हरियाणा के चन्द सिरफिरे भाजपाई राजनेतागण, राज्य मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के कार्यालय में मूढ नौकरशाह, प्रदेश स्वास्थ्य महानिदेशालय के लापरवाह अधिकारीगण आदि एक जघन्य भारतद्रोह के दोषी है। उनकी राष्ट्रघातक हरकत को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र फरीदाबाद के जागरुक नागरिकों ने विफल कर दिया। इनकी साजिश थी कि सात दशकों पूर्व निर्मित भारतरत्न बादशाह खां अस्पताल को बदलकर अटल बिहारी वाजपेयी के नाम कर दिया जाये।

विभाजन के बाद मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तानी पेशावर से खदेड़े गये हिन्दुओं ने फरीदाबाद के नवऔद्योगिक नगर (न्यू इंडस्ट्रियल टाउन) में बसकर अपने चन्दे से इस अस्पताल का निर्माण किया था। नाम भी इन हिन्दू शरणार्थियों ने अपने रक्षक और नायक सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खा पर रखा था। इस अस्पताल का उद्घाटन अटलजी के परम श्रद्धेय और आदर्श रहे जवाहरलाल नेहरु ने 5 जून 1951 को किया था। हालांकि बादशाह खान को ”जिन्ना के भेड़ियों” के मुंह में धकेलने वालों में नेहरु प्रथम दस्ते में थे।

अस्पताल के नामांतरण के प्रतिरोध वाले इस लोकाभियान के प्रमुख हैं भाटिया समाज के मोहन सिंह, केवल राम, बसन्त खट्टर आदि। इन सब की आयु 80 के करीब है। ये सब हिन्दू शरणार्थियों के पुरोधा हैं। फरीदाबाद के नागरिकों तथा कुछ मीडियाजनों के अभियान के फलस्वरुप यह नामान्तरण का प्रस्ताव टल गया है। पर प्रधानमंत्री कार्यालय को जागना और उससे कदम उठाने की देश को अपेक्षा है।

भला हो चण्डीगढ़—स्थित ”दि हिन्दुस्तान टाइम्स” के संवाददाता सौरभ दुग्गल का जिन्होंने इस नाम बदलने की खबर 17 दिसम्बर 2020 को साया की। दुखद आश्चर्य हुआ कि सिंध के वासी और स्वयं पत्रकार रहे लालचन्द किशनचन्द आडवाणी के इस समस्त प्रकरण पर मौन से। उनकी नजर से यह खबर जरुर गुजरी होगी अथवा मित्रों ने बताया होगा। वे माहभर टिप्पणी भी न कर पाये? अपने साथी नरेन्द्र मोदी का ध्यान तक आकृष्ट नहीं किया? ऐसी हरकत ?

भारत की नयी पीढ़ी जंगे—आजादी तथा जिन्नावादी मुस्लिम भारतद्रोहियों का इतिहास कम जानती है अत: उनसे इस देवपुरुष बादशाह खां का फिर परिचय कराना हिन्दुहित में आवश्यक है। आजादी के तुरंत बाद कुर्सी की रेस में नेहरु-पटेल ने इस अकीदतमंद देशभक्त हिन्दुस्तानी खान अब्दुल गफ्फार खान से उनकी मातृभूमि (सरहद प्रान्त) जानबूझकर छिनने दिया। पूरे भूभाग को, अंग्रेजी साम्राज्यवाद के दलाल मोहम्मद अली जिन्ना की फौज तले कुचलने दिया।

अर्थात इस भारतरत्न और उनके भारतभक्त पठानों को नेहरु—कांग्रेसियों ने “भेड़ियों” (मुस्लिम लीगियों) के जबड़े में ढकेला था। और बापू तब मूक रहे थे। दशकों तक पाकिस्तानी जेलों में नजरबंद रहे, यह फ़खरे-अफगन, उतमँजाई कबीले के बाच्चा खान अहिंसा की शत-प्रतिशत प्रतिमूर्ति थे। बापू तो अमनपसन्द गुजराती थे जिनपर जैनियों और वैष्णवों की शांति-प्रियता का पारम्परिक घना प्रभाव था|

मगर पठान, जिनकी कौम पलक झपकते ही छूरी चलाती हो, दुनाली जिनका खिलौना हो, लाशें बिछाना जिनकी फितरत हो, लाल रंग, लहूवाला पसंदीदा हो। ऐसा पठान अहिंसा का दृढ़ प्रतिपादक हो ! सरहदी गांधी नाम था उसका। अमन तथा अहिंसा का फरिश्ता था वह।

के. विक्रम राव

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