रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने यह साफ़ कर दिया है कि लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग देश के अगले थलसेना अध्यक्ष होंगे. लेफ्टिनेंट जनरल सुहाग को बधाई. साथ में यूपीए के उन मास्टर माइंड रणनीतिकारों को भी बधाई, जो चुनाव हार जाने के बाद भी मोदी सरकार द्वारा अपने ़फैसले को लागू करवाने में सफल रहे हैं. अरुण जेटली को कौन समझाए कि लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग के ख़िलाफ़ आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट के घोर उल्लंघन का आरोप है. आरोप यह है कि उनकी नाक के नीचे दीमापुर की इंटेलिजेंस यूनिट ने कई शर्मनाक कारनामों को अंजाम दिया. इस यूनिट का नेतृत्व कर्नल श्रीकुमार के पास है, जो सीधे लेफ्टिनेंट जनरल सुहाग को रिपोर्ट करते हैं. आरोप यह है कि सेनाध्यक्षों का लाइन ऑफ सक्सेशन यानी उत्तराधिकारियों का अनुक्रम एक साज़िश का हिस्सा है. आरोप यह है कि इसी वजह से जनरल वी के सिंह की जन्म तिथि का मुद्दा उठाया गया और उन्हें एक साल पहले ही रिटायर करने की साज़िश हुई. आरोप यह है कि देश में हथियार माफिया की धाक इतनी है कि सरकार बदल जाए, प्रधानमंत्री बदल जाए, रक्षा मंत्री बदल जाए, लेकिन उनके ख़िलाफ़ कोई कुछ नहीं कर सकता. सेना को राजनीति से दूर रखने के तर्क से सच पर पर्दा नहीं डाला जा सकता है. सच्चाई यह है कि रक्षा मंत्रालय में सब कुछ ठीक नहीं है. आइए, समझते हैं कि सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के पीछे की असली कहानी क्या है?
बीस दिसंबर, 2011 की रात कुछ लोग एक घर के अंदर जबरदस्ती घुस जाते हैं. यह घर पूना गोगोई का है. वह जोरहाट के निवासी हैं. वह आर्मी के लिए ठेके का काम करते हैं. उस रात वह अपने घर में नहीं थे. वह गुवाहाटी में थे. ये लोग पूना गोगोई के घर के पिछले दरवाजे को तोड़कर अंदर दाख़िल हुए थे. घर में उनकी पत्नी रेणु और तीन बच्चे थे. दो बेटे और एक बेटी. रात का समय था, घर में सब सो रहे थे. अचानक इन लोगों को घर के अंदर देखकर वे सब डर गए, रोने लगे. इन लोगों ने सभी को बिस्तर से खींचकर बाहर निकाला और उनके हाथ बांधकर उन्हें टीवी वाले कमरे में बंद कर दिया. ये लोग पूना गोगोई को ढूंढ रहे थे, लेकिन वह घर के अंदर नहीं मिले. इन लोगों ने बड़े बेटे को धमकी दी कि अगर उसने पूना गोगोई का ठिकाना नहीं बताया, तो सभी को जान से मार दिया जाएगा. इन लोगों के चेहरे ढंके हुए थे. किसी का चेहरा नहीं दिख रहा था. लेकिन, घर वालों ने एक का चेहरा देखा था. वह एक महिला थी, जिसने बातचीत के दौरान अपने चेहरे का मास्क हटाया था. वही सबको निर्देश दे रही थी. उस महिला के ही कहने पर इन लोगों ने घर की चाबियां लेकर सभी आलमारियों की तलाशी ली. ये लोग पूना गोगोई के घर से एक लाइसेंसी पिस्टल, साढ़े छह लाख रुपये के जेवर और क़रीब डेढ़ लाख रुपये नकद उठा ले गए. साथ में ये एक लैपटॉप और चार मोबाइल फोन भी ले गए.
अगले दिन सवेरे पूना गोगोई जब वापस आए, तो घर का नजारा देखकर सन्न रह गए. घर के सारे लोग डरे- सहमे थे. वह सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचे और शिकायत दर्ज कराई, घर से लूटे गए सभी सामानों का ब्यौरा दिया. लेकिन, थाने में उन्हें एक ऐसी जानकारी मिली, जिससे उनका दिमाग हिल गया. थाने की पीसीआर वैन ने जानकारी दी कि कल रात दो बजे के क़रीब उनकी मुलाकात आर्मी की एक टीम से हुई. दरअसल, जब ये लोग पूना गोगोई के घर से निकले, तो रास्ते में पुलिस मिल गई. जब पुलिस वालों ने रोका और पूछताछ की, तो इन लोगों ने बताया कि वे आर्मी से हैं और इस इला़के में विजय चाइनीज नामक उल्फा आतंकी की तलाश में आए थे. अब ये आर्मी वाले डकैती कर सकते हैं, इस पर तो कोई विश्वास ही नहीं कर सकता है. अगर आर्मी वालों ने यह काम किया भी है, तो इसका कोई सुबूत नहीं है. पुलिस को भी लगा कि हो सकता है, डकैती करने वाला कोई और गैंग हो और वारदात को अंजाम देकर निकल गया हो. पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया. पुलिस और गोगोई परिवार के पास केवल एक ही सुराग बचा था. वह यह कि डकैती करने वाले गैंग का नेतृत्व एक महिला कर रही थी और अगर वह सामने आ जाए, तो उसे परिवार वाले पहचान सकते हैं.
इस घटना के एक सप्ताह बाद एक हैरतअंगेज मोड़ आया. पूना गोगोई के बड़े बेटे के जिस फोन को डकैत उठा ले गए थे, उससे किसी ने कॉल किया. यह फोन कहां से किया गया, यह तो पता नहीं चला, लेकिन जिसे किया गया, वह सामने आ गया. यह कॉल हरियाणा के किसी नंबर पर की गई थी. इसके बाद एक पुलिस टीम हरियाणा रवाना होती है, तहक़ीक़ात करती है और जोरहाट की एसपी संयुक्ता पाराशर को बताया जाता है कि यह फोन कॉल आर्मी के एक हवलदार संदीप थापा ने अपनी पत्नी और मां को की थी. पता चलता है कि संदीप थापा दीमापुर के रंगापहाड़ में स्थित 3 कॉर्प्स इंटेलिजेंस एंड सर्विलांस यूनिट का सदस्य है. इस यूनिट का अधिकार क्षेत्र असम, नगालैंड और मणिपुर है और यह सीधे तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग के कमांड के अंदर आता है. एसपी संयुक्ता पाराशर ने सुहाग से सीधे बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने पुलिस को सहयोग करने से मना कर दिया. इस बीच संदीप थापा पुलिस की पकड़ में आ जाता है. पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया, स़िर्फ पूछताछ की. इस पूछताछ में हवलदार संदीप थापा ने सब कुछ उगल दिया.
पुलिस और सेना में यह ख़बर आग की तरह फैल गई. सबको पता चल गया कि पूना गोगोई के घर में जिन लोगों ने इस वारदात को अंजाम दिया, वे सेना के लोग थे. इस घटना में इंटेलिजेंस कोर्प्स के पंद्रह लोग शामिल थे, जो पूना गोगोई के घर दो निजी वाहनों से पहुंचे थे. जो महिला इस टीम का नेतृत्व कर रही थी, वह कोई और नहीं, बल्कि कैप्टन रुबीना कौर कीर है. सबकी नज़र इस 3 कॉर्प्स इंटेलिजेंस यूनिट के कमांडर कर्नल गोविंदन श्रीकुमार पर जा टिकी. हालांकि श्रीकुमार इस रेडिंग टीम का हिस्सा नहीं थे, लेकिन जब पुलिस ने उनकी फोन डिटेल्स निकालीं, तो पता चला कि इस घटना से पहले और बाद में वह कैप्टन रुबीना कौर से लगातार बातचीत कर रहे थे. इस यूनिट से दो चूक हुई. एक तो इसने बिना किसी लड़ाकू दस्ते और पुलिस को बिना जानकारी दिए किसी नागरिक के घर रेड किया. दूसरी ग़लती यह कि आतंकी को पकड़ने के नाम पर घर के लोगों को प्रताड़ित किया और डकैती की. और तो और, इस पूरे मामले को छिपाने की कोशिश की गई. जब सेना की साख पर दाग़ लगने लगा और दबाव बढ़ने लगा, तो इस मामले को शांत करने की कोशिश भी की गई. पूना गोगोई को उनकी पिस्टल सहित घर से उठाए गए कई सामान वापस कर दिए गए, लेकिन कारतूस और जेवर गायब थे. वे कहां गए, यह किसी को पता नहीं. पुलिस को लेफ्टिनेंट जनरल सुहाग ने बताया कि अब यह मामला सेना देखेगी, क्योंकि यह पुलिस के अधिकार क्षेत्र के बाहर है.
कर्नल श्रीकुमार भी कमाल के व्यक्तित्व हैं. बहुत पहुंचे हुए अधिकारी हैं. नॉर्थ-ईस्ट आने से पहले वह थलसेना अध्यक्ष जे जे सिंह के ओएसडी यानी ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी यानी थलसेना अध्यक्ष के सबसे निकटतम एवं
विश्वासी अधिकारी थे. जनरल जे जे सिंह जब अरुणाचल प्रदेश के गवर्नर बने, तो श्रीकुमार भी 3 कोर्प्स के कमांडिंग ऑफिसर बनकर दीमापुर आ गए. बताया जाता है कि श्रीकुमार सीधे जनरल बिक्रम सिंह, जो उस वक्त ईस्टर्न कमांड के हेड थे और लेफ्टिनेंट जनरल सुहाग को रिपोर्ट करते हैं. यह भी ख़बर आई कि जब जनरल वी के सिंह की जन्म तिथि का विवाद शुरू हुआ, तो श्रीकुमार दिल्ली आकर मीडिया में ख़बरें लीक करने का काम करते थे. जोरहाट की घटना कोई अपवाद नहीं है. वैसे यह मामला अदालत में चल रहा है. ऊपर दिए गए विवऱण शिकायत के हिस्से हैं.
एक और मामला है, जो इससे ज़्यादा शर्मनाक है. यह मामला मणिपुर हाईकोर्ट में चल रहा है. यह मामला मणिपुर के तीन नौजवानों के अपहरण और उनकी हत्या का है. इसमें भी आरोप के घेरे में 3 कॉर्प्स है. इस मामले में लेफ्टिनेंट जनरल सुहाग और कर्नल गोविंदन श्रीकुमार का नाम है. यह घटना 10 मार्च, 2010 की है. दीमापुर के चारमील इलाके से तीन युवकों का अपहरण होता है. फीजम नौबी, आर के रौशन और थौनौजम प्रेम नामक इन युवकों के बारे में पुलिस को ख़बर मिलती है कि उनका अपहरण हो गया है. 17 मार्च, 2010 को पुलिस को तीन शव मिलते हैं. तीनों के शरीर गोलियों से छलनी थे. उनकी पहचान होती है, तो पता चलता है कि ये वही तीनों हैं, जिनका 10 मार्च को अपहरण हुआ था. पुलिस अपनी एफआईआर में 3 कॉर्प्स इंटेलिजेंस यूनिट का नाम डाल देती है. इस बीच 3 कॉर्प्स के सेकेंड-इन-कमांड यानी कर्नल श्रीकुमार के ठीक नीचे के अधिकारी मेजर टी रवि किरण ने 12 मार्च, 2010 को आर्मी चीफ और ईस्टर्न कमांड के चीफ को एक पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने लिखा कि 10 मार्च की रात तीन मणिपुरी नौजवानों को लाया गया, उन्हें टॉर्चर किया गया और फिर मेस के पीछे उन्हें गोली मार दी गई. इस चिट्ठी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. मेजर टी रवि किरण ने 25 जनवरी, 2012 को एक बार फिर सभी वरिष्ठ अधिकारियों को चिट्ठी लिखी, लेकिन उस वक्त जनरल वी के सिंह सेनाध्यक्ष थे. उन्होंने ईस्टर्न कमांड को जांच के निर्देश दिए. ईस्टर्न कमांड ने 3 कॉर्प्स को जांच के निर्देश दे दिए. जांच के दौरान मेजर टी रवि किरण ने बताया कि इस हत्याकांड के पीछे कर्नल गोविंदन श्रीकुमार की यूनिट थी. जोरहाट की घटना के बाद असम के चीफ मिनिस्टर तरुण गोगोई ने थलसेना अध्यक्ष जनरल वी के सिंह से बात की और इस घटना में शामिल सैनिकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की. जनरल वी के सिंह के दबाव के चलते बिक्रम सिंह ने इस पर कोर्ट ऑफ इंक्वायरी बैठाई, जिसका नेतृत्व ब्रिगेडियर ए भुइया को सौंपा गया. एक ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी से जांच इसलिए कराई गई, ताकि इस मामले की आंच लेफ्टिनेंट जनरल सुहाग तक न पहुंचे, जबकि यह यूनिट उनके अधिकार क्षेत्र में आती है, तो सबसे पहली ज़िम्मेदारी उनकी ही बनती है. यहां तो मामला ही उल्टा हो गया. जिसकी ज़िम्मेदारी बनती है, उसे तो दूर रखा ही गया, लेकिन जिन लोगों ने इस ग़ैर क़ानूनी और अनैतिक घटना को अंजाम दिया, उन्हें भी छोड़ दिया गया.
इस बीच पूना गोगोई ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में गुहार लगा दी. उन्हें सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के सामने गवाह बनाकर पेश किया गया. पूना गोगोई का कहना है कि कैप्टन रुबीना कौर कीर ने बाद में यह धमकी भी दी कि अगर कोई सुबूत दिया, तो वह उन्हें किसी दूसरे केस में फंसा देगी, जबकि यह बयान प्रीसाइडिंग ऑफिसर के सामने दिया गया, लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं हुआ. जैसे कि धमकी देना देश में क़ानूनन कोई जुर्म नहीं है. इस ख़बर को इंडिया लाइव टीवी पर भी डिटेल में दिखाया गया था. बताया जाता है कि इन लोगों की योजना पूना गोगोई का अपहरण करके उन्हें किसी आतंकी संगठन के हवाले करना था और यह सारा काम सेना में काम करने वाले पूना गोगोई के प्रतिद्वंद्वी ठेकेदार निर्मल गोगोई के इशारे पर किया गया. मामला टलता गया और सुनवाई होती रही. गुनहगारों को बचाने के लिए सारे प्रयत्न किए गए. आरोप यह है कि लेफ्टि. जनरल सुहाग ने कर्नल श्रीकुमार को बचाने के लिए सेना द्वारा किए गए इस ग़ैर क़ानूनी और अनैतिक ऑपरेशन पर पर्दा डालने की कोशिश की. इन सबको केवल इंतज़ार था जनरल वी के सिंह की सेवानिवृत्ति का, जो जन्म तिथि विवाद की वजह से एक साल पहले हो गई. बिक्रम सिंह सेनाध्यक्ष बन गए, लेफ्टि. जनरल सुहाग उप-सेनाध्यक्ष. और, अब वह सेनाध्यक्ष बनने वाले हैं. अगर इन सवालों को उठाना सेनाध्यक्ष की नियुक्ति का राजनीतिकरण है, तो अरुण जेटली साहब को ही बताना चाहिए कि अगर मोदी सरकार के रहते हुए सेना इस तरह का काम करेगी, तो क्या उसमें शामिल अधिकारियों को इसी तरह ईनाम दिया जाएगा, क्योंकि सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी ने जो ़फैसला दिया, वह किसी ईनाम से कम नहीं है.
वैसे देश के क़ानून के मुताबिक़ डकैती की सज़ा 5 साल होती है, लेकिन इन लोगों का गुनाह तो स़िर्फ डकैती ही नहीं था. इन्होंने डकैती के साथ-साथ सेना की इज्ज़त और साख भी तार-तार कर दी. ऐसी घटनाओं की वजह से ही नॉर्थ-ईस्ट का इलाक़ा और वहां के लोग भारत से विमुख होते जा रहे हैं. इस घटना को तो देश तोड़ने की साज़िश के रूप में देखना चाहिए. ऐसी ही घटनाओं की वजह से आर्मड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट पर सवालिया निशान लगता रहा है. लेकिन, जब दिसंबर 2013 में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का ़फैसला आया, तो स़िर्फ हवलदार संदीप थापा पर कार्रवाई हुई. उसे सेना से निष्कासित कर दिया गया. उस टीम का नेतृत्व करने वाली कैप्टन रुबीना के साथ-साथ उसमें शामिल लोगों को फटकार लगाई गई और कर्नल श्रीकुमार के प्रति असंतोष व्यक्त किया गया. वैसे यह बात सही है कि सेना को राजनीति से दूर रखना चाहिए. भारत कोई पाकिस्तान नहीं है. भारत में वैसे भी सेना का दख़ल न के बराबर है.
समस्या तो यह है कि रक्षा सौदों पर दलालों का कब्जा है. दलालों से कौन लड़ेगा? राजनीति न करने का मतलब यह नहीं है कि सच्चाई पर पर्दा डाल दिया जाए, आंखें बंद कर ली जाएं. जब जनरल बिक्रम सिंह को सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया था, तब उनके ख़िलाफ़ दो मामले विचाराधीन थे. एक मामला जम्मू-कश्मीर में फर्जी एनकाउंटर का था, जो हाईकोर्ट में चल रहा था. दूसरा मामला उनके नेतृत्व वाली शांति सेना द्वारा कांगों में महिलाओं के यौन शोषण का था. दोनों के ़फैसले आने बाकी थे, लेकिन फिर भी मनमोहन सिंह ने उन्हें सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दिया.
समस्या तो यह है कि रक्षा सौदों पर दलालों का क़ब्ज़ा है. दलालों से कौन लड़ेगा? राजनीति न करने का मतलब यह नहीं है कि सच्चाई पर पर्दा डाल दिया जाए, आंखें बंद कर ली जाएं. जब जनरल बिक्रम सिंह को सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया था, तब उनके ख़िलाफ़ दो मामले विचाराधीन थे. एक मामला जम्मू-कश्मीर में फ़र्ज़ी एनकाउंटर का था, जो हाईकोर्ट में चल रहा था. दूसरा मामला उनके नेतृत्व वाली शांति सेना द्वारा कांगों में महिलाओं के यौन शोषण का था. दोनों के ़फैसले आने बाकी थे, लेकिन फिर भी मनमोहन सिंह ने उन्हें सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दिया. अब मनमोहन सिंह जाते-जाते लेफ्टि. जनरल सुहाग को सेनाध्यक्ष नियुक्त कर गए. सुहाग पर भी आरोप हैं और संगीन आरोप हैं. ये मामले अदालत में विचाराधीन हैं. समझने वाली बात यह है कि विवाद जनरल वी के सिंह के ट्वीट से नहीं शुरू हुआ और न ही रक्षा मंत्रालय के हलफ़नामे से. यह पूरा मामला इसलिए विवाद में आया, क्योंकि लेफ्टिनेंट जनरल सुहाग के ख़िलाफ़ लेफ्टिनेंट जनरल दस्ताने ने मुक़दमा किया है, जिसमें सुहाग को सेनाध्यक्ष बनाए जाने को फेवरिटिज्म कहा गया है. जनरल वी के सिंह ने एक ट्वीट क्या कर दिया, राजनीतिज्ञों का एक वर्ग उनका इस्तीफ़ा मांगने के लिए मैदान में कूद पड़ा.
देश के महान टीवी पत्रकारों ने भी हुआ-हुआ करना शुरू कर दिया, इस्ती़फे की मांग करने लगे. उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जनरल वी के सिंह का इतिहास क्या है? उनका इतिहास यही है कि वह देश में रक्षा क्षेत्र में बैठे हथियार दलालों और माफिया के ख़िलाफ़ लड़ते आए हैं. आज तक किसी सेनाध्यक्ष ने हथियार माफिया से लड़ने या उनका पर्दाफ़ाश करने का काम नहीं किया. यह स़िर्फ और स़िर्फ जनरल वी के सिंह थे, जिन्होंने हथियार माफिया को सेना से भगाया, उन्हें एक्सपोज किया. नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस पार्टी ने जनरल वी के सिंह की जन्म तिथि को विवाद बनाकर एक साल पहले ही उन्हें पद से हटा दिया. रक्षा मंत्रालय में सब कुछ ठीक नहीं है, यह भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है. जनरल वी के सिंह जब सेनाध्यक्ष थे, तब उन्होंने कई घोटालों का पर्दाफ़ाश किया, हथियार माफिया को रोका और कई जांचों में मदद की, जिसकी वजह से सुखना लैंड स्कैम, टाट्रा ट्रक और आदर्श सोसायटी घोटाले का पर्दाफाश संभव हो सका. मोदी सरकार को रक्षा मंत्रालय की साफ़-सफ़ाई करने की ज़रूरत है. रक्षा मंत्री, सेनाध्यक्ष और अन्य वरिष्ठ पदों पर ऐसे लोगों को बैठाने की ज़रूरत है, जो भ्रष्टाचार से लड़ सकें.
नई सरकार कहती है कि अगले सेनाध्यक्ष वही होंगे, जिन्हें कांग्रेस सरकार ने चुना है, लेकिन उनके ख़िलाफ़ कुछ मामले कोर्ट में चल रहे हैं. अब जब सारा मामला कोर्ट में है, तो सुप्रीम कोर्ट सर्वशक्तिमान है, न्याय का आख़िरी मंदिर है. सच और झूठ, सही और ग़लत पर आख़िरी मुहर यहीं लगती है. यहां जो ़फैसला होगा, वह तो सर्वमान्य होगा. जैसा कि आदर्श सोसायटी घोटाले में हुआ, जैसा कि जनरल वी के सिंह की जन्म तिथि के मुद्दे पर हुआ. कोर्ट का ़फैसला तो मानना ही पड़ता है. इस मामले में भी वही माना जाएगा, जो अदालत तय करेगी. लेकिन, यह कहानी उन लोगों के लिए है, जो नैतिकता की दुहाई देकर सेनाध्यक्ष की नियुक्ति को राजनीति से दूर रखने की बात करते हैं. जिन्हें यह नहीं पता कि देश में एक जीवंत हथियार माफिया है, यह एक शक्तिशाली लॉबी है, जो हर रक्षा सौदे में अपना दख़ल रखती है. जो उसके ख़िलाफ़ एक शब्द भी बोलता है, उसे मीडिया एवं नेताओं का विरोध झेलना पड़ता है. जैसा कि जनरल वी के सिंह की जन्म तिथि के मुद्दे पर हुआ था. मोदी सरकार से उम्मीद थी कि वह हथियार माफिया के ख़िलाफ़ एक्शन लेगी, हथियारों की सौदेबाजी में पारदर्शिता लाएगी, लेकिन पहले ही मामले में मोदी सरकार ने जिस तरह पलटी मारी है, उससे यही लगता है कि हथियार माफिया पहले से ज़्यादा मजबूत हो गया है. नरेंद्र मोदी जी, देश की जनता ने आपको इसलिए वोट नहीं दिया कि आप कांग्रेस के फैसलों को देश में लागू करें.