जाने ये कैसे हालात हैं
· डॉ. संतोष भारती
जाने ये कैसे हालात हैं
दिलों में कैद जज़्बात हैं
जहां दर्द से भरे कई सवालात हैं!
अब न कोई उम्मीद है, न आस है
डर के साये में डूबी यहाँ हर सांस है!
वक्त की मार है, मानवता भी शर्मसार है!
सहमे हुए दिन रात हैं
जाने ये कैसे हालात हैं!
सरकार बदज़ुबान है फिर भी वादे जहां हजार हैं
बेरोजगारी, भूख और अपराध हर तरफ बेशुमार हैं
न्याय तक गिरवी हुई, आफ़त में घर बार है
इस पर भी खोखले वादों की भरमार है
आजाद भारत की क्या यही सौगात है?
जाने ये कैसे हालात हैं!
समाज बदहाल है, मुश्किलों की लंबी कतार है
फिर भी वे चुनते वही नेता उन्हीं को देते वोट लगातार हैं
क्यों वही किस्से बार बार हैं
वफ़ा की जहां हार है
सब कुछ तो बेकार है
खाई सबने मात है
जाने ये कैसे हालात हैं!
लब हैं खामोश
शब्द सारे छिन गये
सब हैं बेबस वक्त की घड़िया गिन रहे
ये वक्त बदले, हालात सुधरे हर तरफ अब खुशियां बिखरे
इस कविता में यही विनती बारम्बार है
ज़िंदगी जी लो वरना मृत्यु को सब स्वीकार है
यही पते की बात है
जाने कैसे हालात हैं!