चार्जशीट में दिए ब्यौरे के मुताबिक इस गिरोह का नेटवर्क भारत से बाहर कई देशों, यहां तक कि इस्लामिक देशों में भी फैला है़  देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में चार्जशीट में दिए गए तथ्यों की व्याख्या कतई नहीं की जा सकती. आरोपियों से पूछताछ और नार्को टेस्ट के जरिए हिंदू आतंकवाद के बहाने जो घिनौना सच सामने आया है, वो आम हो जाए तो शायद देश में संकट के हालात पैदा हो जाएं. हिंदू समाज का ठेकेदार बनने वाली पार्टियों को मुंह छुपाने की जगह भी न मिले, लिहाजा इन तथ्यों को लेकर बेहद गोपनीयता बरती जा रही है ताकि चुनावी माहौल में पार्टियां देश में कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दें.
ऐसा क्यों होता है कि अपनी-अपनी डफली बजाने की फिराक़ में सियासी पार्टियां किसी का जीना हराम कर देती हैं. हक़ीकत से वाबस्ता हुए बगैर किसी पर भी तोहमतों की झड़ी लगा देती हैं. किसी के भी अहसास का ख्याल नहीं रखतीं. पूर्व एटीएस चीफ हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे की आंखों से आंसू नहीं जैसे लावा बह निकला हो. मैं हतप्रभ, भला क्या जवाब देती, किन भावभीने शब्दों से उनके आंसू पोंछने का जतन करती.
मैं तो उनसे मालेगांव बम धमाकों की हक़ीकत जानने की जुगत में गयी थी. यह जानने की जिज्ञासा थी कि आ़खिरकार हेमंत करकरे को कहां से वे सुराग मिले, जिनकी बिना पर एटीएस ने आरोपी के तौर पर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गिरफ्तार किया. क्या है उस वारदात का सच, जिसके खुलासे ने पूरे देश में ज़लज़ला पैदा कर दिया. क्या कुछ जिक्र किया है एटीएस ने नासिक कोर्ट में दाखिल अपनी चार्जशीट में?  कुछ तो बताते ही होंगे हेमंत इस बाबत घर में. राजनीतिक दलों से लगे बेहिसाब आरोपों से उपजा तनाव घर के माहौल को भी बोझिल बनाता ही होगा. कुरेदती हूं मैं कविता को. माहौल थोड़ा गमगीन सा लगने लगता है. कविता कमरे की दीवार पर टंगी हेमंत की हंसती-खिलखिलाती तस्वीर निहारती हैं, मानो खुद को संजो रही हों.
स्मृतियों के बियाबान में भटकती कविता बोल उठती हैं- दरअसल मालेगाव में धमाका, सिमी के धमाकों के जवाब में किया गया था. यह इस्लामिक आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हिंदू आतंकवाद को स्थापित करने की कोशिश थी. मालेगांव बम धमाकों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के शामिल होने के सबूत तत्कालीन एटीएस चीफ हेमंत करकरे को संघ के नेताओं से ही मिले थे. हेमंत करकरे के संघ परिवार से रिश्ते साध्वी प्रज्ञा से कहीं पुराने थे़  हेमंत करकरे संघ के सदस्य तो नहीं थे, पर संघ का मुख्यालय उनके लिए घर सरीखा ही था. हेमंत करकरे की माता कुमुदिनी करकरे आरएसएस की वरिष्ठ और बेहद सक्रिय सदस्य हुआ करती थीं. पिता कमलाकर करकरे जरूर वामपंथी विचारधारा के थे.
हेमंत ने पिता की छत्रछाया में वामपंथी फलसफे को भी गहराई से समझा, पर हेमंत करकरे पर मां की छाप ज़्यादा थी. बचपन में वह अक्सर अपनी मां के साथ नागपुर स्थित संघ के मुख्यालय जाते और वहां की गतिविधियों में खासी दिलचस्पी लिया करते. हेमंत करकरे मूल रूप से नागपुर के धन-तोली के रहने वाले थे, इसलिए वे संघ के क्रिया-कलापों में गाहे-बगाहे शिरकत भी करते. माता कुमुदिनी करकरे की वजह से हेमंत करकरे की दोस्ती आरएसएस, वीएचपी और बजरंग दल के नेताओं से भी थी. यही संपर्क मालेगांव बम धमाकों की तफ्तीश में एटीएस चीफ के मददगार बने. साध्वी प्रज्ञा वीएचपी की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी की सदस्य हैं, लिहाजा उनके इरादों की भनक संघ के कुछ खास सदस्यों को भी थी.
साध्वी प्रज्ञा जिस प्रखरता से आगे बढ़ रही थीं और जिस तेजी से उनकी पैठ देश के दिग्गज हिंदू कट्टरवादी नेताओं के बीच बन रही थी, उससे भी संघ के कुछेक नेता खार खाए बैठे थे. उनतीस सितंबर के बम धमाकों के बाद जब एटीएस ने अपनी तफ्तीश शुरू की, तो पता चला कि वारदात में एक स्कूटर का इस्तेमाल हुआ है.  छानबीन शुरू हुई और यहां हेमंत करकरे के पुराने संपर्कों ने बखूबी साथ निभाया. संघ के नेताओं से ही हेमंत करकरे को पुख्ता सुराग मिलने लगे. फिर तो एक के बाद एक कड़ियां सुलझती चली गईं. साध्वी और अन्य पकड़े गए आरोपियों के खिलाफ एटीएस के पास पक्के सबूत जमा होते चले गए. यही वजह रही कि तमाम छींटाकशी और आरोप भी एटीएस की जांच में रोड़े नहीं अटका सके. एटीएस ने अपने चीफ को गंवाने के बाद भी उन्हीं की तफ्तीश की दिशा में काम किया.
आ़खिरकार 19 जनवरी 2009 को एटीएस ने सभी आरोपियों के खिला़फ चार हज़ार पन्नों से भी ज़्यादा की चार्जशीट अदालत में दाखिल कर दी. कविता मुझसे अभी कुछ और साझा करतीं, तभी एक शख्स ने कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी. उस आदमी ने कविता से कहा कि उसे साहब वाली फाइलें चाहिए़  पता चला कि वह सज्जन एसआई चौधरी हैं. करकरे की उस टीम के सदस्य, जो मालेगांव बम धमाकों की छानबीन कर रही थी. तब मैंने ग़ौर किया कि बगल के कमरे में और भी सात-आठ लोग थे, जो फाइलों का ढेर लिए बैठे थे. पता चला कि अदालत में चार्जशीट दाखिल करने के बाद के जिरह की तैयारी चल रही है. हेमंत करकरे ने जो नोट बनवाए थे, उनकी फाइनल ड्राफ्टिंग चल रही है. कविता पति के अधूरे काम को मुकम्मल कराने में पूरा सहयोग कर रही थी. न सिर्फ कागज़ात मुहैया करा रही थीं बल्कि पत्नी होने के नाते उनके पास जो जानकारियां थीं, उसे भी एटीएस टीम से बांट रही थीं.
मैंने भी जानना चाहा. कविता तो जैसे भरी बैठी थीं. अतीत की यातनाएं उनकी रगों में उबल रही थीं. वह जैसे फूट पड़ीं. लव मैरिज थी हमारी. हेमंत की शहादत के महज चार दिनों पहले ही हमने शादी की अट्ठाइसवीं सालगिरह मनाई थी. लजाती-सकुचाती कविता को हेमंत ने छेड़ते हुए कहा था कि शादी की 50वीं सालगिरह भी वे इसी नए-नवेले अहसास के साथ मनाएंगे. उन क्षणों को याद कर कविता की आंखों में पलाश खिल रहे थे. यह मैं साफ महसूस कर पा रही थी. हालांकि शहादत के ऐन पहले के कुछ हफ्ते हेमंत करकरे के लिए मानसिक रूप से बेहद तकलीफ़देह रहे थे. जिस दिन मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था, उसी दिन यह खबर भी आई थी कि साध्वी प्रज्ञा ने एटीएस पर उन्हें निर्वस्त्र करने की धमकी देने का आरोप लगाया है. कविता बड़ी विचलित हो गई थीं. हेमंत भी व्यथित थे. परेशान कविता से उन्होंने बस यही कहा कि ‘वह फिक्ऱ न करें. साध्वी या राजनीतिक पार्टियां चाहे जो प्रलाप करें, पर एटीएस के पास उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं.
एटीएस अदालत में अपने आरोपों को बखूबी साबित कर देगा. फिर वह अपने दफ्तर के लिए निकल गए थे. पूरे दिन हेमंत अपनी टीम के साथ मालेगांव बम धमाकों के आरोपियों के क़बूलनामे पर वकीलों से राय-मशविरा करते रहे, ताकि उनके गुनाहों के मुताबिक धाराएं लगाई जा सके. शाम में जब कविता को मुंबई पर आतंकी हमले की खबर मिली, तो कविता ने हेमंत को फोन किया. हेमंत ने बस इतना ही कहा कि ‘वह स्पॉट पर हैं, बाद में बात करेंगे. और फोन कट गया. दुखद यादों की किरचें कविता को फिर से बेचैन करने लगीं. बैठे-बैठे वह पहलू बदलने लगती है़  पारिवारिक तस्वीरों का अल्बम दिखाती कविता याद करती हैं उन दुखद पलों को, जब मालेगांव बम धमाकों में एटीएस द्वारा साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी होते ही भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना, आरएसएस और बजरंग दल सरीखी पार्टियों ने स्यापा करना शुरू कर दिया. हिंदुत्व का ठेकेदार बनने की उनमें होड़ सी लग गई.
साध्वी प्रज्ञा को निर्दोष साबित करने की भेड़चाल में यह दल केंद्र सरकार और मामले की तहकीकात कर रही एटीएस को ही मुजरिम ठहराने की कवायद में जुट गए़  लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी, बाल ठाकरे, उमा भारती आदि ने साध्वी की गिरफ्तारी को हिंदू समाज के लिए खतरा बताते हुए ताल ठोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बगैर इस तथ्य का ख्याल रखे कि एटीएस के पास साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ पर्याप्त और पुख्ता सबूत हैं वहीं बैठे एटीएस के एडिशनल सीपी परमवीर सिंह चुनौती भरे अंदाज़ में कहते हैं कि ब्लास्ट के सिलसिले में पकड़े गए दयानंद पांडे ने 29 सितंबर को हुए मालेगांव विस्फोट में शामिल होने की बात कबूल की है. एटीएस ने इस बात की पूरी तरह एहतियात बरती है कि उसके बयान को अदालत से मान्यता मिल जाए़  दयानंद पांडे ही वह शख्स है, जिसने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के साथ मिल कर मालेगांव विस्फोट की साजिश रची थी. कर्नल श्रीकांत पुरोहित, रामजी, राइका, सुनील डांगे, अभिनव भारत के संस्थापक सदस्य समीर कुलकर्णी, अजय राहिरकर, राकेश धावड़े, संजय चौधरी, राहुल पांडे, दिलीप पाटीदार, शिवनारायण सिंह, श्यामलाल साहू,  धावले, रमेश उपाध्याय आदि के कबूलनामे और उनकी निशानदेही पर हासिल किए गए साक्ष्य अदालत में सभी आरोपियों को यक़ीनन गुनहगार साबित करेंगे. सबसे बड़ी बात तो यह कि ये सभी आ-रोपी एक संगठित गिरोह के रूप में काम करते थे. और यही वजह है कि एटीएस ने इन सभी आरोपियों पर मकोका लगाया है.
खास बात यह भी है कि सभी आरोपियों का बयान पुलिस उपायुक्त के सामने दर्ज किया गया है, जो मकोका अदालत में मंजूर भी कर लिया गया है. कर्नल पुरोहित ने कुछ अन्य आरोपियों को मिथुन चक्रवर्ती के फर्जी नाम से नांदेड़ में धमाकों के लिए जब बम बनाने की ट्रेनिंग दी थी, उस वक्त भी उसके ताल्लुकात साध्वी से थे. यह गिरोह न सिर्फ पिछले साल हुए मालेगांव बम धमाकों में शामिल था बल्कि 2006 में हुए नांदेड़ धमाकों, मालेगांव बम धमाकों, अजमेर बम धमाका, 2003 और 2004 में जालना और परभणी बम धमाकों, 2007 में पुणे के खड़की स्थित वाइनयार्ड चर्च पर हमले का भी जिम्मेदार है. जून 2007 में हुई वारदात के एफआईआर में बाकायदा समीर कुलकर्णी का नाम दर्ज है, क्योंकि हमले के शिकार एक व्यक्ति ने समीर को पहचान लिया था. उस वक्त भी साध्वी प्रज्ञा और समीर के आपसी रिश्ते थे, क्योंकि दोनों ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य थे. कर्नल पुरोहित से ही साध्वी प्रज्ञा ने मध्यप्रदेश के पंचमढ़ी में अरबी और चीनी भाषा भी सीखने का काम किया. कर्नल पुरोहित ने अहमदाबाद के एक आश्रम में पांच सौ लोगों को आतंक फैलाने का प्रशिक्षण भी दिया था.
चार्जशीट में दिए ब्यौरे के मुताबिक इस गिरोह का नेटवर्क भारत से बाहर कई देशों, यहां तक कि इस्लामिक देशों में भी फैला है़  जहां इसके सदस्यों को दहशत फैलाने का प्रशिक्षण तो दिया ही जाता है, आर्थिक मदद भी मिलती है. चार्जशीट के मुताबिक विदेशों मे बैठे इनके साथी इन्हें दहशतगर्दी का सामान मसलन आरडीएक्स वगैरह मुहैया कराते हैं. एटीएस के पास इसके भी प्रमाण हैं कि मध्यप्रदेश के पंचमढ़ी में इन आरोपियों को आतंक फैलाने का प्रशिक्षण 2006 में 16 से 21 अक्तूबर के बीच दिया गया. एटीएस ने अपनी चार्जशीट में समझौता ब्लास्ट का भी ज़िक्र करते हुए इसी गिरोह को आरोपित किया है. हमारी बातचीत में शिरकत करते हुए एटीएस के विशेष लोक अभियोजक अजय मिश्र कहते हैं कि अगर ये सभी मकोका के तहत दोषी साबित हो जाते हैं, तो सभी आरोपियों को अधिकतम उम़्रकैद और न्यूनतम पांच साल तक की सज़ा हो सकती है. इन आरोपियों के अपराध इतने संगीन हैं कि हमारी कोशिश होगी कि आरोपियों को ज़्यादा से ज़्यादा सज़ा मिल सके. चार्जशीट दाखिल करने के बाद भी हम इतनी मेहनत इसलिए कर रहे हैं ताकि सबूतों के जरिए हम एटीएस पर लगे तमाम आरोपों को ग़लत साबित कर सकें.
चार्जशीट में कई हैरतअंगेज खुलासे हैं… यह कहते हुए हमारी बातचीत में वहां मौजूद एटीएस के एक और आला अधिकारी भी शरीक हो जाते हैं, मगर इस निर्देश के साथ कि भूले से भी उनके नाम की चर्चा मैं न करूं. बताते हैं कि देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में चार्जशीट में दिए गए तथ्यों की व्याख्या कतई नहीं की जा सकती. भारत में सक्रिय कुछ देशों की खुफिया एजेंसियों की नांदे़ड और मालेगांव बम धमाकों में क्या भूमिका रही है, इस बात की भी जांच एटीएस ने की है. कुछ भारतीय संतों और एक देश विशेष की खुफिया एजेंसी के पूर्व प्रमुखों के बीच आपसी तालमेल के भी सबूत हासिल हुए हैं. उनकी सत्यता की जांच चल रही है.जो आरोपी पक़डे  गए हैं, वे सभी कटटर हिंदूवाद की आ़ड में काउंटर टेरेरिज्म को स्थापित करना चाहते थे. उन्होंने एटीएस के सामने इस बात को कबूल किया है कि उनके कुछ खास देशों के  धार्मिक नेताओं के साथ करीबी संबंध रहे हैं. इनके बीच लंबे वक्त से खिच़डी पक रही थी. वजह यह कि दोनों एक दूसरे को जरिया बना कर अपने प़डोसी मुल्कों से निपटना चाहते हैं. चूंकि इस गिरोह का नेटवर्क अभी इतना तगड़ा नहीं हुआ था कि ये मुल्क की सरहदों के बाहर जाकर तबाही मचा पाते, लिहाजा देश के अंदर ही इस गिरोह के सदस्यों ने विस्फोट के लिए वैसी जगहों को चुना, जहां इनका मक़सद कामयाब हो सकता था. वही इन्होंने किया भी. हालांकि यह गिरोह अपने विदेशी संपर्कों के बूते यह करने की फिराक में था. वैसे मालेगांव में बम विस्फोट करने के बाद इनकी योजना उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश के अलावा और भी कई संवेदनशील जगहों पर दहशत मचाने की थी. खासकर लोकसभा चुनावों के ऐन पहले यह गिरोह देश को बांटने वाली अपनी नापाक हरकतों को तेजी से अमली जामा पहनाता, पर उसके पहले ही ये सभी एटीएस की गिरफ्त में आ गए. आरोपियों की निशानदेही पर जगहों की सूची एटीएस को मिल चुकी है, जिसे वह अदालत में सबूत के तौर पर पेश करेगी.
आरोपियों से पूछताछ और नार्के टेस्ट के जरिए हिंदू आतंकवाद के बहाने जो घिनौना सच सामने आया है, वो आम हो जाए, तो शायद देश में संकट के हालात पैदा हो जाएं. हिंदू समाज का ठेकेदार बनने वाली पार्टियों को मुंह छुपाने की जगह भी न मिले, लिहाजा इन तथ्यों को लेकर बेहद गोपनीयता बरती जा रही है ताकि चुनावी माहौल में सियासी पार्टियां देश में कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दें. हमारी बातचीत लगभग अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी थी. घर में कुछ और लोगों की आमद-रफ्त दिखने लगी थी. कविता भी थोड़ी मसरूफ लगने लगी थीं. सारे तो नहीं, पर मेरे कुछ सवालों के जवाब तो मुझे हासिल हो ही गए थे. लिहाजा फिर मिलने की बात कह मैंने भी उनसे इजाज़त लेना मुनासिब समझा़

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