देश में बहुत सारी चीज़ें घटित हो रही हैं. सबसे पहले बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों की. पहला फैसला मुसलमानों के धार्मिक मामले से सम्बन्धित था. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक की गलत व्यवस्था को गैर-संवैधानिक करार दे दिया. बेशक यह एक ऐसी व्यवस्था थी, जो पुरुषों के हक में थी, और जिसका सहारा लेकर वे अपनी पत्नियों से बुरा सुलूक कर सकते थे. आधुनिक विश्व में इसका कोई स्थान नहीं है. दुनिया के अधिकतर आधुनिक देशों में यह व्यवस्था प्रचलन में नहीं है. भारत एक प्राचीन देश है. यहां की अधिकतर आबादी गांवों में रहती है. मुस्लिम महिलाएं इस व्यवस्था को मानने के लिए मजबूर थीं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला भविष्य के लिए उठाया गया एक बेहतर क़दम है. इस पर कितना अमल होता है. हितधारकों की प्रतिक्रिया क्या होती है. इसके लिए हमें इंतज़ार करना होगा.
दूसरा फैसला निजता के अधिकार पर है. यह बहुत ही मज़बूत फैसला है. नौ जजों की खंडपीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया. सभी जजों ने अलग-अलग दृष्टिकोण से अपने-अपने कारण दिए. इस फैसले का श्रेय सुप्रीम कोर्ट को देना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का एक पुराना फैसला था, जिसमें कहा गया था कि संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. वो एक अलग दौर था. वह ऐसा दौर था, जब सोशल मीडिया, सेल फोन और आधुनिक गजेट नहीं थे, जिनके माध्यम से डाटा आसानी से लीक हो सकते हैं. व्यक्ति की निजता खतरे में पड़ गई है और वो असुरक्षित महसूस कर रहा है. दरअसल यह एक अति आधुनिक मसला है. मैं व्यक्तिगत तौर पर बहुत खुश हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने हर तरह की जानकारियों तक बेरोक-टोक पहुंच के खतरों पर नोटिस लिया है.
मैं खास तौर पर आधार की अनिवार्यता को लेकर चिंतित था. बेशक आधार इस फैसले में शामिल नहीं है. आधार का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिसपर उसका फैसला आना है. निजता के अधिकार के फैसले को देखते हुए यह आशा करनी चाहिए कि आधार को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा. यह व्यक्ति के ऊपर छोड़ दिया जाना चाहिए. जो लोग सरकारी लाभ उठाना चाहते हैं, उनके लिए आधार कार्ड अनिवार्य हो, लेकिन हमारे जैस लोग, जिन्हें कोई सब्सिडी या सरकारी लाभ नहीं चाहिए, उनपर आधार थोपने का क्या औचित्य है? यदि बिना आधार नंबर के मेरा इन्कम टैैक्स रिटर्न स्वीकार नहीं किया जाता, तो ये बहुत ही दुखद है. मेरे पास पैनकार्ड है और इसकी जानकारी इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट को वर्षों से है, क्योंकि मैं इन्कम टैक्स रिटर्न दाखिल करता रहा हूं. आप अचानक एक अन्य नंबर को इन्कम टैक्स रिटर्न दाखिल करने के लिए अनिवार्य कर देते हैं, यह ठीक नहीं है. बहरहाल हमें इंतजार करना चाहिए. सरकार कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी कि उनके पास आधार को सुरक्षित रखने के उचित सेफगार्ड हैं. हमें इंतजार करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट का इस पर आखिरी फैसला क्या होता है?
उसके बाद सवाल ट्रेन दुर्घटनाओं का है. दुर्घटनाएं घटित होती हैं. जब दुर्घटनाएं अधिक घटित होने लगती हैं, तो यह चिंता का विषय बन जाती है. हमें मालूम नहीं है कि इस पर सरकार का नजरिया क्या है? वो रेलवे सुरक्षा को पूरी तरह से दुरुस्त करने के लिए क्या करते हैं? सरकार को तत्काल रेलवे में निवेश आकर्षित करने के उपाय करने चाहिए, ताकि रेलवे को सुचारू रूप से चलाया जा सके. आखिरकार, रेलवे के बहुत सारे पुल, बहुत सारे इन्फ्रास्ट्रक्चर सौ साल पुराने हो चुके हैं. इन्फ्रास्ट्रक्चर की हालत देखते हुए रेलवे इंजीनियर्स भी इस बात से हैरान हैं कि अब तक अधिक दुर्घटनाएं क्यों नहीं हुई हैं? इस घटना में भी हमेशा की तरह कुछ रेलवे कर्मचारियों और जूनियर इंजीनियर्स पर कार्रवाई हो जाएगी. दुर्घटना के बाद मंत्री का इस्तीफा देने की परंपरा अब खत्म हो गई है. सुरेश प्रभु, जो मेरे अच्छे मित्र हैं और मौजूदा कैबिनेट में एक बेहतर मंत्री हैं, ने इस्तीफे की पेशकश की, लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें इंतजार करने के लिए कहा है. अफवाह ये है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल के दौरान उन्हें रक्षा मंत्रालय का कार्यभार दिया जा सकता है. रेलवे दुर्घटनाओं के बाद क्या कार्रवाई होती है, इसके लिए हमें इंतजार करना होगा.
उसके बाद, एक धर्मगुरु को महिला के यौन शोषण के आरोप में पंचकूला सीबीआई कोर्ट ने दोषी माना है. आसाराम का मामला भी अदालत में चल रहा है. गुरमीत राम रहीम इंसां को अदालत ने दोषी ठहराया है. इन धर्म गुरुओं के अनुयायियों की संख्या बहुत अधिक है. यदि वे कोई अपराध भी करते हैं, तो उनके अनुयायी पीछे खड़े हो जाते हैं, जैसे जुर्म का फैसला बहुमत और अल्पमत के हिसाब से होगा! इसमें कोई तर्कनहीं है. ये एक दुखद बात है. इन सभी धर्मगुरुओं में कुछ अच्छे गुण भी होते हैं, नहीं तो इतने सारे लोग उनके अनुयायी कैसे होते? लेेकिन उनका व्यक्तिगत व्य्वहार वैसा नहीं होता, जिसका वो संदेश देते हैं. देखते हैं कि आगे क्या होता है?
2019 में चुनाव होने जा रहे हैं. सरकार की पूरी मशीनरी इसकी तैयारी में जुट गई है. अब सरकार की प्राथमिकता में किसी बड़े सुधार की गुंजाइश नहीं है. 3 साल में उन्होंने बहुत कुछ नहीं किया, अब दो साल में वो कुछ कर नहीं सकते हैं. सत्ताधारी पार्टी की कोशिश है कि किसी भी तरह चुनाव जीता जाए. अमित शाह इसे लेकर काफी सक्रिय और मुखर हो गए हैं. उनका कहना है कि हम 50 वर्षों तक शासन करेंगे. वो ये भी कहते हैं कि हमने तीन वर्षों में बहुत कुछ किया है. जाहिर है, वे अपनी इस बात को साबित नहीं कर सकते हैं. लेकिन, उनका शासन 50 साल तक नहीं चल पाएगा. अगर आप पूरी प्रक्रिया को दूषित कर देंगे, यदि प्रेस को बहुत सारा पैसा दे देंगे, तो देश में स्वतंत्र मीडिया ही खत्म हो जाएगा. लिहाजा, अमित शाह जो बोल रहे हैं, वैसा बोलने के लिए बहुत ज्यादा आत्मविश्वास चाहिए. मुझे देश के मतदाताओं पर अब भी असीम विश्वास है. हमें 1977 के चुनाव को याद करना चाहिए, जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल खत्म कर चुनाव करवाया था. उन्होंने ये नहीं सोचा था कि वो इतनी बुरी तरह से हार जाएंगी. अधिक से अधिक उन्होंने ये सोचा था कि हमें बहुमत नहीं मिलेगा, लेकिन हम सरकार बना लेंगे. लेकिन, लोगों ने उन्हें करारा जवाब दिया, जिससे यह साबित होता है कि लोगों की अपनी स्वतंत्र सोच होती है. 2019 बताएगा कि लोगों की सोच क्या है? मुझे नहीं लगता कि लोग अखबार पढ़कर वोट देते हैं. अगर ऐसा होता तो, मायावती मुख्यमंत्री बन गई होतीं और पिछले चुनाव में लालू यादव बुरी तरह से हार गए होते. मुझे नहीं लगता कि अंग्रेजी अखबार या जो लोग अंग्रेजी जानते हैं, वो मतदाताओं को अधिक प्रभावित करते हैं. देखते हैं, क्या होता है?