पिछले साल आजही के दिन नरेंद्र मोदीजीने संपूर्ण देशभरमे आज रातको दिये जलाने का प्रयोग किया था ! जिसका कोरोनाके बिमारी से रत्तीभर का संबंध नही था ! पर नरेंद्र मोदी 2014 से नोटबंदी से लेकर थाली बजवाने से लेकर सभी प्रयोग भारतीय जनताके ऊपर अपने प्रभाव को नापने के मीटर जैसे इस्तेमाल कर रहे है ! जो आजसे नब्बे साल पहले तथाकथित रेनेसाॅवाले योरोप की भुमिपर जाॅपाल सात्र-सिमौन द बोआ जैसे बुद्धीजीवी और आईन्स्टाईन और सिग्मैण्ड फ्राईड जैसे वैज्ञानिक को आँखो के सामने हिटलर ने भी इसी आजमाईश के लिए किये थे !
हिटलर 1920 से 1945 के अप्रैल की 24 तारीख को अपने आप को गोली मार लेने तक लगभग पच्चीस साल जर्मनी की छाती पर मुंग दल रहा था और वह भी तथाकथित जनतंत्र के माध्यम से !
ठीक है कि राजनीतिशास्त्र की भाषा में जनतंत्र कमसेकम सैतान माना जाता है ! लेकिन हिटलर जैसे सैतानोको देखने के बाद लोकतंत्र की खामियों को दूर करने के लिए जयप्रकाश नारायणजीने अपने संपूर्ण जीवन मे विभिन्न संस्थाओं और संघटन का गठन करके वर्तमान भारत के चुनाव प्रणाली से लेकर संसदीय लोकतंत्र के लिए सुधारने की कोशिश की है !
लेकिन 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी को जित दिलाने के अलावा उनकी सभी कोशिशोंको उतनी कामयाबी नहीं मिली !
महात्मा गाँधी तो गणिका की उपमा दिये थे ! वह भी आजसे एक सौ ग्यारह साल पहले की ब्रिटिश संसद को देखकर हिंद स्वराज्य नामकी छोटी सी किताब में लिखा है ! और तब भारत के क्षितिज पर संसद या किसी भी तरह के चुनाव प्रणाली नहीं रहते हुए !
आज अगर महात्मा गाँधीजी ने वर्तमान भारत के चुनाव प्रणाली को देखकर इससे ज्यादा कडी टिप्पणी की होती ! क्योंकी सत्तर साल के चुनावी यात्रा का मूल्यांकन करने के बाद आज सबसे ज्यादा पतनशीलता के चक्र में चुनावी राजनीति फसते जा रही है !
वोरा कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय संसदीय क्षेत्र पचास प्रतिशत से भी ज्यादा माफिया या गुंडोके कब्जेमे चली गई है और इस कारण मसल-मनी पाॅवर के दमपर पहले शुरूआत कांग्रेस ने जरूर की है !
लेकिन जबसे बीजेपी ने जिस दिन मंदिर-मस्जिद के बखेडा कर के भारतीय राजनीति के अंदर ध्रुवीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ कर के और जीन मुद्दों का रोज की जींदगी से कुछ भी संबंध नहीं है ऐसे मुद्दे उदाहरण के लिए सामाजिक ताने-बाने को खत्म करके दंगे,आतंकवाद,अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ गलतफहमी नियोजित तरीके से फैलाना और उसीके इर्द-गिर्द इतने बड़े देश की जनसंख्या को उत्तेजित कर के चुनाव जीतने की कोशिश और आश्चर्य की बात है कि इसमे बीजेपी को कामयाबी मिल रही है !
और यही भारत जैसे बहुआयामी देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है पहले भी पचहत्तर साल पहले देश धर्म के आधार पर एक बार विभाजित हुआ है! बडेही मुश्किलें झेलने के बाद कही लग रहा था कि अब ठीक चल रहा है तो पहले जनसंघ नामसे और चालीस साल से बीजेपी के नाम से जो धर्म को राजनीति का मुद्दा बनाकर एक के पिछे एक राज्य हथियाने की मुहीम संपूर्ण सरकारी मशीनरी का उपयोग कर के और मिडिया,धन्नाशेठो के मददसे बेतहाशा पैसोके बलपर विधायकों की खरीद फरोख्त करके जीन राज्यों में बहुमत नहीं रहने के बावजूद अपनी ही सरकार बनाने की सर्कस भारतीय संसदीय राजनीति का इतना पतनशीलता का दौर संसदीय लोकतंत्र के इतिहास मे पहली बार देख रहा हूँ !
बीजेपी ने जब जनता पार्टी से अलग होकर अपने आप को (The Party With Deference) कहलवाना शुरू किया तो क्या है डिफरेंस मतलब फर्क खुलकर सांप्रदायिक राजनीति शुरू कर दिया ! महात्मा गाँधी जी की हत्या के बाद संघ के प्रमुख श्री एम एस गोलवलकर को हिंदू महासभा के अलावा उनकी अपनी पार्टी होनेकी आवश्यकता महसूस हुई तो पस्चिम बंगाल के श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ नामसे पार्टी शुरू की गई जो 1977 में जेपीजी के आग्रह के कारण जनता पार्टी मे विलीन हो गई थी लेकिन दो साल के भीतर ही वह प्रयोग असफल होने के कारण आर एस एस के साथ जनसंघ का नाता ! इसलिये 1980 मे भारतीय जनता पार्टी के नाम से शुरू की है और 1985-86 के शाहबानो विवाद की आडमे लाल कृष्ण आडवाणी ने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद को हवा देकर रथयात्रा की राजनीति परवान चढ़ने लगी और साथ-साथ दंगे ! भारत की आजादी के बाद प्रथम बार धर्म को राजनीति का मुद्दा बनाकर एक के पिछे एक राज्य हथियाने की मुहीम संपूर्ण सरकारी मशीनरी का उपयोग कर के और मिडिया और पूंजीपतियोकी मदद से भारत की आजादी के आंदोलन से निकले हुए मूल्य तार तार कर के और खुलकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को गति देकर दिल्लीके तख्त पर बैठ गये ! और अब साम दाम दंड भेद से संपूर्ण देश के सभी राज्यों पर कब्जा करने की कोशिश जारी है ! वर्तमान पाँच राज्यों के चुनाव देखकर तो लगता है कि यह लोकतंत्र की ऐसी की तैसी करने के लिए सत्ताधारी दल के नेतृत्व में सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजीने चुनाव के इतिहास मे इतना घटिया स्तरपर भाव,भंगिमाएं और भाषा का प्रयोग कर रहे हैं ! वह यह भी भूल गए हैं कि भारत के 130-35 करोड़ आबादी वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश का लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए चुनाव के मदमे होश खो बैठे हैं !
डॉ सुरेश खैरनार