देश में आज कई नामचीन नेता ऐसे हैं, जो सक्रिय राजनीति में रहकर भी अपनी ही पार्टी में हाशिये पर हैं. उदय नारायण चौधरी की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है. बिहार के गया जिले के इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से लंबे समय तक विधायक रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष आज अपनी ही पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं. उदय नारायण चौधरी जदयू से बगावत की तैयारी में हैं, इधर पार्टी भी इन्हें बाहर का रास्ता दिखाने का मन बना रही है. करीब दस सालों तक बिहार विधानसभा के अध्यक्ष रहे उदय नारायण चौधरी की कभी सूबे में ऐसी चलती थी कि आम आदमी क्या, कोई विधायक भी इनके खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करता था. पार्टी का टिकट दिलाना या कटवा देना इनके बायें हाथ का खेल था. गया जिले के अतरी से जदयू के तत्कालीन विधायक कृष्णनंदन यादव और गया से तत्कालीन जदयू विधान पार्षद अनुज कुमार सिंह को उदय नारायण चौधरी का समर्थन प्राप्त होने की बात कही जाती थी. तब वे नीतीश कुमार के प्रिय पात्र हुआ करते थे.
2015 के विधानसभा चुनाव में जीतनराम मांझी से हारने के बाद से ही उदय नारायण चौधरी का सियासी सितारा डूबने लगा. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद भी नीतीश कुमार ने चौधरी को मंत्रिमंडल में नही लिया, जबकि लोगों को उम्मीद थी कि जदयू में बड़ा दलित चेहरा होने का लाभ उदय नारायण चौधरी को मिल सकता है और वे मंत्री बन सकते हैं. चर्चा थी कि बाद में उन्हें विधान पार्षद बना दिया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. यह भी सुनने में आया कि चूंकि महागठबंधन में लालू हावी थे, इसीलिए नीतीश कुमार चाहकर भी उदय नारायण चौधरी और श्याम रजक को मंत्री नहीं बना सके. लेकिन बीस महीने में ही अचानक महागठबंधन की सरकार को समाप्त कर नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा हो गए. उदय नारायण चौधरी को हराने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी एनडीए का हिस्सा होने के नाते नीतीश कुमार के समर्थक हो गए.
जदयू-भाजपा गठबंधन नेता के रूप में नीतीश कुमार द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जब जीतनराम मांझी उनके घर बधाई देने गए, तभी लगा था कि जदयू की राजनीति में जरूर कुछ न कुछ उबाल आएगा. उसके बाद जब नीतीश कुमार ने गया जिले के खिजरसराय स्थित जीतनराम मांझी के गांव महकार में जाकर कई योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास किया, तब यह स्पष्ट हो गया कि उदय नारायण चौधरी को अब अपनी नई सियासी जमीन तलाशनी होगी. मांझी और उदय नारायण चौधरी इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं और नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी के गांव जाकर यह संदेश दे दिया कि जदयू में अब उदय नारायण चौधरी के गिनती के दिन बचे हैं.
पार्टी के अलावा क्षेत्र से भी उदय नारायण चौधरी के लिए अच्छी खबर नहीं है. इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के लोग भी अब खुलकर कहने लगे हैं कि सत्ता में रहने और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष होने के बाद भी उदय नारायण चौधरी ने क्षेत्र के लिए कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया. यहां के लोग एक ओर नक्सलियों से परेशान थे, तो दूसरी ओर पुलिसिया अत्याचार से. करीब दो दशक तक इमामगंज की जनता दोनों के बीच पिसती रही और उदय नारायण चौधरी विधानसभा अध्यक्ष बन कर चैन की बंसी बजाते रहे. यानि उदय नारायण चौधरी का सितारा पार्टी से लेकर क्षेत्र तक में अस्त होता जा रहा है. गया में गत 15 नवम्बर को जदयू का कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ. इसमें उद्योग मंत्री जय कुमार सिंह एवं शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन प्रसाद वर्मा शामिल हुए.
इस कार्यक्रम में लगे होर्डिंग बैनर पर जदयू के तमाम बड़े नेताओं की तस्वीर थी, लेकिन पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी की तस्वीर नदारद थी. जदयू में चौधरी के समर्थकों ने इसे मुद्दा बनाकर हंगामा भी किया, जिसे मंत्री जय कुमार सिंह ने अनुशासनहीनता करार दिया. उन्होंने कहा कि उदय नारायण चौधरी या उनके समर्थकों को अगर इसपर आपत्ति थी, तो उन्हें पार्टी मुख्यालय को इसकी सूचना देनी चाहिए थी. खुलेआम सम्मेलन में विरोध प्रदर्शन करना अनुशासनहीनता को दर्शाता है. उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस घटना से अवगत कराया जाएगा. उदय नारायण चौधरी यह सब देख-समझ रहे हैं और उनके तेवर से स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में वे कोई अलग रास्ता अख्तियार कर सकते हैं.