पुनरीक्षण के बाद जो नई सूची बनी उसमें भी राघवेंद्र के लोग भरे हुए हैं. महाधिवक्ता के तीन खास लोग तो एडिशनल चीफ स्टैंडिंग काउंसिल के पद पर स्थापित किए गए हैं. इनमें रणविजय सिंह, प्रदीप कुमार सिंह और डॉ. उदयवीर सिंह शामिल हैं. पक्षपात का कानूनीकरण इस कदर किया गया कि रणविजय सिंह, जो पहली सूची में स्थाई अधिवक्ता (स्टैंडिंग काउंसिल) नियुक्त हुए थे, उन्हें इन्हीं तीन महीने के अंदर तरक्की देकर एडिशनल चीफ स्टैंडिंग काउंसिल बना दिया गया. चतुर खिलाड़ी राघवेंद्र सिंह ने इसका खास तौर पर ध्यान रखा कि रणविजय सिंह प्रदेश सरकार के अपर विधि परामर्शी (एडिशनल एलआर) रणधीर सिंह के सगे भाई हैं. लिहाजा, यह गोट राघवेंद्र के लिए जरूरी था. इस प्रभाव-वाद में कानूनी प्रक्रिया और प्रावधानों की इस कदर धज्जियां उड़ाई गईं कि पुनरीक्षण कमेटी का सदस्य नहीं होने के बावजूद रणविजय सिंह को सारी बैठकों में शामिल किया जाता रहा. जबकि महाधिवक्ता की अध्यक्षता वाली पुनरीक्षण कमेटी में न्याय विभाग के प्रमुख सचिव उमेश कुमार, गृह विभाग के प्रमुख सचिव अरविंद कुमार और मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एसपी गोयल सदस्य थे.

नव-नियुक्त सरकारी वकीलों की लिस्ट में शुमार शैलेंद्र कुमार सिंह मुख्य स्थाई अधिवक्ता (तृतीय), रामप्रताप सिंह चौहान अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता, राजेश तिवारी स्थाई अधिवक्ता, आनंद कुमार सिंह स्थाई अधिवक्ता, कुलदीप सिंह स्थाई अधिवक्ता, देवी प्रसाद सिंह स्थाई अधिवक्ता, राजेश कुमार सिंह स्थाई अधिवक्ता, अनुपमा सिंह स्थाई अधिवक्ता, आशुतोष सिंह स्थाई अधिवक्ता, जयवर्धन सिंह वाद-धारक (ब्रीफ-होल्डर), संजय कुमार सिंह वाद-धारक, सोमा रानी वाद-धारक, वीरेंद्र सिंह वाद-धारक, दीपक कुमार सिंह वाद-धारक, संतोष कुमार सिंह वाद-धारक, शिशिर सिंह चौहान वाद-धारक, धीरज राज सिंह वाद-धारक, सभाजीत सिंह वाद-धारक, श्याम बहादुर सिंह वाद-धारक और अंशुमान वर्मा वाद-धारक प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह के कोटे वाले सरकारी अधिवक्ता हैं. महाधिवक्ता ने अपने खास आदमी उदयवीर सिंह को स्थाई अधिवक्ता के पद से प्रमोट करते हुए उन्हें अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता बना दिया, जबकि उदयवीर सिंह की योग्यता पर अदालत परिसर में चुटकुल चला करते हैं. भाजपा लीगल सेल के कुलदीप पति त्रिपाठी सरकारी वकीलों की नियुक्ति के लिए संगठन की तरफ से लिस्ट बनाने के काम में लगे थे, वे खुद अपर महाधिवक्ता बन बैठे. कुलदीप पति त्रिपाठी पर वकीलों ने घूस लेने और घूस की रकम संदीप बंसल तक पहुंचाने के आरोप लगाए हैं. 2001 बैच के वकील कुलदीप पति त्रिपाठी को इतने महत्वपूर्ण पद पर बिठाए जाने का कोई न कोई ठोस कारण तो रहा ही होगा. सरकारी वकीलों की पहली सूची में शामिल रहीं शिखा सिन्हा को महज इसलिए हटा दिया गया कि वे महाधिवक्ता की चाटुकार-चौकड़ी में शामिल नहीं थीं. सपा सरकार के समय से तैनात अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता राहुल शुक्ला, अभिनव एन. त्रिपाठी, देवेश पाठक, पंकज नाथ और विवेक शुक्ला को ताजा सूची में भी जारी रखा गया है. स्टैंडिंग काउसिंल के पदों पर भी सपा सरकार के समय से तैनात सरकारी वकीलों को फिर से जारी रखा गया है. इनमें शोभित मोहन शुक्ला, नीरज चौरसिया, मनु दीक्षित वगैरह के नाम प्रमुख हैं. ब्रीफ होल्डर के पद पर भी सपाई वकीलों को जारी रखा गया है. आपको याद ही होगा कि रामजन्म भूमि मुकदमे से जुड़ी वकील रंजना अग्निहोत्री ने बंसल-राघवेंद्र गठजोड़ के खिलाफ सरकारी वकील के पद से इस्तीफा दे दिया था. भाजपा की प्रदेश मीडिया प्रभारी रह चुकीं अनीता अग्रवाल ने भी सरकारी वकील के पद पर अपनी ज्वाइनिंग देने से इंकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि वे भाजपा से पिछले 30 साल से जुड़ी रही हैं. उनकी उपेक्षा कर उनसे काफी जूनियर वकीलों को अपर महाधिवक्ता बना दिया गया है. ऐसे में वह स्टैंडिग काउंसिल के पद पर कार्य नहीं कर सकतीं. अधिवक्ता परिषद की डॉ. दीप्ति त्रिपाठी ने भी परिषद के वकीलों और महिला वकीलों की अनदेखी किए जाने के कारण सरकारी वकील का पद अस्वीकार कर दिया था.


सरकारी वकीलों की नियुक्ति में जज-आश्रितों को किस तरह आश्रय दिया गया, उसका ब्यौरा भी देखते चलें. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण के भाई विनय भूषण को मुख्य स्थाई अधिवक्ता (द्वितीय) बनाया गया. विनय भूषण समाजवादी पार्टी के शासनकाल में अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता थे. अब इन्हें तरक्की देकर स्थाई अधिवक्ता नियुक्त कर दिया गया है. इसी तरह जस्टिस बीके नारायण के बेटे एनके सिन्हा नारायण और बहू आनंदी के नारायण दोनों को सरकारी वकील नियुक्त कर दिया गया. इनके अलावा जस्टिस केडी शाही के बेटे विनोद कुमार शाही को अपर महाधिवक्ता बनाया गया है. जस्टिस आरडी शुक्ला के बेटे राहुल शुक्ला अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता, स्व. जस्टिस एएन त्रिवेदी के बेटे अभिनव त्रिवेदी अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता, जस्टिस रंगनाथ पांडेय के रिश्तेदार देवेश चंद्र पाठक अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता, जस्टिस शबीहुल हसनैन के रिश्तेदार कमर हसन रिजवी अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता, जस्टिस एसएन शुक्ला के रिश्तेदार विवेक कुमार शुक्ला अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता, जस्टिस रितुराज अवस्थी के रिश्तेदार प्रत्युष त्रिपाठी स्थाई अधिवक्ता और जस्टिस राघवेंद्र कुमार के पुत्र कुमार आयुष वाद-धारक नियुक्त किए गए हैं. नई सूची में जस्टिस यूके धवन के बेटे सिद्धार्थ धवन और जस्टिस एसएस चौहान के बेटे राजीव सिंह चौहान को एडिशनल चीफ स्टैंडिंग काउंसिल बनाया गया है. पश्चिजम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के बेटे नीरज त्रिपाठी को इलाहाबाद हाईकोर्ट को अपर महाधिवक्ता बनाया गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दिलीप बाबा साहेब भोसले के बेटे करन दिलीप भोसले को अखिलेश सरकार ने नियुक्त किया था, योगी सरकार ने भ्ज्ञी उसे जारी रखने की अनुकम्मपा कर दी. ऐसे उदाहरण कई हैं. सरकारी वकीलों की नियुक्ति से सरकार की साख इतनी गिर गई है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के दोनों परिसरों इलाहाबाद और लखनऊ में जजों के रिश्तेदारों को जज-आश्रित कह कर बुलाया जाता है और तमाम कटाक्ष हो रहे हैं. नियुक्ति प्रसंग में जज भी खूब रुचि ले रहे थे. सरकारी वकीलों की लिस्ट में जज-आश्रितों की खासी संख्या इस बात की आधिकारिक सनद है.


आपको फिर से याद दिलाते चलें कि सरकारी वकीलों की नियुक्ति के लिए योग्य वकीलों की लिस्ट बनाने का जिम्मा प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल ने संभाली थी. उनका साथ दे रहे थे उन्हीं की टीम के खास सदस्य अशोक कटारिया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से अलग से लिस्ट बनाई जा रही थी. अधिवक्ता परिषद की तरफ से भी योग्य वकीलों की लिस्ट बनाई जा रही थी. दूसरी तरफ कानून विभाग के प्रमुख सचिव रंगनाथ पांडेय भी रंगीन खिचड़ी पका रहे थे, किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी. लेकिन नियुक्ति के बाद जो लिस्ट बाहर आई उसने बंसल और प्रमुख सचिव की पोल खोल कर रख दी. यह उजागर हुआ कि सरकारी वकीलों की नियुक्ति में पैरवी और घूसखोरी जम कर चली जिसका परिणाम यह हुआ कि संगठन और सरकार की प्रतिष्ठा को ताक पर रख कर तमाम पैरवी-पुत्रों, जज-आश्रितों, मंत्री और महाधिवक्ता के गुट के लोगों और समाजवादी सरकार के समय के अधिकांश सरकारी वकीलों को फिर से नियुक्त कर दिया गया. योग्यता का मापदंड बहुत पीछे छूट गया. सरकारी वकीलों की लिस्ट में जजों के बेटे और नाते-रिश्तेदारों को शामिल कर कानून विभाग के प्रमुख सचिव रंगनाथ पांडेय खुद जज बन गए और बड़ी बुद्धिमानी से पर्दे के पीछे चले गए. अधिवक्ता सत्येंद्रनाथ श्रीवास्तव ने रंगनाथ पांडेय की करतूतों का पूरा कच्चा चिट्ठा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजा था. इसकी प्रतिलिपि इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के अलावा प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी भेजी गई थी. पीएमओ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस मामले की गहराई से जांच कराने को भी कहा था. लेकिन यह सब ढाक के तीन पात ही साबित हुआ. श्रीवास्तव की शिकायत में यह स्पष्ट लिखा है कि विधि विभाग के प्रमुख सचिव रंगनाथ पांडेय पद का दुरुपयोग कर और विधाई संस्थाओं को अनुचित लाभ देकर हाईकोर्ट के जज बने हैं. पांडेय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच में सरकारी वकीलों की नियुक्ति को अपनी तरक्की का जरिया बनाया. नियुक्ति प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानकों की पूरी तरह अनदेखी की. खुद जज बनने के लिए सारी सीमाएं लांघीं. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के रिश्तेदारों को सरकारी वकीलों की लिस्ट में शामिल किया और एवज में जज का पद पा लिया. रिश्व तखोरी की यह नायाब घटना है.

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