भाजपा की वर्तमान रणनीति से लग रहा है कि उसने रहीम के इस दोहे को बखूबी समझा है कि जहां काम आवे सुई, कहां करै तलवारि. भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में छोटे-छोटे स्थानीय दलों को अपने साथ साधने-बांधने में जुटी हुई है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कुछ ही दिनों पहले चेन्नई में यह घोषणा कर चुके हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा तमिलनाडु में गठबंधन की घोषणा करेगी. तमिलनाडु समेत कई राज्यों में भाजपा छोटी-छोटी रजिस्टर्ड लेकिन गैर मान्यता प्राप्त पार्टियों से गठजोड़ की कवायद में लगी है.
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इस फार्मूले पर तमिलनाडु के साथ-साथ ओड़ीशा, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी काम हो रहा है. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड दिल्ली, हरियाणा और पूर्वोत्तर के राज्यों में विपक्ष भाजपा के सहयोगियों में सेंधमारी की कोशिश कर रही है तो भाजपा उनमें. खास तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों में छोटे क्षेत्रीय दलों को साथ लेने से भाजपा को विधानसभा चुनावों में जो सफलता मिली है, उसने भाजपा का आत्मविश्वास अधिक बढ़ाया है.
पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अपना दल और वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ समझौता करके भाजपा कामयाबी हासिल कर चुकी है. पूरे देश में सौ से अधिक ऐसे छोटे दल हैं जो चुनाव नहीं जीत पाएं, लेकिन उनके हाथ में 50 हजार से 10 लाख तक वोट हैं. लिहाजा, भाजपा इन छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने में फायदा देखती है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का यह बयान आ चुका है कि वर्ष 2019 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का कुनबा विपक्षी दलों से बड़ा होगा.
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भाजपा अपना कुनबा बढ़ाने के लिए अनाम ओड़ीशा पार्टी, बहुजन मुक्ति पार्टी, बहुजन विकास अघाड़ी, भारिप बहुजन महासंघ, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जयभारत समानता पार्टी, जय सम्यक आंध्र पार्टी, लोकसत्ता पार्टी, मनिथनेया मक्काल काची (एमएमके), पुथिया तमिलागम (पीटी), पिरामिड पार्टी ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय समाज पक्ष, वीसीके, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया जैसे कई छोटे-छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने के प्रयास में लगी है.