स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चन्द्रवंशी ने बताया कि लापरवाही बरतने के मामले में एएनएम द्रौपदी पांडेय को निलंबित कर दिया गया है. बच्चों को लगाई गई वैक्सीन के वायल एवं उसी बैच के दो वायल हिमाचल प्रदेश के कसौली स्थित लेबोरेट्री जांच के लिए भेज दिए गए हैं. वहां उपलब्ध अन्य वैक्सीन को सीज कर दिया गया है. स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के लिए आवश्यक निर्देश दिए गए हैं.
‘सर इसे मत छोड़िएगा, इसे कड़ी से कड़ी सजा दीजिए. इसी की गलती से मेरे कलेजे के टुकड़े की मौत हुई है.’ संतोष की पत्नी फफक-फफक कर रो रही थी. पलामू जिले के पाटन प्रखंड के लोइंगा गांव निवासी संतोष यादव की पत्नी अपने डेढ़ साल की पुत्री संजू कुमारी एवं ढाई साल के पुत्र आयुष यादव को आंगनबाड़ी केन्द्र में लगे कैम्प में टीकाकरण कराने के लिए गई थीं. यहां बच्चों को भिजिल्स, जेई, डीपीटी-डी और ओपीबी के टीके दिए गए थे. जिसे जीवनभर स्वस्थ रहने के लिए टीका लगाए गए थे, टीका लगते ही उन बच्चों की हालत खराब होने लगी. देखते-देखते इस गांव के आधा दर्जन बच्चे असमय मौत के गाल में समा गए.
एएनएम द्रौपदी पांडेय ने दोपहर 12 बजे 11 बच्चों को टीके लगाए. इसके लगभग चार घंटे बाद ही बच्चों को तेज बुखार और दस्त की शिकायत हुई. नर्स ने पारासिटामोल की दवाएं दी, इसके बावजूद बच्चों की स्थिति बिगड़ती चली गई. बारह घंटे बाद ही कई बच्चों की मौत हो गई, जबकि कुछ बच्चों को सदर अस्पताल और रांची के रिम्स में भर्ती कराया गया, जहां दो और बच्चों की मौत हो गई. बात जब ऊपर पहुंची, तब मामले को रफा-दफा करने हेतु एएनएम द्रौपदी पांडेय को निलंबित कर दिया गया.
राज्य सरकार ने रटा-रटाया जवाब दिया कि पूरे मामले की जांच कराई जाएगी. वैक्सीन को कसौली भेजा जाएगा और रिपोर्ट आने पर दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी एक लाख रुपए मुआवजा की घोषणा कर डाली. मुख्यमंत्री के मुआवजे की घोषणा के बाद ग्रामीण और उत्तेजित हो गए. अब सवाल यह है कि टीकाकरण में किस अधिकारी ने लापरवाही बरती और क्या मानकों के तहत टीका रखा गया था? इस घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए राज्य सरकार क्या ठोस कदम उठाने जा रही है?
शपथ पत्र में सरकार ने किए थे बड़े-बड़े दावे
छह माह पूर्व जब राज्य के तीन बड़े अस्पतालों में कुपोषण से लगभग दो सौ बच्चों की मौत हो गई थी, तब उच्च न्यायालय ने इस घटना पर स्वत: संज्ञान लिया था. राज्य सरकार से पूछा गया था कि नौनिहालों को स्वस्थ रखने के लिए राज्य सरकार क्या नीति बना रही है? क्या उसके पास इससे निबटने के लिए कोई ठोस योजना है? राज्य सरकार ने शपथ-पत्र में बड़े-बड़े दावे किए थे और कहा था कि जच्चा और बच्चा को स्वस्थ रखने के लिए पोषाहार सहित विटामिन एवं बीमारियों से बचने के लिए पूरे राज्य में टीकाकरण अभियान मिशन इंद्रधनुष के तहत चलाया जा रहा है.
सरकार ने यह भी दावा किया कि पूरे राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. स्वास्थ्य सेवा तेजी से मुहैया कराने के मामले में झारखंड तेजी से बढ़ता हुआ राज्य है. राज्य सरकार के मिशन इंद्रधनुष के तहत यह निर्णय लिया गया था कि राज्य के एक-एक बच्चे को मुफ्त में टीके लगाए जाएंगे. इसके लिए जोर-शोर से प्रचार अभियान भी चलाया गया, जगह-जगह शिविर लगाकर टीकाकरण का काम किया जाने लगा.
इसे राज्य सरकार की लापरवाही नहीं तो और क्या कहा जाएगा. इस टीकाकरण अभियान में पलामू, गढ़वा एवं गुमला से लगभग एक दर्जन बच्चों की मौत हो गई. पलामू के मेदिनीनगर के लोइंगा गांव में टीकाकरण के बाद बच्चों की मौत हो गई. इनमें 15 महीने का उज्जवल, 18 माह की संजू कुमारी, 21 माह का आर्यन और 10 माह का आयुष शामिल है. वहीं दो गंभीर बच्चों को आनन-फानन में रांची के रिम्स में भर्ती कराया गया, जिसमें एक बच्चे की मौत हो गई.
इस घटना के बाद राज्य सरकार कुछ सक्रिय ही हुई थी कि दो दिन बाद ही गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड में एक नवजात बच्चे को बीसीजी और हेपेटाईटिस के टीके स्वास्थ्य केन्द्र में लगाने के बाद ही मौत हो गई. नवजात के पिता बिंदेश्वर नाग का कहना है कि सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र में एक दिन पूर्व बच्चे का जन्म हुआ था. बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ था, पर नर्स ने जब बच्चे को टीका लगाया तो नवजात की हालत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी और उसकी मौत हो गई. स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सकों ने मृतक बच्चे के माता-पिता से बदसलूकी की और उन्हें चुप रहने के निर्देश दिए. अस्पताल के चिकित्सक डॉ. अंकुर का कहना है कि जन्म के बाद से ही नवजात की स्थिति ठीक नहीं थी.
नवजात के मुंह में मल आ गया था, जिससे उसे सांस लेेने में कठिनाई हो रही थी. सवाल यह है कि अगर बच्चे की तबीयत खराब थी तो उसे हड़बड़ी में टीका क्यों लगाया गया? टीका लगाने से पहले बच्चे की जांच की जरूरत क्यों नहीं समझी गई? अगर बच्चे की हालत खराब हो रही थी, तो उसे बड़े अस्पताल में रेफर क्यों नहीं किया गया? क्या स्वास्थ्यकर्मियों में टीका लगाने के लिए जरूरी प्रशिक्षण की कमी है? इन सब घटनाओं से सबक लेने के बजाय स्वास्थ्य विभाग मामले की लीपापोती में ही ज्यादा समय लगा देता है. यही कारण है कि घटना की पुनरावृत्ति लगातार हो रही है. 25 अप्रैल को भी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चन्द्रवंशी के गृह जिले में एक नवजात की मौत टीका लगाने के बाद हो गई थी.
मुआवज़े से अच्छा है, सरकार सिस्टम को सुधारे
आधा दर्जन घटनाओं के बाद स्वास्थ्य महकमा एवं मुख्यमंत्री की नींद खुली और मामले की जांच का आदेश दिया गया. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुआवजे की घोषणा कर डाली और एक-एक लाख रुपया मुआवजा देने की घोषणा कर दी. इससे पीड़ित परिवार और आक्रोशित हो गया. मृतक आयुष के नाना कहते हैं कि क्या एक लाख से मेरी बेटी की दुनिया संवर जाएगी. उनका नाती वापस लौट आएगा. उन्होंने कहा कि मुआवजे से अच्छा है, सरकार सिस्टम को सुधारे.
स्वास्थ्य विभाग की प्रधान सचिव निधि खरे ने पलामू के सिविल सर्जन को दोषियों को चिन्हित कर कार्रवाई का आदेश दिया है. पलामू के उपायुक्त को भी इस मामले की जांच के लिए कहा गया है. इस मामले की विस्तृत जांच के लिए निदेशक सुमंत मिश्रा को भी निर्देश दिए गए हैं. एक सप्ताह के अंदर जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था, पर एक पखवाड़े के बाद भी सरकार को जांच रिपोर्ट नहीं मिल पाई है. वैसे इस मामले में पलामू के सिविल सर्जन डॉ. कलानंद मिश्रा एवं जिला आरसीएच पदाधिकारी डॉ. एमपी सिंह की भी संलिप्तता सामने आई है. दोनों अधिकारियों ने मामले की सूचना स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को नहीं दी थी. स्वास्थ्य सचिव ने इसे भी गंभीरता से लेते हुए दोनों अधिकारियों को शो कॉज जारी किया है.
स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चन्द्रवंशी ने बताया कि लापरवाही बरतने के मामले में एएनएम द्रौपदी पांडेय को निलंबित कर दिया गया है. बच्चों को लगाई गई वैक्सीन के वायल एवं उसी बैच के दो वायल हिमाचल प्रदेश के कसौली स्थित लेबोरेट्री जांच के लिए भेज दिए गए हैं. वहां उपलब्ध अन्य वैक्सीन को सीज कर दिया गया है. स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के लिए आवश्यक निर्देश दिए गए हैं. राज्य के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं उप-स्वास्थ्य केन्द्रों की समीक्षा कर सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए गए हैं. जांच के लिए तीन टीमों का गठन किया गया है.
इधर एएनएम के निलंबन पर ऑल झारखंड पारा मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष उपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि मामले में एएनएम कहां से दोषी हैं? बच्चे और वैक्सीन देखने की जिम्मेदारी डॉक्टरों की है. जहां टीकाकरण होता है, वहां कोई डॉक्टर नहीं रहता, कोई इमर्जेंसी ड्रग भी नहीं रहता. एएनएम का कोई दोष नहीं है, पर बड़े लोगों को बचाने के लिए छोटों का शिकार किया गया है.
पलामू के भाजपा से सांसद बीडी राम ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग अधिकारी एवं कर्मी पूरी तरह से संवेदनहीन बने हुए हैं. राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से लचर है. सिविल सर्जन व्यवस्था को सुधार पाने में अक्षम साबित हो रहे हैं और यहां के चिकित्सक निजी प्रैक्टिस में लगे रहते हैं.
विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि यह सरकार केवल लूटने में लगी है. पूरे राज्य में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. स्वास्थ्य, शिक्षा, विधि-व्यवस्था पूरी तरह से ठप है, लेकिन मुख्यमंत्री रघुवर दास केवल बड़े-बड़े दावे करते हैं. सोरेन ने स्वास्थ्य मंत्री को तुरन्त बर्खास्त करने की मांग राज्यपाल से की है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने भी स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चन्द्रवंशी से नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की मांग की है.
टीकाकरण के बाद नहीं हुई बच्चों की मॉनिटरिंग
वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि टीकाकरण में घोर लापरवाही हुई है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जांच रिपोर्ट आने से पहले ही पलामू के सिविल सर्जन ने यह बता दिया कि दवा ठीक थी, ठेका देने में नियमों का पूरा पालन हुआ है. सिविल सर्जन का कहना है कि जो टीका लोइंगा में दिया गया था, वही पलामू जिले में सभी बच्चों को लगाया गया. 13, 730 बच्चों को लगाया गया, जो पूरी तरह से स्वस्थ हैं. एक तरह सिविल सर्जन वैक्सीन को सही बता रहे हैं, वहीं यह कह रहे हैं कि दवा कसौली भेजी गई है. बच्चों के बिसरा को भी सुरक्षित रखा गया है.
रिम्स के पूर्व शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. एके शर्मा के अनुसार वैक्सीन में कोई कंपोनेन्ट ऐसा है, जिससे बच्चों में रिएक्शन हुआ, वैसे जांच के बाद ही कुछ स्पष्ट कहा जा सकता है. अगर टीकाकरण के बाद बच्चों को एक घंटे तक देखा जाता तो उनमें रिएक्शन के लक्षण को देखकर उसका इलाज किया जा सकता था. सामान्यत: टीकाकरण के बाद बच्चों को कुछ देर रखा जाता है, ताकि टीकाकरण के प्रभाव को देख सकें. डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों की मौत के कारणों का तब तक पता नहीं चल सकता, जब तक कि वैक्सीन की रिपोर्ट नहीं आ जाए.
वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि लापरवाही हुई है. टीका के वैक्सीन के मानकों का पालन नहीं किया गया. वैक्सीन को कोल्ड चेन में नहीं रखा गया. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि स्वास्थ्य विभाग में केवल लूट-खसोट ही होता है. इसी कारण राज्य के अस्पताल भी बदहाल हैं. योजनाओं की तो बात ही अलग है. अधिकारी, राजनेता, ठेकेदार एवं बिचौलिए केवल कागजों पर ही आंकड़े तैयार करते हैं एवं स्वास्थ्य विभाग इन्हीं आंकड़ों के आधार पर राज्य को स्वास्थ्य सेवा के मामले में अव्वल बता देता है.