वैसे तो यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है कि वह किसे मंत्री बनाएं और किसे न बनाएं. और जाहिर है, वह उसी को मंत्री बनाएंगे, जिस पर उनका पूरा विश्वास है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में कुछ विसंगतियां देखने को मिलीं, जिनसे उन्हें उनके साथियों ने तो निश्चित ही परिचित नहीं कराया होगा. हम स़िर्फ इसलिए उन्हें परिचित कराना चाहते हैं, क्योंकि हम नरेंद्र मोदी को सफल होते देखना चाहते हैं और यह सफलता नरेंद्र मोदी नामक व्यक्ति की नहीं है, देश के प्रधानमंत्री की है. देश का प्रधानमंत्री अगले पांच वर्षों के लिए निर्वाचित हुआ है और देश की जनता ने पिछले दस सालों में जिस कष्ट या अभिशाप को भोगा है, उससे उसे छुटकारा मिले, इसीलिए उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर बात पर विश्वास किया है. इसीलिए हम चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी सफल हों, खासकर अपने उन वादों के लिए, जो उन्होंने विकास को लेकर किए हैं. उन वादों के लिए, जो उन्होंने महंगाई एवं भ्रष्टाचार को लेकर किए हैं और उन वादों के लिए, जिनमें उन्होंने नई आशाओं के दरवाजे खुलने की बात कही है.
नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में सबसे महत्वपूर्ण विभाग का ज़िम्मा मनोहर पार्रिकर को दिया है. मनोहर पार्रिकर गोवा के मुख्यमंत्री थे और उन्हें देश का रक्षा मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बनाया है. हालांकि, शपथ ग्रहण और विभागों के बंटवारे के बीच इस तरह के समाचार भारतीय जनता पार्टी के जानकार सूत्रों ने फैलाए कि राजनाथ सिंह को रक्षा और मनोहर पार्रिकर को गृह विभाग मिल सकता है. अगर ऐसा होता, तो यह दोनों के साथ अन्याय होता, क्योंकि तब यह संदेश जाता कि राजनाथ सिंह ने सचमुच कोई ग़लत काम किया है, जिसकी वजह से उन्हें गृह विभाग से हटाया गया और तब राजनाथ सिंह के लिए मंत्रिमंडल में बने रहना मुश्किल हो जाता या कम से कम उनकी साख ख़त्म हो जाती. राजनाथ सिंह का मंत्रालय बिना छेड़छाड़ के उनके पास रहा, यह नरेंद्र मोदी के अच्छे कामों में गिना जाएगा और उन्होंने बिल्कुल उपयुक्त व्यक्ति को रक्षा मंत्रालय दिया है, क्योंकि रक्षा मंत्रालय इस समय सचमुच एक महत्वपूर्ण उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहा है.
आवश्यक है कि नए सेनाध्यक्ष अपने देश में ही गोला-बारूद और आधुनिक हथियारों के निर्माण की योजना बनाएं. जिन हथियारों को लें, उनकी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का भी समझौता करें और देश को रक्षा के क्षेत्र में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाएं. लेकिन, दूसरा विभाग रेल मंत्रालय उन्होंने क्यों बदला, यह किसी की समझ में नहीं आया. सदानंद गौड़ा को उन्होंने रेल मंत्रालय से हटाकर क़ानून मंत्री बना दिया. पर सबसे बड़ा सवाल है कि जिस व्यक्ति के बेटे के ऊपर बलात्कार का मुक़दमा चल रहा हो, जो आरोपी हो, उसे आपने क़ानून मंत्री बना दिया! यह नैतिकता के दायरे में तो कहीं नहीं आता.
मुझे याद है, तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल विजय कुमार सिंह ने उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 11 खत लिखे थे, जिनमें से तीन खत रक्षा मंत्रालय ने लीक कर दिए थे. उनमें से एक खत कहता था कि हमारी सेनाओं के पास तीन दिन भी पूर्ण रूप से युद्ध लड़ने लायक गोला-बारूद नहीं है. इसमें अच्छे हथियारों की बात तो कही ही नहीं गई थी. जो बुनियादी आवश्यकता है यानी गोला-बारूद, वही नहीं था. मेरी जानकारी मुझे बताती है कि आज भी यही स्थिति है. इसलिए आवश्यक है कि नए सेनाध्यक्ष अपने देश में ही गोला-बारूद और आधुनिक हथियारों के निर्माण की योजना बनाएं. जिन हथियारों को लें, उनकी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का भी समझौता करें और देश को रक्षा के क्षेत्र में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाएं. लेकिन, दूसरा विभाग रेल मंत्रालय उन्होंने क्यों बदला, यह किसी की समझ में नहीं आया. सदानंद गौड़ा को उन्होंने रेल मंत्रालय से हटाकर क़ानून मंत्री बना दिया. पर सबसे बड़ा सवाल है कि जिस व्यक्ति के बेटे के ऊपर बलात्कार का मुक़दमा चल रहा हो, जो आरोपी हो, उसे आपने क़ानून मंत्री बना दिया! यह नैतिकता के दायरे में तो कहीं नहीं आता. इसी तरह सुरेश प्रभु को रेल मंत्रालय क्यों सौंपा, यह भी समझ में नहीं आता, क्योंकि सुरेश प्रभु ऊर्जा क्षेत्र के अच्छे जानकार हैं और उनका नाम ही देश में ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने के लिए जाना जाता है.
नरेंद्र मोदी ने लगभग उन सारे लोगों को मंत्री बनाया है, जो चुनाव से पहले दूसरी पार्टी छोड़कर उनकी पार्टी में शामिल हुए. इसमें कोई सवाल नहीं उठता, क्योंकि जब उनकी पार्टी में कोई शामिल हो गया, तो दूसरी पार्टी का नहीं रहा, उन्हीं की पार्टी का हो गया. पर, राजीव प्रताप रूडी को सिविल एविएशन न देना कहां की बुद्धिमानी है. इसी तरह स्वास्थ्य मंत्रालय से हर्षवर्धन को क्यों हटाया गया, जबकि वह ईमानदार स्वास्थ्य मंत्री माने जाते हैं और उनकी जगह प्रधानमंत्री ने अपने मित्र जेपी नड्डा को स्वास्थ्य मंत्री बना दिया. इन जेपी नड्डा के ऊपर विजिलेंस ऑफिसर को बदलवाने की तोहमत लगी हुई है. जेपी नड्डा को कोई दूसरा विभाग दिया जा सकता था और हर्षवर्धन को भी उसी विभाग में रखा जा सकता था. क्योंकि, कुछ विभाग ऐसे हैं, जिनमें डॉक्टर के सामने अगर कोई प्रपोजल आता है, तो वह उसका अच्छी तरह से विश्लेषण कर सकता है. सिविल एविएशन को जानने वाला व्यक्ति, जैसे राजीव प्रताप रूडी हैं, अगर वह सिविल एविएशन में होते, तो ज़्यादा काम कर सकते थे. मोदी ने मुख्तार अब्बास नक़वी को बनाया राज्य मंत्री, लेकिन यदि वह मुख्तार अब्बास नक़वी को राज्य मंत्री बनाकर भी किसी विभाग का स्वतंत्र प्रभार सौंपते, तो शायद ज़्यादा अच्छा होता.
ये सारी बातें हम इस आशा से लिख रहे हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि सरकार जो भी योजनाएं बनाती है, उनका असर सामान्य जन के ऊपर पड़ता है. हालांकि , हमें मालूम है कि जिस तरह कांग्रेस सरकार सही सलाहों को नहीं सुनती थी, उसी तरह सही सलाहों को नरेंद्र मोदी सुनेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है, पर फिर भी हमारा फर्ज है कि हम नरेंद्र मोदी को उन चीजों से अवगत कराएं, जिनका रिश्ता उनकी गद्दी से है.
भारतीय जनता पार्टी भी राजनीति के उन्हीं दांव-पेंचों का सहारा लेने लगी, जिनका सहारा नहीं लेना चाहिए. इसका पहला उदाहरण महाराष्ट्र विधानसभा है, जहां बिना वोट कराए विश्वास मत पारित करा लिया गया. इससे विधानसभा के स्पीकर, मुख्यमंत्री और सारे लोगों की साख गिरी है. जब भारतीय जनता पार्टी को मालूम था कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सारे विधायक सदन से वॉकआउट करेंगे, तो इसके बाद उसने यह क़दम क्यों उठाया, शायद इसके पीछे शरद पवार की अविश्वसनीयता ही रही होगी. अच्छा होता कि भारतीय जनता पार्टी उद्धव ठाकरे के साथ अपने मतभेद सुलझा लेती, जिन्हें आज नहीं, तो कल सुलझना ही है. उस स्थिति में कम से कम विधानसभा की साख को बट्टा तो न लगता. पर जैसी राजनीति है, जैसे राजनीतिक दल हैं, वैसे ही उनके द्वारा चुने हुए व्यक्ति होंगे, इसमें अब कोई दो राय नहीं है.