चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह और महात्मा गांधी के 150वीं जयंती को लेकर 10 अप्रैल 2017 से ही चम्पारण गांधीमय रहा है. बड़े ताम-झाम के साथ समारोहों का आयोजन किया गया. बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गइर्ं. वहीं, 2 अक्टूबर को गांधी जी की 150 वीं जयंती पर पीपरा कोठी स्थित कृषि अनुसंधान केंद्र में गांधी जी की 16 फीट की प्रतिमा स्थापित की गई, जिसका अनावरण कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने किया.
डा. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विषेशज्ञों द्वारा कृषकों की कार्यशाला आयोजित की गई. विद्यालयों और महाविद्यालयों में हुए निबंध प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया. मोतिहारी स्थित चरखा पार्क स्टेशन रोड का नाम बदलकर एम.जी रोड रखा गया. गोपालसाह विद्यालय में इंटर में कृषि विषय की पढ़ाई आरम्भ की गई. मेहसी में गांधी जयंती पर आमसभा का आयोजन हुआ.
चरखा पार्क, एमएस कॉलेज, पीपरा कोठी, जसौली पट्टी, ओलहां, जलहां, सिरनी कोठी, तुरकौलिया, तेतरिया, बालाकोठी, परिवहन कार्यालय आदि में गांधी जी का प्रतीक चिन्ह लगाया गया. लेकिन, पूरे वर्ष के घटनाक्रम की समीक्षा करें तो पाते हैं कि सारे समारोहों में राजनीतिक लाभ के लिए गांधीवाद की मार्केटिंग की जाती रही. यहां एक बार फिर वोट की चोट से बापू टुकडों में बंटते रहे.
तत्कालीन डीएम ने गांधी से जुड़े 18 स्थलों को चिन्हित किया था
1990 के दशक में महात्मा गांधी से ज़ुडेे स्थलों के विकास का इतिहास शुरू हुआ. तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक कुमार जो वर्तमान में बिहार सरकार के मुख्य सचिव हैं, ने बडी मेहनत से चम्पारण के ऐसे 18 जगहों को चिन्हित किया था, जहां गांधी जी गए थे. इन स्थलों पर गांधी जी किसान आन्दोलन के दौरान जांच टीम के सदस्य के रूप में या शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता अभियान चलाने के लिए गए थे.
इनमें मोतिहारी स्थित गोरखबाबू का मकान, जसौली पट्टी, चन्द्रहींया, तुरकौलिया, ओलहां कोठी, गजपुरा, रामसिंह छतौनी, मोतिहारी जिला परिषद्, पीपरा कोठी, राजपुर, मधुबन, बडहरवा लखनसेन, चिरैया मधुबनी आश्रम आदि उल्लेखनीय हैं. तत्कालीन डीएम दीपक कुमार ने इन स्थलों पर उनके इतिहास का शिलालेख लगवाया. गांधी जी की मूर्ति लगवाई, ताकि नई पीढ़ी के लोग गांधी जी को जानें, गांधीवाद को समझें और अपने गौरवशाली इतिहास का साक्षात्कार कर सकें. हालांकि 6 जगहों पर गांधी जी की मूर्ति विभिन्न कारणों से टूट गई.
नीतीश कुमार अपनी घोषणाओं को भी भूल गए
गांधी से जुड़े स्थलों में सबसे अहम रहा चन्द्रहिया. चन्द्रहिया में गांधी जी की मूर्ति स्थापित की गई और आश्रम का निर्माण किया गया. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी चन्द्रहिया से मोतिहारी के गांधी बाल उद्यान तक 9 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह की शुरूआत की थी.
ज्ञातव्य हो कि तब बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार थी. केन्द्र की भाजपा सरकार और बिहार के महागठबंधन की सरकार सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर अलग-अलग समारोहों का अयोजन कर रही थी. मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि वर्ष के अन्त में मोतिहरी में प्रकाश पर्व की तरह भव्य और विशाल समारोह आयोजित किया जाएगा. मोतिहारी में एक स्मरणीय सिग्नेचर बिल्डिंग की स्थापना की जाएगी.
भव्य नगर भवन का निर्माण कराया जाएगा. गांधी जी से जुड़े सभी गांवों को गांधी सर्किट से जोड़ा जाएगा. लेकिन बाद में राजनीतिक परिदृश्य बदला और नीतीश कुमार ने महागठबंधन का दामन छोड़ कर भाजपा का हाथ थाम लिया. इसके साथ ही, राजनैतिक प्रतिद्वन्दिता खत्म हो गई और साथ ही चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर कार्यक्रमों की होड का सिलसिला भी थम गया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी घोषणाओं को भी भूल गए.
गांधी संग्रहालय की नहीं रही भागीदारी
मोतिहारी में गांधी स्मारक व संग्रहालय गांधीवादियों का एकमात्र पवित्र स्थल है. लेकिन पूरे शताब्दी वर्ष में गांधी स्मारक समिति का कोई योगदान नहीं रहा. जयंती पर स्मारक स्थित सत्य स्तंभ पर माल्यापर्ण के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हुआ. वहां एक अतिथिशाला का निर्माण चल रहा है.
चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर चम्पारण में गांधी टावर बनाने के बदले राज्य सरकार पटना में 85 करोड़ की लागत से टावर निर्माण करा रही है. पूरे चम्पारणवासियों और गांधीवादियों को इससे आक्रोश है. मोतिहारी से लेकर बेतिया तक कोई भी संग्रहालय, व्याखान भवन या कोई भी यादगार निर्माण नहीं हुआ. यहीं नहीं, गांधी संग्रहालय समिति को भी नया रूप नहीं दिया जा सका.
इस गांधी स्मारक सह संग्रहालय के अध्यक्ष जिलाधिकारी होते है, लेकिन आज यह जुआ और लफंगों की शरणस्थली बना हुआ है. यहां विगत 15 वर्षों से असंवैधानिक गतिविधियां चल रही हैं. जबकि जिले से वयोवृद्ध गांधीवादी मुनि जी कई बार जिलाधिकारी से स्मारक के नए समिति के निर्माण के लिए गुहार लगा चुके हैं. शताब्दी वर्ष के मौके पर गांधी दर्शन समिति नई दिल्ली के निदेशक भी एक माह तक मोतिहारी प्रवास पर रहे.
तब यह योजना भी बनाई गई कि गांधी स्मारक को नई कमिटि का गठन कर संचालित किया जाएगा, लेकिन वह भी नेताओं की घोषणा बनकर ही रह गई. इधर, कांग्रेस ने भी गांधी जी की 150 वीं जयंती मनाई. लेकिन उक्त समारोह गांधी जयंती कम, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा और प्रदेश प्रभारी राजेश लिलौटिया के सम्मान समारोह के रूप में ज्यादा दिखा. मोतिहारी के प्रजापति आश्रम में आयोजित कार्यक्रम में नेताओं को चांदी का मुकुट पहनाकर सम्मानित किया गया.
महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय को नहीं मिली ज़मीन
मोतिहारी में महात्मा गांधी केन्द्रीय विवि के निर्माण के लिए शहर से सटे बनकट, बैरिया और फुरसतपुर में 301 एकड़ भूमि चिन्हित की गई थी. लेकिन तीन साल बाद भी भूअर्जन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी. जबकि प्रभारी मंत्री से लेकर जिलाधिकारी ने शताब्दी वर्ष में विवि को भूमि उपलब्ध कराने की धोषणा की थी.
बताते हैं कि यह योजना पूर्व में राजनीतिक दांव-पेंच और अब अफसरशाही का शिकार है. विभिन्न तरह के अनावश्यक पेंच फंसा कर कुछ अफसरों द्वारा भूअर्जन की प्रक्रिया को लम्बा खींचा जा रहा है. इसको लेकर स्थानीय लोगों और संगठनों ने आन्दोलन भी किया था, जिसके बाद बनकट के 34 एकड़ भूमि का अधिग्रहण अगस्त में किया जा सका.
डीएम ने एक माह के भीतर बाकी भूमि का अधिग्रहण करने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद आन्दोलन स्थगित हो गया था. लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त कुछेक लोगों द्वारा भूअर्जन पर ग्रहण लगाने का काम किया जा रहा है. उधर फिर एक बार जिलेवासियों द्वारा उग्र आन्दोलन की तैयारी की जा रही है. महात्मा गांधी के नाम पर स्थापित एकमात्र संस्था की हालात से सहज ही समझा जा रहा है कि यहां के नेता और पदाधिकारी गांधी के विचारों को कितना जानते और मानते हैं.