page-7उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में एक स्थानीय पत्रकार करुण मिश्रा की हत्या का ज़ख्म अभी ताज़ा ही था कि बिहार और झारखण्ड में महज़ कुछ घंटों के अन्तराल पर एक के बाद एक दो पत्रकारों की हत्या कर दी गई. बिहार के सीवान में दैनिक हिन्दुस्तान अख़बार के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन और झारखंड के चतरा में स्थानीय न्यूज चैनल के पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह अपराधियों की गोलियों का शिकार बन गए.

दोनों मामलों में गोली नज़दीक से चलाई गई थी और पुलिस की प्रारंभिक जांच यह बता रही है कि इन दोनों हत्याओं के पीछे स्थानीय माफियाओं और राजनेताओं के गठजोड़ काम कर रहा था. बहरहाल, विस्तृति जांच रिपोर्ट आने के बाद भी यह सवाल बना रहेगा कि क्या इन हत्याओं के असल दोषीयों को सजा मिलेगी?

बहरहाल, उक्त तीनों घटनाओं ने एक बार फिर यह ज़ाहिर कर दिया है कि देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं. इन वारदातों ने प्रेस की आज़ादी और पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की ख़राब छवि को एक बार भी उजागर कर दिया है. पिछले कुछ वर्षों से भारत में हो रहे पत्रकारों पर जानलेवा हमले का सिलसिला वर्ष 2016 में भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस वर्ष बीते पांच महीनों में ही हुईं कम से कम पांच पत्रकारों की हत्याएं हुईं. इससे लगता है कि अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में पिछले कुछ वर्षों की भांति इस वर्ष भी भारत पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों के साथ खड़ा होगा.

पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों की सुरक्षा के मामलों से संबंधित प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों सीरिया और इराक के साथ खड़ा नज़र आता है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों की सूची में तीसरे स्थान पर था. इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में दुनिया में कुल 110 पत्रकार अपना काम करते मारे गए थे, जिनमें से भारत में कुल 9 पत्रकारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक भारत की रैंकिंग पाकिस्तान और अ़फग़ानिस्तान से भी नीचे थी और केवल गृहयुद्ध की मार झेल रहे इराक और सीरिया ही इस मामले में भारत से ऊपर थे. इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के साथ-साथ पत्रकारों की अधिकतम हत्या वाले देशों में इराक (11), सीरिया (10), फ्रांस (8), यमन (8) मैक्सिको (8), साउथ सूडान (7), फिलीपीन्स (7) और होंडुरस (7) के नाम शामिल थे.

गौरतलब है कि फ्रांस का नाम इस सूची में शार्ली अब्दो के कार्टून प्रकरण के बाद उसके दफ्तर पर हुए हमले की वजह से शामिल हो गया था. इस सूची में शामिल फ्रांस के सभी पत्रकार आतंकी हमले का शिकार हुए थे, वरना फ्रांस का नाम इस सूची में इतना ऊपर शायद नहीं होता. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक पूरे विश्व में मारे गए 110 पत्रकारों में से कम से कम 67 पत्रकार ऐसे थे जिन्होंने काम के दौरान अपनी जान गंवाई और शेष हत्याओं की वजह अस्पष्ट हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान पूरी दुनिया पत्रकारों के लिए खतरनाक जगह बन गई है. इसका बात की पुष्टि इस रिपोर्ट से भी होती है कि वर्ष 2005 से 2015 तक पूरे विश्व में कुल 787 पत्रकार मारे गए और साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है.

वर्ष 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट पर नज़र डालते हैं और देखते हैं कि इसमें भारत कहां खड़ा है. वियाना स्थिति अंतरराष्ट्रीय प्रेस संस्थान (आईपीआई) के मुताबिक वर्ष 2014 में पूरी दुनिया में 100 पत्रकार मारे गए थे, जिनमें भारत के केवल 2 पत्रकार शामिल थे. उस वर्ष भारत पत्रकारों के लिए खतरनाक देशों की सूची में सातवें स्थान पर था. लेकिन इसके एक वर्ष पूर्व यानि 2013 में यह आंकड़ा 11 का था. नतीजतन 2013 की आईपीआई की मारे गए पत्रकारों की सूची में भारत तीसरे स्थान पर पहुंच गया था, जो 2015 में एक बार फिर बरक़रार रहा.

बहरहाल, बात यह कि 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे हुए थे और इन दंगों में दो पत्रकार राजेश वर्मा और इसरार मारे गए थे. इस वर्ष उत्तर प्रदेश में चार पत्रकार मारे गए थे. मुजफ्फरनगर दंगों में मारे गए राजेश वर्मा और इसरार के अलावा बुलंदशहर में ज़ाकाउल्लाह और  इटावा में राकेश शर्मा की हत्याएं हुईं थी. वर्ष 2013 में भी भारत पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में सीरिया और इराक के बाद दुनिया का तीसरा सबसे खतरनाक देश माना गया था. वर्ष 2004 से 2013 तक की आईपीआई की डेथ वॉच सूची में भारत लगातार सातवें स्थान पर बना रहा था.

जहां तक एशिया क्षेत्र में पत्रकारों की सुरक्षा का सवाल है तो यहां वर्ष 2014 की आईपीआई की सूची के अनुसार कुल 23 पत्रकार मारे गए थे, जिनमें से सबसे अधिक पांच-पांच पत्रकार पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मारे गए. वर्ष 2014 में दक्षिण एशिया क्षेत्र पत्रकारों के लिए खतरों के मामलों में केवल मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र से पीछे था. इस वर्ष मध्य पूर्व एशिया में कुल 38 पत्रकार मारे गए, जिनमें 18 केवल सीरिया में मारे गए. उल्लेखनीय है कि कनफ्लिक्ट और वॉर ज़ोन्स में मरने वाले पत्रकारों की संख्या सबसे अधिक है. भारत जैसे शांति पूर्ण देश भी पत्रकारों के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं.

यदि 2016 में अब तक हुई पत्रकारों की हत्याओं पर नज़र डालें तो यह आसानी से कहा जा सकता है कि इस वर्ष भी भारत को पत्रकारों के लिए असुरक्षित देश होने का दाग अपने माथे पर लेकर चलना होगा. इस वर्ष भी भारत में पत्रकारों की सुरक्षा की स्थिति पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी खराब रहने वाली है. इस साल अब तक पाकिस्तान में एक पत्रकार की हत्या हुई है. जबकि बांग्लादेश में भी एक संपादक मारा गया है. वहीं अफगानिस्तान में आतंकियों ने एक पत्रकार को मौत की घाट उतार दिया. वर्ष 2016 के बीते चार महीनों की बात करें तो अब तक पूरी दुनिया में 19 पत्रकार मारे गए हैं, जिनमें से दस पत्रकारों की हत्या के पीछे रहे मकसद का जांच एजेंसियों ने पता लगा लिया.

अब सवाल यह उठता है कि भारत में पत्रकार, खास तौर पर छोटे शहरों का पत्रकार, अपराधियों के निशाने पर क्यों रहता है? छोटे शहरों में काम कर रहे पत्रकारों की रिपोर्टिंग अधिकतर स्थानीय स्तर के भ्रष्टाचार, ग्राम पंचायत के फैसलों, जन सुनवाई में अधिकारी की अनुपस्थिति, ग्राम सभा की गतिविधियों, सड़कों की बदहाली, बिजली की समस्या, स्थानीय अधिकारियों, विधायकों के कारनामों और स्थानीय आपराधिक मामलों आदि पर केंद्रित रहती है. अक्सर यह देखा गया है कि इनकी ख़बरों से बड़े खुलासे होने की संभावनाएं होती हैं. लिहाज़ा राष्ट्रीय स्तर पर पहचान न होने के कारण कई बार ऐसे पत्रकार अपनी खबरों की वजह से स्थानीय स्तर पर काम कर रहे माफियाओं और अपराधियों का निशाना बन जाते हैं. यहां तक कि पुलिस प्रशासन भी उन्हें झूठे मुक़दमों में फंसा देती है.

प्रेस की आज़ादी भारत का संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है. सत्ता और विपक्ष में बैठे सभी राजनीतिक दल संविधान द्वारा दिए गए इस अधिकार की दुहाई देते हुए अक्सर नज़र आते हैं. लेकिन जब एक अंतरराष्ट्रीय मानक पर भारत संयुक्त अरब अमीरात और क़तर जैसे राजतंत्रों, आतंकवाद और गृहयुद्ध की मार से जूझ रहे अफ़ग़ानिस्तान से भी पीछे चला जाए तो यह ज़रूर एक चिंता की बात है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स (सूचकांक) पर दुनिया के 180 देशों में भारत का स्थान 133वां है.

हालांकि इस वर्ष भारत की रैंकिंग में पिछले वर्ष की तुलना में तीन अंकों का सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी स्थिति उत्साहजनक नहीं है. (देखें बॉक्स). इस रिपोर्ट में भारत के पडोसी देशों में पाकिस्तान 147वें स्थान पर, श्रीलंका 141वें स्थान पर बांग्लादेश 144वें स्थान के साथ भारत से पीछे है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान 120वें स्थान, नेपाल 105वें स्थान और भूटान 94 वें स्थान के साथ भारत से ऊपर हैं. इस रैंकिंग में दिलचस्प बात यह है कि क़तर और यूएइ जैसे राजतंत्र प्रेस की आज़ादी के मामले में भारत से आगे हैं.

भारत में प्रेस की आज़ादी का अंदाज़ा हालिया दिनों में हुए पत्रकारों की गिरफ्तारी से भी लगाया जा सकता है. जुलाई 2015 के बाद से छत्तीसगढ़ में चार पत्रकारों संतोष यादव, समारू नाग, प्रभात सिंह और दीपक जायसवाल को गिरफ्तार किया गया. ख़बरों के मुताबिक उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस यातनाएं भी दे रही है. हालात की गंभीरता को देखते हुए प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस चंद्रमौली कुमार प्रसाद को प्रभात सिंह की गिरफ्तारी पर राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगनी पड़ी. इंटरनेशनल प्रेस फ्रीडम डे के मौके पर एमेनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने रमन सिंह सरकार से यह मांग की कि राजनीतिक कारणों से गिरफ्तार पत्रकारों को तुरंत रिहा करे.  दरअसल छत्तीसगढ़ में पत्रकार दोहरी मार का शिकार हैं, जहां सरकार और पुलिस के खिलाफ रिपोर्टिंग करने पर उन्हें पुलिस और प्रशासन द्वारा फर्जी मामलों में फंसा कर गिरफ्तार कर लिया जाता है.

वहीं पत्रकारों को स्थानीय गुंडों और नेताओं का भी शिकार होना पड़ता है. मिसाल के तौर पर छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ चल रही सुरक्षा फोर्सेज की कार्रवाई में मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों को उजागर करने वाली पत्रकार मालिनी सुब्रमनियम को उनके घर पर हमले के बाद और पुलिस के दबाव में उनके माकन मालिक ने उन्हें घर खाली करने के लिए कह दिया. इसके अलावा पत्रकारों की गिरफ्तारी के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. मसलन नक़ली आरटीआई मामले में पुलिस ने पुष्प शर्मा को दिल्ली में गिरफ्तार किया है.

देश में पत्रकारों की हो रही लगातार हत्याओं और उनकी असुरक्षा को देखते हुए यह ज़रूरी हो गया है कि उनकी सुरक्षा के लिए कानून बनाया जाए और उन पर हुए हमलों के मामलों को स्पीड ट्रायल के जरिए निपटाया जाए. प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया अपनी रिपोर्ट में कह चुका है कि पत्रकारों से सम्बंधित 97 प्रतिशत आपराधिक मामले अभी तक अपने अंजाम तक नहीं पहुंचे हैं. इन्हीं कारणों से नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स कई बार जर्नलिस्ट्स प्रोटेक्शन एक्ट बनाने की मांग कर चुका है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं हो पाई है.

भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है. पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ और पत्रकारों को लोकतंत्र का प्रहरी कहा जाता है. जहां एक तरफ पत्रकारिता लोगों में जागरूकता पैदा करके लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है, तो वहीं लोकतंत्र के दूसरे स्तंभों यानी कार्यपालिका और न्यायपालिका पर भी नज़र रखता है. यदि इराक, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान इत्यादि जैसे गृहयुद्ध से जूझ रहे देशों (कनफ्लिक्ट जोन) में पत्रकारों की जान जाती है तो बात समझ में आती है, लेकिन भारत के उन क्षेत्रों भी में जहां कोई सशस्त्र संघर्ष नहीं चल रहा है, अगर वहां भी पत्रकारों को अपना काम ईमानदारी से करने का इनाम मौत या गिरफ्तारी की शक्ल में मिले, तो इससे न सिर्फ देश की कानून व्यवस्था सवालों के घेरे में आ जाती है बल्कि यह लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है.

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2016

देश                  रैंकिंग

फ़िनलैंड               01

नीदरलैंड्स             02

नॉर्वे                  03

स्वीडन                08

जर्मनी                16

कनाडा                18

चेक रिपब्लिक          21

ऑस्ट्रेलिया             25

स्पेन                 34

टोंगा                 37

यूनाइटेड किंगडम               38

संयुक्त राज्य अमेरिका    41

फ्रांस                 45

नाइजर                52

मंगोलिया              60

हांगकांग               69

साउथ अफ्रीका          70

इटली                 77

ग्रीस                 89

पनामा                91

इजरायल              101

कुवैत                 103

ब्राज़ील                104

क़तर                 117

यूनाइटेड अरब अमीरात   119

अफ़ग़ानिस्तान          120

इंडोनेशिया             130

फिलिस्तीन            132

भारत                 133

श्रीलंका                141

म्यांमार               143

बांग्लादेश              144

पाकिस्तान             147

रूस                  148

टर्की                  151

इराक                 158

सऊदी अरब            165

क्यूबा                 171

चीन                  176

सीरिया                177

उत्तर कोरिया            179

एरिटेरिया              180

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