इतने रंग इतने रंग
तुम्हारी दुनिया में
फिर भी चुनते हो
उनमें से एक
अपने लिये
वो भी किसी के कहने पर
और मुस्कराते नहीं हो
उसे अपने ऊपर रंग कर
गुस्से के रंग से भरे होते हो
बदले की भावना मन में लिये हुये
होली तुम्हारी स्थिति जानती है
इसलिये लेकर आई है रंगों का संसार
एक दो रंगों के लिये नहीं बने हो तुम
हर रंग में रंगो
रंगहीन हो जाने से पहले.
Braj shrivastava
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