नरेंद्र मोदी देश को केवल गुजरात की तर्ज पर नहीं चला रहे बल्कि अपनी जिद , फूहड़ता और अहंकार में बचकानी हरकतों के साथ भाजपा और अपनी कौम को भी शर्मिंदा कर रहे हैं। मोदी को एक सूबे को चलाने का अनुभव था लेकिन आरएसएस को खुश करने के फेर में वे यह भूल गए कि देश कोई सूबा नहीं। नौ साल बाद इन दिनों जैसी हरकतें कर रहे हैं जैसे पूर्व राष्ट्रपति को समिति का अध्यक्ष बना देना, बिना किसी कारण से संसद का सत्र बुला लेना, संसद में अपनी छाती पीट कर ‘एक अकेला सब पर भारी’ जैसे नारे दे देना। ये हरकतें बताती हैं कि मोदी के सिर पीटने या सिर नोंचने के दिन आते दिख रहे हैं। 2019 के चुनावों से पहले अमित शाह के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थीं। तब विपक्ष आज की तरह एकजुट नहीं था। पुलवामा नहीं हुआ होता तो आप आप सोच सकते हैं कि चुनाव परिणाम क्या रहे होते। 2019 से अब तक बहुत कुछ हुआ है । मोदी के चेहरे की हवाइयां फिर उड़ रही हैं लेकिन इस बार पुलवामा जैसा कुछ कर पाने की हिम्मत नहीं क्योंकि पुलवामा पर सत्यपाल मलिक ने सारी पोल खोल कर रख दी है। इस बार अडानी के मामले से मोदी हलाकान हैं। अगर यह मामला आम गरीब के बीच चर्चा का विषय बन गया तो क्या होगा। उससे बचने के लिए इन दिनों आप जो देख रहे हैं और आगे जो देखेंगे उस पर विपक्ष कैसे पानी फेरेगा यह यक्ष प्रश्न है।
इस बार विपक्ष की एकता काबिले तारीफ है। लेकिन यह भी सत्य है कि यदि विपक्ष को ईडी , सीबीआई जैसी संस्थाओं से डराया नहीं गया होता तो विपक्ष एक तो होता पर इस तरह चुंबक जैसे नहीं। आप यह मान कर चलिए कि विपक्ष में जब तब आपस में मन मुटाव की खबरें आएंगी लेकिन परेशानी की बात इसलिए नहीं कि यह चुंबक उन्हें फिर खींचेगा। 1977 में जेपी थे और एक आंदोलन था। इस बार ईडी सीबीआई हैं। यह तो विपक्ष में एकता के सूत्र के लिए है । लेकिन जनता को भी इस सरकार ने हलाकान किया है। यानी आप कह सकते हैं कि माहौल नीचे से ऊपर तक बना हुआ है उसे सही से कैश कराने की जरूरत है। राहुल गांधी ने कहा है कि इन्होंने पूरे देश में केरोसीन छिड़क दिया है बस तीली लगाने की देर है। बहुत सही बात कही ।
हम देख रहे हैं कि विपक्ष की एकता में राहुल गांधी और कांग्रेस को बहुत क्रेडिट जा रहा है। पहली बार है कि एक नयी कांग्रेस के दर्शन हो रहे हैं। राहुल गांधी का शनै शनै परिपक्व होना भावी राजनीति के लिए शुभ संकेत है । मैं राहुल गांधी का कट्टर आलोचक रहा हूं और शायद रहता भी लेकिन जब से देखा कि राजनीति के परिप्रेक्ष्य में राहुल गांधी ने स्वयं का आकलन किया और स्वीकार किया कि अभी वे किसी भी पद के लिए फिट नहीं हैं। यह भी शिद्दत से स्वीकार किया कि मोदी के परिवारवाद के आरोप का जवाब गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को लाकर देना है इसे ही नयी कांग्रेस के संकेत मानिए। चाटुकार कांग्रेसी अभी तक नहीं समझे हैं और राहुल गांधी का बार बार प्रधानमंत्री के पद के लिए नाम ले लेना विपक्ष को कहीं न कहीं बेचैन करने जैसा है। मुझे लगता है स्वयं के लिए राहुल के निर्णय केवल राहुल के ही हैं। इसीलिए हम एक नये राहुल गांधी को परिपक्व होता देख रहे हैं इन दिनों। अभी राहुल गांधी में लड़कपन है। यह बुरा नहीं है लेकिन दृष्टि में परिपक्वता आनी चाहिए और हिंदी बोलने में भी। उत्तर भारत की राजनीति के लिए यह पहली शर्त है।
विपक्ष ने मुंबई की बैठक में अच्छे संकेत दिए यह कह कर कि जल्द ही सम्मिलित रैलियां और जनसभाएं की जाएंगी। अगर विपक्ष देश के अंतिम आदमी तक मोदी सरकार की विफलताएं, गरीबों को छोड़ अमीरों और कॉरपोरेट के फायदे में नीतियों का निर्माण और अडानी के प्रसंग को भलीभांति पहुंचा देता है और उनके बीच इन बातों को चर्चा का विषय बना देता है तो सौ फीसदी कामयाब होगा। छद्म राष्ट्रवाद का मुद्दा समझाना और देश में साम्प्रदायिक सद्भाव को इस सरकार ने किस कदर तहस नहस किया है यह बताना भी जरूरी है।
मोदी किसी भी हाल में सत्ता नहीं छोड़ेंगे, यह हर कोई जानता है। तो क्या करेंगे, इस बात की संभावनाएं और आशंकाएं तलाशिए। वे जानते हैं कि 40 प्रतिशत से भी कम वोटों के साथ वे दो बार प्रधानमंत्री बने हैं। विपक्ष के लिए इतना ही काफी है कि अभी नहीं तो कभी नहीं। अगर आम जनता तक विपक्ष अपना लक्ष्य नहीं साध सका तो मोदी की क्रूर सत्ता का दोबारा आना तय है। और तब कोई विपक्ष होगा ही नहीं यह भी तय है। विपक्ष इस बात को भी जान गया है।
कल लाउड इंडिया पर अभय दुबे शो में अभय जी ने विपक्ष को अच्छे से तो समझाया ही , संतोष भारतीय के कुछ और प्रश्नों का भी समाधान किया। यही कार्यक्रम देखने वाला यह गया है।
‘सत्य हिंदी’ का जो हाल है सो तो है ही। नीलू व्यास के कार्यक्रम में राजीव रंजन सिंह ने बड़ी पते की बात कही। उन्होंने कहा कि आप लोगों के यहां जो पैनलिस्ट आते हैं उनकी सोच बीसवीं सदी की है। यह बात दमदार तरीके से राजीव रंजन सिंह ने कही। यह दो सौ फीसदी सही है। मैं तो हर बार यही कहता हूं। नीलू का शो मनोरंजन के लिए देखिए क्योंकि नीलू खुद ही मनोरंजन करती हैं। अबंरीष जी के शो में श्रवण गर्ग जैसों को छोड़ कर बाकी सारे वही बीसवीं सदी की सोच वाले रहते हैं। अंबरीष जी भूमिका देते वक्त इतने हिलते क्यों हैं समझ नहीं आता। गर्दन ऊपर नीचे, शरीर दाएं बाएं। देखा नहीं जाता। विजय विद्रोही का अखबार की खबरों का कार्यक्रम है। एक बार फिर कहना चाहेंगे कि विजय भाई जो लोग आपसे जुड़े नहीं हैं वे सिर्फ अखबार की खबरों के लिए ही आपका कार्यक्रम देखते हैं। आपका विश्लेषण तो दूसरी जगहों पर भी सुन लेते हैं और वैसे भी आप दिन में एकाध प्रोग्राम और करते हैं तो कृपया अखबारों की सारी बातें पहले कर लें। A.C. की महीनों से….. हा।
अमिताभ ने नये लोगों को बुला कर बहुत ही अच्छा किया लेकिन बीच का व्यवधान परेशान कर रहा था। विनोद जी बहुत लंबा खींचते हैं। और जब अच्छी हिंदी बोलते हैं तो नाहक ही हिंदी के प्रोग्राम में अंग्रेजी। अमिताभ ने अच्छा टोका । यह तो सही ही है कि हिंदी फिल्मों के अच्छे दिन आ गये हैं वरना साउथ का दबदबा बढ़ता जा रहा था। आलोक जोशी की कमी खलती है। शायद कहीं अन्यत्र व्यस्त हैं। ‘सत्य हिंदी’ के लोगों को समझ लेना चाहिए जो प्रोग्राम वे कर रहे हैं उनसे कुछ होने जाने वाला नहीं। विपक्ष जनता को तैयार करे फिर जो नतीजा आएगा वही सत्य है। मोदी सरकार जाती है तो हर चैनल का महत्व है फिलहाल तो फटीचर पैनलिस्टों के साथ आप केवल स्वांत सुखाय ही कर सकते हैं। एक पैनलिस्ट राजेन्द्र तिवारी हैं अंबरीष जी के यहां रोज आते हैं। उनसे पूछा गया कि ममता बनर्जी कह रही हैं कि जल्दी चुनाव हो सकते हैं तो वे दयनीय मुद्रा में बोले मेरे पास तो ऐसी कोई जानकारी नहीं है राजनीतिज्ञों के पास ज्यादा खबरें होती हैं और हवा का रुख उन्हें पता रहता है। अब आप इस पर सिर पीट सकते हैं। जो खबरें और हवा का रुख पत्रकार के पास होता है वो और किसके पास हो सकता है। धन्य हैं आज के ये पत्रकार। न चिंतन, न जानकारी, न ठोस विश्लेषण। एस के सिंह तो आते ही कह देते हैं हमें जानकारी नहीं है। फिर भी ….
खैर नजरें गड़ाए रखिए। चलते चलते एक सुझाव अभय दुबे गौर करें। क्या ही अच्छा हो कि देश के चुनिंदा पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक सलाहकार समिति बने जो विपक्ष की सहायता के लिए हो । क्योंकि फेवीकोल से चिपके आदमी को उखाड़ने के लिए तमाम कोशिशें भी कम हैं।

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