झारखंड में मुख्यमंत्री रघुवर दास और कुछ मंत्रियों के बीच उत्पन्न खटास अब साफ दिखाई देने लगी है. मुख्यमंत्री रघुवर दास के तल्ख तेवर, उनके व्यवहार एवं मंत्रियों के कार्यकलापों की सार्वजनिक आलोचना से मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य नाराज हैं. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि रघुवर सरकार पर इसका सीधा असर पड़ सकता है. यों भी रघुवर दास से पार्टी के अधिकतर नेता, मंत्री, विधायक की नाराजगी जगजाहिर है. मुख्यमंत्री द्वारा अपने ही दल के कार्यकर्ताओं को ‘चिरकुट नेता’ बताये जाने से भी भाजपा में मुख्यमंत्री को लेकर खासी नाराजगी है. पार्टी कार्यकर्ताओं का आरोप है कि वे पार्टी के लिए समर्पित हैं और दिन-रात पार्टी के हित में काम करते हैं, पर इस सरकार में उन्हें कोई तरजीह नहीं दी जाती है. उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है. भाजपा का सहयोगी दल आजसू भी मुख्यमंत्री की कार्यशैली से नाराज चल रहा है. आजसू ने कुछ बातों पर आपत्ति जाहिर करते हुए सरकार से समर्थन वापस लेने तक की धमकी दे डाली थी.
भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय इन दिनों अपने ही मुखिया से खासे नाराज चल रहे हैं. इसके कारण भी हैं, मुख्यमंत्री ने विभा की समीक्षा के दौरान खाद्य आपूर्ति विभाग के कार्यकलापों की जमकर आलोचना कर दी. मुख्यमंत्री ने यहां तक कह डाला था कि इस विभाग में भ्रष्टाचार जमकर व्याप्त है. इस पर काबू पाने के लिए विभाग के अधिकारियों द्वारा कोई ठोस उपाय नहीं किया जा रहा है. मुख्यमंत्री की इन आलोचनाओं से विभागीय मंत्री काफी तिलमिला गए. सरयू राय ने मंत्री पद संभालते ही विभाग में सुधार के लिए कई योजनाएं लागू की थीं और इसका असर दिखने भी लगा था.
दरअसल दोनों नेताओं के बीच शुरू से ही दूरियों वाला रिश्ता रहा है. श्री राय झारखंड में भाजपा के चाणक्य माने जाते हैं. इनकी संघ परिवार एवं पार्टी के आला नेताओं के बीच अच्छी पकड़ है. यही कारण है कि रघुवर दास के नहीं चाहने के बाद भी मंत्रिमंडल में उन्हें जगह देनी पड़ी, लेकिन विभागों के बंटवारे के समय मुख्यमंत्री ने उनके अनुभवी होने के बाद भी उन्हें अदना सा विभाग थमा दिया. उस दौरान श्री राय ने अपने चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आने दी, पर वे अंदर से आहत थे. उन्हें यह अहसास हो गया कि मुख्यमंत्री उनका कद छोटा करने में लगे हुए हैं. उन्होंने पार्टी के आला नेताओं से अपनी नाराजगी व्यक्त कर उन्हें यह अहसास करा दिया कि वे मंत्री पद से इस्तीफा देना चाहते हैं, पर आला नेताओं ने पार्टी की साख बचाने के लिए उन्हें मंत्री पद पर बने रहने की सलाह दी. पार्टी के आला नेताओं को यह अहसास था कि अगर श्री राय ने बगावत कर दी तो रघुवर सरकार में संकट उत्पन्न हो जाएगा, क्योंकि भाजपा का एक मजबूत धड़ा रघुवर दास का घोर विरोधी है. माना जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का श्री दास के साथ छत्तीस का रिश्ता है और मुंडा को आधे से अधिक विधायकों का समर्थन हासिल है. ऐसे में अगर श्री राय बगावत पर उतर जाते हैं तो रघुवर सरकार गंभीर संकट में आ सकती है.
वैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास इन सभी बातों से इंकार करते हुए कहते हैं कि पार्टी एकजुट है और न कोई नाराज है और न ही किसी मंत्री के साथ मतभेद. सभी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. श्री राय के संबंध में उन्होंने कहा कि वे एक महत्वपूर्ण भूमिका में हैं. लेकिन श्री राय की नाराजगी साफ दिख रही है, वे स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि किसी की आलोचना से पहले सारी बातों से अवगत हो जाना चाहिए. अगर मुख्यमंत्री को मेरे विभाग से कोई शिकायत थी, तो मुझे बताया जाना चाहिए था, ना कि सार्वजनिक तौर पर बयान देना चाहिए. श्री राय तो मुख्यमंत्री की कार्यशैली से ही नाराज हैं और उनके कार्यों पर सवालिया निशान लगाते हुए कहते हैं कि केवल बोलने और बयान देने से काम नहीं होने वाला है. काम करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का मंत्री और अधिकारियों के साथ ठीक व्यवहार नहीं है. तल्ख लहजे में आदेश देना ही काफी नहीं होता है, बोली में मधुरता होनी चाहिए.
कुछ अन्य मंत्री भी मुख्यमंत्री रघुवर दास से खासे नाराज हैं. कारण साफ है कि मुख्यमंत्री ने अन्य मंत्रियों पर पकड़ बनाये रखने के लिए उनके विभाग में सख्त माने जाने वाले अधिकारियों की पोस्टिंग कर दी है, जो मंत्री की एक नहीं चलने देते. कई मंत्रियों ने मुख्यमंत्री के सामने इसका रोना भी रोया, पर मुख्यमंत्री पर इसका कोई असर नहीं पड़ा.
मंत्रियों के बीच उत्पन्न नाराजगी ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के चेहरे से मुस्कान गायब कर दी है. उन्हें यह अहसास हो गया है कि वे संकटों में घिरते जा रहे हैं, कभी भी मंत्रिमंडल में विद्रोह की आवाज उठ सकती है और सरकार पर संकट उत्पन्न हो सकता है. आलाकमान की शह एवं आला नेताओं के आशीर्वाद से उनकी गद्दी सलामत है, लेकिन कब तक यह बहुत बड़ा सवाल है, जो रघुवर दास को भी सोचने पर मजबूर कर देता है.
अहंकार में जाती रही सरकार
झारखंड में अक्सर ऐसा देखा गया है कि मुख्यमंत्री में अहंकार आते ही, उसकी सरकार किसी न किसी कारणों से चली जाती है. झारखंड गठन के बाद बाबुलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. उनकी गठबंधन की सरकार थी, जिसमें जद यू शामिल थी. जद यू के पांच विधायक बाबुलाल की सरकार में मंत्री थे, पर झारखंड बिजली बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन को लेकर मुख्यमंत्री और तत्कालीन ऊर्जा मंत्री लालचंद महतो में ठन गयी. ऊर्जा मंत्री जो जद यू कोटे से थे, हर हाल में अध्यक्ष को हटाना चाह रहे थे, पर बाबुलाल अपनी जिद पर अड़े रहे. उस समय झारखंड में राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले सरयू राय ने इस नजाकत को समझा और शतरंज पर अपनी बिसात बिछाने लगे. ऐसा माना जाता है कि सरयू राय भी बाबुलाल से नाराज चल रहे थे और उन्होंने इस मौके का फायदा उठाना चाहा. ऐसी चर्चा आम थी कि सरयू राय ने उस समय युवा तुर्क माने जाने वाले अर्जुन मुंडा को अपने पक्ष में किया, फिर सरकार गिराने और बनाने की रणनीति तय हुई. जद यू के विधायकों से संपर्क साधकर दोनों नेताओं ने उन लोगों को विश्वास में लिया. जद यू ने सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की और अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री का ताज पहना दिया गया.
मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने निर्दलीय, जद यू और आजसू के समर्थन से सरकार बनाया. कुछ दिनों तक सरकार ठीक-ठाक से चली, पर समर्थन दे रहे मंत्रियों ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया. इससे मुख्यमंत्री का काम करना मुश्किल हो रहा था. कुछ दिनों बाद अर्जुन मुंडा ने मंत्रियों की बात सुननी बंद कर दी. उन्हें यह अहंकार हो गया कि ये सब मंत्री तो मंत्री पद छोड़ेंगे नहीं. अर्जुन मुंडा इस बात को समझ नहीं पाए और मंत्रियों ने ऐसी चाल चली कि अर्जुन मुंडा की ताज ही छिन गयी. अर्जुन मुंडा की सरकार जाने के बाद कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, जद यू, निर्दलीय सभी एकजुट हुए और भाजपा छोड़कर आए निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री बना दिया. यह झारखंड की राजनीति में एक इतिहास बन गया कि कोई निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुआ. मधु कोड़ा 14 सितंबर, 2006 से 23 अगस्त, 2008 तक मुख्यमंत्री के पद पर बने रहे.
ठीक इसी तरह शिबू सोरेन की सरकार गिराकर अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने. इस बार उन्होंने शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन का सहारा लिया. झामुमो के सहयोग से सरकार बनी. हेमंत को उपमुख्यमंत्री बनाया गया, पर हेमंत और अर्जुन मुंडा में किसी मुद्दे को लेकर ऐसी ठनी कि दोनों में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं हुआ. इसके बाद हेमंत ने अर्जुन मुंडा सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके कारण मुंडा की सरकार गिर गई. फिर हेमंत सोरेन कांग्रेस की मदद से 13 जुलाई, 2013 को सरकार बनाकर मुख्यमंत्री का ताज पहनने में कामयाब रहे.
वर्तमान राजनीति में भी यही हो रहा है, पार्टी के आला नेताओं खासकर अमित शाह का खुलकर समर्थन दिये जाने से रघुवर दास अति उत्साहित और अहंकार में डूबे हुए नजर आ रहे हैं. मंत्री एवं वरिष्ठ अधिकारियों के साथ उनका व्यवहार भी ठीक नहीं है. अधिकारियों को तुम-ताम करने से आइएएस खेमा अंदर ही अंदर नाराज है. मंत्री सरयू राय ने तो मुख्यमंत्री के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है, जबकि चार मंत्री मुख्यमंत्री की कार्यशैली से आहत हैं. सीएनटी एवं एसपीटी मुद्दे पर भाजपा के अधिकतर आदिवासी विधायक मुख्यमंत्री से नाराज हैं. राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को उनका ही अहंकार ले डूबेगा.
पार्टी और सरकार के भीतर सब ठीक-ठाक : गिलुवा
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा का मानना है कि सरकार एवं संगठन में सबकुछ ठीक-ठाक है, कोई मतभेद या मनभेद नहीं है. रघुवर सरकार के कार्यकलापों से यहां की जनता खुश है और राज्य को देश का सबसे समृद्ध राज्य बनाने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है. व्यावसायिक घरानों का झुकाव झारखंड की ओर हो रहा है. उन्होंने इस बात से इंकार किया कि कुछ मंत्री रघुवर दास से नाराज चल रहे हैं. कार्यकलापों को लेकर कुछ मतभेद हो सकते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वे सरकार से नाराज हैं. खाद्य मंत्री सरयू राय द्वारा मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिए जाने की बात पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस तरह की कोई बात नहीं है. वे सरकार एवं संगठन के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. संगठन के कार्यों में वे लगातार सलाह-मशविरा दे रहे हैं. पार्टी कार्यसमिति के विस्तार के संबंध में उन्होंने कहा कि जल्द ही नई कार्यसमिति की घोषणा कर दी जाएगी. सूची को अंतिम रूप देने के लिए पार्टी के आला नेताओं से विचार-विमर्श किया जा रहा है. मुख्यमंत्री एवं प्रदेश के वरीय नेताओं से भी इस संबंध में गहन विचार-विमर्श किया गया है. सभी वर्गों को ध्यान में रखा गया है, ताकि संगठन को मजबूती मिल सके.
सीएनर्टी एवं एसपीटी एक्ट के संशोधन के बाद पार्टी की छवि खराब होने के संबंध में उन्होंने कहा कि यह विपक्षियों की चाल है. विपक्षी दल राज्य का विकास नहीं चाहते हैं, वे विकास में बाधक बने हुए हैं. भोली-भाली जनता को बहकाकर वे अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे हैं.
केवल बोलने से काम नहीं होने वाला: सरयू राय
रघुवर सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय, मुख्यमंत्री रघुवर दास की कार्यशैली एवं व्यवहार से खासे नाराज हैं. वे मुख्यमंत्री की बेरुखी एवं उनके बातचीत की शैली से भी आहत हैं. झारखंड राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले सरयू राय का मानना है कि केवल बोलने से भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता. इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना जरूरी है. भ्रष्टाचार केवल छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई करने से नहीं रुकेगा, बल्कि बड़े अधिकारियों की भी जांच होनी चाहिए. अगर वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं या आय से अधिक संपत्ति उनके पास है, तो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए. सरयू राय ने कहा कि किसी भी विभाग की आलोचना करने से पहले विभाग में हो रहे कार्यों से भली-भांति अवगत होना चाहिए, न कि समाचार-पत्रों में बयान देकर आलोचना करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर मुख्यमंत्री उनके कार्यों से खुश नहीं हैं, तो वे मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे सकते हैं. वैसे उनका कहना है कि उन्होंने अपने विभाग में पारदर्शिता लाई और काफी हद तक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लगाया.
उन्होंने कहा कि मंत्री एवं जन-प्रतिनिधियों को अधिकारियों के साथ शालीनता से पेश आना चाहिए, ना कि तल्ख व्यवहार करना चाहिए. अधिकारियों के साथ डांट-फटकार से कार्यशैली में सुधार नहीं लाया जा सकता है. एक-दूसरे के साथ बेहतर तालमेल एवं व्यवहार से कार्यप्रणाली में सुधार लाकर राज्य का विकास किया जा सकता है.