siyasat-ka-janralसेना से लेकर सियासत तक मोर्चे पर डटे रहने वाले योद्धा साबित हो रहे हैं पूर्व सेनाध्यक्ष और मौजूदा विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह. जनरल वीके सिंह युद्धग्रस्त, हिंसाग्रस्त और समस्याग्रस्त क्षेत्रों से भारतीयों को सुरक्षित निकाल कर लाने के तमाम सफल ऑपरेशनों के नायक के बतौर उभर कर सामने आए हैं. लीबिया हो या इराक, यमन हो या सूडान, यूक्रेन हो या सऊदी अरब, जहां भी भारतीय फंसे, उन्हें वहां से सुरक्षित निकाल कर भारत पहुंचाने की जिम्मेदारी जनरल वीके सिंह को ही दी गई और उन्होंने भी खतरे और जोखिम से भरी स्थितियों में सैन्य कुशलता और रणनीति का इस्तेमाल कर भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया. राजनीति के गलियारे में वीके सिंह को अब सियासत का जनरल कहा जाने लगा है. युद्ध और हिंसाग्रस्त देशों से अपने नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाल ले आने से भारतवर्ष की दुनियाभर में ऐसी साख बनी कि अमेरिका, फ्रांस समेत 40 विभिन्न देशों ने हिंसाग्रस्त देशों में फंसे अपने नागरिकों को निकालने में जनरल वीके सिंह से मदद मांगी और भारत सरकार के प्रतिनिधि के बतौर उन्होंने भारतीयों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों को भी सुरक्षित बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की.

जो भारतीय युद्धग्रस्त और हिंसाग्रस्त देशों से सुरक्षित निकल कर भारत पहुंचे हैं, उनकी आपबीती सुनें तो रेस्क्यु ऑपरेशंस की कामयाबी के पीछे की जद्दोजहद, तकलीफ, रणनीति और जोखिम का अहसास होगा. एयरपोर्ट ध्वस्त हो चुका हो, लगातार बमबारी हो रही हो, विमानों से हमले हो रहे हों, एयर ट्रैफिककंट्रोेल ने भारतीय विमानों को एयरपोर्ट पर लैंड करने से मना कर दिया हो, ऐसी विपरीत स्थितियों का सामना कर भारतीयों को बाहर निकाल लाने में कोई शख्स अपनी युद्ध-कुशलता और रणनीतियों की वजह से कामयाब हो रहा हो, यह सुन कर आपको रोमांच भी आएगा और गौरव की अनुभूति भी होगी. रेस्न्यु ऑपरेशंस से जुड़े रहे विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी कहते हैं कि ऐसे ऑपरेशंस में जनरल ऐसे ऐक्ट करते हैं जैसे उन्हें पता है कि क्या करना है, क्या नहीं करना है, निश्‍चित तौर पर यह सेना की ट्रेनिंग  का असर है, टास्क एंड टार्गेट ओरिएंटेड, लिहाजा लक्ष्य साधने और उसे हासिल करने में अधिक दिक्कत नहीं होती. कई जगह उन्हें जनरल होने का फायदा भी मिल जाता है. इससे कूटनीतिक के साथ-साथ सामरिक जटिलताएं सुलझाने में भी मदद मिल जाती है.

यमन और दक्षिणी सूडान में फंसे भारतीयों को निकालने का ऑपरेशन अधिक कठिनाई से भरा रहा है. लीबिया से करीब तीन हजार और इराक से सात हजार लोगों को पहले ही निकाल लिया गया था, लेकिन यमन में फंसे हजारों भारतीयों का बाहर निकलना मुश्किल था. विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी मानते हैं कि यमन का रेस्क्यु अभियान काफी टफ और जोखिम भरा था. यमन से साढ़े छह हजार लोगों को बहुत ही मुश्किल से निकाला गया. भीषण युद्ध के बीच ही रेस्क्यू ऑपरेशन किया गया. बमबारी के कारण सना एयरपोर्ट ध्वस्त हो चुका था. भारतीयों को निकालने के लिए सरकारी पक्ष ने अपनी तरफ से गोलीबारी रोकने के लिए मात्र दो घंटे का समय (विंडो) दिया था. लेकिन इतने ढेर सारे लोगों को लाने और पासपोर्ट पर एक्जिट की मुहर लगाने में ही दो घंटे लग गए. इस दरम्यान सरकारी फाइटर विमानों ने दुश्मनों पर हमले फिर शुरू कर दिए. इस के मध्य ही भारतीयों की दो बड़ी खेपें निकालने में कामयाबी मिली. जनरल ने खुद सना में ही रुक जाने का फैसला किया. उनके पास कोई सामान भी नहीं था, क्योंकि तय कार्यक्रम के मुताबिक उन्हें उसी दिन दिल्ली वापस लौट आना था. लेकिन ऑपरेशन अभी बाकी था, लिहाजा उन्होंने सना में ही रुकने का फैसला किया. रात को जनरल वीके सिंह को ऐसे एक पुराने होटल का पता लगा जो कभी ताज ग्रुप चलाया करता था, बाद में उसे स्थानीय नियंत्रण में दे दिया गया था. होटल के बाहर बाकायदा एयर डिफेंस गन्स लगे हुए थे और सुरक्षा बल रुक-रुक कर गोलियां दाग रहे थे. जनरल सिंह उसी होटल में रुके. वहां एक रसोइया भी भारतीय निकला जो उत्तराखंड के गढ़वाल का था. जनरल सिंह के पास अगले दिन पहनने के लिए कपड़े नहीं थे. रात में उन्होंने कपड़े धोए, उसे सुखाया और सुबह वही पहना. उस ऑपरेशन में अकेले सना से 4700 लोग निकाले गए. अदन से जहाज तक नावों से भी लोगों को निकाला गया. नौसेना के भी तीन पोत बुला लिए थे. दो क्रूज लाइनर भी मंगा लिए गए थे. सबसे मुश्किल तो तब हुई जब सना से भारतीयों को निकाल कर ला रहे आखिरी विमान को जिबूती में एटीसी ने उतरने से मना कर दिया. एटीसी ने पायलट को धमकियां दीं और वापस लौट जाने की हिदायत दी. विमान मुड़कर वापस लौटने भी लगा, लेकिन ऐन मौके पर जनरल सिंह ने सैन्य कुशलता का इस्तेमाल किया. उन्होंने कॉकपिट में जाकर सीधे एटीसी से बात की और कहा कि सारे विमानों की लैंडिंग फीस की रकम उनके पास है, अगर उन्हें उतरने की इजाजत नहीं मिली तो पैसा नहीं मिल पाएगा. इस पर एटीसी वाले ढीले पड़े, उतरने की इजाजत दी, लेकिन फिर कुछ ही मिनटों में पलट गए और विमान को वापस ले जाने को कहा. विमान में रेस्क्यु हुए भारतीय और विदेशी भरे हुए थे. आखिरकार जनरल ने एटीसी से कहा कि विमान में फ्यूल नहीं है, लिहाजा वे विमान को जबरन उतार रहे हैं. ऐसा कह कर विमान को सीधे लैंड करा दिया गया. जबकि विमान में फ्यूल पूरा था, लेकिन इस तरह लोगों को सुरक्षित लाया जा सका. इसका दुनिया के देशों पर असर यह हुआ कि 40 देशों ने भारत से रेस्क्यु में मदद मांगी. जिबूती में अमेरिकी राजदूत ने जनरल वीके सिंह से मुलाकात कर मदद मांगी. इस पर अमेरिकी नागरिकों को भी बाहर निकाला गया.

यमन में करीब साढ़े छह हजार भारतीय फंसे थे और युद्ध चल रहा था. ऐसा पहली बार हुआ कि विदेशी जमीन पर युद्ध छिड़ा हुआ हो और भारत सरकार का कोई मंत्री भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सबसे बड़ा ऑपरेशन चला रहा हो. यह मिशन एक साथ तीन देशों के तीन शहरों के बीच चला. लेकिन इस मिशन का कंट्रोेल जनरल के हाथ में था. फौज का लंबा अनुभव उनके इस काम को सरल बना रहा था. जनरल कभी यमन की राजधानी सना से राहत ऑपरेशन का निर्देशन कर रहे थे तो कभी पड़ोसी देश रिपब्लिक ऑफ जिबूती और अदन पहुंच जाते थे. कभी भारतीयों को लेकर उड़ने वाले पायलट से रूबरू हो रहे थे तो कभी घबराए भारतीयों को तसल्ली दे रहे थे. ऐसे विपरीत हालात में जब इस बड़े बचाव मिशन को अंजाम दिया जा रहा था, उस समय यमन की राजधानी सना पर सऊदी अरब समर्थित लड़ाकू  जहाज बम बरसा रहे थे. चौतरफा गोलाबारी हो रही थी. सना शहर एक तरह से तबाह हो चुका था और चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. इसी दरम्यान जनरल वीके सिंह भारतीयों को हवाई जहाज से जिबूति उतारना चाहते थे, जब भारी गोलीबारी की वजह से सना और जिबूती के एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने इजाजत नहीं दी थी.

उधर, अदन बदंरगाह के पास भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस मुंबई को पहुंचना था, लेकिन अदन बंदरगाह के पास भी भयंकर गोलीबारी चल रही थी. आईएनएस मुंबई बंदरगाह में दाखिल नहीं हो सका. जनरल वीके सिंह ने पहल करके 12 छोटी नौकाओं को किराए पर लिया. छोटी नौकाओं से भारतीयों को युद्धपोत तक ले जाया गया. छोटी नौकाओं के जरिए लोगों को आईएनएस मुंबई तक पहुंचाना बेहद मुश्किल ऑपरेशन था, लेकिन वहां भी जनरल वीके सिंह का फौजी अनुभव काम आया और सैकड़ों लोगों को युद्धपोत तक पहुंचाया जा सका. मुश्किल रेस्क्यु ऑपरेशन देख कर ही अमेरिका ने भी भारत से मदद मांगी थी. अमेरिका ने अपने नागरिकों को यमन से निकालने का अनुरोध किया था. भारत से मदद मांगने वाले देशों की लिस्ट बढ़ती चली गई. यमन की राजधानी में मौजूद अमेरिकी दूतावास से बाकायदा एक इमरजेंसी संदेश निकाला गया. भारत सरकार ने अमेरिकियों को यमन से निकाल कर जिबूती तक पहुंचाया. जबकि अमेरिका का समुद्री बेड़ा अदन की खाड़ी में तैनात था. भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस सुमित्रा से भी यमन में फंसे 348 भारतीयों को जिबूती लाया गया. जहां से वे विमान से भारत लौटे. आईएनएस सुमित्रा समुद्री डाकुओं के खिलाफ अभियान के लिए अदन में ही जूझ रहा था. एयर इंडिया के विमानों से भी 600 नागरिकों को बचाया गया. इसके अलावा रेस्क्यु ऑपरेशन में कुछ अन्य विदेशी एयरलाइंस के विमान भी किराए पर लिए गए थे.

कम मुश्किल नहीं थी सूडान की उड़ान

दक्षिण सूडान में जारी गृह युद्ध में फंसे सैकड़ों भारतीयों को सुरक्षित निकालने का काम कम मुश्किल का नहीं था. इस ऑपरेशन को पूरा करने के लिए भी विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा पहुंच कर डट गए थे. सूडान के रेस्क्यु अभियान को ‘ऑपरेशन संकट मोचन’ नाम दिया गया था. ‘ऑपरेशन संकट मोचन’ का मकसद था दक्षिण सूडान में फंसे सैकड़ों से अधिक भारतीयों को जुबा से सुरक्षित बाहर निकालना. इस अभियान में भारतीय वायुसेना के दो मालवाहक सी-17 विमान का इस्तेमाल किया गया. भारतीय दूतावास के पास सिर्फ तीन सौ भारतीयों ने ही वापसी के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया था. दक्षिण सूडान के कई हिस्सों में पूर्व विद्रोही और सरकारी सैनिकों के बीच भारी संघर्ष चल रहा था. दक्षिण सूडान में फंसे करीब छह सौ भारतीयों में से 450 के जूबा में और करीब 150 लोगों के राजधानी के बाहर फंसे होने का अनुमान था. युद्ध प्रभावित दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा से आखिरकार 156 लोगों को लेकर भारतीय वायु सेना का विमान सी-17 जब थिरुअनंतपुरम पहुंचा तो जिंदाबाद के नारों से आकाश गूंज गया. सुरक्षित आए लोगों में दो नेपाली नागरिक भी शामिल थे. 156 लोगों में नौ महिलाएं और तीन बच्चे भी थे. अन्य यात्रियों को लेकर वह विमान बाद में दिल्ली आया था. जनरल सिंह ने भारत सरकार को रिपोर्ट दी थी कि 156 लोग लाए गए. करीब 40 लोगों ने वाणिज्यिक उड़ानें शुरू होते ही अपना टिकट आरक्षित करा लिया था. तकरीबन तीन सौ लोगों ने अपने कारोबारी कारणों से भारत आने से मना कर दिया. रेस्क्यु में लगा भारतीय वायुसेना का विमान युगांडा होते हुए आया था. वहां जनरल सिंह ने युगांडा के प्रधानमंत्री रूहाकना रूगुन्दा से भी मुलाकात की थी. दक्षिणी सूडान में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के तहत भी ढाई हजार भारतीय तैनात हैं. सूडान से सुरक्षित निकल कर लोग जब विमान पर सवार हुए तो खुशी में उन्होंने भारत माता की जय के नारे लगाए. यह ऑपरेशन करीब 30 घंटे तक चला था. भारतीय वायु सेना के कार्गो विमान सी-17 में यात्रियों के बैठने के लिए अलग से सीटें लगाई गई थीं. विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने बचाए गए भारतीय परिवारों से भारतीय वायु सेना की खास तौर पर सराहना करने के लिए कहा था. दक्षिणी सूडान से सुरक्षिक निकल कर भारत पहुंची अंजलि अरुण ने कहा भी कि जुबा से निकाल कर लाना मुश्किल अभियान था. वे कहती हैं कि वहां लगातार हो रही गोलीबारी के बीच हमें निकाल कर लाया गया. जय कृष्णन कहते हैं कि वहां के हालात बहुत बुरे थे. फायरिंग के कारण कोई घरों से बाहर झांक भी नहीं रहा था. ऐसे में भारतीयों को बाहर निकाल कर लाया गया. व्यापारी अरुण कहते हैं कि उनका वहां पुराना बिजनेस है, सबकुछ छोड़ कर जा भी नहीं सकते. देखभाल के लिए 10 लोगों को छोड़ कर वे भारत आए हैं.

फंस गए भारतीय कामगार, काम आई भारत सरकार

सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों में नौकरी करने गए कामगारों को भी नियोक्ता कंपनियों की प्रताड़ना से उबारने का बीड़ा भी भारत सरकार ने ही उठाया. यह जिम्मेदारी भी जनरल वीके सिंह ने ही संभाली और सऊदी अरब सरकार से बात करके समस्या का हल निकाला. जनरल की बातों से प्रभावित सऊदी अरब के शाह ने भी सरकार को भारतीय कामगारों की समस्या का त्वरित हल ढूंढ़ने का निर्देश दिया है. सऊदी अरब की नियोक्ताओं कंपनियों ने 7,700 कामगारों को नौकरी से निकाल दिया था. भारतीय कामगारों को विभिन्न शिविरों में रखा गया था. पहले तो कंपनियां उनका खाना दे रही थीं, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पहल और जनरल वीके सिंह की सऊदी अरब के श्रम और सामाजिक विकास मंत्री मुफरेज अल हकबानी से बातचीत के बाद इसका हल निकला. सऊदी सरकार ने कामगारों के खाने की व्यवस्था की.

कच्चे तेल की कीमतें घटने और सऊदी अरब की सरकार द्वारा खर्चों में कटौती करने के कारण खाड़ी देश की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो गई है, जिससे हजारों भारतीयों की नौकरी चली गई. सऊदी गए विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने वहां के श्रम मंत्री से आग्रह किया कि नियोक्ता कंपनियों की एनओसी के बगैर बेरोजगार भारतीय कामगारों को निकासी (एक्जिट) वीजा उपलब्ध कराया जाए और कर्मचारियों के बकाये का भुगतान हो. सऊदी की प्रमुख नियोक्ता कंपनी मेसर्स सऊदी ओगर से जुड़े 4,072 भारतीय कामगार रियाद में नौ शिविरों में रह रहे थे. दूसरी कंपनी मेसर्स साद ग्रुप से जुड़े 1,457 कर्मचारियों को दम्माम में दो शिविरों में रखा गया था. मेसर्स शिफा सनाया के पांच कामगार रियाद में एक शिविर में थे जबकि मैसर्स तैया कॉन्ट्रैक्टिंग कंपनी के 13 भारतीय कर्मचारी अन्य एक शिविर में थे. रियाद के चौदह शिविरों में रह रहे कुल 5,547 भारतीय कामगारों को भारतीय दूतावास द्वारा सहायता उपलब्ध कराई गई. जेद्दाह के छह शिविरों में मेसर्स सऊदी ओगर से जुड़े 2,153 भारतीय कामगार हैं, जिन्हें भारतीय वाणिज्य दूतावास की तरफ से भोजन उपलब्ध कराया गया. जनरल वीके सिंह ने कहा कि सऊदी का कानून अलग है, वहां जाकर पहले यह अध्ययन करना पड़ा कि आखिर कठिनाई क्या है. रेस्क्यु में मुश्किल यह भी आई कि वहां की कुछ कंपनियां विरोध में बदमाशियों पर उतर आईं. बिन लादेन कंपनी ने तो वहां तोड़फोड़ भी शुरू करा दी. साद कंपनी के लोगों ने भी तोड़फोड़ की, इससे क्या हुआ कि वहां फंसे चार पांच सौ लोगों को अलग कैंप्स में शिफ्ट कर दिया. जनरल ने जेद्दाह से रियाद जाकर वहां के श्रम मंत्री से मुलाकात की. भारतीय सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष होने का भी फायदा उन्हें मिला. सऊदी अरब के शाह ने खास तौर पर ध्यान दिया और वहां से आदेश आ गया कि समस्या का फौरन हल निकालो. एकामा (आदेश-पत्र) बदले जाने की प्रक्रिया में देर हो रही थी. दूतावास के जरिए जो भारत वापस आना चाहते थे, उनका लंबित भुगतान कराए जाने की मांग भी अटकी थी. सऊदी सरकार से बात करने के बाद यह तय हुआ कि जो लोग लौट रहे हैं, उन्हें दो महीने की सैलरी दी जाए और बकाए के भुगतान की प्रक्रिया चालू हो. उन दावों को निर्धारित समय सीमा में सुलटाया जाए. उसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. जिन भारतीय कामगारों की नौकरियां चली गईं और उनकी हालत खस्ता थी, उनसे जनरल वीके सिंह ने मुलाकात की और समस्या का हल कराया. भारतीय कामगारों को एक्जिट वीजा दिए जाने के निर्देश दे दिए गए हैं. वे क्रमशः भारत लौट रहे हैं. लौटने वाले कर्मचारियों के बकाए के भुगतान के लिए भी भारत सरकार पहल करेगी.

ऐसे थे मुंबई वाले और वैसे थे केरल वाले

वह मुंबई का रहने वाला मुस्लिम युवक था जिसने सुरक्षित बाहर निकलने के बाद भारतीय विमान पर सवार होते ही भारत माता की जय का नारा लगाना शुरू किया था. उसके बाद तो विमान पर सवार सारे लोगों ने नारे लगाए. वह युवक मुंबई का रहने वाला है. जब वह विमान पर सवार हुआ, उसकी आंखों से आंसू झर रहे थे. जनरल ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा. उसने कहा, हम धन कमाने इन देशों में आते हैं. अपने देश की तरफ ध्यान भी नहीं देते. कोई टैक्स नहीं देते. लेकिन आज आफत में फंसने पर हमें भारत सरकार ने ही बचाया. हम जीवन भर इस उपकार को नहीं भूलेंगे. ऐसा कह कर उसने भारत माता की जय का नारा लगाना शुरू कर दिया. और दूसरी तरफ केरल के सज्जन थे बेबी जॉन. रेस्क्यु ऑपरेशन की प्रक्रियाओं में बाधा डालते और खुद को केरल के मुख्यमंत्री का आदमी बताते. क्रूज लाइनर से जाने के बजाय हवाई जहाज से वापस लौटने की जिद करते. आखिरकार जनरल वीके सिंह ने केरल के मुख्यमंत्री से सम्पर्क साधा. मुख्यमंत्री ने बेबी जॉन को खारिज कर दिया. इसके बाद जनरल को बेबी जॉन के साथ सैन्य अधिकारी की तरह ही सख्ती से पेश आना पड़ा. उसके बाद जॉन सही हो गए और जहाज से ही भारत लौटे.

भारतीय कामगारों के लिएगहरी खाई बनते खाड़ी देश

सऊदी अरब में सैकड़ों भारतीय कामगार दाने-दाने को मोहताज हो गए. आर्थिक मंदी के कारण कई कंपनियों ने हजारों कामगारों को नौकरी से बाहर निकाल दिया. महीनों से वेतन बंद होने के कारण उनकी भुखमरी जैसी स्थिति पैदा हो गई. जेद्दा में इस तरह के 2,450 श्रमिकों के भारतीय वाणिज्य दूतावास की ओर से भोजन बांटे जाने के बाद यह खुलासा हुआ कि सऊदी की ओगर कंपनी इन कामगारों को पिछले कई महीनों से वेतन नहीं दे रही थी. इस एक कंपनी के 50 हजार कर्मचारियों में से करीब चार हजार कर्मचारी भारतीय हैं. उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब में करीब 30 लाख भारतीय प्रवासी हैं, जबकि करीब आठ लाख भारतीय कुवैत में हैं, जिनमें अधिकांश कारखानों में काम करने वाले कामगार हैं. भारतीय दूतावासों को भारतीय कामगारों की तरफ से जो शिकायतें मिल रही हैं, वे आश्‍चर्यजनक हैं. पिछले तीन साल में खाड़ी के नौ देशों के बारे में 55 हजार 119 कामगारों की शिकायत मिली हैं. इनमें से 87 फीसदी शिकायतें छह खाड़ी देशों से सम्बद्ध हैं. इनमें आधे 13 हजार 624 कतर और 11 हजार 195 कामगार सऊदी अरब के हैं. मलेशिया से 6 हजार 346 कामगारों की शिकायतें मिली हैं. हैरत का आंकड़ा यह भी है कि सऊदी अरब की जेलों में 1697 भारतीय कामगार बंद हैं. इसी तरह संयुक्त अरब अमीरात की जेलों में 1143 भारतीय कामगार में हैं. यह आंकड़ा किसी एनजीओ या किसी निजी संस्था का नहीं है. यह तथ्य विदेश मंत्रालय द्वारा 20 जुलाई 2016 को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था.  अमरिका में रह रहे भारतीयों की तुलना में सऊदी अरब या कुवैत में रहने वाले भारतीयों की खराब काम करने की स्थिति के कारण उनके मौत का जोखिम 10 गुना अधिक है. इस बारे में इंडिया-स्पेंड की रिपोर्ट (अगस्त 2015) बताती है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में प्रति एक लाख भारतीय कामगारों में से 65 से 78 कामगार विभिन्न कारणों से मर जाते हैं. छह खाड़ी देशों में औसतन हर वर्ष 69 भारतीयों की मृत्यु हो जाती है. दुनिया के बाकी हिस्सों में यह आंकड़ा 26.5 है, यानि खाड़ी देशों से करीब 60 फीसदी कम.

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