डॉ सुरेश खैरनार

अब हमेशा की तरह हाथरस कांड के दोषियो को बचाने के लिए तथाकथित सवर्णों ने गोलबंद होना शुरू कर दिया है! यह हमारे देश के कम अधिक प्रमाणमे सभी घटनाओ के बाद होते आ रहा है !

और पुलिस-प्रशासन इन केसेस को कमजोर करने के लिए या एकदम उल्टा करने के लिए काफी माहिर होते हैं और यह कृति वह ऊपर वाले आकाओ के इशरो पर ही अमूमन करते हैं या पैसा या उनका खुद का जातिगत भेदभाव भी होता है जिसका उदहारण उन्नाव रेप कांड सबसे ताजा उदहारण के लिए ले सकते हैं !

यही बात वेलूगढ हाथरस की घटना मे भी साफ नजर आता है 14 सितंबर की घटना के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने के बावजूद पुलिस ने क्या किया हा मेरा इशारा पुलिस की तरफ ही है क्योंकि हाथरस से 10 किलोमीटर दूर एक तरह हाथरस शहर का पार्ट भी कह सकते हैं और पुलिस मनीषा की खोज खबर नहीं ले रही यह गले नहीं उतरती है !

एफ आई आर नहीं करना उसके बाद एक हप्ता इतनी भयंकर रूप से प्रताड़ित बच्चि की हफ़्ते भर से ज्यादा समय अनदेखी मेरे समझ से परे है ! उस एक हप्ते से ज्यादा समय में मनीषा कहा थी और उसके साथ क्या हुआ था ? फिर इतनी देर बाद उसके इलाज के लिए ले जाने की बात भी काफी संगिन है! यह कुछ प्रश्न मेरे सामने आ रहे हैं और इसीलिये मेरा अपना एस आई टी,सी बी आई ने अपने लखनऊ स्पेशल कोर्ट के 30 सितम्बर के बाबरी मस्जिद के विध्वंस केस मे कितना ईमानदारी का परिचय दिया है वह पर्याप्त हैं और इस फैसले के बाद अपनी रही सही भी साख सी बी आई खत्म कर चुकी है और अब सी बी आई को केस सौपना याने बचे खुचे सबूत भी खत्म करने की विधि पार पाडेगी !

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी इस केस मे खीचना चाहिए क्योंकि जिलेके कलक्टर किसके इशरो पर मनीषा के शव को जलाने का काम कर रहे थे ? और पीडित परिवार के लोगों को बंद कर के जींस तरह उनसे बातचीत करते हुए उनकी लिंक देखी है वह आदमी रात के अन्धेरे मे गावमे बैठकर परिवार के लोगों को सरकार का महत्त्व समझाने के नामपर सीधा सीधा धमका रहा था ! यही बात वह यह सब कुछ किसके ईशारो पर कर रहे थे यह सब सामने आना चाहिए ! क्यों की आदीत्य नाथ जिस ढंग अचानक हरकत में आकर 25 लाख रुपये का लालच देकर और परिवार के लोगों को सरकारी नौकरी का एलान कर रहे हैं वह दाल में कुछ काला है ! और सबसे संगीन बात परिवार के लोगों को बार-बार मिन्न्ते करने के बावजूद उस बच्ची के शव का दर्शन नहीं करने देना यह इलाहबाद हायकोर्ट के एक केसके निर्णय की अवहेलना का मामला बनता है और जिस हिंदू धर्म के नाम पर छाती पिट पिट कर रजनिति कर रहे हैं उसके भी संकेतो का और परम्परा का भी उल्लंघन है कम से कम मृतकों के रिस्तेदारो को मुख दर्शन घर के सामने लाकर नहीं करने देना सर्वस्वी कानून से लेकर हमारी परंपरा का उल्लंघन है और इसिलिए माँ-बाप का आरोप सही है कि सचमुच हमारी ही बेटी का शव था या किसी और का ? और सही भी है कि अगर ऊसी बच्ची का शव था तो गाव में लाकर नहीं दिखाना यह बहुत ही अमानवीय कृत्य पुलिस ने और वह भी जिलेके मुखिया कलेक्टर की भूमिका बहुत ही संशयस्पद है ! और वैसे भी इस कलेक्टर को सब काम छोडकर इस काम को अंजाम देने के लिए लगाना भारतीय सिविल सर्विस के इतिहास मे अनूठा और अजीबो गरीब फैसला लगता है और इस लिये इस केस मे सरकार के ऊपर भी ऊँगली उठाने वाले सही है और वर्तमान समय की सरकार के रहते हुए इस केस मे कुछ भी नहीं सत्य बाहर आयेगा इसे हटाकर उसकी स्वतंत्र रूप से जाँच करनी चाहिए और सीबीआई से तो बिल्कुल भी नहीं क्योकिं ऊसी सीबीआई को यूपीए की सरकार के समय बिजेपी ने हमेशा ही उसे पोपट या सरकार का मिठ्ठू कहा है ! और हमारा सी बी आई पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है तो अब वह सीबीआई 6 सालों के दौरान एकदम वाल्या डाकु से वाल्मिकी ऋषी बन गई ? इसलिए मनीषा के परिवार वाले लोग जो माँग कर रहे हैं वह पूरी की जानी चाहिये क्योकिं अब अगर आदीत्य नाथ कड़ी से कड़ी सजा की बात कर रहे हैं तो और संशय गहरा होता जा रहा है क्योंकि उन्नाव की केस मे क्या किया गया है यह बात जग जाहिर है

खैरलांजि महाराष्ट्र के भंडारा जिले की घटना 29 सितम्बर 2006 के दिन! याने आज से चौदह साल पहले की महान महाराष्ट्र में जो महात्मा ज्योतिबा फुले,डॉ बाबा साहब आंम्बेडकरजी,छत्रपति शाहूजी महाराज और वह कम पडते हैं तो फिर संत तुकाराम महाराज,तक हम लोग किसी भी सभा मे भाषण शूरू करने के पहले इन सभी महान विभूतियों के नाम लेकर ही आगे बढते हैं !

खैरलांजि की घटना को पहले अनैतिक सम्बध का परिणाम बोलकर मिडिया के एक तबके ने प्रचारित किया था और बीजेपी के वहाके विधायक महोदय तो हाथरस के विधायक राजवीर सिंह पहलवान जैसा सवर्ण समाज के तारनहार बनकर मैदान मे उतर आए थे !

और सामाजिक समरसता के पैरोकार करने वाले राष्ट्रव्यापी संगठन के मुख्यालय नागपूर से सिर्फ 70 किलोमीटर दूर के खैरलांजि की घटना पर जो मौन साधकर बैठे वह मौन हाथरस तक कायम है ! जो की उस प्रदेश मे बीजेपी की सत्ता है और 2019 से सत्ता में आने के बाद 1000 से कुछ ही कम महिला अत्याचार की घटनाएं घटित हुई है !

शुरुआत सहराणपूर के 14 एप्रिल डॉ बाबा साहब आंम्बेडकरजी के जयन्ती पर कबीर मंदिर परिसर में उनकी मुर्ति को लेकर राजपूत समाज के लोगों ने आक्रमण करके चमार समाज के ऊपर हमला करने से लेकर महिलाओ के साथ भी अशोभनीय व्यव्हार किया गया था और दो लोगों की जाने ली गई है! इस घटना के बाद भी अदित्यनाथ ने सहराणपूर जाने के रास्ते बंद कर दिए थे जो की उस समय कोई कोरोना का अक्ट नहीं था! और यह आदीत्य नाथ की कार्य प्रणाली का पार्ट लगता है और जिस कारण मै खुद वापस लौटा हूँ ! उसके बाद ऊत्तरप्रदेश मे जितनी भी दलितो के साथ अत्याचार की घटनाये हुई है सभी जगहों पर आदित्यनाथ ने किसी को भी जाने नहीं दिया है मेरे मित्र पूर्व डीआईजी एस आर दारापुरीजि को भी नहीं जाने दिया उल्टा उनको गिरफ्तार किया गया था !

जो हाथरस के घटना के बाद वूलगढी जो हाथरस से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है! मीडिया से लेकर अन्य लोगों को नहीं जाने दे रहे हैं जिसमे राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी भी है ! लेकिन जिस कोरोना अक्ट का बहाना बनाकर रोक लगा दी है उसीकी ऐसी की  तैसी करते हुए सवर्णों की पंचायत बखुबी चल रही है ! और हम अपने लोगों को बचाने के लिए कुछ भी करेंगे कि घोषणा कर रहे हैं ! बिल्कुल 14 सालों पहले की खैरलांजि की घटना और उसके दरमियान जितने भी कांड हुये है उन सभी में मै यह ट्रेंड लगातार देख रहा हूँ !

और मन ही मन मे हैरान हूँ कि हमारे देश के लोगों की संवेदना इतनी थोती हो गई है कि न्याय अन्याय का विवेक की जगह हमारे समाज के लोग,हमारे समाज के लोग के आधरपर इतने जधन्य कांड को छोड़कर अपने समज की बात करते है और उन्हे तनिक भी लज्जा या शर्म नहीं आती कि हमारे भी घर में बहु बेटी हैं ! और उसके साथ अगर इस तरह हुआ होता तो हमारी प्रतिक्रिया क्या हुई होती ?

लगता है कि तुलसीदास जी के ढोर गवार,शूद्र,नारी सकल ताड़नके अधिकारी चोपाई का शब्द्शा पालन कर रहे हैं !और वह कम लगता है तो 5000 साल पुराने मनुस्मृति का महिमा मंडन 5 अगस्त को सन्घके प्रमुख अयोध्या में जाकर करके ही आये हैं !

शायद ही दुनियाँ में कही इतना स्री शूद्रो के बारे में भयंकर ग्रंथ होगा जो सामजिक विषमता को इतनी बेशरमी से लिखा हुआ होगा ! और इसीलिये डॉ बाबा साहब आंम्बेडकरजी ने महाड मे 1937 मे सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति का दहन किया है ! और 1949 मे उन्होने भारत के संविधान की घोषणा की तो दो दिन के बाद सन्घके अन्ग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनायझर ने दो बडे लेख लिखकर देश विदेश के संविधानोकी नकल कर के बनाया संविधान हमे मंजूर नहीं है और 5000 हजार साल पुराना ऋषी मनु द्वारा लिखा संविधान रहते हुए इस गुदड़ीकी क्या जरूरत है ?

और ताजा 5 अगस्त को वर्तमान सन्घके प्रमुख ने दोबारा उसका ब्राह्मण के श्रेष्ठता का श्लोक राम मंदिर के निव डालते हुए कहा है और यह सब गैर ब्राह्मण समाज से आये हुए प्रधान-मंत्री,मुख्यमंत्री और राज्यपाल की उपस्तिथि में ! 2020 सालमे ! प्रधान-मंत्री 2021 मे याने सिर्फ चार महीने के बाद आनेवाले समय में भारत विश्व गुरु बनेगा!और सन्घके प्रमुख उनकी ही उपस्तिथि में ब्राह्मण कैसा विश्व गुरू है यह कह रहे थे !

खैरलांजि की घटना की जाँच मे जाते हुए रास्ते में भंडारा मे हमारे परिवार के करीब एक घर पर चाय पीने के लिए रुके थे तो उन्होने पुछा कैसे आना हुआ ? तो मैंने कहा कि मैं खैरलांजि की घटना की जाँच करने के लिए जा रहा हूँ तो उस घर की महिला बोली उसमे क्या जाँच करनी है वह तो एक बदचलन औरत का मामला है! मैने पूछा कि चलीये मान लेते हैं की वह एक बदचलन औरत का मामला है तो अंदाजन बताईये आपके शहर में कितनी ऐसी औरते होंगी जिनके माथेपर यह ठप्पा लगा है ? तो क्या उन सभी को खैरलांजि की घटना जैसा मार डाला जाय ? तो वह सकपकाते हुये बोली की नहीं मेरा बोलनेका यह मतलब नहीं है ! मैंने कहा माफ कीजिएगा यह आप नहीं आपके भीतर की जातिगत भेदभाव की बात पीढ़ी दर पीढी से चली आ रही है मनुस्मृति वही बोल रही है ! और मैं खैरलांजि की घटना की जाँच करने के बाद आपको वह रिपोर्ट अवश्य बताऊंगा कि सही क्या हुआ है !

हाथरस में तो कलेक्टर सवर्ण समाज से है लेकिन भंडारा मे कलेक्टर नोर्थईस्ट की आदिवासि,एस पी दलित,आन्धलगाव पुलिस स्टेशन का इंचार्ज दलित और क्लायमेक्स पोस्टमार्टम करने वाली लेडी डॉक्टर दलित और उसके बॉस सिविल सर्जन भी दलित !

और भोतमांगे परिवार के लोगों को मारने वाले लोग कौन थे ? सरपंच गौंड आदिवासी और अन्य सभी ओबीसी ! और उसमे कुछ महिला भी है ! और सबसे हैरानीकी बात लगभग पुरा गाव ही उस घटना के लिए जिम्मेदार है ! क्योकिं उस गाव में भोतमांगे परिवार के अलावा सिर्फ एक मेश्राम नामक एक परिवार रहता था जिसका 20-25 साल की उम्र का जवान बेटे को कुछ दिनों पहले मारकर मुम्बई-हावड़ा रेलवे लाइन पर फेक दिया था और अभिभी हत्या करने वाले लोगों का पता नहीं चला है !

भोतमांगे परिवार भी नागपूर के पास कामठी से अपने जीवन यापन के लिए खैरलांजि मे रहने आये थे सुरेखा भोतमांगे यह 40-45 साल की मा और उसके दो बेटे और प्रियंका नामकी बारहवी कक्षा में पढने वाली बेटी और भैयालाल भोतमांगे सुरेखा के पति जो घटना के समय घर पर नहीं थे इसलिए बच गये थे ! और दोनो बेटे और माँ-बेटी चारो को मारने के लिए लगभग पुरा गांव वालों ने मिलकर मार डाला और ट्रक्टर की ट्रॉली में चारो वस्रहीन शवो की जुलूस की शक्ल में गाँव मे से यात्रा निकाली गई है ! और बाद मे बगल के केनॉल मे फेक दिया! लेकिन पांच साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्गो में से कोई भी मुह खोलने को तैयार नहीं था मै तीन-तीन बार गया हूँ लेकिन मेरे हाथ में कुछ खास आया नहीं क्योकिं मेश्राम परिवार डर के मारे मुह नहीं खोल पा रहा है ! और बाकी गाव के अन्य लोगों का तो बोलने का सवाल ही नहीं उठता ! और महाराष्ट्र की 14 साल पुराने खैरलांजि की घटना की जाँच करने के बाद मेरा आकलन है कि 2006 अक्टूबर 6 के दिन डॉ बाबा साहब आंम्बेडकरजी के धम्म परिवर्तन को 60 साल पूरे हो रहे थे और वैसे भी इस दिन देश दुनिया भर से लखो की संख्या मे लोग नागपूर के दीक्षा भुमि पर इकठ्ठे होते हैं और वह साल तो 60 वर्ष पूरे होने का साल था 2006 ! पर अवश्य ही उससे ज्यादा लोगों का नागपूर के दीक्षा भुमि पर आना सप्टेंबर के 29, 30 तारीखो से ही शुरुआत हो गई थी और खैरलांजि की घटना को दबाने हेतू महाराष्ट्र सरकार की तरफ से लॉ एंड आर्डर की नामपर जो हर सरकार का तकिया कलाम होता है! पूरी ताकत लगा दी थी और सभी कर्मचारियो को दलित होनेके बावजूद सक्त हिदायत दी गई होगी कि यह सब रफा दफा कर दीजिये ! और मेरे पास पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दोनो महिलओ के हाथो पर उनके नाम के टटटू लीखा होनेके बावजूद एफ आई आर मे दोनो महिलओ के अज्ञात शव मिले लिखा है ! वैसा ही दोनो लड़को के गुप्तांगों को पत्थर  या किसी कडी वस्तु से कुचला हुआ था और दोनो महिलओ के गुप्तांगों में लकड़ी ठुसी हुई थी और दोनो के स्तन काटे हुये होने के बावजूद ना ही एफआईआर और ना ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसका जिक्र है !

और इस घटना के पहले कुछ लोगो ने इनके घर आने जाने वाले मामा राजेन्द्र के साथ झगड़ा किया उसका रिपोर्ट सिर्फ मामूली झड़प हुई लेकिन अट्रोसिटी का अक्ट नहीं लगाया इसलिये यह सब दुसरे ही दिन जमानत पर रिहा होने के कारण तुरंत भोतमांगे परिवार के घर पर हमला करके घर में दो जवान बेटे और प्रियंका नामकी बेटी और सुरेखा नामकी माको एक साथ मार डाला और उनके कपडे उतारकर उनके गुप्तांगों कि बच्चो के लिंग कुट कुट्कर नष्ट कर दिया और दोनो माबेटी के गुप्तांगों में लकडी थूसकर दोनो के स्तन काट डाले थे लेकिन यह बात ना ही इन्क्वेस्ट पन्चनामा मे है और नाही एफ आई आर और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ! जो की यह सब कर्मचारी नीचे से लेकर जिला मुख्यालय तक सभी दलित और कलेक्टर साहिबा एक हमारे ऊत्तरपूर्वी राज्य से एक आदिवासियो में से एक होने के बावजूद जब खैरलांजि की केसमे कानून के हिसाब से कुछ भी दम नहीं है और यह सब इन लोकल कर्मचारियो ने अपने मर्ज़ी से किया यह बात मेरे गले नहीं उतरती है ! इसमे हमारे महान महाराष्ट्र के बहुत उच्च स्तर के लोगो के इशरो पर भंडारा मे 14 साल पहले सभी पिछड़े जातीके अधिकारियो को ऊपर बैठे हुए आकाओ की बाते अमल में लानी पडी है और यह बात हाथरस को भी लागू होती है और इसिलिए मै भी पीडित परिवार के लोगों साथ स्वतंत्र एजेंसी द्वारा की जाने की मांग कर रहा हूँ !

और मैने अपने जिवन मे जीतने भी घटना के बाद जाँच की है सभिमे यही बात आती है कि हम तो जाँच करने के बाद वापस आ जाते हैं और उस जगह पर तो पीढ़ी दर पीढी ये लोग रहते है और आगे भी रहेंगे तो हमारे पीछे इन्हे कौन है जो रोजमर्रा के जीवन में काम आता हो? अब दलितों का ही उदहारण लेकर देखेंगे तो आज भी 99% दलितो के पास नाही अपनी खु द्की जीविका के लिए जमीन या अन्य किसी भी प्रकार के संसाधन नहीं है और वह हर तरह से गाव के दबंग जतियो के लोगों पर निर्भर है ! और उन दबंगो को सदियो से अपने ऊपर निर्भर रहने वाला अपनी जमिन जायदाद जैसा अपनी ही संपत्ति का पार्ट लगता है और संत तुलसीदास और मनुस्मृति तो है ही ! ईसलिये वह सदियो से अपनी मनमाना आचरण उस अवलंबन वाले लोगों के साथ और मुख्यतः उनके परिवार की महिलाओ के साथ ऐसा ही व्यव्हार करते आ रहे हैं और इसिलिए डॉ बाबा साहब आंम्बेडकरजी ने आज से 100 साल पहले ही गाव छोडो और शहरों की तरफ चलो का नारा बुलंद किया था और हमारे गाँधी जी के अनुयाइयों ने कभी भी  इस पीडा को नाही समझा और नाही समझने की कोशिश की एक रोमांटिक कल्पना के तहत गाव चलो का मंत्र जपते रहते हैं ! जो गाव पिछडी जतियो के शोषण के हजारों सालों पहले से केंद्र बने हुए हैं जहा पर उसे निचली जातियों में जन्म लेने की बात कदम कदम पर याद दिलाने का काम किया जाता है! और इसीलिये मुझे बाबा साहब आंम्बेडकरजी के घोषणा में दम दिखता है !

अब इस हाथ रस जिले के वुलगढी नाम के 1400 की आबादी वाले गाव मे कुछ घर दलितो के छोडकर अन्य सभी राजपूत और ब्राह्मण समाज के लोग है और 14 सितंबर की घटना के बाद अब जब मीडिया की और से उजागर होने लगा तो आस पास के 14-15 गावो के सवर्ण गोलबंद होना शुरू कर दिया है जो मैने 14 साल पहले के खैरलांजि की घटना के बाद भी देखा है ! अब वह सिर्फ वूलगढी का मामला नहीं रहेगा शायद पूरे ऊत्तर भारत मे फैलने की सम्भावना है और बगल के बिहार के चुनाव तो है ही ! जब एक सिनेमा वाले के लिए पूरी पार्टी अपनी एडी चोटी लगाकर पिछ्ले दो महिनो से मीडिया को देखकर लगता नहीं कि इसके अलावा कोई मुद्दा नहीं है ! जिस बेशरमी से एन्कर से लेकर उसमे श्यामील बिजेपि या सन्घ के प्रतिनिधि बोल रहे हैं वह भी कोरोना की महामारी से एक लाख लोग मारे गए और मनीषा जैसी हर सातवे मिनटों में एक महिला बलत्कार की घटना की शिकार हो रही है ! धन्य हैं भारत और उसके भारत माँ जिंदाबाद बोलने वाले सपुतो की !

 4 अक्तूबर 2020,नागपुर

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