वर्तमान समय में भारत के ज्यादातर पत्रकारों के सत्ताधारी दल के सामने घुटने टेक देने के समय में ! इससे भी बदतर समय में 70 और 1975 के आपातकाल की घोषणा के बाद ! कुछ पत्रकारों ने अपने पत्रकार के धर्म का पालन अपने जीवन को दाव पर लगाकर किया है ! जिसमें बंगाल के मशहूर पत्रकार, लेखक श्री. गौर किशोर घोष ! और सबसे महत्वपूर्ण बात वह समसामयिक विषयों पर सिर्फ लिखने का काम करकर रुकते नही थे ! बाकायदा उसके उपर भुमिका लेकर अपने स्तर पर उसका प्रतिवाद भी करते थे ! आनेवाले 25 जून को आपातकाल की घोषणा के 48 साल पूरे हो रहे हैं ! और उस आपातकाल की घोषणा और सेंसरशिप के खिलाफ ! वह उन इनेगिने लोगों में से थे ! कि वह अपने सिरपर के बालों को मुंडावाकर ‘जनतंत्र मारा गेलो ‘ यह बोलते हुए गिरफ्तार किए गए थे ! और आपातकाल खत्म होने तक जेल में बंद रहे ! और उनके जीवन की पहली बायपास सर्जरी भी !


और जनता पार्टी बनने के बाद बंगाल जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री. पी. सी. सेन खुद उनके पास जाकर लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी बनाने का आग्रह किया ! लेकिन उन्होंने साफ तौर पर कहा कि “मैं आपातकाल की घोषणा और सेंसरशिप के विरोध में अपने कर्तव्यों का पालन किया हूँ ! और वह मैने किया, अब मुझे संसद या विधायक बनने का रत्तीभर की रुचि नही है !”और न ही मेरा सपना !


20 जून 1923 को गोपालपुर जिला जसौर जो अब बंगला देश में है ! वहां जन्म हुआ था ! और घर की आर्थिक दशा के कारण से नियमित पढ़ाई नहीं हो सकीं ! 1941 में मॅट्रिक की पढाई के बाद बीजली ठीक करने के काम से लेकर, किसी होटल में वेटर ! तथा लकड़ी बेचने का काम, तथा सड़क बनाने वाले मजदूरों के ठेकेदार ! और उसी शायद उसी कारण मजदूरों के संगठन ! तथा कभी शिक्षक – क्लर्क, सेल्समन, नाटक मंडली में बॉय तो प्रूफ रिडिंग ! तक का सफर तय करते – करते ! बंगला के अखबार में संवाददाताओं की भूमिका में आ पडे ! और इसी दौरान बड़ी मुश्किल से 1945 मे सायंस विषय में इंटर की परीक्षा में पास हुए ! और आनंद बाजार पत्रिका जैसे बंगला भाषा के प्रसिद्ध अखबार में संपादकीय विभाग में शामिल हुए ! और अपने जीवन के विभिन्न अनुभवों के आधार पर ! कुछ उपन्यास, कहानी संग्रह तथा कविता और रेखाचित्रकार के रूप में प्रतिष्ठित ! गौरकिशोर घोष के पहले ज्यादा तर बंगाली लेखन तथाकथित भद्र बंगाली जिसमें किसानों तथा मजदूरों और गांव के लोगों की बोली भाषा में कोई नहीं लिखता था ! भले ही वह गांव देहात से आए होंगे ! लेकिन सभी तथाकथित प्रतिष्ठित बंगला भाषा में लिखते थे ! गौरकिशोर घोष की शैली का पहलीबार बंगाल के साहित्य या पत्रकार जगत में आगमन हुआ ! जो ठेठ गंवई शैली में लिखा हुआ ! और गौरकिशोर घोष यह नाम दोनों बंगाल के घर – घर में चुल्हे तक पहुंच गया !


अल्पशिक्षित और किसानों – मजदूरों तथा सर्वसामान्य लोगों की भाषा में ! बंगला साहित्य से लेकर पत्रकारिता में एक नया ट्रेंड सेटर के रूप में गौरकिशोर घोष की पहचान है ! और उसी के प्रतिफल के रूप में उन्होंने लिखा हुआ उपन्यास ‘सगिना महातो’ के उपर मशहूर फिल्म निर्माता श्री. तपन सिन्हा ने बंगला तथा हिंदी में फिल्म बनाने का काम किया ! जिसमें लिडिंग रोल में दिलिप कुमार और सायरा बानो ! तथा अपर्णा सेन और अनिल चॅटर्जी जैसे कलाकारो को लेकर चाय बागान के मज़दूरों के जीवन पर ! और तथाकथित मजदूरों के युनियनबाजी के उपर बहुत ही बढिया फिल्म बनीं है !


तो वह राजनीतिक रूप से, मानवेंद्रनाथ रॉय के नवमानवता वाद के प्रभाव में आकर ! कुछ समय उनके व्हॅनगार्ड पार्टी के पूर्ण समय कार्यकर्ता भी रहे हैं ! लेकिन एम. एन. रॉय के प्रभाव में कुछ लोग जरुर आए ! लेकिन उनके नवमानवतावाद को व्यापक जनाधार कभी भी नहीं मिल पाया है ! और यह बात मैंने गौरकिशोर घोष को पुछा भी कि “क्या बात है कि, आप लोगों का इतना अच्छा दर्शन इस देश में आप कुछ चंद रॉइस्टो को छोड़कर सर्वसामान्य लोगो तक क्यों नहीं पहुंच पाया ? एक तरह से एलिटिस्ट क्लब जैसे स्थिति बनी रही ?” तो गौरकिशोर घोष ने बोला “कि हम कुछ लोगों का बौद्धिक कल्याण हुआ यह क्या कम है ?” मैंने कहा “कि यह तो बहुत ही आत्मकेंद्रित बात हुई ! आप कुछ मुठ्ठीभर लोग पूरे देश में बौद्धिक कल्याण कर के बैठना घोर जनविरोधी बात है ! ” इतने बड़े देश में इस तरह की आत्मसंतुष्टि ठीक नहीं है ! खैर हमारे साथ उनके साथ बहुत सारे विषयों पर धमासान अड्डा आनंद बजार पत्रिका के उनके चेंबर में एखाद दो दिन छोड़कर आयेदिन होते रहती थी !


मैंने अपने जीवन में और भी लेखक-पत्रकार तथा बुद्धिजीवी ! और विभिन्न क्षेत्रों में अभिव्यक्ति करने वाले लोगों को देखा है ! लेकिन गौरकिशोर घोष के जैसा ‘निर्भय’ और किसी को नहीं देखा ! और इसी ‘निर्भयता’ के वजह से उन्होंने सत्तर के दशक में नक्सलियों के हिंसा के खिलाफ और उन नक्सलियों से निपटने वाली पस्चिम बंगाल की सरकार दोनों को ‘मुझे बोलने दो’ नाम से किताब में देखा हूँ ! कि बीस पच्चीस साल के मध्यवित्त घर के बच्चे को आनन-फानन में आधी रात में बगैर किसी वॉरंट के निंद से घरों में घुस कर उठा कर ले जाने की बात की आलोचना के साथ ही ! यही भटके हुए बच्चे किस तरह बस, ट्रॅम बमों से उडाने से लेकर किसी स्कूल – कॉलेज में प्रवेश कर चलते हुए क्लास में किसी शिक्षिका को चाकू भोपकर मारने की घटना के बारे में भी आलोचनात्मक ‘रुपदर्शि’ नाम से देश जैसे प्रतिष्ठित पत्रिका में लेख लिखें है !और इन्ही बातों को ध्यान में लेकर ! कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्‍सवादी – लेनिनवादी ) 4-7-70 के दिन गौरकिशोर घोष को तथाकथित जनताकोर्ट के तरफसे उन्हें फांसी की सजा का पत्र भेजा गया है ! जिसको उन्होंने जवाब दिया है !


“आपका या आप लोगों का 4 जुलाई का लिखा पत्र यथासमय मिला ! और उस का संदेश जानकर विशेष प्रसन्नता हुई ! बहुत – से – कामों में लगे रहने से उत्तर देने में थोडी देरी हुई, आशा है, आप लोग इसके लिए बुरा नहीं मानेंगे !
पहले ही अपने पाठक – पाठिकाओ की जानकारी के लिए आप लोगों की चिठ्ठी यहां हू- ब- हू उद्घृत कर रहा हूँ !
4-7-1970
गौरकिशोर घोष !

आपके विरुद्ध उल्लेखित अभियोग लगे हैं !
(1) ‘रुपदर्शि’ छद्मनाम से आप मार्क्सवाद – लेनिनवाद तथा माओ-त्से – तुंग की विचारधारा के विरुद्ध तथा सी. पी. आई. (माले) के विरुद्ध अपमानजनक व्यंग्य – रचनाएँ लिखते रहते हैं !
(2) अपने नाम से रचित यौन – उत्तेजक उपन्यास लिखकर आप बांग्ला के युवा – समाज को गलत रास्तें पर ले जाने की चेष्टा कर रहे हो !
(3) आप मुलतः भारतीय प्रतिक्रियावादी लोगों के दर्शन – गाँधीवाद तथा फासिस्टवाद के प्रचारक है !
(4) अपने व्यक्तिगत जीवन में आप दुश्चरित्र और लंपट है ! अनेक नारियों के सतीत्व – हरण में आपने मूल भुमिका निभाई है !
उक्त अभियोगो में आपको मृत्युदंड की सजा दी गई है, जो एक महिने में कार्यान्वित की जायेगी !
यथायोग्य व्यवहारान्ते ! – सी. पी. आई. (माले), कलकत्ता डी. सी.
पुनश्च : – क्षमाप्रार्थना पर विचार किया जाएगा !
“यहां मेरा कहना है, कि चिठ्ठी पढ़ने पर आपके या आपके चेअरमन के मेरे प्रति असीम अनुग्रह का पता चलता है ! इस संसार में इतनी विलोभनीय और सुंदर वस्तुओं के रहने पर भी ! आप लोग या आपके चेअरमन मेरे जैसे एक मामुली व्यक्ति के नितांत तुच्छ सिर पर नजर लगाएं बैठे हैं, यह तो बड़े भाग्य की बात है ! कब और किस तरह यह सिर आपके महान चेअरमन के काम आकर मुंड – जन्म सार्थक करेगा ? यह यदि कृपया पत्र भेजकर बताने का कष्ट करेंगे तो, इस विषय मे, मै ही किस तरह से कितना सहयोग या सहायता कर सकता हूँ ? यह भी यदि बता दे तो कृतार्थ हूँगा !
महाशय अथवा महाशयगण ! मैंने आपके या आप लोगों के लिखे महान पत्र की दो पंक्तियाँ अच्छी तरह नही समझ पाया ! ”
(1) “आपके विरुद्ध उल्लिखित अभियोग लगे हैं !” आपके या आप लोगों के महान चेअरमन के भाषा – ज्ञान के संदर्भ में मुझे काफी श्रद्धा भाव है, इसलिए उनके अभ्रांत निर्देश में ‘उल्लेखित’ शब्द बासमती चावल में कंकड की तरह दांत में लगता है ! महान चेअरमन ने यहां स्पष्टतः क्या कहना चाहा है ? उल्लेखित ? या निम्नलिखित ? चिठ्ठी के मसौदे के अनुसार मेरी क्षुद्र धारणा तो यही कहती हैं ! कि बात निम्नलिखित होने से ठीक रहती, और उसका अर्थ इसप्रकार होता : पहली पंक्ति – गौरकिशोर घोष ! ” दुसरी पंक्ति – आपके विरुद्ध निम्नलिखित अर्थात उपर लिखे अभियोग लगे हैं ! अर्थात गौरकिशोर घोष होकर जन्म लेना ही आपका सबसे बड़ा गंभीर अपराध है ! इसके समान अभियोग इस देश में और क्या हो सकता है ? और इस अभियोग का कोई जवाब नहीं !
(दो) मृत्युदंड को आपके या आप लोगों के चेअरमन सजा क्यों कहते हैं ? जीव आकस्मिक रूप से जन्म लेता है ! किंतु मृत्यु उसका स्वभाव है – परिणति ! औरों की तो बात ही क्या, आपके या आप लोगों के चेअरमन भी एक दिन अचानक गंगा – लाभ करेंगे ! अवश्य ही गंगा – लाभ न कहकर व्हांग – हो – लाभ कहना अच्छा होता, क्योंकि आप या आप लोग क्रांति के जो नमूने देखकर चलें है, उससे उनकी जीवन दशा में उनकी महान हड्डियों को हवा लगेगी, ऐसा विश्वास विशेष रूप से दिखाई नहीं देता ! जीव धर्म के अनुसार उनका भी तो काल पूरा हो चुका है , फिर भी वे माया से अलग नहीं हो सके है, वह सभंवतः केवल स्तालिन की अत्यंत अप्रिय परिणति की बात सोचकर ! देखा तो इस तरह के प्रचंड प्रतापी महान स्तालिन मानव की मृत्यु के बाद कैसी दुर्दशा हुई ! देह – रक्षा के बाद आपके या आप लोगों के महान चेअरमन की जिस तरह वैसी दशा न हो उसका ठोर – ठिकाने का इंतजाम करने के लिए ही शायद वे एक्सटेंशन पर है ! यह एक चालकानुवर्त का सिस्टम ही बहुत गडबड है, जानते हैं न ! यह बात ही तो मैं विभिन्न प्रकार से समझाना चाहता हूँ !
जो भी हो, जब तक सिर धड से उपर है, और जब तक रहेगा, अपना काम मुझे करते रहना होगा ! धड के उपर सिर रखने का एक यही झमेला है !
हां जैसा मैंने कहा कि मैं मृत्यु को सजा या दंड के रूप में नहीं देखता ! वह तो मेरी स्वभाविक परिणति है ! जिस रूप में या जिस भेष में ही आए, उसके लिए मेरे द्वार पर सदा ही ‘स्वागतम’ ! विवेक – विरुद्ध कार्य के द्वारा आत्म – ग्लानि में जलने मात्र को ही मै सजा या दंड मानता हूँ !
महाशय अथवा महाशयगण, आपके या आप लोगों के महान चेअरमन ने ‘महाभारत’ नही पढी है, यह उनका दुर्भाग्य है, क्योंकि प्रायवेट सेक्टर की अदालत के निर्णय को मुझ तक पहुंचाने वाली चिठ्ठी को भेजने का आपका परिश्रम तक बच जाता ! (यह चिठ्ठी आपके या आप लोगों के चेयरमैन के निर्देश पर ही लिखी गई है, यह मै मान लेता हूँ, क्योंकि आजकल सी. पी. आई. (माले) संकेत का अर्थ ही अंध-भक्ति या अंध – विश्वास हुआ ! नेता की इच्छा के सिवा आपका कोई कर्म नहीं होता, यह आप लोगों की ही उक्ति है ! ) अभी तो महाभारत का एक सुविख्यात श्लोक आप लोगों को सुनाता हूँ, आपके या आप लोगों के चेयरमैन को अवश्य पढ़ने के लिए दिजिएगा !
यक्ष युधिष्ठिर से बोले : बताओं पुरुष कौन है ?
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया :
दिव्यं स्पृश्यंती भूमिंच शब्दः शून्येन कर्मणा !
यावत स शब्दों भवति तावत पुरुष उच्यते !!
अर्थात पुण्य कर्म का ( मेरे क्षेत्र में विवेक के अनुसार कृत कर्म का ) शब्द स्वर्ग और पृथ्वी का स्पर्श करता है ! जबतक वह शब्द रहता है, तभी तक मानव पुरुष रुप में माना जाता है ! अलमिति –
देश जुलाई 25, 1970.
यह गौरकिशोर घोष ने नक्सलियों के तथाकथित जनता की अदालत के फैसले को दिया हुआ जवाब है जो आजसे तिरपन साल पहले देश नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुआ है !
हालांकि उस समय आनंद बाजार पत्रिका के मालिकों ने गौरकिशोर घोष को अपने तरफसे सुरक्षा प्रदान करने की पेशकश की थी ! जो उन्होंने ली नही ! और तत्कालीन पस्चिम बंगाल की सरकार के तरफसे भी सुरक्षा की पेशकश की गई थी जिसे उन्होंने ठुकराया है !


आपातकाल में कलकत्ता के अलिपूर सेंट्रल जेल में बंद थे और 9 सितंबर 1976 के दिन माओ- त्से- तुंग का निधन हो गया था ! तो जेल में बंद माओवादियों ने उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया था ! तो उन्होंने देखा कि, गौरकिशोर घोष बगैर जुते – चप्पल से नंगे पैर चलते हुए आए तो सबने पुछा की आपकी चुटी कहा है ? तो गौरदा ने जवाब दिया कि हमारे घर का कोई बुजुर्ग मरने के बाद क्या हम चुटी पहनते हैं ? तब जनता की अदालत में गौरकिशोर घोष को मौत की सजा सुनाने वाले लोग आवाक होकर देखते ही रहे ! इसी को अजातशत्रु बोलते हैं !
डॉ. सुरेश खैरनार, 17 जून 2023, नागपुर.

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