यह मोदी की शिक्षानीति नही है । वरना इसकी घोषणा जूनियर मंत्रियों द्वारा नही की जाती । कोई रात चुनी जाती । प्रचार तंत्र लगाए जाते और ताली बजके बोल दिया जाता  ‘ वो वाली ‘ शिक्षा नीति ? बंद ! बहरहाल मोदी सरकार अभी भी  भ्रमित है दो बिंदुओं पर।एक – क्या यह केवल खयाली पुलाव भर है या जमीन पर भी उतारा जा सकेगा ? दो – संगठन के उसूल का उलंघन तो नही होगा ? विशेष कर उनकी भाषा नीति(?)  को लेकर । मोदी जिस उसूल के प्रचारक रहे , वह 92 साल से ‘ हिंदी , हिन्दू , हिंदुस्थान ‘ चीखता रहा है  , पर सरकार बनते ही ‘ हिंदी ‘ से विरक्ति हो गई और बेहतर मेकअप व जोरदार रुआबी भाषा अंग्रेजी कंठ से झरने लगी । इस सरकार का एक भी काम देसी भाषा मे नही प्रचारित हुए । मेक इंडिया  (?) , इंडिया टीम (?)  टुमारो इंडिया (?)  वगैरह वगैरह ऐसे ऐसे निरर्थक और निर्गुण फेंके गए जिसका अब तक भाष्य ही नही हो पाया है । बहरहाल आइए इस शिक्षा नीति में घुसे गए एक क्रांतिकारी शब्द पर । इसका नाम भी अंग्रेजी में है -‘  ‘इंटर्नशिप ‘ (?) .

क्या है इंटर्नशिप ?

लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति और भाषा नीति जो हिंदुस्तान में लादी गई वह ‘ कलम घिस्सू ‘ खेल था , जो हुनर और जांगर को तबाह कर शिक्षा को बाबू गिरी तक महदूद रखे । बापू की शिक्षा नीति इसके बरक्स थी , विकल्प के साथ थी जिसे दुनिया बुनियादी तालीम के नाम से जानती है । इस बुनियादी तालीम में अक्षर ज्ञान के साथ मस्तिष्क और हाथ के हुनर का संबंध जुड़ा है । यानी विद्यार्थी ,विद्यार्थी के साथ प्रशिक्षार्थी भी बने और उत्पादन में हाथ बटा कर ‘ स्वावलंबी ‘ बने । चूंकि आपको बापू पसंद नही हैं , उनकी नीतियों से आपको गुरेज रहा है लेकिन जब सरकार बन गए तो निरर्थक विरोध का अर्थ समझ मे आने लगा और घूम टहल कर आपको बापू के ड्योढ़ी पर जाना ही पड़ेगा ।

जनाबेआली ! इंटर्नशिप तब तक निरर्थक बना रहेगा जब तक कि आप बापू , कांग्रेस , समाजवादी सोच के औद्योगिक नीति को मन से नही स्वीकार कर लेते ।

इंटर्नशिप के विषय क्या होंगे सरकार ?

आपका कहना है बच्चे 6 से 8 होते हुए आगे जब बढ़ेंगे उन्हें इंटर्नशिप के तहत क्षेत्रीय उत्पादक इकाइयों से जोड़ा जाएगा । कमेटी के सदस्यों की तुगलकी सोच पर तरस आता है । मुल्क का भौतिक स्थापन देखिये । देश मे कुल 545576  गांव है और 2500 शहर । भारत के अतीत का वह हिस्सा बहुत चमकदार और उपयोगी रहा जब पूंजी और उत्पादन दोनो इतने ज्यादा विकेन्द्रित रहे कि समूचा समाज सम्पन्न रहा । अंग्रेजो ने इस व्यवस्था को तहस नहस कर दिया था और उत्पादन की जमीन , पूंजी और   श्रम तो भारत का और पूंजी का मरकज ब्रिटेन ।  इसे ही केंद्रीकरण कहते हैं जिसके पक्षधर आप हैं । आपकी सोच और करतब दोनो ही बस दो एक कारपोरेट घरानों को मजबूत करने में लगी है ।

53 में आजाद हिंदुस्तान की पहली औद्योगिक नीति बनी । पंडित नेहरू की नीति और और नियति दोनो साफ रही और तत्कालीन भारत के मूल ढांचे को खड़ा करने के लिए बड़े उद्योंगो की जरूरत थी , उन्हें मुख्य धारा में जोड़ा गया । साथ ही साथ लघु और कुटीर उद्योगों को भी बढ़ाया गया । कालांतर में फिसलन शुरू हो गई और आहिस्ता आहिस्ता लघु और कुटीर उद्योग संकट में आने लगे ।  गांव के कुटीर उद्योग खत्म हो गए । पुश्तैनी पेशे से जुड़े रोजगार खत्म हुए  चुनांचे गांव पलायन कर गए शहर की ओर ।

जनाबे आली ! गांव में इंटर्नशिप के लिए बच्चे कहाँ जांयगे ? कोई खाका है ?

जारी…..

चंचल भू

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