अब तक हमने यही देखा-सुना था कि पुलिस गुप्त तरीके से अपराधियों के ठिकानों तक पहुंचती है और कई बार जवाबी कार्रवाई में मुठभेड़ की स्थिति बन जाती है. लेकिन वर्तमान समय में शायद पुलिसिंग के मायने बदल गए हैं. अब मुठभेड़ का लाइव टेलिकास्ट किया जाने लगा है, वो भी मीडिया बुलाकर. अलीगढ़ में पिछले दिनों मुठभेड़ में दो अपराधियों के मारे जाने की खबर इस बात के लिए सुर्खियों में रही कि पुलिस ने मुठभेड़ दिखाने के लिए पहले से मीडिया वालों को जमा करके रखा था. सारे चैनेलों पर ‘लाइव’ मुठभेड़ दिखाया गया. लाइव मुठभेड़ की वीडियो रिकॉर्डिंग देखें तो उसमें गोलियां चलाते जांबाज पुलिसकर्मी फोटो के लिए पोज़ देते दिखेंगे और आपको समझ में आ जाएगा कि पहले से ही मारे जा चुके अपराधियों की लाशें रख कर मौके पर मुठभेड़ की एक्टिंग हो रही है.
पुलिस की कहानी यह थी कि अलीगढ़ जिले के हरदुआगंज में पुलिस के साथ मुठभेड़ में दो कुख्यात बदमाश मारे गए. गोली लगने से एक पुलिस अधिकारी भी जख्मी हुआ. हास्यास्पद तथ्य यह भी है कि पुलिस अपराधियों को मारने के इरादे से गोली चला रही थी, लेकिन अपराधी पुलिस अधिकारी के पैर पर निशाना ले रहे थे. पुलिस कहती है कि पीछा करने पर अपराधी हरदुआगंज के मछुआ नहर के पास बनी सिंचाई विभाग की कोठरी में घुस गए. दोनों तरफ से एक घंटे मुठभेड़ चली, जिसमें नौशाद और मुस्तकीम मारे गए. वे दो साधुओं समेत छह लोगों की हत्या में वांछित अपराधी थे.
इस ‘लाइव’ मुठभेड़ का सच यह है कि 18 सितम्बर को प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए पुलिस ने अपराधियों को गिरफ्तार किए जाने की जानकारी दी थी. यह प्रेस कॉन्फ्रेंस हड़बड़ी में बुलाई गई थी, क्योंकि 16 सितम्बर को अतरौली से छह लड़कों को पुलिस द्वारा उठाए जाने के बाद से उनके परिजन परेशान थे और उन्हें तलाश रहे थे. पकड़े गए युवकों में शामिल इरफान को उसकी पत्नी समीरा ने डॉक्टर यासीन के साथ अलीगढ़ एसएसपी कार्यालय में देख लिया. इरफान की ओर वह बढ़ी, लेकिन पुलिस ने उसे रोक लिया. इरफान की पत्नी को भी पकड़ कर महिला पुलिस के हवाले कर दिया गया. इसके बाद ही प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर पांच लड़कों को गिरफ्तार दिखाया गया, जिनमें इरफान और यासीन शामिल थे. पुलिस ने मुस्तकीम, नौशाद और अफसर को भगोड़ा करार देते हुए प्रत्येक पर 25 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा की. मुस्तकीम नौशाद का रिश्ते में बहनोई था.
दूसरी तरफ मुस्तकीम और नौशाद के परिजनों को पुलिस ने उनके घरों से बाहर नहीं निकलने दिया. इस पर सवाल उठाने पर ‘यूनाईटेड अगेन्स्ट हेट’ की टीम पर अतरौली थाने में हमला हुआ. रिहाई मंच का कहना है कि हाजी इमरान नामक शख्स की इस मामले में संदेहास्पद भूमिका है. उसने ही इरफान को पुलिस के हवाले कराया और उसी ने मुस्तकीम और नौशाद को भी पुलिस से पकड़वाया. बाद में मुस्तकीम और नौशाद दोनों ही फर्जी लाइव मुठभेड़ में मारे गए. नौशाद की उम्र 17 वर्ष थी और मुस्तकीम 22 साल का था. लाशों को बिना धार्मिक रीति रिवाज के दफना दिया गया और उनके परिजनों को एफआईआर की कॉपी और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट तक नहीं दी गई. गौर करने वाली बात यह भी है कि नौशाद और मुस्तकीम दोनों का पुलिस रिकॉर्ड में कहीं किसी अपराध में नाम नहीं है.