संविधान सभा 14 अगस्त 1947 मध्य रात्रि

जवाहरलाल नेहरू ‘‘साहब सदर! कई वर्ष हुए कि हमने किस्मत से एक बाज़ी लगाई थी। एक इकरार किया था। प्रतिज्ञा की थी। अब वक्त आया है कि हम इसे पूरा करें। बल्कि वह पूरा तो शायद अभी भी नहीं हुआ, लेकिन फिर भी एक बड़ी मंज़िल पूरी हुई। हम वहां पहुंचे हैं। मुनासिब है कि ऐसे वक्त में पहला काम हमारा यह हो कि हम एक प्रण और एक नई प्रतिज्ञा फिर से करें। इकरार करें, आइन्दा हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान के लोगों की खिदमत करने का। चन्द मिनटों में यह असेम्बली एक पूरी तौर से आज़ाद खुदमुख्तार असेम्बली हो जायगी और यह असेम्बली नुमाइन्दगी करेगी एक आज़ाद खुदमुख्तार मुल्क की। चुनाचे, इसके ऊपर जबरदस्त जिम्मेदारियां आती हैं और अगर हम इन जिम्मेदारियों को पूरी तौर से महसूस न करें तब शायद हम अपना काम पूरी तौर से न कर सकेंगे। इसलिये यह जरूरी हो जाता है कि इस मौके पर पूरी तौर से सोच समझकर इसका इकरार करें। जो रिज़ोल्यूशन, प्रस्ताव, मैं आपके सामने पेश कर रहा हूं वह इसी इकरार, इसी प्रतिज्ञा का है। हमने एक मंज़िल पूरी की और आज उसकी खुशियां मनाई जा रही हैं। हमारे दिल में भी खुशी है और किस क़दर गरूर है और इत्मीनान है लेकिन यह भी हम जानते हैं कि हिन्दुस्तान भर में खुशी नहीं है। हमारे दिल में रंज के टुकड़े काफी हैं और-दिल्ली से बहुत दूर नहीं-बड़े बड़े शहर जल रहे हैं। वहां की गर्मी यहां आ रही है। खुशी पूरे तौर से नहीं हो सकती; लेकिन फिर भी हमें इस मौके पर हिम्मत से इन सब बातों का सामना करना है। न हाय हाय करना है। न परेशान होना है। जब हमारे हाथ में बागडोर आई, तो फिर ठीक तरह से गाड़ी को चलाना है। आम तौर से अगर मुल्क आज़ाद होते हैं, काफी परेशानियों, मुसीबतों और खूंरेजी के बाद होते हैं। काफी ऐसी खूंरेजी हमारे मुल्क में भी हुई है और ऐसे ढंग से हुई है जो बहुत ही तकलीफदेह हुई है। फिर भी हम आज़ाद हुए, बाअमन तरीकों से, शांतिमय तरीकों से और एक अजीब मिसाल हमने दुनिया के सामने रखी। हम आज़ाद हुए लेकिन आज़ादी के साथ मुसीबतें और बोझे आते हैं। उनका हमें सामना करना है। उनको ओढ़ना है और जो स्वप्न हमने देखा था उसे असल बनाना है। हमें मुल्क को आज़ाद करना था, मुल्क से गैर हुकूूमत को अलग करना था। वह काम पूरा हुआ। लेकिन, गैर हुकूूमत को अलग करके काम पूरा नहीं होता। जब तक एक एक इन्सान हिन्दुस्तान का आज़ादी की हवा में न रह सके और जो मुसीबतें हैं वह हटाई न जायें और जो उसकी तकलीफें हैं, दूर न हो सकें। इसलिये बहुत बड़ा हिस्सा हमारे काम का बाकी है और जब तक वह बातें पूरी न हों उस वक्त तक हमारा काम जारी रहेगा। बड़े बड़े सवाल हमारे सामने हैं और उनकी तरफ देखकर कुछ दिल दहल जाता है, लेकिन फिर हिम्मत यह सोच कर आती है कि कितने बड़े सवाल हमने पुराने ज़माने में हल किये तो क्या हम इन सवालों से दब जायेंगे? ताकत और गुरूर तो हमारा शख्सी और व्यक्तिगत नहीं है। लेकिन कुछ गुरूर है अपने मुल्क पर, और कुछ इतमीनान है अपने कौम की ताकत पर और उन लोगों पर जिन लोगों ने इतनी बड़ी मुसीबतें झेलीं। इसलिये यह भी इतमीनान होता है कि जो इस वक्त कुछ परेशानियों का बोझ है उनको भी हम ओढ़ेंगे और उन सवालों को भी हम हल करेंगे।

आखिर हिन्दुस्तान एक आज़ाद मुल्क है, अच्छा है। जब हम आज़ादी के दरवाज़े पर खड़े है। हम इसको खास तौर से याद रखें कि हिन्दुस्तान किसी एक फिरके का मुल्क नहीं है। एक मजहब वालों का नहीं है, बल्कि बहुत सारे और बहुत किस्म के लोगों का है। बहुत धर्म और मजहबों का है। किस तरह की आज़ादी हम चाहते हैं? हमारी तरफ से पहले भी यह कहा गया है। जो पहला रिजोल्यूशन मैंने पहले यहां पेश किया था। उसमें भी यह कहा गया था कि यह जो आज़ादी हमारी है। वह हरेक हिन्दुस्तानी के लिये है। हरेक हिन्दुस्तानी का बराबर बराबर का हक है। हर हिन्दुस्तानी को इस आज़ादी का बराबर बराबर का हिस्सादार करना है। इस ढंग से हम आगे बढ़ेंगे और कोई ज़्यादती करेगा तो उसे हम रोकेंगे। चाहे वह कोई हो; किसी पर अगर ज्यादती होगी तो उसकी मदद करेंगे। चाहे वह कोई भी हो। अगर हम इस तरह से चलेंगे तो हम बड़े मसले हल कर लेंगे। लेकिन अगर हम तंगख्याली में पड़ जायेंगे तो वह मसले हल नहीं होंगे।

मैं इस रिज़ोल्यूशन को आपके सामने पेश करता हूं और अंग्रेजी ज़बान में भी इसको पढ़कर अभी आपको सुनाऊंगा।”

 

कनक तिवारी

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