ऐसा लगता है कि महागठबंधन की हवा निकलनी शुरू हो गई है और इसकी सुगबुगाहट सबसे पहले उत्तरप्रदेश में दिखाई दे रही है. जबकि उत्तरप्रदेश की एकता तो फिलहाल सबसे ज्यादा चर्चा में है. हुआ यूं कि मंगलवार को विधानसभा सत्र का पहला दिन था और सेंट्रल हॉल में रखी गई पारंपरिक मीडिया ब्रीफिंग से कांग्रेस की दो साथी पार्टियां गायब रहीं. इस ब्रीफिंग के दौरान न तो बीएसपी से कोई था और ना ही सपा से. हालांकि कांग्रेस ने अकेले ही उन मुद्दों के बारे में मीडिया से चर्चा की, जो वो शीतकालीन सत्र के पहले दिन उठाना चाहती है.
गौर करने वाली बात ये है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकारों के शपथग्रहण समारोह में भी ये दोनों पार्टियां शामिल नहीं हुई थीं. जबकि इन राज्यों में बीएसपी और सपा ने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया है. मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस अल्पमत में थी, एसपी ने अपने एक और बीएसपी ने दो विधायकों का समर्थन देकर ही कांग्रेस को सरकार बनाने में सक्षम बनाया. लिहाजा होना तो यूं था कि शपथग्रहण समारोह में महागठबंधन की बाकी पार्टियों से पहले इन दो पार्टियों की उपस्थिति वहां होती. लेकिन महागठबंधन की करीब दर्जन भर पार्टियों के नेता इन शपथग्रहण समारोहों में पहुंचे और महागठबंधन की ताकत दिखाई. ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यूपी में महागठबंधन की स्थिति अभी भी अधर में ही लटकी है.
उस पर भी सवालिया निशान इसलिए जोरदार हो जाता है कि शपथग्रहण में शामिल ना होने को लेकर दोनों पार्टियों ने अब तक कोई बयान भी नहीं दिया है. इसके अलावा इस साल हर सत्र की शुरुआत से पहले विपक्षी दलों की होने वाली औपचारिक बैठक और चर्चा भी नहीं हुई. जबकि हर साल ऐसा करने की परंपरा रही है. एक कांग्रेसी विधायक ने तो यहां तक कहा कि ‘यह सत्र अनूठा है क्योंकि विपक्षी पार्टियों ने एक साझा रणनीति के लिए अब तक कोई बैठक नहीं की है. जबकि प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में एसपी ज्यादातर पहल करती रही है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है.’