पिछले दिनों पठानकोट हमला खबरों में था. इसमें परेशान करने वाली बात यह है कि भारतीय सुरक्षाबलों की तऱफ से भी कुछ चूक हुई है. भारत-पाक वार्ता स्थगित हो गई है और अब दोनों पक्ष नई तारीख का ऐलान करेंगे. ऐसा करना सही नहीं है. आप यह नीति अपनाइए कि जब तक सीमा पार से होने वाली आतंकी गतिविधियां पूरी तरह बंद नहीं होंगी, तब तक वार्ता नहीं होगी.
यूपीए सरकार के दिनों में यही नीति अपनाई जा रही थी. जब आपने लाहौर जाने का फैसला किया, बर्फ पिघलाने की कोशिश की, रिश्तों में आई खटास दूर करने की कोशिश की और बातचीत के लिए एक तारीख तय की, तो फिर ऐसी घटनाओं से उत्तेजित होना ठीक नहीं है.
हमें मालूम है कि पाकिस्तान में सत्ता का एक केंद्र नहीं है. ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में जनता द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार ही सभी फैसले लेती है. वहां सेना है, आईएसआई है, जैश-ए-मोहम्मद है. बेशक, पाकिस्तान में कुछ ऐसे तत्व हैं, जो भारत-पाक के बीच वार्ता नहीं होने देना चाहते और दोनों के बीच संबंध ठीक होते नहीं देखना चाहते. लेकिन, बातचीत बंद कर देने से ऐसे तत्वों का हौसला बढ़ता है और वे इसे अपनी जीत के तौर पर देखते हैं.
इसलिए सरकार को यह तय करना चाहिए कि ऐसी घटनाओं के बाद भी बातचीत जारी रहेगी या फिर बातचीत बिल्कुल नहीं होगी. दरअसल, ऐसी घटनाओं का एकमात्र मकसद बातचीत को पटरी से उतारना होता है. आशा है कि पाकिस्तान के लिए बेहतर नीति तैयार की जाएगी.
दूसरी घटना. हरियाणा में एक कॉमेडियन को धर्मगुरु गुरमीत राम रहीम की मिमिक्री करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. लोकतंत्र में अगर आप सार्वजनिक छवि वाले लोगों का मज़ाक नहीं उड़ा सकते, तो फिर यह लोकतंत्र नहीं है.
हालांकि, धर्मगुरु अपने अनुयायियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन वे भी सार्वजनिक छवि वाले लोग हैं. वे अपने मठों में चुपचाप नहीं बैठते. और, अगर वे सार्वजनिक जीवन में आते हैं, तो उन्हें थोड़ा-बहुत मज़ाक बर्दाश्त करना पड़ेगा, करना चाहिए. यह बहुत दु:खद है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के दफ्तर से पुलिस को फोन गया कि उस कॉमेडियन को गिरफ्तार कर लिया जाए. इससे ज़ाहिर होता है कि हरियाणा सरकार अक्षम है और मुख्यमंत्री को तुरंत बदल देना चाहिए. खट्टर जबसे मुख्यमंत्री बने हैं, उनकी छवि धूमिल ही हुई है.
अगर ऐसी कार्रवाइयां होती हैं, तो सरकार की छवि को बट्टा लगता है. सच्चाई यह है कि इस खास समुदाय का मौजूदा सरकार में प्रभाव है और यह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक वोट बैंक की तरह रहा है. फिर तो इसका मतलब यह भी होगा कि अगर कोई बाबा रामदेव का मज़ाक उड़ाएगा, तो आप उसे भी गिरफ्तार कर लेंगे, क्योंकि वह (रामदेव) भारतीय जनता पार्टी का समर्थन कर रहे हैं. आप ऐसा नहीं कर सकते और न करना चाहिए.
अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री को भाजपा के पदाधिकारियों की एक बैठक बुलानी चाहिए. खास तौर पर राम माधव एवं दत्तात्रेय होसबोले, जो आरएसएस और भाजपा के बीच समन्वय का काम करते हैं, के साथ बैठक करके यह स्पष्ट करना चाहिए कि और अधिक सहिष्णु होने की ज़रूरत है. ऐसी दलीलों को आप और मजबूती दे रहे हैं, जिनसे आपको असहिष्णु कहा जा रहा है. एक कॉमेडियन, जो मज़ाक कर रहा है, हक़ीक़त में ऐसा नहीं कर रहा, आप उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते! यह तो असहिष्णुता की पराकाष्ठा है.
अगले माह बजट सत्र शुरू होने वाला है. बजट पैसे से जुड़ा काम है, लोकसभा से जुड़ा काम है, लेकिन सवाल है कि क्या यह एक महत्वपूर्ण बजट होगा? दो बजट हम देख चुके हैं. अब मुझे लगता है कि वित्त मंत्री को कृषि, उद्योग एवं आम आदमी के लिए सकारात्मक और ठोस क़दम उठाने चाहिए. आम आदमी को कर में छूट दें और कर में छूट की सीमा बढ़ा दें. वित्त मंत्री खुशकिस्मत हैं कि उन्हें कच्चे तेल की क़ीमतों में कमी की वजह से कई करोड़ रुपये का फायदा हो गया. उन्हें कुछ ऐसे क़दम उठाने चाहिए, जो जोखिम भरे हों. इस प्रक्रिया में वह वित्तीय घाटे में बढ़ोत्तरी का भी जोखिम उठा सकते हैं.
मेरे ख्याल से वक्त आ गया है कि एक-दो वर्ष के लिए उन्हें वित्तीय घाटे की चिंता छोड़ देनी चाहिए और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. यह उनकी पार्टी के हित में है और देश के हित में भी. जीएसटी बिल को बहुत ज़्यादा महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. एक खराब जीएसटी से अच्छा है कि जीएसटी न हो. वे जीएसटी को 16 से 27 फीसद के बीच करने की बात कर रहे हैं. दुनिया के किसी भी देश में यह 12 फीसद से ज़्यादा नहीं है.
इसके अलावा आप पेट्रोलियम और अल्कोहल को इससे बाहर कर रहे हैं. यानी 40 फीसद तो बाहर हो गया, तो फिर जीएसटी के लिए बचा क्या? मुझे लगता है कि अभी इस पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए और एक सर्वदलीय समिति बनानी चाहिए. इसके लिए एक वर्ष का समय निर्धारित करना चाहिए और फिर इसे सर्वसम्मति से पारित कराना चाहिए, ताकि देश को लाभ मिले. इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर किसी न किसी तरह पारित कराने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा नहीं होगा.
एक खबर यह भी आई कि आमिर खान को अतुल्य भारत अभियान से अलग करके किसी अन्य को उनकी जगह लाया जा रहा है. यह सही संकेत नहीं है. लोग जो भी कहें, आमिर खान भारत के बहुत अच्छे चेहरे हैं. उन्हें हटाना कोई बुद्धिमानी की बात नहीं है. बेशक, प्रधानमंत्री कार्यालय हस्तक्षेप कर रहा है और मुझे आशा है कि उन्हें इस अभियान से नहीं हटाया जाएगा.
2016 की शुरुआत हो चुकी है. स्टॉक मार्केट से अच्छी ़खबरें नहीं आ रही हैं. मैं उन लोगों में से नहीं हूं, जो स्टॉक मार्केट को लेकर चिंतित रहते हैं. स्टॉक मार्केट का अपना खेल है. वह ऊपर जाए या नीचे आए, अर्थव्यवस्था ज़रूर आगे बढ़ती रहनी चाहिए. सबसे बड़ा डर कृषि क्षेत्र से संबंधित है. कृषि क्षेत्र के लिए बेहतर काम किए जाने की ज़रूरत है. इस क्षेत्र में बुद्धिमतापूर्ण निवेश होना चाहिए. अगर इस क्षेत्र में बुद्धिमतापूर्ण निवेश नहीं होगा, तो दस वर्षों के बाद हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. कोई भी पार्टी सत्ता में हो, सरकारें आती हैं और जाती हैं, लेकिन सरकार का दीर्घकालिक लक्ष्य आम लोगों की भलाई होना चाहिए. आशा है कि इस बार का बजट अच्छा होगा.