अमेठी संसदीय क्षेत्र से नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता बहुत पुराना है. अमेठी में इस परिवार का आगमन 1975 में हुआ था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने अमेठी के अतिपिछड़े गांव खेरौना में काम करना शुरू किया था. वह देश भर के चुनिंदा युवा कांग्रेसियों के साथ यहां श्रमदान करने आए. इसके जरिये उन्होंने सक्रिय राजनीति में आने का ऐलान किया. यह बात अलग है कि आज तक उस खेरौना गांव की स्थिति जैसी की तैसी बनी हुई है. संजय गांधी के अमेठी में सक्रिय होने के साथ ही देश में आपातकाल घोषित हो चुका था. इसके बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में संजय गांधी और इंदिरा गांधी की बुरी तरह पराजय हुई. 1977 में अमेठी निवासी रवींद्र प्रताप सिंह ने संजय गांधी को हराकर संसद में प्रवेश किया था. 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस की वापसी हुई. इंदिरा गांधी रायबरेली और संजय गांधी अमेठी से सांसद बने. संजय गांधी के निधन के बाद 1981 में राजीव गांधी अमेठी से सांसद बने. राजीव गांधी अपने जीवन के अंतिम समय तक संसद में अमेठी की नुमाइंदगी करते रहे. 1991 में चुनाव अभियान के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या कर दी गई.
उसके बाद अमेठी की विरासत गांधी परिवार के बेहद क़रीबी कैप्टन सतीश शर्मा ने संभाली. सतीश शर्मा दो बार लगातार सांसद बने, केंद्र में पेट्रोलियम मंत्री का भी कार्यभार उन्हें मिला. उन्हीं के कार्यकाल में अमेठी क्षेत्र में राजीव गांधी पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट की आधारशिला रखी गई, लेकिन 1998 के लोकसभा चुनाव में अमेठी रियासत के राजकुमार डॉ. संजय सिंह ने भाजपा का दामन थामा. संजय सिंह ने उस चुनाव में कैप्टन सतीश शर्मा को हरा दिया. 1999 में सोनिया गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. गांधी परिवार ने उसके बाद सियासत को खुलकर अपनाया. बाद में सोनिया गांधी ने जहां अपनी सास इंदिरा गांधी की संसदीय सीट रायबरेली अपनाई, वहीं उनके बेटे राहुल गांधी ने अमेठी का नेतृत्व किया. राहुल गांधी 2004 के आम चुनाव में पहली बार अमेठी से सांसद बने. 2009 में भी राहुल गांधी ने जीत दर्ज की, लेकिन आज तक अमेठी विकास की उस किरण के लिए तरस रही है, जिसकी वहां के लोगों ने उम्मीद लगाई थी. दूसरी तरफ़ गांधी परिवार का संसदीय क्षेत्र के लिए बेहद कम उपलब्ध हो पाना भी लोगों की नाराज़गी की अहम वजह है.
बहरहाल, एक बार फिर 2014 की रणभेरी बज चुकी है. वैसे तो राहुल गांधी के ख़िलाफ़ आम तौर पर कोई विपक्षी दल मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारता, लेकिन इस बार मामला उलट है. आम आदमी पार्टी ने कुमार विश्वास को यहां से राहुल गांधी के ख़िलाफ़ मैदान में उतारा है. कुमार विश्वास अब गांव-गांव जाकर खुलकर कह रहे हैं कि राहुल गांधी युवराज हैं, अमेठी की जनता उनसे मिलने को तरस जाती है, लेकिन अगर वह जीते, तो हर वक्त जनता के लिए उपलब्ध रहेंगे. उधर भाजपा ने स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के ख़िलाफ़ चुनाव में उतारने का मन बनाया है. दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष एवं स्टार प्रचारक वरुण गांधी लोकसभा चुनाव में अपने चचेरे भाई एवं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ख़िलाफ़ अमेठी में प्रचार न करने का ऐलान कर चुके हैं.
कांग्रेस कहती रही है कि राहुल गांधी के प्रयासों से अमेठी में विकास की कई योजनाएं क्रियान्वित हुई हैं और अनेक प्रस्तावित हैं, जबकि बड़ी सच्चाई यह भी है कि कई योजनाओं का शुभारंभ तो चुनावी बयार के दौरान होता है, लेकिन बाद में उनका कहीं कोई पता नहीं चलता. शिक्षा, चिकित्सा, सड़क एवं परिवहन आदि के मामले में आज भी अमेठी प्रदेश के अन्य वीआईपी संसदीय क्षेत्रों से कहीं पीछे है. कांग्रेस इसकी सियासी वजह बताती हो, लेकिन अमेठी की जनता बार-बार इसी तर्क को सुनना नहीं चाहती. इसीलिए अपने ही गढ़ के गौरीगंज विधानसभा क्षेत्र में राहुल गांधी को काले झंडे दिखाए जाने जैसे विरोध का सामना करना पड़ चुका है. कांग्रेस दिखावे के तौर पर भले ही कुछ भी कहती रहे, लेकिन जिस तरीके से उसे पार्टी के अंदर और बाहर विरोध का सामना करना पड़ रहा है, वह कहीं न कहीं क्षेत्रीय लोगों की उपेक्षा और उनसे दूरी का नतीजा है.
गांधी की विरासत नहीं बदल सकी अमेठी की किस्मत
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