cmसरकारी आवास खाली करने में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने खूब नौटंकी की. मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश में छेद निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन जब देश की सर्वोच्च अदालत ने उनकी एक नहीं सुनी तब मजबूर होकर उन्हें सरकारी आवास खाली करना पड़ा. उस मजबूरी को भी राजनीतिक रंग देने की हरकत से वे बाज नहीं आए. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आते ही प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री के बतौर मिला सरकारी आवास खाली करने की घोषणा कर दी थी.

नारायण दत्त तिवारी गंभीर हालत में दिल्ली के अस्पताल में भर्ती हैं, लिहाजा तिवारी परिवार की तरफ से समय मांगने का तर्क भी है, लेकिन मुलायम, अखिलेश और मायावती ‘जुगाड़’ निकालने में क्यों लगे थे? अब जब इनके आवास खाली हो गए हैं, तब लोगों के समक्ष यह उजागर हो पाया है कि वे घर क्यों नहीं खाली करना चाहते थे. उन घरों के अंदर जिस तरह की आलीशान साज-सज्जा और अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थीं, उन्हें छोड़ कर जाना मुलायम-अखिलेश-मायावती जैसे नेताओं के लिए मुश्किल तो था ही. उन आलीशान साज-सज्जाओं को देखने से लग रहा है कि इन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सरकार का कितना धन अनापशनाप तरीके से खर्च कराया.

बसपा और सपा में तो होड़ थी कि किसका बंगला सबसे न्यारा. मायावती के प्रत्येक कार्यकाल के बाद उनका बंगला नए सिरे से संवारा जाता और अधिक आलीशान कलेवर दिया जाता. मुलायम सिंह यादव ने पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में विक्रमादित्य मार्ग के दो बंगलों को मिलवा कर भव्य आवास तैयार करा लिया था. इसके बाद अखिलेश यादव ने अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले ही 4, विक्रमादित्य मार्ग पर अपने लिए विशाल बंगला निशाने पर ले लिया. उसे भव्यता से बनवाया गया, जिसका एक दरवाजा पिता मुलायम सिंह यादव के घर में भी खुलता था. इस विशाल बंगले को और विशाल करने के लिए पीडब्लूडी कर्मियों के आवास भी तोड़कर मिला लिए गए. इस तरह अखिलेश की ड्योढ़ी का दरवाजा एक तरफ विक्रमादित्य मार्ग पर खुलता था तो दूसरा कालीदास मार्ग पर.

राज्य सम्पत्ति विभाग के गलियारे में आम चर्चा थी कि अखिलेश यादव के इस बंगले के निर्माण और साज-सज्जा पर करीब सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. बंगले में पांच सितारा बाथरूम, इटैलियन मार्बल, बेल्जियन ग्लास और एयरकंडीशंड बैडमिंटन हॉल जैसी सुविधाएं शामिल थीं. मायावती को यह कैसे सुहाता..! उनकी कोठी अखिलेश की कोठी से कम कैसे..! अभी मायावती की कोठी को भी और आलीशान करने की योजना बन ही रही थी कि सुप्रीमकोर्ट के आदेश ने बंटाधार कर दिया. दरअसल, ये भारतीय लोकतंत्र के राजा-रानी हैं, जो जनता को बेवकूफ बना कर सत्ता हासिल करते हैं और जनता को ही चूस कर मोटा माल बनाते हैं.

इन तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों में से एक मायावती ने तो अपने सरकारी आवास को कांशीराम विश्रामालय का स्वरूप देकर उसे बचाने की बचकानी कोशिश की. दूसरी तरफ मुलायम और अखिलेश ने यहां तक कह दिया कि लखनऊ में तो उनके पास घर हैं ही नहीं. हद हो गई. जो जानकार हैं, वे यह जानते हैं कि मुलायम-अखिलेश के कहां-कहां घर हैं. जहां-जहां बन रहे हैं, वे कैसे लिए गए और जो जमीनें कब्जे में हैं, वे कैसे हासिल की गईं. नाम और बेनाम का फर्क तो भारत के लोगों के लिए कोई अबूझ पहेली थोड़े ही है.

बहरहाल, एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया. वर्ष 2016 में भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा ही फैसला सुनाया था, लेकिन तब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, उन्होंने बाकायदा कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठंडा कर दिया. मायावती ने भी वर्ष 1997 में हाईकोर्ट के ऐसे ही एक आदेश के बाद कानून बनाकर अपने लिए बंगले की विशेष व्यवस्था कर ली थी. यह जानना भी बड़ा रोचक है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने अपने ‘पूर्व’ होने की स्थिति में सरकारी बंगलों पर कब्जा जमाए रखने के कैसे-कैसे अभूतपूर्व फैसले लिए.

सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के वक्त प्रदेश के आधा दर्जन पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, मायावती, राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह बड़े-बड़े क्षेत्रफल में बनी आलीशान सरकारी कोठियों में काबिज थे. माल एवेन्यू के सरकारी आवास में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी 1989 से काबिज हैं. माल एवेन्यू के ही सरकारी आवास में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह 1991 से रह रहे थे. पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी 1992 से ही विक्रमादित्य मार्ग वाले सरकारी आवास में रह रहे थे. कालिदास मार्ग का सरकारी आवास पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह को वर्ष 2000 में मिला था. माल एवेन्यू स्थित सरकारी आवास में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी 1995 से ही रह रही थीं. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए सबसे ताजा आवंटन वर्ष 2016 में विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास का हुआ.

इन कोठियों को खाली करने का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए उत्तर प्रदेश मंत्री (वेतन, भत्ता और प्रकीर्ण उपबंध) (संशोधन) विधेयक-2016 को अवैध बताते हुए खारिज कर दिया. यह एक्ट सुप्रीम कोर्ट के एक अगस्त 2016 के आदेश के बाद अखिलेश सरकार के कार्यकाल में बनाया गया था और उसे कानूनी शक्ल देने के लिए विधानमंडल के दोनों सदनों से पारित कराया गया था. वर्ष 1981 में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउएंस एंड अदर फैसिलिटीज एक्ट 1981’ कानून बनाया था.

इस एक्ट के आधार पर ही पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए आजीवन आवास की व्यवस्था की गई थी. पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी, विश्वनाथ प्रताप सिंह और हेमवतीनंदन बहुगुणा को मिले सरकारी बंगलों पर बरसों तक उनके परिवार का कब्जा रहा. वर्ष 1997 में हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद चार पूर्व मुख्यमंत्रियों विश्वनाथ प्रताप सिंह, कमलापति त्रिपाठी, हेमवतीनंदन बहुगुणा और श्रीपति मिश्रा के सरकारी आवास खाली करा लिए गए. मायावती की गठबंधन सरकार ने एक्स चीफ मिनिस्टर्स रेजिडेंस अलॉटमेंट रूल्स 1997 बना कर एक बार फिर बंगलों पर कब्जा जमाए रखने का रास्ता बना दिया.

इसके बाद मायावती के लिए 13 माल एवेन्यू में भव्य बंगला बना, जो उनके चार कार्यकाल में साम्राज्यवादी विस्तार लेता गया और उसमें कई सरकारी दफ्तर विलीन होते गए. 1997 के कानून के बाद पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, रामनरेश यादव और नारायण दत्त तिवारी के हाथ से बंगला जाने का खतरा खत्म हो गया. बाद में कल्याण सिंह, मायावती, मुलायम सिंह, राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव भी इसी कतार में जुड़ते गए. पूर्व सीएम मायावती का माल एवन्यू में कई बंगलों को जोड़ कर बना बंगला 23 हजार 294 वर्ग फुट (2164 वर्ग मीटर) क्षेत्रफल में था. मुलायम सिंह यादव का आवास 26 हजार 221 वर्ग फुट (2436 वर्गमीटर) क्षेत्रफल में विस्तृत था.

अखिलेश यादव का आवास दो बंगलों को जोड़ कर 16 हजार 522 वर्गफुट (1535 वर्ग मीटर) क्षेत्रफल में बना था. नारायण दत्त तिवारी, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बंगले 8 हजार 72 वर्ग फुट (750 वर्ग मीटर) में बने हुए थे. इन पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों में पांच सितारा होटल की सुविधाएं थीं. मायावती का बंगला 86 करोड़ में तैयार हुआ था, वहीं अखिलेश यादव के बंगले पर करीब सौ करोड़ रुपए खर्च हुए. मायावती के घर में बुलेट प्रूफ खिड़कियां, इटैलियन मार्बल, आलीशान इंटीरियर की खूबियां थीं तो अखिलेश यादव के घर में अरेबियन एंटीक्स, स्टाइलिश गार्डन, स्वीमिंग पूल समेत कई भव्यताएं मुहैया कराई गई थीं.

बंगलों पर कराते बेहिसाब खर्च, पर देते नहीं किराया और बिजली बिल

पूर्व मुख्यमंत्रियों के घर भले ही भव्य हों, लेकिन इनके आचरण भव्य नहीं. सरकार बंगलों का किराया अत्यंत मामूली है, वह भी नहीं देते. बिजली अनाप-शनाप इस्तेमाल करते हैं, लेकिन बिजली बिल भी नहीं भरते. आप हैरत करेंगे कि मामूली किराया होने के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्रियों के किराए जमा नहीं होते थे, यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री बिजली बिल भी नहीं भरते थे. कई पूर्व मुख्यमंत्रियों पर लाखों रुपए बिजली बिल का बकाया हैं, तो कई पूर्व मुख्यमंत्रियों ने राज्य सम्पत्ति विभाग और बिजली विभाग की जद्दोजहद के बाद बिजली बिल का बकाया भरा.

बकाया बिजली बिल चुकाने के राज्य सम्पत्ति विभाग की ओर से भारी दबाव के बाद बसपा नेता मायावती ने बीते 30 मार्च 2018 को बिजली बकाये के करीब पौने दो करोड़ रुपए का भुगतान किया. यह भुगतान भी तब हुआ जब बिजली महकमे ने बिजली सप्लाई काट डाली. नौ दिन बाद भुगतान होने पर बिजली सप्लाई जारी हो सकी. मायावती के माल एवेन्यू स्थित आवास का बिजली बिल लंबे अर्से से भरा ही नहीं गया था. यह रकम 94 लाख 41 हजार 241 रुपए हो गई थी. दूसरी तरफ लाल बहादुर शास्त्री मार्ग स्थित बसपा के गेस्ट हाउस पर भी बिजली बिल का बकाया 45 लाख 69 हजार 719 रुपए और 27 लाख 99 हजार 768 रुपए हो गया था. यानि, मायावती पर बिजली बिल का कुल 1 करोड़ 68 लाख 10 हजार 728 रुपए बकाया था.

पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के घर के बिजली बिल का बकाया चार लाख रुपए हो गया था. इसके अलावा वहां निर्धारित क्षमता के विपरीत बिजली का इस्तेमाल बहुत अधिक हो रहा था. बिजली का लोड मात्र पांच किलोवॉट था. जबकि, उनके घर में आठ गुना ज्यादा बिजली की खपत हो रही थी. बिजली विभाग ने मुलायम के घर में 40 किलोवॉट लोड का मीटर लगाया. बिजली बकायेदारों में पूर्व मुख्यमंत्री व मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का नाम भी शामिल है. राजनाथ सिंह के कालीदास मार्ग स्थित बंगला नंबर 4-ए पर बिजली बिल के चार लाख 32 हजार 566 रुपए बकाया हैं.

प्रदेश सरकार के मौजूदा उप मुख्यमंत्री और मंत्री भी बिजली बिल का बकाया भरने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री भी बिजली बिल नहीं भरते. बिजली विभाग इन लोगों की बिजली सप्लाई नहीं काटता. प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के कालिदास मार्ग स्थित 5-ए नया मंत्री आवास का बिजली बिल बकाया पांच लाख 43 हजार 197 रुपए है.

बिजली बिल नहीं भरने के मामले में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य रिकॉर्ड बनाने पर लगे हैं. मौर्य के 7 कालिदास मार्ग स्थित सरकारी बंगले का बिजली बिल 10 लाख 34 हजार 500 रुपए हो चुका है, लेकिन उसके भुगतान की मौर्य को कोई फिक्र नहीं है. उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के अलावा योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री सूर्य प्रताप शाही के 8 कालिदास मार्ग के सरकारी बंगले का बिजली बिल बकाया 8 लाख 99 हजार 385 रुपए हो चुका है.

कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी के 9 कालिदास मार्ग स्थित आवास का बकाया बिजली बिल 3 लाख 75 हजार रुपए है. कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना के 10 कालिदास मार्ग स्थित आवास के बिजली बिल का बकाया 8 लाख 69 हजार और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर के 9-ए कालिदास मार्ग स्थित आवास का बिजली बिल बकाया 1 लाख 99 हजार रुपए है. बिजली बिल के बकाये की रकम लगातार बढ़ती ही जा रही है, लेकिन इसके भुगतान की कोई व्यवस्था नहीं हो रही है.

यह योगी सरकार के कद्दावर मंत्रियों का हाल है. वह भी एक साथ कतार में कालिदास मार्ग के उन आवासों का हाल है, जिस कतार में शामिल एक घर (5 कालिदास मार्ग) में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहते हैं. उत्तरप्रदेश के लोकायुक्त संजय मिश्र का सरकारी आवास भी उसी कालिदास मार्ग के 14 नंबर बंगले में है. कालिदास मार्ग पर बिजली बिल का भुगतान नहीं करने की हवा चलती है. लिहाजा, लोकायुक्त भी बिजली बिल नहीं भरते. उनके आवास पर बिजली बिल का बकाया 10 लाख 44 हजार 209 रुपए है.

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