सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जहां अब पटाखों को जलाने और बेचने की अनुमति मिल गई हैं, वहीं अब ग्रीन पटाखें भी जलद ही चलन में आने वाले है. बता दें कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अब ग्रीन पटाखों को लाने के लिए उनका फार्मूला तो तैयार हो चुका है पर ये पूरी तरह से मार्केट में अगली दिवाली पर ही आ पाएंगे क्योंकि अभी इस तरह के फॉर्मूले को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति और पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी आर्गनाइजेशन (पेसो) के प्रमाणन का इंतजार है. इसके बाद ही पटाखा निर्माता इस तरह के पटाखे बनाएंगे और जनता के बीच ला पाएंगे.
सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश पर पटाखा प्रेमियों के लिए ग्रीन पटाखों एवं ई-क्रैकर्स पर पिछले कुछ समय से लगातार काम शुरू करने की बात चल रही है. केंद्रीय सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय की निगरानी में यह सारा कार्य काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) और नेशनल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीटयूट (नीरी) के वैज्ञानिक संयुक्त रूप से कर रहे हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो ग्रीन पटाखे और ई क्रैकर्स आवाज और रोशनी के मामले में मौजूदा पटाखों के जैसे ही होंगे, लेकिन इनसे धुआं नहीं निकलेगा और ये शोर भी कम करेंगे.
ऐसे होंगे ग्रीन पटाखें
ग्रीन पटाखों का जो फॉर्मूला तैयार किया गया है, उसमें ऐसे रसायनों का इस्तेमाल होगा जो जलने पर पानी की बूंदें भी छोड़ेंगे. पानी की यह बूंदें एक ओर प्रदूषण तत्वों को 30 से 32 फीसद तक कम कर देंगी. पटाखों का जो धुआं वातावरण में प्रदूषण की चादर को मोटा करता है, उसे भी ये पटाखें काफी हद तक नीचे दबा देंगे.
ऐसे होंगे ई-क्रैकर्स
वैसे अभी मार्केट में एक से दो कंपनियों के ही ई-क्रैकर्स उपलब्ध हैं. काफी महंगे होने की वजह से यह आम जनता से दूर हैं. यह इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की तरह चलते हैं. यह क्रैकिंग और बस्टिंग साउंड के साथ रोशनी भी करते हैं, लेकिन इनमें धुआं नहीं होता. इसके अलावा पटाखों के हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल भी नहीं होता. ई-क्रेकर्स चार्जेबल बेट्री से भी काम करेंगे और रिमोट से इन्हें चलाया जा सकेगा. सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीटयूट (सीईईआरआइ) के वैज्ञानिक सस्ते ई-क्रैकर्स की अवधारणा पर काम कर रहे हैं.