एक-एक करके उनके सारे प्रतिद्वंद्वी मैदान छोड़ते गए. यहां तक कि उनके खिला़फ स़िर्फ जॉर्डन के प्रिंस बाकी बचे थे. उसके बाद चमत्कारिक तौर पर स्विट्जरलैंड, जहां फीफा का दफ्तर है, के अधिकारियों ने एफबीआई के आगाह करने पर फीफा के 10 अधिकारियों को हिरासत में ले लिया. इसके बावजूद ब्लैटर खुद को निर्दोष बताते रहे. उनकी मदद के लिए उनके मित्र सामने आए. यूरोपीय लोग भ्रष्टाचार को नापसंद करते हैं.
ऐसा क्यों है कि ज़्यादातर खेलों की व्यवस्था इतनी ख़राब है? भारत में खेल प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों के अनुचित एवं ग़ैर-क़ानूनी व्यवहार के प्रति खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों की शिकायतों की कोई सीमा नहीं होती. उक्त अधिकारी एक विशिष्ट मंडली द्वारा चुने जाते हैं, उनके चुनाव में खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों को वोट देने का अधिकार नहीं होता. उक्त अधिकारी किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होते. अगर आईपीएल के मामले में सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है. खेल से संबंधित ताज़ा घपला सेप ब्लैटर का चौथी बार फीफा का अध्यक्ष चुना जाना और उसके बाद अचानक उनके त्याग-पत्र से जुड़ा हुआ है. जिस तरह से फुटबॉल वर्ल्ड कप की मेजबानी के लिए रूस (2018) और क़तर (2022) को चुना गया था, उसे लेकर बहुत सारी शिकायतें थीं. ब्रिटेन के कुछ अख़बारों की खोजी पत्रकारिता ने इस सिलसिले में उल्लेखनीय काम किया है. चूंकि इंग्लैंड भी मेजबानी की दौड़ में शामिल था, इसलिए इसे लोग अंगूर खट्टे हैं की संज्ञा दे रहे हैं. वे यह भी कह रहे हैं कि घपले की ये बातें इसलिए हो रही हैं, क्योंकि फुटबॉल पर अब यूरोप का एकाधिकार ख़त्म हो गया है. अब एशियाई एवं अफ्रीकी देश बहुमत में हैं और वे सेप ब्लैटर को पसंद करते हैं. यूरोपीय देश अपनी साम्राज्यवादी मानसिकता दिखा रहे हैं. वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि एशिया और अफ्रीका में उनका व्यापार बढ़ा है. वे इन देशों पर अपना यूरोपीय मानक लागू कर रहे हैं.
फीफा ने एक घोटाला उजागर करने के लिए एक रिपोर्ट असाइन की थी, लेकिन वह रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं हुई, जिसे लेकर यह अ़फवाह उड़ रही थी कि क़तर और रूस की तऱफ से वर्ल्ड कप की मेजबानी के लिए फीफा के सदस्यों को रिश्वत दी गई थी. लेकिन, इससे ब्लैटर ज़रा भी विचलित नहीं हुए. वह फीफा के अध्यक्ष पद के लिए पांचवीं बार खड़े हुए. एक-एक करके उनके सारे प्रतिद्वंद्वी मैदान छोड़ते गए. यहां तक कि उनके खिला़फ स़िर्फ जॉर्डन के प्रिंस बाकी बचे थे. उसके बाद चमत्कारिक तौर पर स्विट्जरलैंड, जहां फीफा का दफ्तर है, के अधिकारियों ने एफबीआई के आगाह करने पर फीफा के 10 अधिकारियों को हिरासत में ले लिया. इसके बावजूद ब्लैटर खुद को निर्दोष बताते रहे. उनकी मदद के लिए उनके मित्र सामने आए. यूरोपीय लोग भ्रष्टाचार को नापसंद करते हैं. ब्लैटर चुन लिए गए. यूरोप हार गया. उसे मालूम नहीं था कि आगे क्या करना चाहिए. उसके बाद घपलों की जांच कर रही एफबीआई ब्लैटर के और क़रीब पहुंच गई. इस बात के संकेत आ रहे थे कि ब्लैटर का खेल अब ख़त्म हो गया. उसके बाद उन्होंने इस्ती़फा दे दिया. अब नया चुनाव होगा और 2018 और 2022 के विश्व कप की मेजबानी पर भी पुनर्विचार हो सकता है. फीफा के अंदर चल रही सफाई का असर अब नज़र आने लगा है. इस घटनाक्रम की सबसे उल्लेखनीय बात है कि यह ग्लोबलाइजेशन के अंतर्विरोधों को सुंदरता से रेखांकित करता है. जब इंग्लैंड ने 1966 में विश्वकप जीता था, तो उस समय तक फुटबॉल बहुत हद तक यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी खेल था. फुटबॉल क्लब में खेलने वाले अधिकतर खिलाड़ी और ठंडे व आरामदायक स्टेडियम में खेल का लुत़्फ उठाने वाले दर्शक स्थानीय होते थे. 2014 तक, जब वर्ल्ड कप ब्राज़ील में आयोजित हुआ, सब कुछ बदल चुका था. यूरोप की फुटबॉल टीमें बहुजातीय और बहुराष्ट्रीय टीमें बन गई थीं. टेलीविज़न ने दर्शकों की संख्या कई गुना कर दी थी, जिसके कारण इस खेल में बहुत सारा पैसा भी आया था. खिलाड़ियों की कमाई में बेतहाशा इजाफा हुआ था, उनकी ट्रांसफर फीस भी शानदार हो गई थी. अब न तो राष्ट्रीयता का कोई मतलब है और न ही नस्ल का कोई असर. अगर आप उच्च स्तर पर खेलने के काबिल हैं, तो दुनिया आपके क़दमों के नीचे है.
लिहाज़ा जब भ्रष्टाचार बढ़ेगा, तो उसका इलाज भी ग्लोबल स्तर पर होगा. यूरोप को यह शिकायत है कि उनका खूबसूरत खेल फीफा में नवागंतुकों की वजह से बर्बाद हो रहा है, लेकिन हकीक़त यह है कि एक नवागंतुक अमेरिका ने भ्रष्टाचार के दोषियों तक पहुंचने की पहल की है. इसका कारण यह भी हो सकता है कि डॉलर लेन-देन की अंतराष्ट्रीय मुद्रा है. रिश्वत के बड़े-बड़े लेन-देन चेक के ज़रिये हो रहे थे (भारत में इस काम में लोग माहिर हैं, इसलिए गांधी नोट इस्तेमाल करते हैं). ये चेक एक बैंक से दूसरे बैंक में जाते हैं और ये बैंक अमेरिका और दुनिया के दूसरे देशों में व्यापार करते हैं. फुटबॉल का ग्लोबलाइजेशन और वित्त का ग्लोबलाइजेशन इसके लिए एक फंदा साबित हुआ. अमेरिका एक ऐसा देश था, जो मजबूती के साथ इस धोखाधड़ी से निपटता रहा. अमेरिका ने स्विट्जरलैंड को आगाह किया कि फीफा की बैठक के दौरान दोषियों को धर दबोचने का सही समय है.
यहां अहम यह है कि विकसित देशों और बाकी दुनिया के लिए अलग मापदंड नहीं होना चाहिए. जो लोग भ्रष्टाचार को यूरोपीय साम्राज्यवाद पर हमला करके छिपाना चाहते हैं, वे दरअसल बिना निवेश के धन जमा करने की इच्छा की पैरवी करते हैं. इससे न तो नागरिकों का भला होगा और न दर्शकों का. दुनिया का कोई भी देश भ्रष्टाचार को वैधानिक करार नहीं देता. जिस देश में प्रेस और सिविल सोसायटी का लोकतांत्रिक दबाव कम होता है, वहां के संभ्रांत वर्ग के लोग भ्रष्टाचार करके बच निकलते हैं, लेकिन ग्लोबल पुलिसिंग ताक़तवर स्थानीय लोगों के खिला़फ कमज़ोर लोगों के अधिकारों की हिफाज़त करती है. ग्लोबलाइजेशन ज़िंदाबाद!