नदियों के कोख से निकली जमीन पर मालिकाना हक जताने के कारण अक्सर खून से लाल होती रही कोसी की धरती एक बार फिर सुलगने लगी है. महज पैंतीस बीघे जमीन को लेकर न केवल गैंगवार की आशंका प्रबल होती जा रही है, बल्कि एक पैक्स अध्यक्ष की गोली मारकर की गई हत्या के बाद दो आपराधिक पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधि भी आमने-सामने आ गए हैं.
जनप्रतिनिधियों के द्वारा दो अलग-अलग आपराधिक गिरोहों का साथ दिए जाने के कारण कोसीवासी एक बार फिर दहशत के साए में जीने को मजबूर हो गए हैं. संभावित अनहोनी को लेकर कोसी या यू कहें कि फरकिया के लोग रतजग्गा करने को विवश हैं.
हालांकि इस तरह का वाकया पहली बार सामने नहीं आया है. कोसी-बागमती के साथ-साथ अन्य नदियोें के कोख से निकली जमीन पर कब्जा जमाने को लेकर अक्सर कोसी का दियारा इलाका गोलियों से थर्राता रहा है और खून की नदियां बहती रही है.
यहां कभी तूतली सिंह गिरोह की तूती बोली तो कभी कैलू मियां गिरोह प्रतिद्वंदी गिरोह पर भारी पड़ा. समय-समय पर स्थितियां बदली हैं. राजा टोडरमल के जमाने में खगड़ा घास अर्थात जंगली घास के कारण जमीन की पैमाइस संभव नहीं होने के कारण फरक किए गए फरकिया की जमीन को लेकर यहां खूनी संघर्ष होता रहा है.
सहेन्द्र शर्मा गिरोह के द्वारा प्रतिद्वंदी गिरोह के सोलह अपराधियों को मार कर शवों के टुकड़े कर देने की घटना अब भी लोगों में सिहरन पैदा करती है. समय-समय पर चले पुलिसिया अभियान और आपराधिक गिरोहों के बीच छिड़े गैंगवार में लगभग आधे दर्जन गिरोहों का सफाया तो हो चुका है.
लेकिन कुख्यात दस्यु सरगना रामानंद यादव गिरोह का सिक्का दशकों से कोसी में चलता आ रहा है. रामानंद यादव उर्फ रामानंद पहलवान भले ही भूपतियों के साथ-साथ नक्सलियों के लिए नासूर साबित हुआ हो, लेकिन वह हमेशा गरीबों का हमदर्द रहा है.
कई बार तो नक्सलियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ में रामानंद यादव गिरोह ने पुलिस के लिए सहयोगी की भूमिका भी अदा की है. कहा जाता है कि शायद इसीलिए रामानंद गिरोह का सफाया अब तक संभव नहीं हो सका है. छोटे-मोटे आपराधिक गिरोहों ने ऐसे ही बड़े और ताकतवर गिरोहों के दम पर आपराधिक वैतरणी पार की है.
ऐसी बात नहीं है कि पुलिस के द्वारा अपराधिक गिरोहों पर लगाम लगाने की दमदार कोशिशें नहीं हुई हैं. ऐसे गिरोहों को नेस्तनाबूद किए जाने को लेकर अक्सर कोसी के दियारा में पुलिसिया अभियान चला है और कई बार अपराधिक गिरोह के सदस्य पुलिस के हत्थे भी चढ़े हैं.
कई नामी-गिरामी अपराधी मुठभेड़ में भी मारे गए हैं. लेकिन कहा जा रहा है कि इस बार महज पैंतीस बीघे जमीन को लेकर गैंगवार की जो पृष्ठभूमि तैयार हुई है, इसकी पटकथा समस्तीपुर जिले के एक अपराधिक पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधि ने लिखी है.
इसमें सहरसा के एक बाहुबली नेता के भी शामिल होने की बात कही जा रही है. स्थिति विस्फोटक होती जा रही है. पटना से आई एसटीएफ टीम ने दो नदियों को पार कर इस खूनी खेल पर विराम लगाने की कोशिश की.
लेकिन पैक्स अध्यक्ष राजेश यादव हत्याकांड के नामजद अभियुक्त कुख्यात दस्यु सरगना रामानंद यादव की गर्दन पुलिस के हाथ नहीं आ सकी. हालांकि चर्चा यह भी है कि राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण रामानंद यादव को पैक्स अध्यक्ष हत्याकांड का नामजद अभियुक्त बनाया गया है.
सच्चाई क्या है, यह तो पुलिस के लिए गहन पड़ताल का विषय है. लेकिन एसटीएफ के द्वारा रामानंद यादव के पुत्र रौशन यादव सहित पांच अपराधियों को हथियारों के जखीरा सहित गिरफ्तार किया जाना कोसी वासियों को नागवार गुजरा है.
खगड़िया-सहरसा सीमा के समीप स्थित चिड़ैया थाना क्षेत्र में पिछले दिनों एसटीएफ ने जिस तरह से आधी रात को धावा बोला, उससे भी ग्रामीण गुस्से में हैं. वैसे लगभग पांच वर्षों से कोसी का दियारा इलाका शांत पड़ा था.
‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए नदियों के कोख से निकली जमीन पर अपराधिक गिरोह हुकूमत कर रहे थे. लेकिन पैक्स अध्यक्ष राजेश यादव हत्याकांड ने शांत नदी में पत्थर मारने का काम किया है.
इसके बाद रामानंद पहलवान गिरोह तथा एसटीएफ के बीच मध्य रात्रि में हुई गोलीबारी, हलचल के रूप में सामने आई है. इस घटना ने बिहार के अपराध जगत, आर्थिक तंत्र और राजनीति को भी प्रभावित किया है. अभी भी खूनी टकराव की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता.