दुनिया भर के मुसलमानों के लिए रमज़ान बेहद पाक महीना माना जाता है। मुस्लमान रोज़े रखने के साथ साथ पूरी आस्था से इस महीने पर हर तरह से परहेज़ करते हैं। दिन भर रोज़े से रहने वाले मुसलमना जब शाम को इफ्तार के लिए बैठते हैं तो उनके दस्तरखान पर रूह अफ़ज़ा शरबत ज़रूर रहता है। लेकिन रूह अफ़ज़ा भारत के बाज़ारों से गायब हो चूका है।

पूरे देश से इसी तरह ‘रमजान’ के दौरान भारतीय बाजारों में रूह अफजा की कमी को लेकर जबसे मीडिया रिपोर्ट सामने आई है, तब से यह एक चर्चा का विषय बना हुआ है। इसे लेकर अब पाकिस्तानी कंपनी हमदर्द ने भारत में रूह अफजा की आपूर्ति करने की पेशकश की है। हमदर्द पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी उसामा कुरैशी ने वाघा बॉर्डर के रास्ते से भारत में लोकप्रिय रूह अफजा की आपूर्ति करने की पेशकश की है। बता दें कि खासकर उत्तर भारत में मुसलमानों की रूह अफजा के साथ शाम में रोज़े खोलने की एक परंपरा रही है।

कुरैशी ने अपने ट्वीटर हैंडल में ट्वीट करते हुए लिखा, ‘हम रमजान में भारत को रूह अफजा और रूह अफजा गो मुहैया करा सकते हैं। भारत सरकार इजाजत दे तो हम वाघा बॉर्डर के रास्ते से रूह अफजा और रूह अफजा गो ट्रक भेज सकते हैं।’ बता दें कि Rooh Afza भारत में चार से पांच महीनों के लिए बंद कर दिया गया है और ऑनलाइन स्टोर पर भी यह उपलब्ध नहीं है। हालांकि इसे लेकर हमदर्द इंडिया ने कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन कंपनी ने कच्चे माल की कमी को उत्पादन रुकने की वजह बताया।

भारत ‘हमदर्द’ और पाकिस्तान ‘हमदर्द’
1900 के दशक में यूनानी चिकित्सा व्यवसायी हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने पुरानी दिल्ली के लाल कुआं बाजार में ‘हमदर्द’ नाम का दवाखाना खोला। 1907-1908 के आसपास, हकीम मजीद ने दिल्ली की गर्म लू की हवाओं से निपटने के लिए ‘रूह अफज़ा’ नामक पेय की खोज की। देखते ही देखते जो एक दवाखाना शुरू किया गया था वो अब पेय की वजह से पहचाने जाने लगा। 1947 तक, रूह अफजा दिल्ली में और संयुक्त प्रांत में हर किसी रसोई में पाया जाने लगा। जब देश में बंटवारे का माहौल था और इसमें ‘हमदर्द’ भी बंट गया और अब्दुल के मरने के बाद उनके छोटे बेटे हकीम मोहम्मद सईद ने पाकिस्तान जा कर वहां कराची से हमदर्द की शुरूआत की। भारतीय हमदर्द की तर्ज पर ये कंपनी भी खोली गई और आज पाकिस्तान में जाना पहचाना ब्रांड है।

 

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Courtesy: @thesingingsingh Follow: @puranidilliwaley The Partition of Rooh Afza: Established in 1906 by Hakeem Abdul Majeed, Hamdard (meaning “Sympathizer”) was a Yunani medicine shop in Delhi’s Lal Kuan Bazaar. Around 1907-1908, Hakeem Majeed launched a non alcohoalic medicinal concentrate called ‘Rooh Afza’ (Soul Enhancer) to combat Delhi’s hot loo winds. Packaged in glass bottles with the iconic label by Delhi artist Mirza Noor Ahmad, Rooh Afza contained a perfect mix of fruits, vegetables, herbs and roots all infused in a sugar syrup. It is said that the first consumers were so mesmerized by the taste of this ambrosial drink that over a hundred bottles were sold in a few hours. What started as a medicinal drink became popular as a delicious summer drink all over Delhi. To meet the rising demands, Hakeem Abdul Majeed started to mass produce Rooh Afza at a factory in Ghaziabad, just outside Delhi. Soon this drink became one of the most iconic delicacies of Delhi along with Nihari and Bedami poori. By 1947, Rooh Afza was found in every kitchen in Delhi and most of the places in the United Provinces. With the September riots of 1947, Delhi’s Muslims started to flee their homes and started to take refuge in the refugee camps built in Purana Qila and Jama Masjid. Many families were torn apart, as one part opted for Pakistan and the other chose to stay behind. Hamdard was no exception. In 1948, one part of the Hamdard family headed by Said migrated to Karachi in the new state of Pakistan. Hamdard Pakistan was started from scratch in a two room rented space. The magic of Rooh Afza worked, and in no time Hamdard Pakistan became very successful. The creation of Bangladesh in 1971 resulted in a final partition when Hamdard Pakistan gave birth to Hamdard Bangladesh. #puranidilliwaley #1947partition #olddelhi #delhiarchives #britishlibrary #roohafza #beverages #foodporn #stories

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जब से भारतीय बाजारों में रूह अफजा की कमी की खबर फैली है, तब से ट्विटर पर एक जंग जैसा माहौल है और जमकर एक दूसरे की खिल्ली उड़ाई जा रही है। बता दें कि पाकिस्तान हमदर्द को जवाब देते हुए एक यूजर ने लिखा, ‘पहले आतंकवादियों को भेजना बंद करो, फिर बाद में रूह अफजा भेजना’। वहीं एक यूजर ने लिखा, ‘क्या आप साथ में मसूद अजहर को भी भेज सकते हैं? अगर आप ऐसा कर सकते है तो भारत सरकार आपके लिए बार्डर खोल सकती है’। हालांकि कुछ भारतीयों ने पाकिस्तान के इस प्रस्ताव की तारीफ भी की।

पाकिस्तान को पेशकश करनी पड़ी भारी
जब से भारतीय बाजारों में रूह अफजा की कमी की खबर फैली है, तब से ट्विटर पर एक जंग जैसा माहौल है और जमकर एक दूसरे की खिल्ली उड़ाई जा रही है। बता दें कि पाकिस्तान हमदर्द को जवाब देते हुए एक यूजर ने लिखा, ‘पहले आतंकवादियों को भेजना बंद करो, फिर बाद में रूह अफजा भेजना’। वहीं एक यूजर ने लिखा, ‘क्या आप साथ में मसूद अजहर को भी भेज सकते हैं? अगर आप ऐसा कर सकते है तो भारत सरकार आपके लिए बार्डर खोल सकती है’। हालांकि कुछ भारतीयों ने पाकिस्तान के इस प्रस्ताव की तारीफ भी की।

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