buddhaपालवंशीय एवं भगवान बुद्ध की ऐतिहासिक धरोहरों की विरासत को संभाले लखीसराय जिले के कई हिस्सों में पुरातात्विक अवशेष बिखरे पड़े हैं. इसके बावजूद प्रशासनिक और जनसामान्य की उपेक्षा के कारण इन धरोहरों का लगातार क्षरण हो रहा है. किउल विरदावन गांव स्थित ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक भगवान बुद्ध का गुफानुमा टीला देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि अगर समय रहते इसका संरक्षण नहीं किया गया, तो यह खंडहर बनकर रह जाएगा.

हालांकि जिला प्रशासन ने उक्त टीले के कुछ हिस्सों पर दीवार निर्माण करवाया है, लेकिन भूखंडों पर अतिक्रमण के कारण इस ऐतिहासिक टीले के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है. पुरातत्व विभाग ने इस क्षेत्र की खुदाई कर वहां से प्राप्त ऐतिहासिक अवशेषों को कोलकाता संग्रहालय में सुरक्षित रखे जाने की बातें कही थीं. जिला प्रशासन की ओर से प्रकाशित क्रिमिला नामक स्मारिका में भी इस पुरातात्विक टीले का उल्लेख किया गया है. विरासत बचाओ समिति के प्रखर सदस्य सह इतिहासकार अनिल कुमार सिंह ने अपने आलेख में इसे भगवान बुद्ध की स्मारक टीला बताया है.

सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण अब इस टीले के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है. स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार वर्तमान टीला पालवंश के जमाने में राजा इन्द्रदमन के किले में प्रवेश करने का गुफा था. यहां से जयनगर काली पहाड़ी एवं अशोक धाम तक राजा इन्द्रदमन के किले का विस्तार था.

हालांकि इस स्थान पर भगवान बुद्ध के ठहरने का भी जिक्र मिलता है. पुरातत्व विभाग विभाग ने कई दशक पूर्व इस जगह की खुदाई की थी, जिसका जिक्र स्थानीय लोग भी करते हैं.

स्थानीय विधायक प्रहलाद यादव ने कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं युवा, कला, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रधान सचिव को अवगत कराकर पालवंशकालीन ऐतिहासिक गुफा को सुरक्षित कराया जाएगा. उन्होंने बताया कि जरूरत पड़ने पर पर्यटन विभाग की ओर से इसे बौद्ध सर्किट से जुड़वाने का भी प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक विरासत की हिफाजत करना सभी नागरिकों का दायित्व है. उन्होंने चानन प्रखंड के घोषीकुंडी स्थित पहाड़ी को भौगोलिक धरोहर बताया. उन्होंने कहा कि घोषीकुंडी पहाड़ी स्थित गांव में एक पौराणिक कबीर मठ भी इतिहास का हिस्सा है. लेकिन इस पहाड़ी का बौद्ध कालीन अवशेष होने के बारे में उनके पास कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है.

उन्होंने कहा कि लखीसराय की धरती अपनी पुरातात्विक एवं धार्मिक इतिहास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पहचान रखती है. वहीं श्री यादव ने कहा कि घोषीकुंडी गांव में इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण नहीं किए जाने के संदर्भ में भी वे सरकार को अवगत कराएंगे. गौरतलब है कि जिलाधिकारी सुनील कुमार ने जिले में इंजीनियरिंग कॉलेज के निर्माण के लिए चानन स्थित घोषीकुंडी गांव में उक्त पहाड़ी के नजदीक सरकारी जमीन अधिगृहित करने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा था. इसे पुरातत्व विभाग ने  तकनीकी कारण बताकर जमीन अधिग्रहण पर रोक लगा दी थी.

इसके बाद जिला प्रशासन ने प्रस्तावित इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण करवाने के लिए जिले के अन्य हिस्सों में सरकारी अथवा निजी जमीन की तलाश प्रारम्भ कर दी. इस बीच कई पंचायतों के प्रमुख और समाजसेवियों ने राज्य सरकार से घोषीकुंडी गांव में प्रस्तावित इंजीनियरिंग कॉलेज बनवाने की गुहार लगाई है.

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