इसे एक संयोग माना जा सकता है, जिस दिन राजद के विवादित पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट द्वारा दी गयी जमानत रद्द कर दी. उसी दिन राजद के निलंबित विधायक राजबल्लभ यादव को पटना हाई कोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया. यह 30 सितंबर की बात है. राजबल्लभ पर बीते फरवरी में एक नाबालिग से रेप का मामला दर्ज हुआ था और वह जेल में थे. इसी घटना के बाद राजद ने उन्हें दल से निलंबित कर दिया था. 30 सितंबर को राजबल्लभ की जमानत बड़ी ख़बर नहीं बन पाई थी, क्योंकि उस दिन शहाबुद्दीन का मामला सुर्खियां बटोर रहा था. लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि राजद का पिछले एक महीने से जारी सरदर्द ख़त्म हो गया था. भले ही सर्वोच्च अदालत द्वारा शहाबुद्दीन को तत्काल जेल में डालने के हुक्म के बाद वह मामला जरा ठंडा पड़ता दिखा, पर उसी दिन राजबल्लभ प्रकरण राष्ट्रीय जनता दल के लिए एक नई चुनौती के रूप में सामने आ चुका था. कमोबेश राजबल्लभ प्रकरण राजद के लिए उतनी ही जटिल समस्या के रूप में सामने आया था. हालांकि इसकी तीव्रता शहाबुद्दीन प्रकरण से काफी कम थी. शहाबुद्दीन का विवाद राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरने वाला था, जबकि राजबल्लभ विवाद उतना हाईप्रोफाइल नहीं था. वरना इस मामले में राजद को विपक्ष के आक्रमण और मीडिया के सवालों का सामना तो था ही, साथ ही सत्ता के सहयोगी दल वाली सरकार के मुखिया नीतीश कुमार का व्यवहार भी ठीक वैसा ही था जैसा शहाबुद्दीन मामले था. पटना हाईकोर्ट द्वारा शहाबुद्दीन को मिली जमानत को बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से चुनौती दी थी, उसी तरह राजबल्लभ मामले में भी बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, ताकि वह उनकी जमानत रद्द करवा सके. धार्मिक कर्मकांड में मजबूत आस्था रखने वाले लालू प्रसाद को राजबल्लभ प्रकरण, किसी चलचित्र के फ्लैशबैक की तरह लग रहा होगा, क्योंकि पिछले एक महीने में शहाबुद्दीन प्रकरण में राष्ट्रीय जनता दल जिन तकनीकी व राजनीतिक सरदर्द से जूझ रहा था, उन्हीं चुनौतियों का सामना उसे राजबल्लभ मामले में फेस करना पड़ा. बल्कि यूं कहें कि राजबल्लभ प्रकरण में लालू को अपने बचाव के लिए कुछ ज्यादा ही मशक्कत तब करनी पड़ी, जब दशहरा के चंद दिन पहले राजबल्लभ, अचानक लालू-राबड़ी के सरकारी आवास से बाहर आते दिखे. जैसे ही यह तस्वीर मीडिया की सुर्खी बनी और बलात्कार के आरोपी राजबल्लभ की लालू से मुलाकात पर सवाल उठाये जाने लगे, तो मजबूरन लालू प्रसाद को मीडिया के सामने आ कर सफाई देनी पड़ी. उन्होंने कहा कि अगर कोई उनके घर आता है, तो क्या मैं उसे भगा दूंगा. भले ही लालू प्रसाद ने राजबल्लभ से अपनी मुलाकात के बारे में सफाई देकर अपना पक्ष रख दिया हो, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों को उनकी यह बात पच नहीं रही. लोग जानते हैं कि लालू प्रसाद एक अण्णे मार्ग की जिस कोठी में रहते हैं, वहां एक परिंदा भी तब ही पर मार सकता है, जब उनकी इज़ाजत हो. बताया जाता है कि लालू प्रसाद से राजबल्लभ की मुलाकात दो घंटे तक चली. इस दौरान उनसे उनकी क्या बात हुई यह किसी को नहीं मालूम, लेकिन राजबल्लभ ने मीडिया से इतना कहा कि वह लालू जी को दशहरा की बधाई देने गये थे.
राजबल्लभ पर नाबालिग लड़की के बलात्कार का आरोप फरवरी के पहले सप्ताह में लगाया था. उसके बाद जब पुलिस ने उन पर एफआईआर किया, तो वह हफ्तों भागते रहे. इस बीच उन्होंने अदालत से अंतरिम जमानत लेने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह विफल रहे. उनका पुलिस की पकड़ से दूर रहना विपक्षी भाजपा के लिए लगातार हमला का कारण बनता रहा. इस बीच राजद अपनी छवि बचाने के लिए अपने विधायक राजबल्लभ को पार्टी से निलंबित करने की घोषणा कर के अपना बोझ कम करने की कोशिश की. उधर राजबल्लभ को अदालत में सरेंडर करना पड़ा और जेल जाना पड़ा. लेकिन हाईकोर्ट से जमानत मिलते ही लालू प्रसाद से उनके घर जा कर मिलने की घटना को विपक्षी दल ने इस रूप में लिया कि राजद ने उन्हें भले ही निलंबित कर दिया हो, पर लालू प्रसाद को राजबल्लभ मोह पहली की तरह बरकरार है. इस मामले में राजबल्लभ यादव के लिए चिंता का कारण सिर्फ विपक्षी भाजपा के हमलावर रुख के कारण ही नहीं है. उनकी परेशानी का इससे बड़ा कारण खुद नीतीश सरकार का वह कदम है, जिसके तहत उसने राजबल्लभ की जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई करते हुए राजबल्लभ को नोटिस दे कर 17 अक्टूबर तक उन्हें अपना पक्ष रखने को कहा है. लेकिन इतना तो तय माना जा रहा है कि शहाबुद्दीन और राजबल्लभ प्रकरण के बाद महा-गठबंधन सरकार के दो महत्वपूर्ण धड़ों राजद और जद यू के बीच का मनमुटाव एक गहरा हुआ है. आमतौर पर किसी मामले में हाईकोर्ट अगर किसी अभियुक्त को जमानत देता है, तो सरकार उस मामले में नहीं पड़ती. लेकिन राजद से जुड़े दो नेताओं-शहाबुद्दीन और राजबल्लभ यादव के मामले में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने जिस तरह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, उससे यह ज़रूर ज़ाहिर होता है कि दोनों दलों के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है. दरअसल अनेक मुद्दों पर गठबंधन सरकार के बीच आपसी असहमति समय-समय पर देखने को मिलती रही है. शराबबंदी के मामले पर जिस तरह से नीतीश कुमार ने अपना रुख कड़ा कर रखा है, उससे पहले से ही राजद चिंतित है. इसी क्रम में शहाबुद्दीन और राजबल्लभ मामले में नीतीश कुमार के रवैये ने राजद के लिए और ही परेशानियां बढ़ाई हैं.
राजद और जद यू के बीच का यह मनमुटाव दरअसल एक दूसरे दल को अपनी सीमा याद दिलते रहने की रणनीति का हिस्सा है. राजद सरकार में सबसे बड़ा दल है, जबकि नीतीश कुमार एक छोटे दल के नेता होने के बावजूद, चुनाव पूर्व शर्तों के तहत मुख्यमंत्री बने हैं. इस प्रकार समय-समय पर राजद उन्हें जहां यह आभास कराता रहता है कि वह गठबंधन सरकार का बड़ा घटक दल है, वहीं नीतीश राजद को यह अभास दिलाने से नहीं चूकते कि वह मुख्यमंत्री हैं. हालांकि दोनों दलों को पता है कि उनके बीच की कड़वाहट उनके संबंधों की बलि लेने की हद तक नहीं जा सकता,क्योंकि दोनों दलों को इस हक़ीक़त का बखूबी पता है कि गैर भाजपा और गैर संघवाद को मज़बूती देने के लिए दोनों का साथ बना रहना ज़रूरी है.
राजबल्लभ होने का मतलब
नवादा के विधायक राजबल्लभ यादव रेप जैसे गंभीर आरोपों में घिरे हैं. जेल और बेल के चक्कर में बुरी तरह फंसे हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके परिवार पर ऐसा आरोप पहली बार लगा है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार 1998 में राजबल्लभ के भाई विनोद यादव धनबाद की एक लड़की से बलात्कार के आरोप में घिरे थे. यह घटना गेलैक्सी होटल में घटी थी, तब काफी कोहराम मचा था. लेकिन कुछ हफ्तों की चुप्पी के बाद राजबल्लभ ने रेप पीड़िता का एक लिखित स्टेटमेंट जारी किया था, जिसमें लड़की अपने आरोप से मुकर गई थी. उस समय राजबल्लभ 1995 के विधानसभा चुनाव में विधायक बन चुके थे. बाद में वह तत्कालीन राबड़ी देवी मंत्रीमंडल में मंत्री भी बने थे. नवादा जिला, जहां से वह असेम्बली में प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, पिछले कई दशकों से हिंसा की चपेट में रहा है. कई नरसंहार भी यहां हुए हैं. क्षेत्र में भूमिहारों और यादवों के वर्चस्व की लड़ाई सन दो हज़ार तक काफी सुर्खियों में रही है.
राजबल्लभ के राजनीतिक और व्यापारिक रसूख को नवादा में चुनौती देना कई नेताओं के लिए कठिन रहा है. नवादा और उसके इर्द-गिर्द की पहाड़ियों पर उनकी मिलकियत को चुनौति देने की कोशिश वह अक्सर नाकाम करते रहे हैं. कुछ साल पहले जब पहाड़ों के खनन के लिए नीलामी हुई, तो उन्हें सूरजभान सिंह जैसे बाहुबली भी नीलामी में पछाड़ने में नाकाम रहे थे. ऐसा नहीं है कि एक मज़बूत व्यापारी होने के कारण ही राजबल्लभ राजद के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं. राजबल्लभ का परिवार नवादा का सबसे सशक्त राजनीतिक परिवार के रूप में जाना जाता है. राजबल्लभ के पिता जेहल यादव का राजनीतिक व सामाजिक रसूख काफी पहले से ही मज़बूत था, जिसका लाभ राजबल्लभ को मिला. राजबल्लभ के बड़े भाई नवादा की राजनीति में पहले से सरगर्म रहे और विधायक बने थे. लेकिन उनके निधन के बाद राजबल्लभ ने वहां अपना सिक्का जमाया. राजद को इस बात का एहसास रहा है कि नवादा की राजनीति में राजबल्लभ के बिना उसका दबदबा बनाये रखना आसान नहीं होगा.