नहीं हर बार कुदरत का करिश्मा चाहिये साहब ।
सलीक़ा काम आता है क़रीना चाहिये साहब ।।
नज़र और जिस्म तो केवल प्रियंका के दीवाने हैं ।
मगर मन-मीत कहते हैं मनीषा चाहिये साहब ।।
हमारे घर को भी नन्ही कली गुलज़ार कर देती ।
हमें बस इतना कहना था तनूजा चाहिये साहब ।।
पुराने चावलों की हर ज़माना क़द्र करता है ।
लता दीदी के युग में भी सुरैया चाहिये साहब ।।
नदी के तीर पर अद्भुत, अलौकिक शांति मिलती है ।
हताशा हो तो लाज़िम है बिपाशा चाहिये साहब ।।
पयोधर टूटते हैं तो धरा भी टूट जाती है।
धरम इन्दर को समझाओ कि हेमा चाहिये साहब ।।
नहीं हरगिज़ अँधेरों की सिफ़ारिश कर रहे हैं हम ।
‘नवीन’ इक भोर की ख़ातिर शबाना चाहिये साहब ।।
करिश्मा – चमत्कार, मिराकल
क़रीना – तरीक़ा, पद्धति मॅनर
मनीषा – पढ़ी-लिखी, विदुषी, एजुकेटेड लेडी तनूजा – बेटी
बिपाशा – नदी
पयोधर – बादल
धरा / हेमा – पृथ्वी, धरती
इन्द्र (धर्मेंद्र) – बारिश के देवता
शबाना – रात [रात के हालात]
नवीन सी चतुर्वेदी