डॉ सुरेश खैरनार
साथियो 3 मई 1977 को हमिद दलवाई जी किडनी की बीमारी के कारण इस दुनिया से विदा कर गये थे ! गिनकर 45 साल की जिंदगी जिये शुरुआत के 20 साल छोड दें तो 25 साल अपनी जान जोखिम में डालकर वे माहात्म जोतिबा फुले के जैसे समाज प्रबोधन के काम में लगे रहे और उसमे भी मुस्लिम सामाजिक सुधार जो सौ साल पहले टर्की में केमाल अतातुर्क पाशा ने सत्ता में आने के बाद कोशिश की थी !
लेकिन इस्लाम धर्म के 1500 सौ साल के इतिहास में समाज सुधारक शायद ही कोई और हुआ है ! और हमिद दलवाई महाराष्ट्र के कोंकण के चिपलुण नामकी जगह पर पैदा हुए ! जहापर और सामाजिक सुधार करने वाले विष्णु शास्री चिपलुणकर पैदा हुए थे ! उसी कोंकणी छोटेसे गावमे हमिद 29 सितम्बर 1932 में पैदा हुए और उम्रके 14 वें साल में सिर्फ पांच साल पहले शुरू किया गया राष्ट्र सेवा दल नामके संघटन में शामिल हुये !
इस कारण एक संस्कार क्षम उम्रमे जनतांत्रिक,समाजवाद,धर्मनिरपेक्ष,विज्ञानाभिमुक और राष्ट्रवाद के मुल्य लेकरही जीवन का आगेका सफर तय किया ! बहुत लोग अलग अलग संगठन में आते रहते हैं लेकिन सभिका अपने जीवन के लक्ष्य को खोजने का प्रयास होता है ऐसा नहीं लगता लेकिन कुछ लोग होते हैं जिन्हें अगर सही समय सही राह मिल जाती है और उसमे हमिद एक थे!
जब वे 15 साल के हो गये तो आजादी आ गई थी ! फिर मुख्य लक्ष्य देश को बनाना ! क्यौंकि आजादी के पहले बाटो और राज्य करो की नीति के कारण एक तरफ मुस्लिम लीग और दूसरे तरफ हिंदू महासभा और 1925 के बाद संघ परिवार को प्रश्रय देने का काम अंग्रेजोने बखूबी किया था जिसके कारण आजादी देश के बटवारे के साथ मिलकर ही आइ ! जिसमे लाखो लोग मारे गए और करोडो की संख्यामे विस्थापित हुए !
हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच में जबरदस्त खाई निर्माण हो गई थी ! जिसमे महात्मा गाँधी की बली भी हूई ! इसलिए हमिद दलवाई का कुमार से युवक होंनेका काल कितना बड़ा संक्रमण का काल रहा होगा इसकी कल्पना करनेसे मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं ! और ऐसे माहौल में अपने आप को सेकुलर बनाये रखना कोई साधरण बात नहीं है यह तो सिर्फ और सिर्फ राष्ट्र सेवा दल के संस्कार के कारण ही संभव है !
आप का जाति धर्म निरपेक्ष रहना भी आप का परिवेश और समय भी एक कारण होता है ! इसलिऐ मुझें हमेशा से लगता रहा की मुझेभी मेरे जीवन में हमिद भाई की तरह उम्र के 13-14 वे साल में पदार्पण करते समय अगर राष्ट्र सेवा दल जैसा जाती धर्म निरपेक्ष सामाज के संस्कार करने वाले संघठन का परिचय नहीं हूआ होता तो मैं शत प्रतिशत संघ का स्वयंसेवक बना होता क्यौंकि मेरे प्रिय भुगोल के शिक्षक पाटील सर मुझे संघ में शामिल करने के लिए काफी प्रयास करते रहे !
मुझे लगता है कि हमिद दलवाई के शुरुआत की जिंदगी में अगर राष्ट्र सेवा दल नहीं होता तो वे मौलाना हुयें होते क्योंकि उनके अब्बाजान की इच्छा जो थी ! यह बात हमिद भाई ने मुझे अमरावती में मैने 70 के दशक में जब बुलाया था तब खुद गपशप में कहीं थी ! गपशप के बहुत शौकीन थे ! किडनी की बीमारी में जस्लोक अस्पताल के बेड पर थे तब भी वह गपशप के मुड में और शरद पवार जी के आवसपर रहते थे तब भी! इतना जिंदादिल आदमी बहुत कम देखे हैं !
उम्र के शुरुआत में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी रहे हैं और पत्रकार भी आचार्य अत्रे के मराठा नामके अखब़ार में काम कीया है ! उसी समय इंधन नामके उपन्यास का लेखन किया जिसका दिलीप चित्रे ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है ! वैसे ही एक कथा संग्रह का भी लेखन किया है !और दोनो कृतियों को पुरस्कार भी मिल चुका है ! याने ललित लेखन में भी अपना योगदान दिया है ! समाज सुधारक की धुन सवार हुई तो वह छुट गया !
लेकिन भारतीय मुसलमानो की हालत देख कर वे अपने आप को रोक नहीं सके ! एक वर्ग था जो इस्लाम खतरे की बात कर के मुसलमानो की राजनीति कर रहे थे और दूसरे उनको वोट बैंक की राजनीति के कारण उनका सिर्फ इस्तेमाल कर रहे थे लेकिन हमिद भाई को तो मुसलमानो के भीतर की बहुपत्नीत्व और तलाक का चलन छल रहा था और इसी कारण उन्होँने 18 एप्रिल 1966 में याने उम्रके 34 वें साल में प्रवेश करते करते मुम्बई के सचिवालय पर तलाक पीडित महिलाओ का मोर्चा निकाल ने का साहस पूर्ण काम शुरू कर दिया था !
समाज सुधार का बिगुल बजा दिया था ! और अगले ग्यारह साल का समय महात्मा ज्योतिबा फुले के राह पर पुणे में साने गुरुजी ने शुरू किया गया साधना साप्ताहिक के दफ्तर में 22 मार्च 1970 को याने अपनी उम्रके 38 वें साल में प्रवेश करते हुए मुस्लिम सत्य शोधक समाज नामके संगठन की स्थापना की थी ! ताकी हर बात में कुरान और हदीस का हवाला देकर मुल्ला मौलवी और सत्ताकी राजनीति करने वाले मुस्लिम नेता सामान्य मुसलमानोको भेड बकरियां जैसे इस्तमाल कर रहे थे उसमे हमिद दलवाई भारतीय आजादी के 25 साल पूरे होने के पहले मुसलमानोमे समाज सुधारक बनना इस्लाम के भीतर बहुत बडी क्रांति की बात है ! और उनके मृत्यु के 43 साल बाद भी अभितक उनके हैसीयत का कोई नहीं दिख रहा है !
और उसमे भी आधी आबादी के लिए जो महिलाओ के साथ शरीयत का हवाला देकर व्यवहार किया जाता है उसीके खिलाफ़ 18 एप्रिल 1966 का सचिवालय पर तलाक पीडित महिलाओ का मोर्चा एतिहासिक कदम था ! शाह बानो का मामला उसके 20 साल बाद का है ! और यही भारतीय सेकुलर राजनीति का ह्रास पर्व शुरु होता है ! सवाल आस्था का है कानुन का नहीं नारा यहिसे शुरु हुआ और संघ परिवार की बाखे खिल गई !
वैसे तो संघका मुख्य सुत्र मुस्लिम द्वेष रहा है लेकिन हमिद भाई के बीमारी के समय 1977 का जनता पार्टी का निर्माण भारतीय सेक्युलर राजनीतिके पतनकी शुरुआत हो गयी थी क्योंकि महात्मा गाँधी की हत्या के बाद मुह झुपाकर रहनेवाला संघ परिवार को लेजिटीमेसी मिल्नेकी शुरुआत यहिसे शुरु हुई आपात्काल में हम विभिन्न जेलों में रहने वाले सथियोके साथ विचार विमर्श के लिए एस एम जोशीजी और नाना साहब गोरेजी घुमे है और मैने एस एम जोशिजिसे साफ साफ शब्दोमे कहा की जनसंघ जैसे हिंदू सांप्रदायीक दल जो समाजवाद,सेक्युलर ये हमारे कोअर मुद्दोको बिलकुल नहीं मानता है पूरी पार्टी पूंजीपति और राजा महाराजा,जमींदार और सबसे आपत्ति जनक बात वह उच्च जातियों की ब्राह्मणवाद की वकालत करने वाली पार्टी से हम समाजवादीयो का वैचारिक आधार कैसे बनेगा ? चाहो तो चुनावी गठजोड़ कर सकते लेकिन एक पार्टी ! मेरे तो गले नहीं उतरता है ! तो एस एम जोशीजी ने कहा था कि सुरेश मै तिहाड जलसे जॉर्ज फर्नांडीज से मिलकर आ रहा हूं और उनका कहना भी तुह्मारे जैसा है ! साथियो उस समय जॉर्ज फर्नांडीज समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष थे और मेरेसे पिताजिके उम्रके रहे होंगे और मै 22-23 साल का राष्ट्र सेवा दल का पूर्ण समय कार्यकर्ता ! मैने एस एम जोशी जी को कहा कि जब जॉर्ज फर्नांडीज जैसे मेरे से दुगने उम्र के साथी यही बात कह रहे हैं तो मुझे मेरी बात और पुख्ता लगती हैं ! लेकिन एस एम जोशी जी ने कहा कि जयप्रकाश नारायण जी की शर्त है की अगर आप सब पार्टिया जबतक एक नहीं होते तबतक मैं चुनाव प्रचार के लिए नहीं निकल ने वाला ! इस पेशोपेश्मे जनता पार्टी का गठन हुआ जिसका मै आचार्य केलकर के साथ दिल्ली के प्रगति मैदान में हाजिर थे!और विट्ठल भाई पटेल भवन के लॉन पर सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के विसर्जित करने वाले अधिवेशन का भी मुक दर्शक रहा हूँ ! जिस अधिवेशन की अध्यक्षता मेरे उस समय के हीरो जॉर्ज फर्नांडीज कर रहे थे ! और 1977 के बाद संघ परिवार का रथ यात्रा जो शूरू हूई और आज हम कहा है और वो कहा ?
इनि 43 सालोमे मेजोरीटी कम्युनल राजनीति जिस तरह से शनैः शनैः परवान पर चढी यह देखनेके लिये हमिद भाई जीवित नहीं है ! जहातक मै उनको जनता हूँ उन्होनें नरेंद्र मोदी द्वारा लाया हूआ तथकथित समान नागरीकता वाला कानून का समर्थन नहीं किया होता !
क्यो कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए इसी नरेंद्र मोदी ने गोधरा की आदमे जो मुसलमानोका नरसंहार किया और मुख्य रूप से भारत अजादीके बादके दंगोमे महिला अत्याचार गुजरातके 2002 के दंगेसे शुरु हुये कौसर बी,इशरत ,मलिका और सुरत में वीडियो रिकॉर्डिंग करके मुस्लिम औरतों पर के बलात्कार के क्लिपिंग्स मृणाल गोरे,सुमा चिटणीस की टिमने उजागर किया है ! गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़कर उनके गर्भ को त्रिशूल की नोकपर जुलुस में घुमने की घटनाये नरेंद्र मोदी को मुस्लिम महिलाओं की कितनी चिंता है उसके लिए पर्याप्त प्रमाण हैं ! और वह नरेंद्र मोदी जब समान नागरिक संहिता की बात करते हैं तो उनका इरादा मुसलमानोको डराने का एक और हथकण्डे के रुप में मैं लेता हूँ और शायद हमिद भाई साहब ने भी यह पोलिटिकल अजेंडेको पक्का समझा होता क्यौंकि भारतीय मुसलमानोको हासियेपर डालनेका एक से बढ़कर एक हथियार संघ परिवार ने इन 43 सालों में इस्तमाल किये और मुझे पूरा विश्वास है कि हमिद दलवाई सिर्फ मुस्लिम समाज सुधारक ही नहीं थे वो इन्डियन सेक्युलर सोसाइटी के संस्थापकोंमेसे एक महत्वपूर्ण सदस्य थे ! और इंडियन सेकुलर सोसाइटी के अभितक उप्लब्ध साहित्य का मेरा अध्ययन कहता है कि वर्तमान मेजोरीटी कमूनिटि के कम्युनल अजेंडेको पुरजोर विरोध हमिद दलवाई,नरहर कुरुन्दकर और ए बी शाह ने किया होता !
क्यौंकि भारतीय स्वातंत्र्य के 73 के इतिहास में 30-35 करोड मुस्लमान जो भारत में रह रहे हैं कभिभी इतने असुरक्षा की भावना के शिकार नहीं थे इतने आज है ! और यह हाल संघ परिवार ने अपने 95 सालसे लगातार हिन्दु-मुस्लिम खाई बढाने के लिए मंदीर-मस्जिद,गाय,कश्मीर,पाकिस्तान,और अब नागरिकतका मुद्दा सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को गुरु गोलवलकर के मुसलमानोंको हिन्दुओ की सदाशयता पर भारत में रहना है तो दोयम दर्जे का नागरिक बनकर रहना होगा ! और यह बात का सबसे बड़ा विरोध हमिद दलवाई ने किया होता ! क्यौंकि वे हिन्दुत्व वादियोके इरादोसे भलीभांति परिचित थे यह मैने अमरावती के कर्यक्रममे खुद देखा सुना है तो 43 साल के भीतर पूरी दुनिया में पोलिटिकल इस्लाम को लेकर कम अधिक प्रमाण में एक जैसा व्यवहार चल रहा है और हमिद भाई जैसे जीनियस मित्रकी नजर से यह सब नहीं छुटा होता! शायद वे इस लडाई में हमारे नेता होते ! इसलिए काल सापेक्षता का सिद्धांतपर हमारे सभी पुर्वजौकी चिकित्सा करनी चाहिए फिर चाहे वो कोई भी क्यो ना हो ! हमिद दलवाईने आजसे 50 साल पहले मुस्लिम सत्यशोधक समाज नाम क्यो दिया ? तुकाराम महाराज के अभंग के अनुसार सत्य असत्याशी मन केले ग्वाही ! महात्मा गाँधी के जीवन का निचोड क्या है सत्य की खोज और उनसेभी 100 से भी ज्यादा समय पहले महात्मा ज्योतिबा फुलेजिने अपने संगठनका नाम सत्यशोधक समाज क्यौ रखा था ? हमिद दलवाई जिने यह सब सोच समझकर अपने भी संघटन को यही नाम देना क्यो सुझा होगा ? और वह भी मराठी नाम ! हमिद भाई कोंकण में पैदा हुए तो सभी कोकणी मराठी भाषा बोलते हैं कुछ लोकल डायलेक्ट कोंकणी भी बोलते हैं ! बगलके कर्णाटक में कन्नड,आंध्र प्रदेश में तेलगु,तमिलनाडु में तमिल और मलयालम केरल राज्य में वैसाही ओरिसा मे उडिया,बंगालमे बँगला,आसाम में असमिया और नॉर्थ ईस्ट के अन्य हिस्सों में वहाकी विभिन्न बोलीया,बगलके बिहारमे भागलपुर में अंगिका,मिथिलंचल में मैथिली, भोजपूरी ,अवधी,हरियाणवी,पंजाबी,राजस्थानी,गुजराथी और जम्मू एवं कश्मीर में डोगरी,कश्मीरी,मिर्पुरि और लद्दाख में लद्दाकी और इसके अलावा हर दस मैल पर भाषा बदलती हैं कहावत के अनुसार मेरी मातृभाषा धुलिया जिलेका होनेके कारण अहिरानी ! लेकिन मैं तो धोबिके कुत्ते जैसा ना घर का ना घाटका होनेके कारण कोई भी भाषा धंगसे नहीं बोल लिख पाता बस काम चलाऊ चल रहा है !
भाषा के बारे में इतना विस्तार से लिखनेकि वजह हमिद दलवाई भारतीय मुसलमानोंको जोर देकर कहते थे की आपका जन्म जहा पर हूआ वहाकी भाषा आपकी भाषा होनी चाहिए ऊर्दू ,अरेबिक ग्यानके लीये सिखिये लेकीन ऊर्दू अपनी भाषा है यह गलत फहमी मे महाराष्ट्र में पैदा हुए हैं तो बेखटके मराठिमे पढिये अन्यथा ऊर्दू या अरेबिक,फार्सिके चक्करमे पिछड जाओगे क्योकिं इन भाषाओं में पढकर आपको नोकरी या रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं है ! लेकिन मुल्ला मौलाना लोग मदरसोकी शिक्षा के आग्रक्रम देकर मुस्लिम समाजका कितना बड़ा नुकसान किये ! 1971 भाषा के नाम पर जो मुल्क पहले धर्म के आधार पर बनाया गया था लेकिन 15- 20 साल के भीतर उर्दू कीजबरदस्ती का विरोध करकेहि भाषा आन्दोलन पर अलग देश हो गया है यह वास्तव हमिद दलवाई बतानेकी कोशिश करते रहे !
मुझे दो बार पकिस्तान जानेका मौका मिला है दोबारा तो अटारी-वाघा सिमासे पुरा पंजाब और सिंध और उसके बाद बलूचीस्थान क्रॉस कर के ईरान के झायदान नामकी जगहपर पुरा 3-4 दिनके सफर जमिनसे करनेके कारण उर्दू और इस्लाम का मसाला इस्तमाल कीया हुआ पकिस्तान में उर्दू की कितनी इज्जत हो रही हैं यह नजारा देखने सुनने का मौका मिला अमृतसर से 50 किलोमीटर के लाहौर में पन्जाबिका आलम वहासे आगे बढे तो सक्कर,अटक,सिंध हैदराबाद और कराचिमे सिंधी वहासे आगेका सफर बलूचिस्तान पुरा बलूच बोलने वाले ! और आपसमे बैर तो भारत पाकिस्तान का फीका लगेगा ऐसा ! याने 73 के पकिस्तान का युनिफीकेशंन झीरो ! इसलिए इस्लाम खतरे में है और दुनियाके सभी मुसलमान इकठ्ठा होनी की कहानिया संघ परिवार 95 वर्षों से अपनी शाखाओं में बढा चढाकर बताते रहते है ! और हमिद दलवाई भी 45 साल की जिन्दीगीमे यही सब दिस्कोर्स करते थे !
उनकी मृत्युको आज 43 साल हो रहे हैं और आंतरराष्ट्रीय स्तरसे भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति को देखनेसे पता चल रहा हैं की गत चालिस साल से अधिक समय से इस्लाम को वह भी सलाफि या वहाबी इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए पस्चीम के देश जिसमे नम्बर एक पर अमेरिकन दो पर ब्रिटिश और तिनपर फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों की भूमिका तेलके लिये तथाकथित क्लश ऑफ सिविलयझेशन का हौव्वा दिखाकर पहले अल कायदा,बोको हराम और अब इसिस के नाम पर जो घिनौना काम कर रहे हैं वह यदि आज हमिद दलवाई होते तो महमुद मम्दनी,नॉम चौमुस्कि,एडवर्ड सईद,समीर आमीन के साथ और एक नाम जुडा होता वह हमिद दलवाई का होता !
इसलिए 1977 तक हमिद दलवाईने जो राह दिखाई थी वह ठीक ही थी लेकिन 90 के दशक से मुख्यतः हमारे अपने देश भारत में संघ परिवार का आक्टोपस ने भारत को जकड़ लिया है और उसमे सबसे बड़ी किमत अल्पसंख्यक समुदाय के लोग,दलित हो या आदिवासी और महिलाओं के प्रति होने वाले अन्याय सबसे संगीन होते जा रहे हैं ! इसलिए मुस्लिम सत्यशोधक समाज जो आज अर्धशताब्दी मना रहा है तो अगले 50 साल में हमे क्या करना चाहिए इसका नियोजन आप लोग जरूर कर रहे होंगे ! मैं भी एक सहप्रवासी होनेके नाते और हमिद भाई से जो भी थोडा बहुत संपर्क था उसके नाते उनकी आज 43 वीं पुण्य तिथि पर मैं 24 घंटों से भी ज्यादा समय से मेरा मुक्त चिंतन लगातार जारी है ! इसमे मैने किसिभि साथिके दिल को चोट पहुंचाई हो तो माफ करियेगा !
और उसी कारण कठमुल्लापन के शिकार लोगों ने उनके ऊपर जान लेवा हमले किये लेकिन हमिद दलवाई के हिम्मत की दाद देनी होगी क्योंकि उसके बाद उन्होँने पुरे भारत का दौरा किया और मुस्लिम समाज सुधारका अपना काम करते रहे लेकिन आपात काल के दौरान याने उम्रके 43 वें साल में प्रवेश करते करते किडनी की बीमारी से ग्रस्त हो गए फिर उनको किडनी प्रत्यारोपण की गई उसके बाद वे जयप्रकाश नारायण जी के साथ एक आंतरराष्ट्रीय कोंफ्रेंस में विदेश भी जाकर आये लेकिन प्रत्यारोपण की हूई किडनी उनके शरीर को सुट नहि हूई!
मै उनके आखिरी दिन जस्लोक हॉस्पीटल में उन्हे मिलने गया था दोनो आँखो के नीचे थैलियों जैसा पानी जमा था ! मेहरुन्निसा जी उनकी पत्नी तीमारदारी कर रही थी और उस स्थिति में भी उनके सेन्स ऑफ़ हूमर की दाद देनी पड़ेगी उन्होँने एक शब्द अपनी तबीयत पर बात नहीं की लगातार जोक्स और कई इंटरेस्टिंग बाते करते रहे आखिर मुझें ही वह शो अच्छा नहीं लग रहा था और मैं खुद उनकी दोनो आन्खोके निचे लटकी हुई थैलियों को देखते ही समझ गया था की अब यह कभी भी जा सकते हैं !
और शायद मेरे मिलने के हप्ते दस दिन में ही खबर आई कि मशहूर समाजसेवक और विचरवंत हमिद दलवाई नही रहे !
45 साल की उम्र में उन्होंने एतिहासिक काम किया है जिसको उनके अनुयाइयों ने बदस्तूर जारी रखा है ! राष्ट्र सेवा दलके पुणे स्थित मुख्यालय में जब मैं एप्रिल 2017 में अध्यक्ष पद पर आसीन होने के बाद ही मुस्लिम सत्यशोधक समाज को कार्यालय के लिए वीना मुल्य जगह दी है !
और उम्मिद है की वह जगह जब तक राष्ट्र सेवा दल रहेगा तब तक तो रहेगी क्यौंकि मै व्यक्तिगत तौर पर मानता हूँ की राष्ट्र सेवा दल जाती धर्म निरपेक्ष समाज बनाने के लिए बनाया गया है और मुस्लिम सत्यशोधक समाज राष्ट्र सेवा दल की एक ईकाई है क्योंकि हमें संसदिय राजनीति नहीं करनी है ! जो लोग करते हैं उन्हे अपने वोट के लिए सभीको खुष रखने की जरूरत होती है और इस लिए वे इस समाजको नाराज नहीं करना उस समाजको खुष रखने हेतु काफी कुछ ऊल-जलूल हरकते करनी पड़ती है!
और राष्ट्र सेवा दल परिवर्तन का वाहक होंनेका दावा किया करते हैं तो हमिद दलवाई ने लगाया हुये पौधे को जिलाए रखने हेतु राष्ट्र सेवा दल अपनी पृतिबध्दता आगे भी दिखायेगा क्यौंकि राष्ट्र सेवा दल हर तरह के संप्रदायीकताका विरोध करने का दावा करते हैं तो मुस्लिम सांप्रदायिकता के आगे घुटने टेक दिए जैसा होगा !
और यह साल तो मुस्लिम सत्यशोधक समाज के स्थापना का अर्धशतक याने पूरे 50 साल होने का साल है और देश और दुनिया की स्थिति को देखते हुए कभी नहीं इतनी राष्ट्र सेवा दल और मुस्लिम सत्यशोधक समाजकी आवश्यकता है ! हम सचमुच सांप्रदायीक राजनीति के विरुद्ध है तो हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम हर तरह की सांप्रदायीकताके विरोधी है ! जबतक हम लोग मुस्लिम कठमुल्लापन को विरोध नहीं करते तो हिन्दु या किसी और धर्म के कठमुल्लापन का विरोध करने का नैतिक अधिकार नहीं है !
हमिद दलवाई के सुधारवादी कामको लेकर आपत्ति जताई छोटे मोटे हमले भी हुये मुल्ला मौलवीओने गाली गालिगलोज भी की लेकिन महात्मा गाँधी या डॉ नरेंद्र दाभोलकर,गोविंद पानसरे प्रो कल्बुर्गी या गौरी लंकेश जैसी हत्या नहीं की ! भारत के हिन्दुत्व वादी और इस्लाम को मानने वालों में ये फर्क तो साफ साफ दिखता है कि जिन मुसलमानो को बर्बर दमन कारी जहिलोकी जमात बोलते बोलते संघ परिवार थकता नहीं है ! उन्होँने हमिद दलवाई,असगर अली इन्जीनियर,जुझर बन्दूकवाला जैसे सुधारक मुसलमानोको जानसे नही मारा यह बहुत बड़ा फर्क हिंदुत्व वादी और मुस्लमानोमे भारतीय भुमिपर साफ साफ दिखता है !
संघ परिवार शाखा में इस्लाम की बर्बरता का अपने स्वयंसेवकोंको भड़काने के लिए खुब बढा चढाकर बताते हैं और इसी कारण नाथूराम,प्रज्ञा सिंह,आसिमनंद,कल्सुंगरा ,बाबू बजरंगी,कर्नल पुरोहित और यू पी,बिहार,कर्णाटक श्रीराम सेना,बजरंग दल ,अभिनव भारत,सनातन संस्था जैसे हरावल दस्ते बनानेके करखनोमे तैयार होने वाले लोगों में और भारतीय भुमिपर रहनेवाला मुसलमान में कुछ तो फर्क है !
हमिद दलवाई और असगर अली इन्जीनियर दोनो सुधारक अपनी बीमारी के कारण मरे हैं और उल्टा प्रो जुझर बन्दूकवाले के घर पर गुजरात दंगा के समय हमला किया और घर को आग लगा दी ! ओ तो अच्छा हुआ की पडोसियोंने जोर जबरदस्ती से जुझर भाई और परिवार के लोगों को थोडी देर पहले अपने घर में छुपाकर रखा तो वो और परिवार बच गया लेकिन सब कुछ जलकर राख हो गया ! यह आक्रमक हिदुत्व का और भारतीय मुसलमानो में का बहुत बड़ा फर्क मुझें आज हमिद भाई की 43 वीं पुण्य तिथि पर बरबस याद आ रहा है ! और गुजरातकेदंगेका क्या कहना ! वर्तमान प्रधान-मंत्री जो उस समय गुजरातके मुख्यमंत्रि थे और कीस तरह उनकी शहपर पुरा दंगा हुआ यह ओपन सीक्रेट हो चुका है राणा आयुब से लेकर एक्स डी जी पी ऑफ गुजरात आर बी श्रीकुमार,जस्टिस कृष्णा अय्यर,पी बी सामंत और सिद्दार्थ वर्दराजन,मनोज मित्त और सबसे हैरानी की बात 27 फरवरी 2002 को श्याम सेही भारतीय सेना के जनरल पद्मनाभन ने लेफ्टिनेंट जनरल जाहिरुद्दींन शाह के नेतृत्व में 3000 भारतीय सेना के जवान हवाई जहाज से अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उतारे थे लेकिन उन्हे तिन दिनो तक एयरपोर्ट से बाहर निकलने नहीं दिया जाता हैं यह भी किसकी शहपर ? शाह साहब ने अपने आत्मकथा जिसका नाम सरकारी मुसलमान है उसमे विस्तारसे लिखा हुआ है ! अब नानवटी कमिशन ने बरी कर दिया बताया जा रहा है लेकिन नानावटी एक मण्झा हूआ संघ स्वयंसेवक जिसको मैने खुद अड मुकुल सिह्ना के साथ पाँच बार उस कमिशन का काम करते हुए देखा है और पहली सिटीग के बाद ही मैने मुकुल भाई को बोला की आप अपने समय को क्यो बरबाद कर रहे हैं तो मुकुल भाई ने मुझे बताया कि नरेंद्र मोदी जल्द से जल्द इस कमिशन से अपने आप को क्लीन चिट चाह रहा है ताकी वो देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार रहना चाहते हैं और इसिलिए मै इस कमिशन को लंबा खींचने की कोशिश कर रहा हूँ ! और दुर्दव्य देखिये मोदी प्रधान-मंत्री बननेके दो दिन पहले मुकुल भाई कँसर की बिमारिसे मर गए ! इसलिए हमिद दलवाई के जिवन कालमे हिन्दु तालिबान का स्वरूप देखनेसे वो बच गए हालाकि वह अपने भाषणोमे इस विषय पर भी बोलते थे !
मैने अमरावती में जो कार्यक्रमउनके भाषण का कीया था उसमे मुसलमान एक भी नहीं था क्योंकि हमारे कर्यक्रम जोशी हॉल में ही होते थे और श्रोताओं को देखते ही समझ गया था कि अमरावती के सभी संघी आये हुए थे और यह बात मैने हमिद भाई के कानमे धिरेसे कह दी ! तो उस दिन उन्होनें हिंदू और हिन्दुत्व इस विषय पर क्लासिकल भाषण दिया जिससे संघी श्रोताओं का काफी मोहभंग हूआ था !
लेकिन हमिद भाई के 1977 के बाद भारतीय राजनीति के केंद्र में सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता ही होकर रह गया जो आज परवान पर चल रहा है ! इसलिए हमारी जिम्मेदारी बहुत बढ गई है ! हमे बहुसख्यक जमतवाद और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बहुत सोच समझ कर रखना चाहिए और सबसे पहले अल्पसंख्यक समुदाय के फियर सायकि को देखकर बहुत ही नजकत से पेश आना चाहिए और उनका दिल जीतकर ही यह सं भव है और मैं खुद 1989 के भागलपुर दंगेके बाद यह काम कर रहा हूँऔर मेरा अनुभव है की आप मुसलमानोका विश्वास जित सकते हो और फिर वो आपपर भरोसा करने लगते हैं और अब तो मैं नॉर्थ ईस्ट से लेकर कच्छ के रण,कश्मिर,कर्णाटक,केरल,तमिल नाडू,राजस्थान,आंध्र,तेलंगाना ओरिसा,बंगाल,बिहार,पंजाब,हरियाणा,उत्तर प्रदेश गोवा,महाराष्ट्र झारखण्ड,छत्तीस गढ़ और उत्तराखंड,हिमाचल प्रदेश और बिहार मध्य प्रदेश अब शायद पूरा भारत वैसेभी मै गत 30 वर्षों से भागलपुर दंगेके बाद इसी विषयपर काम कर रहा हूँ! और अब मुस्लिम सत्यशोधक समाजकी अर्ध शताब्दि और हमिद भाई की 43 वी पुण्यतिथि पर मैं घोषित करता हूँ की अभि मेरी उम्रके 67 सालके दौरसे मै गुजर रहा हूँ! मुझे हार्ट डिसीज़,शुगार इत्यादि इत्यादि बिमारियों से मैं गत दस साल से ज्यादा समय से चल रहा हूँ 2018 के 23 जून को मेरे तिन ब्लॉक थे जिनको मैने एंजियोप्लास्टी करके तीन स्टेंट लगवाये है और तबसे एक हप्ते के बाद ही मैं रूटीन यात्रा और अन्य काम कर रहा हूँ! और मुझे कुछ भी तकलीफ नहीं हो रही हैं बिलकुल नॉर्मल स्टामिना लग रहा है इसलिए मेरी इच्छा है की मेरे हिस्से में जो भी बोनस लाईफ है उसका एक-एक पल इसी प्रकार के काम में लगा दूँ तो आप सभी सथियोके साथ रातके तिन बजे और तिन तारिख को हमिद भाई की पुण्य तिथि पर मेरा इस्तेमाल कैसे किया जाए यह आप सब सथियोके सामने रख रहा हूँ ! मेरे हिसाबसे हमिद दलवाई,नरहर कुरुन्दकर,ए बी शाह इन्डियन सेकुलर सोसाइटी के संस्थापक वरिष्ठ मित्रोका अधूरा काम पूरा करने के लिए मैं तैयार हूँ अब आप सब मुझे बताये की मैने क्या क्या करना है और कैसे ?
और हमिद दलवाई को 43 वीं पुण्य तिथि पर इससे अलग श्रद्धान्जली और क्या हो सकती हैं ? क्यौंकि वे तो अपने जीवन में यही जद्दो-जहद करते हुए इस दुनिया से विदा हुए हैं ! अगर वे जीवित होते तो आज 88 साल के होते लेकिन उससे आधी जिंदगी जिकर जो काम वह करके गये वह कोई 100 साल में भी नहीं कर सकता ! इसलिए उन्हे सही श्रधान्जली उन्होने शुरु किया हुआ काम आगे भी करते रहना चाहिए !
डॉ सुरेश खैरनार,नागपुर