farmingएक तरफ सरकार किसानों के हितों के लिए योजनाओं की घोषणा करती है, वहीं सरकारी अमला योजना प्रक्रिया में सेंध लगाकर लूट मचाने की तैयारी में जुट जाता है. विभिन्न राज्य सरकारों ने किसानों को बेहतर क्वालिटी का बीज देने के लिए बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं का गठन किया है. लेकिन बिहार में इन संस्थाओं द्वारा किसानों के हितों की उपेक्षा कर बीज प्रमाणीकरण की प्रक्रिया में घोर अनियमितताएं बरती जा रही हैं. ताजा मामला पटना स्थित बिहार राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था का है. पता चला है कि इस संस्था के अधिकारी मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित एक निजी फर्म मैसर्स महाकाल सीड्स से साठ-गांठ कर प्रमाणीकरण प्रक्रिया को फर्जी ढंग से अंजाम देने में जुटे हैं.
इस मामले में बिहार राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था से आरटीआई के अंतर्गत सब्जी फसल के खरीफ वर्ष 2015-16 से संबंधित प्रमाणीकरन, पंजीयन कराने वाली कंपनियों एवं संबंधित किसानों के बारे में जानकारी मांगी गई, तो विभाग ने इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी. विभाग का कहना है कि अभी निबंधन की प्रक्रिया जारी है, इसलिए सूचना नहीं दी जा सकती है. जाहिर है, सूचना नहीं दिए जाने के कारण उक्त विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल तो उठते ही हैं, साथ ही उसकी प्रक्रिया भी संदेहपूर्ण हो जाती है. इसके बाद जब महाकाल सीड्स, उज्जैन द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों की जांच की गई तो कई ऐसे तथ्यों का पता चला जिससे बीज प्रमाणीकरण प्रक्रिया में अनियमितता बरते जाने की जानकारी मिली.
मसलन, महाकाल सीड्स उज्जैन ने बिहार राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था से लौकी, गिल्की, तरोई, करेला, बरबटी एवं भिंडी आदि का पंजीयन कराया था. बीज की बुआई से लेकर पैकेजिंग होने तक का समय बीज प्रमाणीकरण संस्था ने 11 माह निर्धारित किया है. बिहार राज्य प्रमाणीकरण संस्था के सौजन्य से महाकाल सीड्स उज्जैन ने उक्त फसल को मात्र 4 माह में ही उत्पादन संबंधी समस्त प्रक्रिया को पूर्ण कर प्रमाण पत्र हासिल कर लिया. इसके बीज के लॅाट नंबर पर मई माह अंकित है, जो पूर्ण रूप से संदेहास्पद प्रतीत हो रहा है. इसके अलावा परीक्षण एवं पैकेजिंग की तिथि भी मई माह ही अंकित की गयी है. यानी उक्त फर्म ने बीज की कटाई, मढ़ाई, सुखाई, सफाई एवं पैंकिग जैसी समस्त प्रक्रियाएं मई माह में ही पूर्ण कर लीं. इतनी बड़ी मात्रा में समस्त प्रक्रिया जैसे नमूनों का परीक्षण, पैकेजिंग आदि का एक माह में होना संदिग्ध प्रतीत होता है.
नेशनल सीड्स कॉरपोरेशन द्वारा जारी सीड्स प्रोडक्शन बुक के अनुसार लौकी, गिल्की, तरोई, करेला एवं भिंडी की फसल सीड्स प्रोडक्शन के लिए रबी सीजन उपयुक्त नहीं है. इसके अनुसार बीज उत्पादन के लिए बुआई का समय उत्तर भारत में खरीफ सीजन में जून-जुलाई एवं जायद फसलों के लिए फरवरी-मार्च है. इससे स्पष्ट है कि ये फसलें रबी सीजन में बीज उत्पादन के लिए पंजीयन हेतु उचित नहीं हैं. इसका मतलब यह हुआ कि उक्त फसलों की बुआई फरवरी माह में की गई है, जबकि कंपनी ने इसे मई महीना बताया है.
यह भी जानकारी मिली है कि बिहार राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा 1 एवं 2 मई को प्रमाण पत्र दिया गया. साथ ही इसी महीने में बिहार राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था के अधिकारियों/प्रतिनिधियों की देख रेख में महाकाल सीड्स ने बीजों में टैग लगाकर पैकिंग की. उक्त फर्म ने संयुक्त संचालक उद्यान, भोपाल को दिए पत्र में यह बताया कि उनका समस्त प्रमाणित बीज 17/06/16 को बिहार से आ रहा है. लेकिन उक्त कंपनी आज तक इस संबंध में कोई प्रमाण नहीं दे सकी है कि उनका बीज बिहार से आया है या वहां बीज पर टैग लगाकर पैकेजिंग की गई है. यह इस बात का प्रमाण है कि न तो उक्त फर्म का किसी तरह का बीज बिहार राज्य बीज प्रमाणीकरण के अधिकारियों की देख-रेख में बिहार में पैक हुआ और न ही कोई बीज बिहार से मध्य प्रदेश लाया गया. इस पूरी प्रक्रिया को देखते हुए यह अंदेशा है कि बिहार राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था से मिले टैग के सहारे महाकाल सीड्स ने घटिया स्तर के बीज अपने गोदाम में भर दिए हों.
भारत जैसे एक कृषि प्रधान देश में किसानों के हितों में चलाई जा रही योजनाओं में अगर धांधली होती है, तो इससे किसानों एवं देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए बीज कंपनियां सरकारी संस्थाओं से साठ-गांठ कर किसानों के हितों की अनदेखी कर रही हैं. जाहिर है, ऐसी कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि किसानों के हितों की अनदेखी न हो सके.

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