सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द करने के बाद सरकार ने सारे कोल ब्लॉक के पुन: आवंटन की प्रक्रिया फिर से शुरू कर दी है. इसके लिए बाक़ायदा सरकार ने नए नियम भी बना दिए है. कोल ऑर्डिनेंस आ चुका है. कोल ब्लॉक आवंटन के लिए आवेदन मंगवाने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है और अगले दो-तीन महीने में आवंटन का काम भी हो जाएगा. कोल ब्लॉक की नीलामी के लिए 31 जनवरी तक आवेदन आमंत्रित किए गए हैं और मार्च तक नीलामी की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. लेकिन, इस बीच खबर ये है की छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र की करीब 20 ग्राम सभाओं ने एक प्रस्ताव पारित कर यह साफ़ कर दिया है कि वे अपने क्षेत्र में होने वाले कोल ब्लॉक आवंटन और कोयला खनन का विरोध करेंगी. ग़ौरतलब है कि पिछली बार जब कोयला के ब्लॉक का आवंटन हुआ था तब 218 कोल ब्लॉक मे 30 फीसदी सिर्फ छत्तीसगढ़ में आवंटित हुए थे. छत्तीसगढ़ के सरगुजा और कोरबा में फैले हसदेव अरण्य में करीब 30 कोल ब्लॉक है. इसमें से 16 कोल ब्लॉक पहले जिन कंपनियों को आवंटित हुए थे, उन्हें आजतक पर्यावरण मंजूरी नहीं मिली, और इस वजह से वहां खनन नहीं शुरू हो सका था. अलबत्ता, तीन कोल ब्लॉक ऐसे थे, जहां अदानी की कंपनी ज्वायंट वेंचर के तहत खनन का काम कर रही थी. इन तीन कोल ब्लॉक को पर्यावारणीय मंजूरी भी मिल गई थी. हालांकि, बाद में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस मंजूरी को रद्द कर दिया था और अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यहां भी खनन कार्य रुका हुआ है.
बहरहाल, नई प्रक्रिया के तहत अब फिर से कोल ब्लॉक आवंटन का काम शुरू होने जा रहा है लेकिन हसदेव अरण्य क्षेत्र के गांववालों ने अभी से ही अपना विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया है. इस क्षेत्र में आने वाली करीब बीस ग्राम पंचायतों ने ग्राम सभा की बैठक कर के एक प्रस्ताव पारित किया है. इस प्रस्ताव में गांव वालों ने स्पष्ट रूप से इस क्षेत्र में खनन कार्य का विरोध किया है. यहां के निवासियों का कहना है कि चूंकि हमारे क्षेत्र में पेसा एक्ट(पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया एक्ट. यह आदिवासी इलाकों को विशेषाधिकार देता है) लागू है, इसलिए किसी भी कोल ब्लॉक के लिए जमीन अधिग्रहण करने से पहले सरकार के लिए यहां की ग्राम सभाओं की अनुमति लेना आवश्यक है. हसदेव अरण्य क्षेत्र में भी पेसा कानून लागू है. ग्राम सभा के इस प्रस्ताव के मुताबिक़ कोल ब्लॉक के आवंटन से पर्यावरण प्रभावित होगा, आदिवासी विस्थापित होंगे. यह प्रस्ताव कहता है कि किसी भी खनन परियोजना के आवंटन या नीलामी से पहले ग्रामसभा से पूर्व सहमति प्राप्त करनी जरूरी है. यहां के लोगों का मानना है कि जैव विविधता से समृद्ध इस वन्यक्षेत्र में किसी भी प्रकार की खनन नहीं होना चाहिए. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला और प्रियांशु गुप्ता का मानना है कि छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य का इलाका महत्वपूर्ण जैव विविधता वाला क्षेत्र है. प्रियांशु गुप्ता के मुताबिक़ देश के दूसरे इलाक़ों में 100 साल तक कोयले की आपूर्ति लायक खदान हैं. आलोक शुक्ला कहते है कि प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर छत्तीसगढ़ के इस नो गो घोषित हो चुके क्षेत्र में कोयला खनन सही नहीं है.
कोल ऑर्डिनेंस आ चुका है. कोल ब्लॉक आवंटन के लिए आवेदन मंगवाने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है और अगले दो-तीन महीने में आवंटन का काम भी हो जाएगा. कोल ब्लॉक की नीलामी के लिए 31 जनवरी तक आवेदन आमंत्रित किए गए हैं और अगले साल 23 मार्च तक नीलामी की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. लेकिन, इस बीच खबर है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र की करीब 20 ग्राम सभाओं ने एक प्रस्ताव पारित कर यह साफ़ कर दिया है कि वे अपने क्षेत्र में होने वाले कोल ब्लॉक आवंटन और कोयला खनन का विरोध करेंगे.
इसके अलावा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री, वन एवं पर्यावरण मंत्री, कोयला मंत्री और आदिवासी मामलों के मंत्री से भी मिलने वाली है. बाक़ायदा, इनकी तरफ से छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सदस्य प्रियांशु गुप्ता ने प्रधानमंत्री कार्यालय और उपरोक्त सभी मंत्रालय से मिलने के लिए समय भी मांगा है. चौथी दुनिया से बात करते हुए प्रियांशु गुप्ता ने बताया कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से उन्हें मुलाक़ात का समय भी मिल गया है. इस मुलाकात में हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य भी शामिल होंगे. इस समिति में हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्रामीण शामिल हैं. दरअसल, यहां के लोगों की मुख्य चिंता यह है कि अब कोल ब्लाक के आवंटन और इसके लिए जरूरी जमीन अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी, नए अध्यादेश (कोल माइनिंग/भूमि अधिग्रहण क़ानून में नए अध्यादेश के जरिए किए गए संशोधन) के आने के बाद से नगण्य हो गयी है. हसदेव अरण्य के आदिवासी, जो मूलरूप से गोंड आदिवासी है, यहां पड़ने वाले प्रभाव से चिंतित है. उन्हें इस बात की भी चिंता है की अगर एक बार सरकार ने नीलामी करा ली, कंपनियों से पैसे ले लिए तो उसके बाद उनकी ग्राम सभा की सहमति, पर्यावरण मंजूरी (एनवायरमेंटल क्लियरेंस) लेने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
बहरहाल, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन इस नए अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती देने पर भी विचार कर रहा है. प्रियांशु गुप्ता बताते हैं कि हम इस अध्यादेश को कोर्ट में इस आधार पर चुनौती देने पर विचार कर रहे हैं कि क्या इससे पेसा एक्ट का महत्व कम नहीं होता. इससे पहले हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने हसदेव अरण्य सुरक्षा यात्रा भी निकाली थी. हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की यह यात्रा कोरबा, सरगुजा जिले के ग्रामीण इलाकों में चलाई गयी ताकि लोगों को पेसा एक्ट और वनाधिकार कानून 2006 के बारे में जागरूक किया जा सके. यात्रा का असर ये हुआ है कि गांववालों ने एक स्वर में अपने जंगल, जमीन किसी भी परियोजना के लिए नहीं देने की बात कही है. लोगों को लगता है कि कोल ब्लॉक के खनन से उनकी आजीविका छिन जाएगी, विस्थापन होगा और उनकी आदिवासी संस्कृति भी खतरे में पड़ जाएगी. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है की क्या इन लोगों के विरोध का कोई मायना है. क्योंकि, नए कोल ऑर्डिनेंस में ऐसे प्रावधान है जिससे इन ग्रामीनों के विरोध के कोई मायने नहीं रहेंगे. इस अध्यादेश में कहा गया है कि कोयला खनन का विरोध करने पर प्रति दिन एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. अगर इस तरह का काम दोबारा होता है तो प्रति दिन दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.
हसदेव अरण्य संरक्षित क्षेत्र क्यों घोषित नहीं होता
हसदेव अरण्य वन क्षेत्र उत्तरी छत्तीसगढ़ कोरबा और सरगुजा जिले में फैला हुआ है. यहां मध्य भारत के कुछ बड़े वन क्षेत्रों में से एक है. जैवविविधता से भरे इस क्षेत्र में कई दुर्लभ ज़डी-बूटियां और वन्यजीव आदि पाए जाते हैं. इस समृद्ध पर्यावरणीय क्षेत्र में, कोयला मंत्रालय के मुताबिक, 1878 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक बिलियन मीट्रिक टन कोयला का भंडार है. इसमें से 1502 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वन क्षेत्र है. 2010 में वन एवं कोयला मंत्रालय की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट के आधार पर हसदेव अरण्य क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित कर दिया गया. इसका अर्थ यह हुआ कि इस क्षेत्र में कोई कंपनी जाकर खनन का काम नहीं कर सकती. इससे पहले भी राज्य सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र को हाथी अभयारण्य घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित कर के केंद्र सरकार को भेजा था. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस पर अपनी मुहर भी लगा दी थी. लेकिन राज्य सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. ये कहा जाता है कि सीआईआई ने छत्तीसग़ढ में कोयले की प्रचुरता को देखते हुए इस फैसले पर आपत्ति जताई थी. दरअसल, एक बार अगर कोई वन्य क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र या राष्ट्रीय अभ्यारण्य घोषित हो जाता है तो उस इलाके में खनन कार्य नहीं किया जा सकता है.
प्रस्ताव पारित करने वाली ग्राम सभाओं के नाम
हंसदेव अरण्य क्षेत्र की मोरगा, मदनपुर, खिलती, धज्जाक, उचलेंगा, घाटवल्ला, साली, हरिहरपुर, फतेहपुर, सेंदू, सुष्कम, पटोगिया, पुटा, पतुरिया डांड, अरसिया और करहियापारा ग्रामसभा. मांड रायगढ़ की चार ग्राम सभा नरकारोह, करौंधा, दुलियामोड़ और चैनपुर.
कितना कोयला है छत्तीसगढ़ में
छत्तीसगढ़ राज्य में भारत का कुल 16 फीसदी कोयला है. यहां के रायग़ढा, सरगुजा, कोरिया और कोरबा जिले के 12 कोलफील्ड में करीब 44483 मिलियन टन कोयले का भण्डार है. अकेले यह राज्य राष्ट्रीय उत्पादन का 18 फीसदी हिस्सा कोयला उत्पादित करता है. ज्यादातर कोयला पावर ग्रेड का है यानी इनका ज्यादातर इस्तेमाल थर्मल पावर बनाने के लिए किया जाता है.