रूटीन शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा स्कूल और इसके बाहर की जाने वाली अतिरिक्त एक्टिविटीज को आधार बनाकर दिया जाने वाला शिक्षक सम्मान मजाक बनकर रह गया है। पहले दिए जाने वाले पुरस्कारों की संख्या आधी कर दी गई। उसके बाद इक्का-दुक्का शिक्षकों को सम्मान रेवड़ी बांट दी गई और अब बचे हुए चयनित शिक्षक सम्मान अगले आदेश के लिए नजरें उठाए बैठे हैं। कहानी में ट्वीस्ट यह आता नजर आ रहा है कि शिक्षा विभाग इन चयनित शिक्षकों को दरकिनार कर नए सिरे से सम्मान सूचि तैयार करने में जुट गया है।

जानकारी के मुताबिक साल 2020 में दिए जाने वाले राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान मूल्यांकन पद्धति लागू की गई थी। इसके तहत जिलों के कलेक्टर और शिक्षा अधिकारियों से चयनित और अनुमोदित होकर आए शिक्षकों के सिफारिशी अंकों का टोटल लगाया गया। सूत्रों का कहना है कि अपने जिलों से बेहतर स्कोर अर्जित कर लोक शिक्षण संचालनालय पहुंचे कई शिक्षक मुख्यालय की नियमावली की मंझधार में फंस गए। बताया जा रहा है कि इस स्थिति से प्रदेश के दर्जनभर से ज्यादा सम्मान से बाहर खड़े हो गए थे। बताया जा रहा है कि इन बाधाओं के साथ अंतिम सूची में पहुंचे शिक्षकों की तादाद हर साल दिए जाने वाले सम्मान से आधे होकर रह गए। यह तादाद महज 20-25 तक ही सिमटकर रह गई थी।

चयन के बाद भी नहीं मिला सम्मान

5 सितंबर शिक्षक दिवस पर होने वाले समारोह के दौरान दिए जाने वाले सम्मान के बीच ऐन वक्त पर कोरोना और लॉक डाउन से बने हालात आ गए। बड़े आयोजनों पर लगी पाबंदी ने कार्यक्रम के हालात नहीं बनने दिए और चयन के बाद भी प्रदेशभर के शिक्षकों को सम्मान हासिल नहीं हो पाया। हालांकि सूत्रों का कहना है कि इस दौरान प्रदेश के महज दो जिलों में कलेक्टरों के मार्फत शिक्षकों को सम्मान सौंप दिया गया है। जबकि बाकी शिक्षक अब तक सम्मान के लिए कतार में लगे हुए दिखाई दे रहे हैं।

अब सुनाई दे रही नई कहानी

सूत्रों का कहना है कि पिछले बरस टले आयोजन के बाद शिक्षा विभाग सम्मान समारोह को स्थायी रूप से टालने की मंशा बनाने लगा है। कहा जा रहा है कि पिछले वर्ष चयनित हुए शिक्षकों को भी सम्मान पाने के लिए नए सिरे से आवेदन प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। शिक्षकों का कहना है कि ये स्थिति बनती है तो सम्मान के लिए शिक्षकों के बीच प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ जाएगी। जहां पुराने चयनित शिक्षकों को पिछली उपलब्धियों का सहारा मिलेगा वहीं नए आवेदकों को अपने नंबर बढ़ाने के लिए निर्धारित से ज्यादा मेहनत करना पड़ जाएगी। यह स्थिति उन शिक्षकों के लिए अन्याय जैसी भी कही जाएगी, जो चयनित होने के बाद भी सम्मान महज इसलिए नहीं पा सके कि सरकारी पाबंदियों ने आयोजन को रोक दिया था।

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चयन के लिए गुजरते हैं कई बाधाओं से

रूटीन शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा स्कूल और इसके बाहर की जाने वाली अतिरिक्त एक्टिविटीज को आधार बनाकर शिक्षक सम्मान के लिए चयन किया जाता है। पंचायत और संकुल से होते हुए शिक्षकों के नाम जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय तक पहुंचते हैं और वहां से इन नामों को जिला कलेक्टर के सामने प्रस्तुत किया जाता है। शैक्षणिक और सामाजिक गतिविधियों के साथ नए प्रयोगों के लिए आगे रहने वाले शिक्षकों के नाम का चयन कर कलेक्टर द्वारा लोक शिक्षण संचालनालय को प्रेषित किया जाता है। लोक शिक्षण संचालनालय में इसके लिए गठित एक कमेटी नामों को अंतिम मोहर लगाती है और इसके बाद शिक्षक का नाम सम्मान सूची में अंतिम रूप से शामिल किया जाता है। प्रदेश के राज्यपाल के हाथों मिलने वाला यह सम्मान किसी भी शिक्षक के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार पाने की अगली कड़ी के रूप में मजबूत सीढ़ी बनता है।

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कहानी टेबल के नीचे की

सूत्रों का कहना है कि समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षकों को अपना सम्मान साबित करने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा भी लेना पड़ रहा है। लोक शिक्षण संचालनालय में नामों को अंतिम रूप देने के बदले मोटी रकम की मांग शिक्षकों से की जा रही है। इस काम के लिए डीपीआई दफ्तर से लेकर प्रदेशभर में दलाल सक्रिय हैं, जो होनी को अनहोनी और अनहोनी को होनी कर देने के लिए सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि करीब 25 हजार रुपए के इस सम्मान के बदले शिक्षकों से 30 से 35 हजार रुपए तक की मांग की जा रही है। इससे पहले शिक्षक को अपनी सम्मान फाइल डीपीआई तक पहुंंचाने के लिए सरपंच से लेकर संकुल और उससे आगे चलकर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय तक भी लोगों की खुशामद से लेकर मु_ी गरम करने की स्थिति से गुजरना पड़ रहा है।

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तमगा लेकर बैठ जाओ, सुविधाएं नदारद

राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय सम्मान पाने के पीछे शिक्षकों की मंशा सामाजिक प्रतिष्ठा तो है ही, इसके साथ उन्हें सम्मान स्वरूप दो वेतनवृद्धि और एक पदोन्नति का लाभ भी मिलता है। इसी के लिए सम्मान दौड़ में आगे आने वाले बड़ी तादाद में शिक्षक ऐसे भी हैं, जिन्हें सम्मान मिलने के बाद भी बरसों तक मुनासिब सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। पदोन्नति के लिए प्रयासरत ऐसे शिक्षकों के हाथ में वेतनवृद्धि का टुकड़ा थमाकर खामोश कर दिया जाता है। सरकारी नौकरी की बंदिशों में बंधे यह शिक्षक अपने साथ हो रहे अन्याय को लेकर कहीं आवाज उठाने भी नहीं पहुंच पा रहे हैं।

खान अशु

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