सब कुछ हो रहा है । इंदिरा के बदनाम अठारह महीनों के बरक्स पिछले आठ साल से सब कुछ वैसा ही हो रहा है । जब सत्ता के पास दिमाग न हो तो वह नकल पर उतारू हो जाती है । इमरजेंसी जैसा माहौल चाहिए, हिंदू राष्ट्र के लिए नया राष्ट्रपिता चाहिए, गांधी को करेंसी से हटना चाहिए , आक्रामक और आज्ञाकारी समाज चाहिए , विपक्ष को पाताल लोक में धकेल देना चाहिए , मुसलमानों को रोबोट में तब्दील कर देना चाहिए और देश की सेक्युलर जमात को गम्भीर परिणामों के सबक सिखा देने चाहिए । एक नयी महाभारत की रचना की जा रही है । जो कुछ हो रहा है और जिस अंदाज में हो रहा है वैसी कल्पना तो आरएसएस ने भी कभी नहीं की होगी । मोदी जैसे आरएसएस के लिए वरदान साबित हो रहे हैं । इसीलिए मोदी की किसी नीति पर आंख दिखाने की हिम्मत अब आरएसएस में नहीं रही । निरंकुशता में इंसान मतिमंध हो जाता करता है । हमेशा शंकाओं में घिरा उसका मन उसे बराबर विवेक से च्युत रखता है । दुर्योधन इसकी सबसे बड़ी मिसाल है । उसी अविवेकहीन बुद्धि से आज सारे टेस्ट किये जा रहे हैं जिन्हें हम ‘लिटमस टेस्ट’ भी कहते हैं ।
एक दिन पहले मुकेश कुमार के कार्यक्रम में शीतल पी सिंह को यह कहते हुए सुना कि आगे चल कर सोनिया और राहुल को गिरफ्तार भी किया जा सकता है । उससे पहले इसी कार्यक्रम में नीरेंद्र नागर का मत था कि सोनिया, राहुल को कभी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा बस हमेशा उन पर दबाव बना कर रखा जाएगा । लेकिन शीतल ने बताया कि राहुल से इडी द्वारा पांच दिन की मैराथन पूछताछ दरअसल एक तरह से ‘लिटमस टेस्ट’ था । यानी ज्यादा से ज्यादा कांग्रेस क्या कर सकती है । वह देखा गया । सत्ता रूपी आसमान पर घिरने वाले इन काले भयानक बादलों का फिलहाल कोई अंत नजर नहीं आता । सब तरफ छिन्न भिन्न किया जा रहा है। उसकी सबसे बड़ी मिसाल आप देखिए ‘अंतिम जन’ पत्रिका का वीर सावरकर पर विशेषांक का निकलना । ‘अंतिम जन’ पत्रिका गांधी स्मृति संस्थान द्वारा कोई दस साल पहले पत्रकार और गांधीवादी कार्यकर्ता मणिमाला द्वारा निकाली गई थी । इस सरकार ने जिस तरह से हर इमारत की बुर्ज पर अपने कारकून बैठा दिए हैं वैसे ही अब ‘अंतिम जन’ पत्रिका का संचालन भाजपा के मंत्री रहे विजय गोयल के हाथों में है । यानी सीधा सा अर्थ है कि गांधी के रास्ते (वीर !!) सावरकर को गांधी के स्थान पर पदस्थापित किया जाएगा । इसे भी आप ‘लिटमस टेस्ट’ की संज्ञा दे सकते हैं । आज के गांधीवादियों की पुरुषार्थ हीनता से आज की सत्ता भली-भांति वाकिफ है । छोड़िए गांधीवादियों को आज कौन है जो इस सरकार की ज्यादतियों के खिलाफ सड़क पर उतर रहा है। विश्वविद्यालयों में असंतोष हो तो हो पर कोई हलचल होती दिखती नहीं । सड़कें सुनसान हैं । सोशल मीडिया बोल रहा है । पर क्रांति की ललकार कहीं नहीं दिखती । सोशल मीडिया पर क्या क्या परोसा जा रहा है । केवल हालात और वस्तुस्थिति का वृतांत और उस पर चर्चाएं । जैसे सब कुछ सील चुका है । कहीं कोई आग नहीं । विपक्षी दलों की धार और उनके दिमाग कुंद अवस्था में हैं। किसी मुद्दे पर दृढ़ता से संगठित विपक्ष नहीं दिखाई देता । राष्ट्रपति चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बढ़िया ‘स्टैंड’ लिया । मुर्मू का सम्मान करते हुए यशवंत सिन्हा का समर्थन । ऐसा विपक्ष का हर नेता कर सकता था । इसका एक खास संदेश है । जिसे समझा जा सकता है ।
पूरे देश में इस समय असंतोष है । पर उस असंतोष को हवा देने वाला कहीं कोई नहीं दिखता । गये सप्ताह लाउड इंडिया के अपने शो में अभय कुमार दुबे ने कहा था कि देश में किसी एक जगह पर भी ‘मिनी श्रीलंका’ पनप सकता है । लेकिन चालाक और निरंकुश होती सत्ता की परीक्षा का भी यही समय है । मोदी आज हर चीज को 2024 में होने वाले आम चुनावों के मद्देनजर देख रहे हैं । षड़यंत्र, लालच और हर वह चाल जिससे चुनाव फिर अपनी मुठ्ठी में किये जा सकें । और ऐसा नहीं है कि हमारे पढ़े लिखे समझदार लोग इस बात से वाकिफ नहीं हैं । सबको सब पता है । पर सुविधा भोगी समाज का फलित यही होता है कि उस समाज में हर राजा ‘नीरो’ बन जाता है। कल ‘ताना बाना’ कार्यक्रम में मुकेश कुमार ने सुविधा भोगी साहित्यकारों पर बात की । हमारा तो मानना ही यही है कि केवल साहित्यकार ही क्यों पूरी की पूरी दिमाग वालों की जमात ही सुविधा भोगी हो चली है। हर अंक हमारा इसी निष्कर्ष पर आकर टिक जाता है ।
जब लोकतंत्र के सारे रास्ते बंद होने लगें तो नजर न्याय की देवी पर जा उठती है । पर देखिए आज अदालतों का क्या हाल हो रहा है। नजर में तो यह आता है कि हर जज रिटायरमेंट के बाद अपनी सुविधा पूर्ण जिंदगी पर नजर गड़ाए बैठा है । इसलिए वह जनपक्षधर नहीं है । वह अपने व सत्ता के अनुकूल फैसले दे रहा है । सबसे बड़ा उदाहरण है बार बार मोदी को ‘क्लीन चिट’ मिलना । लेकिन लोगों के दिमागों में जो अदालत बैठी है उसका न्याय कुछ और ही कहता है । वहां ‘क्लीन चिट’ नहीं है । इस तरह आज अदालतों में न्याय नहीं फैसले हो रहे हैं ।
सर्वत्र घोर निराशा का माहौल है । अधिकांश मीडिया या तो सरकार का भोंपू है या बकवास या बोर । चंद चुनिंदा कार्यक्रम आप देख सकते हैं । चाय की उबाऊ चकल्लस से बचना हो तो रवीश कुमार का प्राइम टाइम देखिए, मुकेश कुमार के कार्यक्रम , वायर पर आरफा खानम शेरवानी , न्यूज़ लाण्ड्री वगैरह के कार्यक्रम देखते रहिए । राहत की सांस ले सकेंगे । वरना यकीन मानिए हम बहुत बुरे वक्त के मुहाने पर आकर ठहर गये हैं या हमें ठहरा दिया गया है । इंतजार है उन जैसे छ: लोगों की जिन्होंने श्रीलंका में आंदोलन की चिंगारी सुलगाई । अब सुविधा भोगी पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और विपक्षी दलों से कोई उम्मीद मत रखिए । कुछ नहीं कर सकते हों तो दम साध कर किसी चमत्कार की प्रतीक्षा कीजिए । मोदी स्वयं में एक चमत्कार हैं इसलिए मोदी के बरक्स भी कोई तो आएगा ही ।

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