साथ मिलकर होता था इस कारण लडकियोके साथ घुलने मिलने का अवसर मिला तो दुसरे लडके जो शाखामे नही आते थे लेकिन मुझे अक्सर ताना मारते थे की तेरी तो बहुत मजा चल रही है ! हमेभी शाखामे आने देना क्यौंकि मै शाखानायक भी था तो मैं उह्ने कहता था की सिर्फ लड़कियों के लिए शाखामे आने वालो को मैं नहीं अलाऊ करता राष्ट्र सेवा दलकि और गतिविधियों में भी रुचि होंगी तो जरुर आये !
लेकिन अब मुझे लगता है की घरोंमें अपनी बहन,भाभी या अन्य कोई भी तरुण महिलाओं के साथ सहज स्वाभाविक रूप से मिलने की गुंजायीश नहिके बराबर होती है जो स्वस्थ जीवन के लिए अवश्य है ! और स्री-पुरुष का एक दूसरे से मिलने की इच्छा अधूरी रह जाती है और फिर वह एक अतृप्त इच्छाओं का प्रस्फुटन हुआ तो विकृति का रुप ले लेता होगा क्योंकि मैं बचपनसे महिलाओं के साथ सहज और स्वाभाविक रूप से रहनेके कारण कॉलेज में भी लगभग सभी लडकियोके साथ मेरे बहुत अच्छे मैत्रीपूर्ण संबंधों के कारण मैं लडकियों की पहल पर कॉलेज का जी एस तक बना ! और अभिभी मेरी स्री और पुरूष मित्रोँ की लिस्टिंग करु तो शायद बराबर की संख्या है !
मुख्य बात स्री पुरुष संबंधों की है जो की आज एक अदृश्य दिवार एक दूसरे में है सहज स्वाभविक नहीं हैं पति- पत्नी ,बहन-भाई इत्यादी संबंधों में भी सहजता नही होती है ! एक हेल्दी मित्र हमारी संस्कृति में दिखती नहीं ! स्री-पुरुष एक दूसरे के रिस्तेदार के अलावा मित्र होना चाहिए जो मैं बचपनसे इस बात का हिमायती रहा हूँ और इसिलिए निसन्देह मै पुरुष मित्र के साथ मेरी स्री मित्रोको बराबरिका सम्मान देता हूँ !हैदराबाद,उन्नाव,भागलपुर,नागपु
1979 और 80 के दशक में भागलपुर बिहार में 31 अंडरट्रायल्स कैदियों की आँखो में बिहार पुलिस ने असिड डालकर अन्धा कर दिया था बराबर उसके 10 साल बाद अक्तूबर 1989 में दंगा हुआ था तो दन्न्गेके बाद के सांप्रदायिक सद्भावना के काम करने हम लोग कोलकाता,शांतिनिकेतन से जानेका क्रम शुरू हुआ तो उस समय बातचीत में दस साल पहले के आँखफोडवा काण्ड की बात होती थी तो जो लोग सांप्रदायिक सद्भाव के काम में हम लोगों को मदद करते थे वे भी आँख फोड़नेकी घटना का समर्थन करते थे !
यह सब लिखने का कारण 6 दिसम्बर की हैदराबाद पीड़िताके आपराधिक गतिविधि में शामिल चार अभियुक्तों को पुलिस ने गोली मारकर हत्या कर दी गई है और मैने कलकी मेरी फ़ेसबुक वॉल पर अलोचना की है तो कुछ लोगोकी प्रतिक्रिया काफी मुझे व्यक्तिगत गाली गलोज वाली आ रही है ! यह एक तरह से हमारे समाज का दर्पण ही हैं ! क्यौंकि भागलपुर आँख फोडवा कान्ड़का समर्थन और अभी दो दिन पहले वाली हैदराबाद की घटना का समर्थनभी एक ही मानसिकता का परिचयात्मक समर्थन करने वाले लोग हैं !
जो खुद व्यक्तिगत जीवन में अपने स्तिथि के कारण खुद अपने आपको असहाय महसूस करते रहते हैं फिर किसी और ने कुछ इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया तो वो तुरंत राहत महसूस करते हैं जैसे सिनेमाके हीरो द्वारा वीलनकौ पिटने का दृश्य देखकर वह अप्रत्यक्ष रूप से खुद को उस हिरोकी जगह कल्पना करके देखता है और अपने व्यक्तिगत जीवन में जो भी वह सहनेके लिये मजबूर रहता है तो काल्पनिक ही सही लेकिन वह एक मिथ्या सुख का अनुभव करता है ! ऊन विलनोमे उसका कोई पडोसी या बॉस या कोई नाते रिस्तेदार भी हो सकता है जिनसे उसकी रंजिस हो सकती है जिह्ने वह प्रत्यक्ष रूप से खुद अपनी कमजोरियों के कारण प्रतिकार नहीं कर सकता है तो सिनेमाके हीरो द्वारा लीया हूआ बदला लेने की घटना से वह खुदको रिलेट करता है !
लेकिन 40 साल पहली भागलपुर की घटना हो या दो दिन पहले की हैदराबाद की घटना के पीछे की मानसिकतामे मुझे कुछ्भी फर्क नजर नहीं आ रहा है क्योंकि दोनों जगहों पर समाजकंटक या आपराधिक मामलों में लिप्त लोगों के प्रति आम लोगो का गुस्सा अपने धंगसे अभिव्यक्त होता हुआ दिख रहा है !
नागपुर में अक्कू यादव नामके एक आपराधिक गतिविधियों लिप्त अक्कू यादव को 13 अगस्त 2004 में भरे कोर्ट में शेकडौ की संख्या में औरतों ने कोर्ट रूम में सबसे पहले उसके लिंग को काटकर अलग कर दिया औरउस समय मोब्लिण्चीग शब्द तब इतना उछालता हूआ नही बना था तो महिलाओं ने उसे मार डाला ! पूरे देश भर के मीडिया से संबंधित सभी अन्कर दिल्ली,मुम्बई से दौड़कर आये थे और मामले की काफी चर्चा चली तो नागपुर में एक इण्डिया पीस सेंटर नामकी जगह है जहाँ पर देश दुनिया के काफी महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस मुहाब्सा होते रहते है जिसमें मेरी भी भुमिका रहती है !
तो उस घटना के बाद इण्डिया पीस सेंटर में उसिको लेकर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया था जिसमे नागपुर के अखब़ार के सम्पादक तथा पत्रकार,वकील तथा,प्रोफेशनल्स, सामाजिक,राजनीति आदि कामों में क्रियाशील लोगों को भी बुलाया गया था और मैं सभा का अध्यक्षता की भूमिका में था तो लगभग सभी लोग अक्कु यादव को महिलाओं ने कोर्ट के भीतर जो कुछ किया उसके समर्थनमे थे ! सिर्फ मेरा अध्यक्षीय सम्बोधन अलग था तो काफी बवेला मचाया गया कुछ वामपंथी दलों के लोगों ने तो मुझे नपुंसक बोला ! लेकिन मैं अपने मुद्दे पर कायम था जो कि मेरी भुमिका निर्भया काण्ड और अभी के दौर में की ताजा हैदराबाद,उन्नावकी,भागलपुर की 40 साल पहले की भी घटना में भी एक ही है !
की इन सब अपराधों के पीछे की मानसिक स्थिति को हम जबतक नही समझेन्गे तब तक कोई भी अपराध रुकने वाला नहीं है निर्भया की घटना की पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई और उसी कारण वर्मा कमिटी बनाकर उसका रिपोर्ट और उसकी सूचनाओं के आधार पर और कडा कानुन बना ! यह सब चलते हुए महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्यचारोमे कमी आना तो दूर उल्टा बढ़ोतरी हुई है !
हैदराबाद,उन्नावकी घटना उसके ताजा उदाहरण है ! उल्टा पहले तो सिर्फ बलात्कार करते थे अब बलात्कार करके उस पीडिताकी हत्या करने लगे हैं ! इसलिए कड़े कानून सिर्फ उसका उपाय नहीं हो सकता उसकेलिये जबतक महिलाओं के प्रति पुरुषोका देखने का दृष्टिकोण में बदलाव नहीं होता तब तक तू चिज बडी है मस्त मस्त ! याने वह एक चीज है जिसे वस्तुओं के साथ लाकर रख दिया ! अब अगर वह वस्तुओ में शुमार हो जाए तो तो फिर उसका उपभोग वस्तुकी तरह करना आएगाही !!
इसलिए हम महिलाओं को सबसे पहले उपभोक्ता की लिस्ट से डिलीट कर के हमारे-आपके जैसे इन्सानोमे शुमार करना शूरू नही करेंगे तो यह सिलसिला जारी रहेगा और उसेभि हमारे-आपके जैसे मन,बुध्दि,भावना और विवेक भी है और आपके हमारे जैसे वह भी निर्णय लेने की क्षमता रखती है यह बात हमारे-आपके जेहन में कौंधती नही तबतक सब बेमानी है ! कमाधिक प्रमाण मे पूरी दुनिया में औरतों की तरफ देखने का नजरिया लगभग एक ही है ! अब मामूली सा फर्क शूरू हूआ है कि उसकी मर्जी का आदर करना चाहिए यह भाव कुछ व्यक्तियोमे उदीयमान होने लगा है !
महिला उत्पीडन यह एक बीमारी है जो सिर्फ कानून बनाने से रुकने वाला नहीं है बचपनसे लड़की और एक लड़के में घरों में ही लीजिये किस तरह भेदभाव किया जाता है ? सेकंड सेक्स नामकी किताब में सिमोन द बोवा ने बहुत अच्छेसे इस विषय पर रौशनी डाली है जिसका हिंदीमे प्रभा खैतान नामकी विदुषीने बहुत सुंदर अनुवाद किया है ! एक अदृष्य दीवार खड़ी कर दी है इसलिए एक जुगुप्सा उम्रके प्रथम चरण से मनमे पनपना शुरू हो जाती है ! और वैसे भी हमारे समाज में सेक्स के बारे में इतनी लुकाछीपी चलते रहती है की किसी भी युवक-युवतियों को ऊनके उम्रके महत्वपूर्ण दौर में आकर भी कुछ भी धंगसे मालुम नहीं होता है ! बहुत ही अग्यानका माहौल बना हुआ है और यह भी एक कारण है कि महिला उत्पीडन के हादसेमे ऋद्धि हो रही है और यह भी तथाकथित सभ्य समाज में ! आदिवासियो में सर्वेक्षणों से देखने से पता चलता है कि वहां महिला उत्पीडन लगभग नहीं के बराबर है ! और जो भी प्रसंग देखने में आये हैं वो गैर आदिवासियो की तरफ से है ! शायद स्री-पुरुष के सबसे स्वस्थ संबंध अगर कहीं है तो आदिवासियो में ही ! जिह्ने तथाकथित सभ्य समाज में पिछड़े इलाके के रुप मे देखा जाता है !
थोडा आत्मप्रशंसक का दोष स्वीकार करते हुए मुझे मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव शेयर करने का मोह मै टाल नहीं सकता क्योंकि यह मेरा निजी अनुभव है और महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना और सहज भाव आने का दूसरा उदाहरण प्रस्तुत करने से बेहतर अपना खुद का ही देना ठीक है ! इसमे थोडा नार्सिस्ट भी कहा जा सकता है लेकिन मेरा हेतू कोई और नहीं होनेके कारण मैं दे रहा हूँ !
मैं 7 वी क्लास में था 12-13 साल का बच्चा होगा राष्ट्र सेवा दल की शाखामे जाने लगा शाखामे लड़कियां भी शामिल थी खेल,गाने,गोष्ठी का आयोजन सब एक साथ मिलकर होता था इस कारण लडकियोके साथ घुलने मिलने का अवसर मिला तो दुसरे लडके जो शाखामे नही आते थे लेकिन मुझे अक्सर ताना मारते थे की तेरी तो बहुत मजा चल रही है ! हमेभी शाखामे आने देना क्यौंकि मै शाखानायक भी था तो मैं उह्ने कहता था की सिर्फ लड़कियों के लिए शाखामे आने वालो को मैं नहीं अलाऊ करता राष्ट्र सेवा दलकि और गतिविधियों में भी रुचि होंगी तो जरुर आये !
लेकिन अब मुझे लगता है की घरोंमें अपनी बहन,भाभी या अन्य कोई भी तरुण महिलाओं के साथ सहज स्वाभाविक रूप से मिलने की गुंजायीश नहिके बराबर होती है जो स्वस्थ जीवन के लिए अवश्य है ! और स्री-पुरुष का एक दूसरे से मिलने की इच्छा अधूरी रह जाती है और फिर वह एक अतृप्त इच्छाओं का प्रस्फुटन हुआ तो विकृति का रुप ले लेता होगा क्योंकि मैं बचपनसे महिलाओं के साथ सहज और स्वाभाविक रूप से रहनेके कारण कॉलेज में भी लगभग सभी लडकियोके साथ मेरे बहुत अच्छे मैत्रीपूर्ण संबंधों के कारण मैं लडकियों की पहल पर कॉलेज का जी एस तक बना ! और अभिभी मेरी स्री और पुरूष मित्रोँ की लिस्टिंग करु तो शायद बराबर की संख्या है !
मुख्य बात स्री पुरुष संबंधों की है जो की आज एक अदृश्य दिवार एक दूसरे में है सहज स्वाभविक नहीं हैं पति- पत्नी ,बहन-भाई इत्यादी संबंधों में भी सहजता नही होती है ! एक हेल्दी मित्र हमारी संस्कृति में दिखती नहीं ! स्री-पुरुष एक दूसरे के रिस्तेदार के अलावा मित्र होना चाहिए जो मैं बचपनसे इस बात का हिमायती रहा हूँ और इसिलिए निसन्देह मै पुरुष मित्र के साथ मेरी स्री मित्रोको बराबरिका सम्मान देता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार,नागपुर रविवार 8 दिसम्बर 2020