विदर्भ के जिलों में एक खास तरह की घास उगती है जिसको ‘बेशरम’ नाम दिया है । वह घास कहीं भी और कैसे भी उग आती है उसको खत्म करने का कोई इलाज नहीं होता। देश में आजकल चौतरफा इंसान के रूप में उसी घास की खेती हो रही है । और मजे की बात है इसकी चिंता किसी को नहीं है । इसमें सत्ता पक्ष का तो खाद पानी है ही , विपक्ष को भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है । विपक्ष अपने ही अंतर्विरोधों में उलझ कर बीमार पड़ा है । बेशर्मी और घमंड का एक आलम देखा । मध्यप्रदेश के गृहमंत्री से बरखा दत्त इंटरव्यू ले रही हैं और वह गृहमंत्री बड़ी बेहयाई से भोजन करता जा रहा है। प्लास्टिक के कप को मुंह से लगा कर सुढ़क रहा है। वह कह रहा है मैंने जो बयान दिया मैं फिर वैसा ही बयान दूंगा । मैं सोचता हूं यह वीडियो विदेशों में देखा जाएगा तो क्या छवि बनेगी हमारी । क्या बरखा दत्त को मना नहीं कर देना चाहिए था कि पहले आप भोजन कर लें फिर । बेशर्मी और नफरत का धुआं पूरे देश में पसर रहा है इस पर देश के नेता मोदी की चुप्पी बहुत कुछ कह रही है ।
उधर आजकल फिर कांग्रेस को लेकर बहस छिड़ पड़ी है । कांग्रेस, राहुल गांधी और प्रशांत किशोर । कल अभय कुमार दुबे ने कहा विपक्ष की परेशानी यह है कि उसके पास कोई वैकल्पिक राजनीति नहीं है । तो वह क्या करे । दरअसल मोदी ने पूरा समय का चक्र ही घुमा दिया है । विपक्ष उस छिछलेपन पर उतर नहीं सकता और उसका अभ्यास भी नहीं है । उसके अलावा क्या करें कोई बता नहीं रहा । सबसे विचित्र स्थिति तो कांग्रेस की है । कांग्रेस के रोग का इलाज नहीं हो रहा, उस पर लीपापोती हो रही है । रोग के कीटाणु आलाकमान में हैं और जब बहस होती है तो घिसे पिटे पत्रकारों के घटिया विश्लेषण देखने को मिलते हैं । अंबरीष कुमार ने अपनी डिबेट का शीर्षक रखा, ‘क्यों नहीं राहुल गांधी को कांग्रेस से निकाल दिया जाए’ । अच्छा और चौंकाने वाला शीर्षक था । लेकिन जब बहस चली तो तीन चार घिसे पिटे (मेरी नज़र में) पत्रकारों ने गुस्सा ही दिलाया । पत्रकारों की वो पीढ़ी कहां है जो शोध करती है, अध्ययन करती है , अपने तईं चीजों और तर्कों को मथती है, बिना पुष्ट प्रमाण के कुछ प्रकट नहीं करती । अंबरीष कुमार बार बार या कहूं हमेशा ही ‘जनसत्ता’ का नाम लेते हैं । कहां है जनसत्ता के पत्रकारों की वह पीढ़ी जिसे प्रभाष जोशी और नई दुनिया, नवभारत टाइम्स के राजेंद्र माथुर ने तराशा हो । जो पत्रकार चुनाव से अब तक रोजाना विश्लेषण कर रहे हैं वे दरअसल थक चुके हैं और घिस चुके हैं । वे न परख सकते हैं, न सूंघ सकते हैं। ऐसे पत्रकार नादान किस्म की जनता को दिग्भ्रमित ही ज्यादा कर रहे हैं । अभय कुमार दुबे सरीखे कितने पत्रकार रह गये हैं । अंबरीष कुमार का कार्यक्रम देखा । राहुल गांधी का बचाव करने वाले पत्रकारों को सुना तो माथा पीटने का मन हुआ । मेरा सुझाव है राजेंद्र तिवारी, अजय शुक्ला , अनिल सिन्हा जैसे पत्रकारों को तो अब घर बैठा देना चाहिए । अनिल सिन्हा की तो कर्कश आवाज ही दिमाग खराब करती है और ‘जो है कि जो है कि’ वाला अंदाज । मन हुआ कि इस पर लिखने के लिए एक बार वीडियो को दोबारा सुनूं पर हिम्मत नहीं जुटा पाया । प्रशांत किशोर पर आशुतोष के कार्यक्रम में राजेश जोशी और राहुल देव को सुनना चाहिए । राहुल देव से मैं कभी प्रभावित नहीं रहा पर कल उन्होंने राहुल गांधी की राजनीतिक कमजोरियों को बताते हुए सुझाव दिया कि उन्हें (राहुल गांधी को) स्वयं को कांग्रेस की बेहतरी के लिए अलग कर लेना चाहिए । इसके विपरीत कांग्रेसी पंकज श्रीवास्तव को सुना जो कह रहे थे कि राहुल का भाषण सुन कर आंखें भर आईं । उसी भाषण की राजेश जोशी ने मजम्मत की ।
वक्त की नजाकत को देखते हुए या वैसे भी राहुल गांधी की राजनीतिक अनुभवों की स्लेट एकदम कोरी है । भीतर से स्वयं राहुल यह जानते हैं ,शायद । इसीलिए आत्मविश्वास जुटा पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है । फिर न भाषा है, न उपयुक्त शब्दावली है, न बात को कहने का ढंग है और न ही यह सलीका कि किस बात को कब और कैसे कहां जाएं । और लड़कपन ऐसा कि कभी मोदी के गले चिपट कर हर किसी को अवाक कर देना, कभी संसद में आंख मारना। ऐसा लौंडापन और नादानी जिस व्यक्ति में हो वह जब आलाकमान होता है तो वह पार्टी के जहाज को आज नहीं तो कल डुबोने के लिए काफी होता है । कुछ मूर्ख यह भी कहते हैं कि सरकार ईडी वगैरह को लेकर राहुल गांधी पर वार नहीं कर पा रही, कुछ यह भी कहते हैं कि मोदी गांधी परिवार को खत्म कर देना चाहते हैं । इस तरह की बड़ी मूर्खतापूर्ण बातें चल रही हैं । ये लोग यह नहीं सोचते कि सत्य कुछ और है । मोदी राहुल और उनके परिवार को बनाए रखना चाहते हैं । यह परिवार उनके लिए वरदान स्वरूप है । ध्यान रखिए जहां जहां कांग्रेस कभी जीत पा रही है उस जीत में कांग्रेस आलाकमान की कोई भूमिका नहीं है। दरअसल ऐसी जगहों पर बीजेपी के विकल्प में कांग्रेस के अलावा कोई है भी नहीं । या स्थानीय तौर पर जीतने वाला मजबूत होता है। मेरा मानना है कि प्रशांत किशोर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं । इस आलाकमान के चलते तो वे कुछ अनोखा कर नहीं सकते , पर हां, एक चालाक रणनीतिकार के तौर पर वे कांग्रेस में विभाजन करा दें और अन्य कांग्रेसियों का विश्वास जीत कर कमान अपने हाथ में ले लें तो चक्र घूम सकता है । आखिर क्या वजह है कि बार बार दुतकारे जाने के बाद भी वे घूम फिर कर कांग्रेस की ओट में आ रहे हैं । मुझे लगता है कि वे कांग्रेस को विभाजित कर अपना स्थायी भविष्य उसमें देख रहे हैं । जब शीर्ष पर लंडूरे किस्म लोग बैठे हों तो चालाक बड़ी मासूमियत दिखा कर उसका फायदा उठा ले जाते हैं ।
देश नफरत की आग से खदकने लगा है । मोहन भागवत अखंड भारत की बात कर रहे हैं और फैजान मुस्तफा साहब मोहन भागवत की ‘बड़ी’ इज्जत कर रहे हैं । अखंड भारत पर उनका ‘लीगल अवेयरनेस’ का वीडियो अच्छा था पर विनती है कि सर, इतनी इज्जत न करें कि हम सबकी इज्जत मिट जाए । उनका इरादा क्या है यह आप भी जानते हैं और हम भी । उनकी कोई औकात नहीं है फिर भी इतनी औकात है कि मोदी जी को संदेश दें कि नफरत के जो शोले भड़क रहे हैं उन पर तुरंत लगाम कसी जाए । न मोहन भागवत कुछ बोल रहे हैं , मोदी जी का और न उनकी सरकार का कोई बाशिंदा । जबकि सब सबकुछ जानते – समझते हैं । देश किस दिशा में जा रहा है आर्थिक रूप से इसका विश्लेषण कल अभय दुबे ने किया । संतोष भारतीय जी को चाहिए कि अखिलेंद्र प्रताप सिंह से भी बीच बीच में बात करें । आरफा खानम शेरवानी विदेश से लौट कर आयीं, यहां फैली नफरत देखी और वीडियो बना कर लोगों से मुखातिब हुईं कि आप लोगों ने वोट देकर ऐसी सरकार चुनी । मैडम , इन लोगों ने नहीं चुनी । आपके वीडियो देखने वाले तो आपके ही लोग हैं । चुनी उन लोगों ने जो लाभार्थी हैं, जिन तक आपकी बात पहुंचती ही नहीं । सोशल मीडिया के सारे प्लेटफार्म्स का यही हाल है । टारगेट कहीं और करना है, कर कहीं और रहे हैं । मुकेश कुमार ने पुरुषोत्तम अग्रवाल जी से इंटरव्यू लिया । अच्छा लगा । उन्होंने भी बुद्धिजीवियों और विपक्ष पर उंगली उठाई । मैंने अक्सर बुद्धिजीवियों को कोसा है । मोदी और इस सरकार को हराना नामुमकिन नहीं है पर आप उस दिशा में तो काम करें जिस दिशा में जरूरत है । यह देखें कि मोदी को वोट किस वर्ग से मिल रहे हैं । पत्रकार, लेखक, कलाकार सब उस वर्ग के बीच क्यों नहीं जाते। न उम्मीद करें कांग्रेस से , न करें ठलुए अखिलेश से । किसी ने सुझाव दिया कि अपने अपने राज्यों में हर मुख्यमंत्री यह सुनिश्चित करे कि वे बीजेपी के खिलाफ अपने अपने किलों को मजबूत करेंगे। सुझाव बड़ा कारगर लगा । सच तो यह है कि एक आम आदमी की भांति हम भी यह मान चुके हैं कि मोदी को अगले चुनाव में हराना नामुमकिन है । दरअसल बात ऐसी है कि अय्याशी कुछ इस कदर चढ़ गयी है कि ‘यूट्यूब’ का नशा जाता नहीं । न ‘यूट्यूब’ पर आने वाले न उसे देखने वाले पर । अपने घर, मकानों और सुख सुविधाओं को छोड़ना बनता नहीं । स्वप्न देखना आता है सो स्वप्न देख रहे हैं । स्वप्न तो अरविंद केजरीवाल ने भी देखा । वह स्वप्न को जमीन पर उतारने में लगा है । और वह शख्स जैसे तैसे सफल होगा ।उसे सब कुछ आता है। पुचकारना भी आता है, और वक्त पर लात मारना भी आता है । वह शख्स वैकल्पिक राजनीति करके दिखा रहा है । अभी उस पर किसी भी तरह का विश्लेषण करना नादानी है। उसे केवल देखिए और देखते जाइए । उसके पास बेशर्मी भी है तो जिद भी है ।और उसे किसी की परवाह भी नहीं । हां, जल्दी और बहुत जल्दी है यह जल्दी उसका कुछ क्षण नुकसान भी कर सकती है ।
आलोक जोशी और आशुतोष से कहना है कि ‘सत्य हिंदी’ को निखारिए और ऐरे गैरे लोगों को छांटिए फिर चाहे वे आपके कितने ही ही पुराने मित्र ही क्यों न हों । उर्मिलेश जी को लगातार सुनता हूं । हर बार निराश होता हूं । कुछ नया नहीं होता । ऐसे ही भाषा सिंह के कार्यक्रम, गोकि भाषा बहुत मेहनती हैं ।और उनकी फील्ड रिपोर्टिंग आकर्षक होती हैं। पर शिकायत इनसे करने की बजाय ‘न्यूज क्लिक’ से करनी चाहिए कि क्यों उनके कार्यक्रम में थके थके से होते हैं । कुछ लोग बहुत तार्किक बात करते हैं । श्रवण गर्ग, संतोष भारतीय, शीबा असलम फहमी , अनिल त्यागी, विभूति नारायण राय, शीतल पी सिंह, रविकांत, हरजिंदर, कुर्बान अली जैसे लोगों को सुनना अच्छा लगता है ।
इस बार का ‘ताना बाना’ कुछ अलग और बेहतर था । राजेश जोशी, वीएन राय और अशोक वाजपेई को सुनना अच्छा लगा । अभय दुबे ने इमरान ख़ान के क्रिकेट पर कुछ नयी जानकारी दी जो रोचक लगी ।
अंत में – हम नाहक ही न्यायालयों से स्वत: संज्ञान की उम्मीद लगाए बैठे हैं । चौकस और चौकन्ने न्यायाधीश इतना समय नहीं लगाते । जिस समय हम उनसे उम्मीद लगा रहे थे ठीक उसी समय मुख्य न्यायाधीश रमन्ना साहब अमृतसर में गोल फूले भटूरों (छोले भटूरे) की मोबाइल से फोटो ले रहे थे । उम्मीद पर दुनिया कायम है पर ऐसी उम्मीदों के भरोसे न रहें जो समय को आगे सरका दें और हम हाथ मलते रह जाएं । न्यायालय न जागें तो याचिका लगाएं । बाकी सारे रास्ते तो बंद कर ही दिये गये हैं ।

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