27 फरवरी 2002 की सुबह गोधरा स्टेशन पर एस – 6 कोच को आग लगाने के बाद 58 अधजले शवों वाली साबरमती एक्सप्रेस की कुल 1100 प्रवासी ढोने की क्षमता थी. लेकिन उस दिन उस ट्रेन में 2000 प्रवासी थे. और उनमें 1700 कारसेवक थे. एस – 6 कोच में 72 प्रवासीयो की क्षमता थी. लेकिन 27 फरवरी 2002 के दिन पूरा कोच खचाखच भरा हुआ था. साबरमती एक्सप्रेस को ग्यारह कोच लगे हुए थे. और दो हजार की संख्या में प्रवासी पूरी ट्रेन में भरे हुए थे. गोधरा स्टेशन तक उत्तर प्रदेश के पुलिस भी उस ट्रेन में प्रवासियों की सुरक्षा के लिए आए थे. और वह गोधरा कांड के प्रत्यक्षदर्शियों मे शामिल थे.

और उन्होंने उत्तर प्रदेश वापस जाने के बाद उन्होंने अपने वरिष्ठों को रिपोर्ट भी किया था.और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण जानकारी गुजरात पुलिस के पूर्व प्रमुख श्री. आर. बी. श्रीकुमार ने अपनी ‘GUJARAT BEHIND THE CURTAIN’ शिर्षक किताब मे लिखी है कि “गुजरात के एसआईबी ने अपने एजेंट गुजरात से अयोध्या के लिए गए हुए कारसेवकों के क्रियाकलाप की जानकारी देने के लिए भेजे थे. और उन्होंने वह जानकारी गुजरात स्थित एसआईबी के मुख्यालय में भेजी है. और उस जानकारी मे उन्होने लिखा है कि अयोध्या में जाने के समय और वापसी के प्रवास के दौरान कारसेवकों ने काफी अपराधिक हरकते की है. गुजरात के दाहोद और सलाम स्टेशनों पर तो खाने- पीने के सामान बेचने वालों के सामान को लुटने की हरकत की थी. जिसकी जानकारी गुजरात एसआईबी को थी.केंद्रीय गुप्तचर विभाग के एजेंटों ने मुख्यतः अयोध्या से वापसी की यात्रा के दौरान विभिन्न स्टेशनों के चाय तथा खाने पीने के सामान तथा अन्य विक्रेताओं के साथ हुए झड़पों की जानकारी दी थी. अभी तक उनका किसी का भी बयान क्यो नही लिया गया है ? एसआईबी को इन सभी घटनाक्रमों की जानकारी रहने के बावजूद उन्होंने यह जानकारी राज्य सरकार के साथ शेयर न करने की वजह से गोधरा के स्टेशन पर और भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर सकती थी. और शायद गोधरा की घटना टल सकती थी .

गुप्तचर विभाग के गुप्तचरों ने एस – 6 कोच को आग लगाने की संपूर्ण घटना की जानकारी राजेंन्द्र कुमार ( संयुक्त संचालक एसआईबी अहमदाबाद ) को दी थी. लेकिन राजेंन्द्र कुमार ने यह जानकारी शायद अपने वरिष्ठ अधिकारियों के इशारे पर ऐसा किया होगा . क्योंकि तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री श्री. लालकृष्ण अडवानी और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया था कि “साबरमती एक्सप्रेस के एस – 6 कोच को आग पाकिस्तान की आई एस आई ने लगाने का षडयंत्र वाली थेअरी को सिध्द कर सकेंगे.” आईबी के अधिकारीयों ने अपनी संविधानिक जिम्मेदारी का निर्वहन न करते हुए संघ और भाजपा के राजनीतिक अजेंडा के अनुसार काम किया है. इसितरह के गैरकानूनी और अनैतिक प्रवृत्ति की वजह से लालकृष्ण अडवानी और नरेंद्र मोदी ने गोधरा कांड के पिछे विदेशी हाथ होने के षडयंत्र का आरोप लगाया और जिस वजह से हिंदूओं की भावनाओं को भड़काने का काम हुआ. और उसी भावनाओं को अपनी राजनीतिक पकड बनाने के लिए उपयोग किया गया है .

और यह सब गुजरात दंगों की जांच करने वाले नानावटी कमिशन के सामने अपने पांचवें एफिडेविट मे जमा करने के बाद आयोग को इस संबंध में और तथ्यों को इकट्ठा करने के लिए विनती की थी. लेकिन जांच आयोग ने ऐसा कुछ भी नहीं किया . कमाल की बात है कि जिस आयोग को गोधरा कांड से लेकर गुजरात दंगों का जांच करने का काम सौपा गया था उसने खुद भी गोधरा कांड एक षडयंत्र का हिस्सा था यह नरेंद्र मोदी जी और लालकृष्ण आडवानी के आरोप को दोहराने का काम किया. मै खुद नानावटी जांचआयोग के सामने मेरे मित्र एडवोकेट मुकुल सिन्हा के साथ बैठ कर आयोग की कार्रवाई का निरिक्षण करने के बाद मुकुलभाई को बोला था कि “जस्टिस नानावटी नरेंद्र मोदी जी को क्लिनचिट देने के लिए उतावले है.” तो मुकुलभाई ने जवाब दिया था कि “यह बात मुझे भी मालूम है और इसिलिये मै नरेंद्र मोदी जी के क्लिनचिट देने की देरी करने के लिए कोशिश कर रहा हूँ. ”


नरेन्द्र मोदी जी जब 10 अक्तुबर 2002 को गुजरात के मुख्यमंत्री बनाए गए थे . उसके पहले उन्होंने अपने जीवन का कोई भी चुनाव नहीं लड़ा था. और गुजरात विधानसभा के छ महिनों से पहले सदस्य बनने के लिए उन्हें काफी मुश्किल से विधायक बनने के लिए कामयाबी मिली थी. और वह जीस तेली जाति से आते हैं, वह गुजरात में दो प्रतिशत भी नहीं है. इसलिए दबंग पटेल लॉबी के रहते हुए गुजरात में मुख्यमंत्री पदपर टिके रहना कठिन काम था. यह देखते हुए . उन्होंने अपनी राजनीतिक पकड बनाने के लिए 56 इंची छाती वाले ‘हिंदूहृदयसम्राट’ की प्रतिमा बनाने के लिए गुजरात दंगों का इस्तेमाल किया है. और उसीकी वजह से आज वह तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने मे कामयाब हुए हैं .


इसिलिये भारतीय संविधान की अनदेखी करते हुए, भारत की एकता और अखंडता को खत्म करने के लिए अघोषित हिंदूराष्ट्र के तरफ दिन प्रतिदिन बढते जा रहे हैं. इसलिए संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह में ब्राह्मणों को बुलाने से लेकर, राममंदिर निर्माण कार्य से लेकर महाकुंभ, नागरिकता कानून, गोहत्या बंदी, कॉमन सिव्हिल कोड, लवजेहाद, लॅंडजेहाद, वोटजेहाद, वख्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी, धर्मपरिवर्तन, हिजाब जैसे मुद्दों को हवा देकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का काम लगातार जारी है .

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