नोट:कुछ वाक़ई भले नेक अच्छे और सच्चे नेताओं से क्षमा के साथ माज़रत के साथ…

 

पिछले कई दिनों से अख़बार पढ़कर टीवी देखकर एक कैफ़ियत तारी हो रही है उसी कैफ़ियत में कुछ बकवास करने की हिमाक़त कर रहे हैं झेल सकें तो
झेलिये!!

लोग यूँ ही नेताओं के पाँव नहीं पूजते!
वाक़ई हमारे मुल्क के देवता तुल्य फ़रिश्तों की तरह नेताओं को मानना पड़ेगा।
क्या जज़्बा है क्या समाज सेवा का भाव है
क्या आप जानते हैं ये कर्णधार भले ईमानदार जुझारू दयालु नेता ये बेचारे क्यूँ विधायक बनने के लिये क्यूँ मरे जा रहे हैं?
क्यूँ इनके समर्थक धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
क्यूँ सड़कों पर आक्रोश दिखा रहे हैं।
क्यूँ दल बदल किये जा रहे हैं
क्यूँ आपस में एक दूसरे को मरने मारने पर आमादा हैं
क्यूँ गली गलौच तू तू मैं मैं पर आमादा हैं आख़िर क्यूँ ?
नहीं जानते न!
हम बताते हैं सुनिये…
महंगाई कम करने के लिये?
जनता की सेवा के लिये ?
कर्मचारियों के हित के लिये?
लोक कल्याण के लिये ?
सड़क पानी बिजली के लिये ?
बच्चों की सस्ती शिक्षा के लिये ?
सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ?
ग़रीब किसानों के लिये?
ग़रीबों के उत्थान के लिये?
लाड़ली बहनों के लिये?
मूलभूत सेवाओं के लिये?
जनता की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कराने के लिये?
अम्न एकता के लिये?
पिछड़ों को आगे लाने के लिये?
दलितों को बराबरी में लाने के लिये?
युवाओं को रोज़गार दिलाने के लिये?
मुल्क को विश्व गुरु बनाने के लिये?
वग़ैरह वग़ैरह वग़ैरह के लिए ???

नहीं नहीं नहीं हर्गिज़ नहीं बिल्कुल नहीं क़तई नहीं…
ये जनमजले चरित्रहीन चोर डाकू स्वार्थी झूठे मक्कार लोभी सत्ता के भूखे भेड़िये ख़ुदगर्ज़ मुनाफ़िक़ कमज़र्फ़ और जाने क्या क्या

ये सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना घर भरने के लिये विधायक मंत्री बनना चाहते हैं।
ये नेता बनना चाहते हैं
पैसा कमाने के लिये
जनता की लूटने के लिये
सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार के लिये
हर काम में कमीशन के लिये
सड़क बिजली पानी के नाम पर बजट हड़पने के लिये
अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिये
अपने बच्चों के रोज़गार के लिये
अपना बंगला गाड़ियाँ ज़मीनें मकान बनाने के लिये
अपनी सुख सुविधाओं के लिये
अपनी कई पीढ़ियाँ तर करने के लिये ये लोग नेता विधायक मंत्री बनना चाहते हैं।

और बेचारी जनता लम्बी लम्बी लाइनों में धूप में खड़े होकर इन्हें वोट देकर अपना नुमाइंदा बनाती है ठगी जाती है महंगाई झेलती है बेरोज़गारी झेलती है अव्यवस्थाओं पर आँसू बहाती है अपनी क़िस्मत को कोसती है मगर इन ज़ालिमों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता

उन्हें शर्म नहीं आती..
जनता का शोषण करते हुये
ज़ुल्म करते हुये दंगा फ़साद करते हुये
जनता का अमन चैन छीनते हुये
अगड़ों पिछड़ों में वर्गभेद करते हुये
हिंदू मुस्लिम को धर्म के नाम पर लड़ाते हुये
बस्तियाँ जलाकर उसमें अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकते हुये
इन्हें शर्म नहीं आती!
आयेगी भी कैसे?
एक इंसान कामयाब नेता तभी बन पाता है जब वो इंसानियत का क़त्ल कर दे
ईमानदारी को ख़ाक में डाल दे
रहम दया नेकी भलाई को ताक पर रख दे
संवेदनाओं जज़्बातों से परे हो जाये
कुल मिलाकर जब वो सर्व अवगुण सम्पन्न हो जाये यानि साफ़ तौर पर ज़ाहिर तौर पर मुकम्मल शैतान हो जाये…
तब कहीं जाकर वो एक कामयाब नेता
कामयाब विधायक
कामयाब मंत्री आदि बनता है…

तो जागरूक मतदाताओं भूलिएगा नहीं। वोट आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
तो आने वाली फ़लानी तारीख़ में फलाने राज्यों में होने का रहे फलाने चुनावों में
तमाम फलाने धिकानों को फलाने चुनाव चिन्ह पर बटन दबाकर विजयी बनाएँ और फिर पूरे पाँच अपनी क़िस्मत को कोसें रोयें गिड़गिड़ाये और साबित करते रहें कि…
जब तक मूर्ख बेवक़ूफ़ ज़िंदा हैं

अक़्लमंद समझदार यानि शातिर मक्कार अय्यार भूखे नहीं मरेंगे बल्कि भूखा मारेंगे…

आपको मालूम है क्यूँ रो रहा है आदमी।
जागने का वक़्त है और सो रहा है आदमी।
मुल्क के सौदागरों जो जी में आये सो करो।
हर गली में भांग खाकर सो रहा है आदमी…

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