आज किसानों को उपज का लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है. ऐसी स्थिति में किसानों ने बाजार के कुचक्र से खुद को अलग कर आगे बढ़ने का फैसला किया है. यह रास्ता ग्राम स्वराज की तरफ जाता है.

16 से 18 सितंबर तक वाराणसी में तीन दिवसीय राष्ट्रीय किसान परिसंवाद का आयोजन हुआ. इस परिसंवाद में हुई चर्चा, चिंतन, आक्रोश और अपेक्षाओं को समेटते हुए चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय ने कहा कि चोट मर्म पर होनी चाहिए. आज की सबसे बड़ी जरूरत है, किसानों को उपज का सही मूल्य मिलना. यह बाजार की ताकतों की साजिश है कि पैदावार बाजार में आते ही दाम इतने कम कर दिए जाते हैं कि किसान उन्हें सड़कों पर फेंकने को मजबूर हो जाते हैं. किसान अगर इस शिकंजे से निकल जाएं, तो उन्हें उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिल सकता है. इसके लिए दो काम करने होंगे. पहला, स्थानीय स्तर पर अनाज के भंडारण की व्यवस्था, जिसमें किसान अपना अतिरिक्त अनाज रखें और सही कीमत मिलने पर उसे बेच सकें. दूसरा, पंचायत या ब्लॉक स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां या अन्य कृषि उद्योगों की स्थापना. यह काम सरकार की मदद के बिना भी हो सकता है. जरूरत है पहल करने की.

श्री भारतीय ने रेखांकित किया कि आज विभिन्न प्रांतों में किसान आंदोलन चल रहे हैं. ये आंदोलन स्वतःस्फूर्त हैं. इनका नेतृत्व कोई स्थापित नेता या राजनीतिक दलों से सम्बद्ध किसान संगठन नहीं कर रहे हैं. आने वाले दिनों में असंतोष और बढ़ेगा. जरूरत है कि किसानों से जुड़े मसलों पर समग्र रूप से विचार कर उसे संगठित राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया जाए. इसके लिए सभी किसान संगठनों को एकजुट होना होगा. श्री भारतीय के प्रस्ताव पर सभा में मौजूद 250 से अधिक प्रतिनिधियों ने किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह और महाराष्ट्र के किसान नेता विजय जावंधिया को अधिकृत किया कि वे विभिन्न किसान संगठनों को एकजुट करने का प्रारूप तैयार करें. इसके जरिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक किसान एकता का आधार बनाने की बात कही गई.

किसान मंच और सर्व सेवा संघ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस तीन दिवसीय शिविर का उद्घाटन करते हुए श्री विजय जावंधिया ने कहा कि कृषि क्षेत्र के निरंतर गहराते संकट को देखते हुए हमें नए सिरे से इस पर विचार करना होगा. उन्होंने सवाल किया कि ‘खेत मजदूरों की मजदूरी बढ़ाए बिना गांवों की गरीबी कैसे दूर होगी?’ सरकार को ग्रामीण मजदूरों के लिए भी 7वें वेतन आयोग के समतुल्य मजदूरी घोषित करनी चाहिए.

जाने-माने गांधीवादी विचारक वयोवृद्ध डॉ. रामजी सिंह ने विभिन्न प्रांतों से आए किसानों से सीधा सवाल किया कि ‘किसान आंदोलन की दिशा क्या होगी?’ उन्होंने कहा कि आज गांवों को बचाने की मुहिम भी छेड़नी होगी. किसान मरेगा तो गांव भी नहीं बचेगा. सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महादेव विद्रोही ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि गांव आज उन्हीं समस्याओं से ग्रस्त हैं, जिन्हें गांधी जी ने उद्योगवाद के दुष्परिणामों के रूप में चिन्हित किया था. टमाटर-प्याज किसान के हाथ में होता है, तो उसका दाम 40 पैसे प्रति किलोग्राम होता है, लेकिन जब वो व्यापारी के पास पहुंच जाता है, तो उसकी कीमत 40 रुपए प्रति किलोग्राम हो जाती है. इसका जवाब सिर्फ गांवों के स्वावलम्बन में है. आप फैसला करिए, सर्व सेवा संघ आपके साथ है.

 

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