खान अशु

कट्टर सोच, नफरतों फैलाने की जहालत, बांटने की सियासत, दूर करने की कोशिशें….! किसी गंदी मानसिकता वाली राजनीति से निकला शगल होता तो कंधे झटककर हवा में उड़ा दिया जाता…! बात जहां से उठी है, उनको बुद्धिजीवियों की केटेगिरी में रखा जाता है…! जहालत से भरे अपने (कु)विचारों को लोगों पर लादने की पैरवी राजधानी के एक अखबार के एडिटर साहब ने की है…! अखबार की कहानी ये कही जाए कि कभी मालवा निमाड़ में अपने नाम का डंका बजाया करता था, अब क्रम में पांचवे स्थान पर भी मिलना मुश्किल है…! अपनी कट्टरता को अखबार और इसके चंद पाठकों तक पहुंचाने संपादक जी ने अपने खबर नविसों को जरिया बनाया है…! नफरत की पहली किस्त में उन्होंने सवा सौ शब्दों की फेहरिस्त रिपोर्टर्स को भेज दी है…! उर्दू लफ़्ज़ों के हिंदी पर्यायवाची शब्दों (इनमें कई गलत भी हैं) की खेप भेजकर ताकीद की गई है कि खबरों में अब उर्दू अल्फ़ाज़ इस्तेमाल न किए जाएं…!

सरकारों और सियासत की गंगा में नीति के नाम पर कूटनीति का जो बहाव आया है, उसमें देश की बहुत सारी चीज़ें बहने वाली हैं…! एक कौम खास की जुबान मानकर शिक्षा नीति से किसी भाषा का बायकॉट करने के प्रयास किए गए हैं…! इस बात को नजर अंदाज कर, कि जिस जुबान को एक धर्म की बपौती माना जा रहा है, वह भाषा उस कौम खास से ज्यादा सारा देश के उपयोग में, काम में आ रही है।

अब सियासी फंडे अखबारों के कंधे पर रख दी गई है… चंद लोगों को खुश करने के लिए अपनी आस्थाओं को दांव पर लगा दिया गया है…! कथित बुद्धिजीवी नफरत फैलाने के लिए आगे अा चुके हैं…!

पुछल्ला
अभियान के नज़ारे ये होंगे

किसी भाषा की शुद्धता तभी कहीं जा सकती है, जब उसमें सहायक भाषा का मिश्रण हो, वरना हालात ऐसे भी बन सकते हैं, इस उदाहरण से समझें :
ऐ द्वी चक्र वाहन के सुधारक, मेरे द्वी चक्र के पिछले चक्र की वायु किसी दुष्ट ने प्रवाहित कर दी है। आप अपने वायु ठुसक यंत्र से मेरे द्वी चक्र वाहन के पिछले चक्र में वायु का समावेश कर दीजिए। आपकी बड़ी कृपा होगी।

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